प्रश्न: 1 भगवत् गीता का दर्शन किस प्रकार प्रशासकों हेतु प्रेरणास्त्रोत हैं?
उत्तर: गीता का नीतिशास्त्र: निष्काम कर्मयोग 2. स्वधर्म का पालन 3. कर्म आधारित वर्ण व्यवस्था 4. स्थितप्रज्ञ 5. पुरुषार्थ व्यवस्था 6. प्रवृति व निवृति तथा ज्ञान, कर्म व भक्ति मार्ग का समन्वय 7. कर्म विभाजन पर आधारित आश्रम व्यवस्था भगवत् गीता के नीतिशास्त्र की प्रशासन में भूमिकाः
• गीता का निष्कामकर्म योग प्रशासकों की फल की इच्छा से निवृत होकर कर्म को सत्यनिष्ठा, समर्पण व प्रतिबद्धता के साथ पूर्ण कुशलता से करने का संदेश देता है। गीता का स्वधर्म प्रशासकों को अपनी योग्यता व पदानुसार निर्धारित कर्तव्यों के निरन्तर पालन व अन्यों के कार्यो में हस्तक्षेप न करने हेतु प्रेरित करता है। स्थितप्रज्ञ की अवधारणा प्रशासकों हर परिस्थिति में समान व्यवहार करने व भावनाओं के वंशीभूत ना होते हुए व्यक्तिगत हितों पर समाज हितों को प्रधानता देकर नैतिक दुविधा का समाधान करती है।
• गीता जन्म के स्थान पर कर्मआधारित वर्णव्यवस्था को महत्व देती है जो प्रशासकों को
जातिवाद, छूआछूत, उच्च निम्न आदि समप्रत्ययों से ऊपर उठकर कर्म के आधार पर व्यक्ति का मूल्यांकन करने हेतु प्रेरित करती है।
पुरुषार्थ व्यवस्था प्रशासक को अपने सार्वजनिक व निजी दोनों जीवन में धर्मानुसार (नैतिकता)कर्म, आवश्यकतानुसार संग्रह, विषय लोलुपता जिसके उपउत्पाद लालच, भ्रष्टाचार आदि है पर विजय व कर्त्तव्यपालन की प्रेरणा।
समन्वयशास्त्र गीता का प्रवृति मार्ग प्रशासक को निरन्तर अपने कर्म में प्रवृत रहने निवृति मार्ग लाभ, प्रशंसा, निंदा से निवृत रहने व भक्ति मार्ग (किए गए कर्म का फल अवश्य मिलेगा) पद का सदुपयोग करते हुए कर्म का पालन करने को कहता है।
गीता प्रशासकों को सत्यनिष्ठा, वस्तुनिष्ठता, निष्पक्षता, जनसेवा, सहिष्णुता, प्रतिबद्धता, समर्पणभाव आदि मूल्य सिखाती है।
प्रश्न: 2 “मनुष्यों के साथ सदैव उनको, अपने आप में ‘लक्ष्य’ मानकर व्यवहार करना चाहिए, कभी भी उनको केवल ‘साधन’ नहीं मानता चाहिए।” आधुनिक तकनीकी आर्थिक समाज में इस कथन के निहितार्थो का उल्लेख करते हुए इसका अर्थ और महत्त्व स्पष्ट कीजिए।
उत्तरः जर्मन दार्शनिक कांट का यह विचार है कि “सभी मनुष्य साध्य है साधन नहीं का तात्पर्य है कि सभी मनुष्यों में मनुष्यता विद्यमान है और वे अपने आप में सम्प्रभु व स्वतंत्र है अतः हमें स्वयं में व अन्यों में निहित मनुष्यता का सम्मान करना चाहिए व स्वहित हेतु किसी अन्य मनुष्य का शोषण या प्रयोग नहीं करना चाहिए।
आधुनिक तकनीकी-आर्थिक समाज में इस कथन के निहितार्थ निम्नलिखित है।
• उत्पादन में मुनाफा कमाने हेतु खाद्य वस्तुओं में मिलावट द्वारा लोगों के जीवन से खिलवाड़ नहीं किया जाना चाहिए।
• मीडिया द्वारा गैर-जरूरी मामलों में मीडिया ट्रायल व स्टिंग ऑपरेशन के बहाने किसी भी निजता का हनन नहीं किया जाना चाहिए।
कम्प्यूटर, इंटरनेट व आधुनिक तकनीको का प्रयोग कर किसी के फोटो (महिला/पुरुष) से छेड़छाड़ कर उनकी गरिमा भंग करने का प्रयास नहीं करना चाहिए।
कार्यस्थल पर कर्मचारियों को मशीनों की भाँति कार्य ना करवाकर उन्हें उचित कार्यदशाएँ उपलब्ध करवाई जानी चाहिए।
किसानों द्वारा आर्थिक तंगी के कारण आत्महत्या नहीं की जानी चाहिए।
यह विचार इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यदि सभी मनुष्य एक-दूसरे की मनुष्यता का सम्मान करेंगे तो समाज में विवादों व पारस्परिक तनाव में कमी आएगी, सामाजिक सौहार्द व न्याय की स्थापना होगी जो सामाजिक व देश की प्रगति हेतु आवश्यक है।
प्रश्नः 3 सत्यनिष्ठा के विभिन्न प्रकार समझाइए।
उत्तरः – बौद्धिक:- समस्त पूर्वाग्रहों से रहित होकर, एकसमान मापदण्डों के आधार पर सभी _ विचारधाराओं का मूल्यांकन तथा विशेषतः स्वयं की विचारधारा का कठोरतापूर्वक मूल्यांकन
पेशेवर/व्यावसायिक सत्यनिष्ठा:- प्रत्येक व्यवसाय की अपनी एक जैविक आचारसंहिता होती है तथा लोगों को उसका अनुसरण करना चाहिए जैसे- चिकित्सक को अपने मरीज का ईलाज करना चाहिए भले वो उसका शत्रु ही हो।
व्यक्तिगत सत्यनिष्ठाः- एक व्यक्ति को अपने स्वयं के नैतिक मूल्यानुसार कार्य करना चाहिए।
सामाजिक सत्यनिष्ठाः- हमें हमारे समाज द्वारा समर्पित मानकों के अनुरूप व्यवहार करना चाहिए।
सौंदर्यात्मक सत्यनिष्ठाः- एक कलाकार को केवल उन्हीं मूल्यों का प्रसार करना चाहिए जिनका वो वास्तव में समर्थन करता है न कि उनका जिन्हें वो आर्थिक लाभ के कारण मजबूरी में मानता है जैसे:- अमिताभ बच्चन द्वारा साफ्ट ड्रिंक का विज्ञापन छोड़ना
प्रशासनिक सत्यनिष्ठाः- प्रशासकों को संवैधानिक मूल्यों में विश्वास होना चाहिए, नियम-विनियम कानूनों का पालन करना चाहिए।
ब्राण्ड सत्यनिष्ठाः- किसी फर्म के उत्पाद की गुणवत्ता ब्राण्ड की प्रतिष्ठा के अनुरूप होनी चाहिए।
नैतिक सत्यनिष्ठाः- नैतिक नियमों व सिद्धांतों के अनुरूप आचरण
प्रश्नः 4 ज्वालामुखी एवं भूकम्पों के संदर्भ में प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत को समझाइये।
उत्तर:- प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत 1960 के दशक में स्थलमण्डलीय प्लेटों के निर्माण व गति को समझाने के लिए दिया गया जो कि विभिन्न भू-आकृतिक घटनाओं जैसे भूकम्प, ज्वालामुखी, महाद्वीपीय विस्थापन एवं पर्वत निर्माण के लिए उत्तरदायी है।
इस सिद्धांत के अनुसार स्थलमण्डल पर सात मुख्य प्लेटें एवं कुछ छोटी प्लेटें, गर्म लावा के कारण उत्पन्न तापीय संवहन धारा के कारण दुर्बलता-मण्डल पर गतिशील रहती है। इन प्लेटों की सापेक्षिक गति विभिन्न प्लेट किनारों जैसे अभिसरित, अपसरित एवं संरक्षी का निर्माण करती है। प्लेटों की यह गति भूकम्प एवं ज्वालामुखी के लिए उत्तरदायी है।
ज्वालामुखीयता अपसरित एवं अभिसरित किनारों से संबंधित है। अपसरित किनारों पर मुख्यतया समुद्री बेसिन में ज्वालामुखी द्रोणी का निर्माण होता है और यह कम विस्फोटक होते है वहीं अभिसरित किनारों पर विस्फोटक ज्वालामुखी चोटियों एवं द्वीपों का निर्माण होता है। अभिसरित प्लेट किनारों पर उच्च तीव्रता उपसरित प्लेट किनारों पर मध्यम तीव्रता एवं संरक्षी प्लेट किनारों पर कम तीव्रता के भूकम्प आते हैं। चूँकि ज्वालामुखी एवं भूकम्प प्लेटों की गति से संबंधित है इसीलिए विश्व के प्रमुख ज्वालामुखी एवं भूकम्प पट्टियाँ इन क्षेत्रों में पायी जाती है साथ ही अभिसरित किनारों पर जहाँ वलित पर्वतों का निर्माण (हिमालय) होता है वहीं अपसरित किनारों पर द्रोणी (मध्य महासागरी व कटक)।
प्रश्नः 5 राजस्थान में शीत ऋतु की जलवायवीय दशाओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर: राजस्थान में शीत ऋतु दिसम्बर से फरवरी के बीच होती है तथा इसका कारण ITCZ का दक्षिणी गोलार्द्ध में स्थापित होना है। इस ऋतु की जलवायवीय दशाएं निम्न है।
तापमानः- महाद्वीपीय प्रभाव के कारण राजस्थान में अतिनिम्न तापमान रहता है। जनवरी के दौरान उत्तरी राजस्थान का तापमान 10°C से भी कम होता है जबकि हाड़ौती क्षेत्र में तापमान 20°C रहता है। जबकि शेष राजस्थान में तापमान 10-20°C के बीच रहता है। हिमालयी क्षेत्र में आने वाली शीत लहर के कारण कुछ क्षेत्रों में तापमान जमाव बिन्दु तक भी पहुँच जाता है। जनवरी सर्वाधिक ठण्डा महीना होता है।
दाबः- इस समय राजस्थान में उच्च दाब परिस्थितियाँ पायी जाती है और यह दाब 1019 mb से 1088 mb के लगभग होता है उत्तर पश्चिम राजस्थान में अति उच्च दाब परिस्थितियाँ होती
पवनें:- इस ऋतु में मुख्यतया ठण्डी व शुष्क पवनें चलती है। जो कि उच्च दाब से निम्न दाब की ओर बहती है (उत्तर पश्चिम – दक्षिण पूर्व) मध्य एशिया एव उत्तरी भारत से आने वाली शीत लहर इस क्षेत्र के तापमान को शीत ऋतु में और भी कम कर देती है।
वर्षाः- सामान्यतया शीत ऋतु शुष्क होती है लेकिन पश्चिमी विक्षोभ (भूमध्य सागर से आने वाला चक्रवातीय विक्षोभ) के माध्यम से कुछ वर्षा प्राप्त होती है। यह वर्षा मावठ कहलाती है जो रबी की फसलों के लिए अच्छी होती है। शीत ऋतु में पाला एवं कोहरा राजस्थान में सामान्य घटनाएँ होती है।
प्रश्नः 6 कृषि के क्षेत्र में जैव प्रौद्योगिकी के उपयोग लिखिए।
उत्तर:- जैव प्रौद्योगिकी की सहायता से कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए बहुत-सी उच्च उत्पादक किस्मों का विकास किया गया है जैसे IR-8 चावल व हाशी गेहूँ।
ऐसी किस्मों का विकास किया गया है जो विषम पर्यावरणीय परिस्थितियों (सूखा, लवणता आदि) में जीवित रह सकती है जैसे AtDBF2 जीन का प्रयोग करके टमाटर व तम्बाकू की किस्म का विकास।
इस तकनीक का प्रयोग करते हुए फसलों में कीट प्रतिरोधक क्षमता विकसित की गई है जैसे बी.टी. कपास, बी.टी. बैंगन,
जैव प्रौद्योगिकी की सहायता से बहुत से कृषि उत्पादों में पोषक तत्वों की मात्रा बढ़ायी गई है जैसे गोल्डन राइस (विटामिन-A) सुपर बनाना (Vita-A)
जैव प्रौद्योगिकी की सहायता से कृषि उत्पादों की भण्डारण क्षमता को बढ़ाया गया है जैसे टमाटर में एन्टी सेन्स जीन समायोजित कर फ्लोवर-सेवर का विकास।
जैव प्रौद्योगिकी का उपयोग करते हुए ऐसे जीवों की पहचान की गई है जिनका उपयोग मृदा की उर्वरकता बढ़ाने के लिए किया जा सकता है जैसे- राइजोबियम, एजोला, एजेयेबैक्टर, नौस्टॉक, एनाबीना, एजोस्प्रीलियम आदि।
जैव प्रौद्योगिकी की सहायता से दिल्ली विश्वविद्यालय के वैज्ञानिको में जी.एम. सरसों विकसित किया है, जो शाकनाशी तथा उच्च उत्पादक किस्म है।
प्रश्नः 7 चिकित्सा के क्षेत्र में नैनो तकनीक के उपयोग लिखिए।
उत्तर :- बीमारियों की जांच एवं उपचार हेतु विकसित उत्पाद निम्नलिखित है
NOSE :- ऐसे संवेदक या सेंसर जो बीमारियों के दौरान शरीर में उत्पन्न रसायनों को गंध के आधार पर पहचान कर बीमारी की पहचान करते है।
प्रतिदीप्ति नैनो कणों का प्रयोग MRI, CT स्केन के दौरान करते है। जिससे कैंसर कोशिकाओं की सटीक पहचान की जा सकती है।
नैनो तकनीक से विकसित दवा एवं नैनो रोबोट का उपयोग निश्चित कोशिकाओं तक दवा पंहुचाने के लिए किया जाता है।
नैनोट्वीजर :- इन सूक्ष्म शल्य क्रिया उपकरणों से कोशिका स्तर की शल्यक्रिया संभव है। पेप्टाइड नैनो ट्यूब का उपयोग जीवाणुओं को नष्ट करने हेतु किया जाता है जैसे MDRTB का उपचार
नैनो क्रिस्टलाइन सिल्वर का उपयोग बैण्डेज में एण्टीमाइक्रोबियल एजेन्ट के रूप में करते है।
एल्यूमिनोसिलिकेट नैनों कणों का प्रयोग रक्त स्त्राव को रोकने में किया जाता है।
नैनो तकनीक से विकसित नैनो कर्ण – 60 db तक ध्वनि सुनने में सक्षम
नैनो तकनीक पर आधारित मैग्नेटिक एक्टीवेटेड सेल सोर्टिंग तकनीक का प्रयोग करके रूधिर से हानिकारक पदार्थों को अलग किया जाता है।
प्रश्नः 8 उत्प्रेरक क्या है? इनकी प्रमुख विशेषताएं बताते हुए इनके प्रमुख प्रकारा का संक्षिप्त में वर्णन कीजिए।
उत्तर :- किसी रासायनिक अभिक्रिया में उपस्थित वह बाह्य पदार्थ जो स्वयं अपरिवर्तित रहते हुए अभिक्रिया की गति में परिवर्तन कर देता है जैसे

विशेषताएं
उत्प्रेरक स्वयं अपरिवर्तित रहता है तथा इसकी सुक्ष्म मात्रा ही पर्याप्त होती है।
उत्प्रेरक अभिक्रिया को प्रारम्भ नहीं करता बल्कि वेग में परिवर्तन करता है।
उत्प्रेरक से साम्यावस्था अप्रभावित रहती है ।
इसकी प्रकृति विशिष्ट होती है।
अभिक्रिया की सक्रियण ऊर्जा कम कर देते है।
प्रकार :धनात्मक उत्प्रेरक :- वेग को बढ़ा देते है N_2 + 3H_2 □(→┴Fe ) 2NH_3
ऋणात्मक उत्प्रेरक :- वेग को कम कर देते है
2H_2 0_2 □(→┴(ग्लिसरीन) ) 2H_20 + 0_2
स्व उत्प्रेरक :- जब अभिक्रिया का उत्पाद ही उत्प्रेरक का कार्य करे-
CH_2COOC_2 H_5 + H_2O → CH_3COOH + C_2 H_5OH
(एथिल एसिटेट) (एसिटिक अम्ल) (एथेनॉल)
जैव रासायनिक अभिक्रिया के उत्प्रेरक को एन्जाइम
ग्लूकोज □(→┴(जाइमेज) ) एल्कोहल
प्रोटीन □(→┴(टिप्सिन) ) एमीनो अम्ल
प्रेरित उत्प्रेरक :- दो अभिक्रिया एक साथ होने पर प्रथम अभिक्रिया द्वारा द्वितीय को उत्प्रेरित करना।
उदाहरणः सोडियम सल्फाइड एवं सोडियम आर्सेनाइट का एक साथ ऑक्सीकरण।
प्रश्नः 9 जीएम मस्टर्ड क्या है इसके व्यावसायिक उपयोग की अनुमति देनी चाहिए या नहीं। तर्क दीजिए।
उत्तर : यह जीन परिवर्तित, उच्च उत्पादन तथा शाकनाशी प्रतिरोधी संकर किस्म है, जिसे दिल्ली विश्व-विद्यालय के सेन्टर फॉर जेनेरिक मेनिपुलेशन ऑन क्रॉप प्लाट के वैज्ञानिक दीपक पेन्टल एवं उनके सहयोगियों ने विकसित किया है। इसमें बेसिलस एमाइलोलिकिवफेनस जीवाणु के बारनेज तथा वारस्टार जीन का प्रयोग किया जिससे यह ग्लुफोसिनेट शाकनशी दवाई के विरूद्ध प्रतिरोधी हो सके।
इसे (धारा मस्टर्ड-11) जेनेटिक इंजीनियरिंग अप्रूवल समिति ने अनुमति की सिफारिश की है लेकिन पर्यावरण मंत्रालय ने अनुमति अभी तक नहीं दी है।
पक्ष में तर्क-
इससे सरसों उत्पादन में भारतीय किस्म वरूण की तुलना में 30 प्रतिशत बढ़ोतरी होगी।
इसमें भारत खाद्य तेलों के आयात को कम कर सकता है ।
इससे सरकारी परियोजना के अनुसंधान को बढ़ावा मिलेगा।
विपक्ष में तर्क-
इसको अनुमति देने से अन्य खाद्य जीएमओ के लिए भी प्रवेश द्वार खुलेंगे ।
इससे मनुष्य के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है जो अभी अनुसंधान का विषय है ।
यह केवल ग्लुकोसिनेट शाकनाशी के विरूद्ध प्रतिरोधी है अतः विशेष कम्पनी को प्रोत्साहन मिलेगा।
इस किस्म को अधिक पानी एवं उर्वरक की जरूरत है।
यह शब्द उत्पादन को प्रतिकूल प्रभावित करेगी।
प्रश्नः 10 संक्षारण क्या है? और इसको प्रभावित करने वाले कारक कौन-कौनसे हंर तथा इसकी रोकथाम कैसे की जाती है?
उत्तर : वह सामान्य प्रक्रिया जिसके द्वारा धातुएँ वायुमण्डल में उपस्थित गैसीय तथा द्रव पदार्थों के साथ क्रिया करके अवांछित पदार्थ जैसे : सल्फाइड ऑक्साइड आदि का निर्माण करके अवनत हो जाती है संक्षारण कहलाती है।
जैसे : लोहे पर जंग लगना और ताम्बे के बर्तनों का हरा होना
कारकः
धातु क्रियाशीलता : जो धातु जितनी अधिक क्रियाशील होगी उसका उतना ही अधिक संक्षारण होगा। (सोना, प्लेटिनम – बहुत कम क्रियाशील व संक्षारण बहुत कम)
अशुद्धि की मात्रा : अशुद्धि की मात्रा धातुओं में बढ़ने पर संक्षारण बढ़ता है।
लवणो की उपस्थिति : इससे भी संक्षारण बढ़ता है साधारण जल की अपेक्षा समुद्री जल में संक्षारण अधिक।
रोकथाम : रोकथाम के लिए लोहे पर अधिक क्रियाशील धातु जैसे: जिंक की परत चढ़ा दी जाती है जिससे लोहा वातावरण के सीधे सम्पर्क में नहीं रहता है। तथा जिंक (जस्ता) के सीधे वातावरण के सम्पर्क में रहने से उसका संक्षारण होता रहता है तथा आयरन सुरक्षित रहता है इसके अतिरिक्त धातुओं की सतह पर ग्रीस/Oil/Paint या जंगरोधी विलयनों (सोडियम फास्फेट) का लेपन करने से भी संक्षारण की रोकथाम संभव है।
SUBJECT QUIZ
प्रश्नः 11 भारत में विभिन्न वनों का उल्लेख कीजिए और आई.एस.एफ.आर 2017 क अनुसार वन स्थिति का भी उल्लेख कीजिए।
उत्तर : भारत में पाये जाने वाले वनों को विभिन्न तरीकों से वर्गीकृत किया जा सकता है। जिसमें आरक्षित, संरक्षित व अवर्गीकृत वन, इसी प्रकार सार्वजनिक, सामुदायिक व निजी वनों में वर्गीकरण किया गया है।
उष्णकटिबन्धीय सदाबहार वन :- ये 200 से.मी. से अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों जैसे पश्चिमी घाट, उत्तर-पूर्वी राज्यों व अण्डमान-निकोबार में पाये जाते है। उदाहरण – महोगनी, इबोनी, रोजवूड
उष्णकटिबन्धीय पतझड़ वन :- 75 से 200 से.मी. वर्षा वाले क्षेत्रों में वाणिज्यिक रूप से महत्वपूर्ण, भारत के अधिकांश भाग में पाये जाते हैं। उदाहरण- साल, टीक आदि ।
उष्ण कटिबन्धीय काँटेदार वन :- 75 से.मी. से कम वर्षा वाले क्षेत्र में छोटी पत्तियाँ व कांटे पाये जाते है उदाहरण – खेजड़ी बबूल। पश्चिमी मरूस्थल क्षेत्र (<25 सेमी) में मरुद्भिद् वनस्पति जैसे कैक्टस पायी जाती है।
मैंग्रोव वन :- तटीय क्षेत्र में, न्यूमेटाफोर व लवणोंद्भिद, भारत में 4921 वर्ग किमी में मैंग्रोव विस्तृत (ISR-2017)
कोणीय अल्पाइन वनस्पति शामिल। ISFR- 2017
अतिसघन वन – 98,158 (वर्ग किमी)-2.99 %
मध्यम सघनवन- 3,08,318 (वर्ग किमी)-9.38 %
खुले वन – 3,01,797 (वर्ग किमी) – 9.18%
कुल वनावरण – 7,08,273 (वर्ग किमी)- 21.54%
कुल वृक्षावरण व वनावरण – 24.39 % है।
प्रश्न: 12 राजस्थान में पाये जाने वाले प्रमुख अधात्विक खनिजों का वितरण एवं उनका औद्योगिक उपयोग बताइए।
उतर :- राजस्थान में खनिजों की विविधता व सम्पन्नता के कारण इसे खनिजों का अजायबघर कहा जाता है। यहाँ 82 प्रकार के खनिज पाये जाते हैं जिसमें से 57 का उत्पादन होता है। यहाँ पाये जाने वाले प्रमुख अधात्विक खनिज निम्न प्रकार हैं
जिप्सम- नागौर, बीकानेर, बाड़मेर व उत्तरी राजस्थान, उपयोग- सीमेन्ट, गंधक अम्ल, प्लास्टर ऑफ पेरिस, उर्वरक निर्माण व क्षारीय भूमि का उपचार
रॉक फास्फेट- उदयपुर, जैसलमेर, सीकर, बांसवाड़ा में विस्तृत उपयोग- सुपर फास्फेट (रासायनिक खाद) निर्माण व लवणीय भूमि उपचार में।
वोलेस्टोनाइट :- सिरोही, अजमेर, पाली, उदयपुर, डूंगरपुर में व्याप्त उपयोग- पेंट कागज व सिरेमिक उद्योग में।
एस्बेस्टॉस :- उदयपुर, राजसमंद, डूंगरपुर, भीलवाड़ा, पाली व अजमेर में प्राप्त, उपयोग- सीमेन्ट चादर, पाइप भवन निर्माण सामग्री व रासायनिक उद्योगों में।
फेल्सपार :- अजमेर, भीलवाड़ा, पाली व अलवर में भंडार, उपयोग- सिरेमिक व कांच उद्योग, तथा टाइल अपघर्षण में।
अभ्रक :- भीलवाड़ा, अजमेर, राजसमंद व टोंक में पायी जाती है। उपयोग- ताप, ध्वनि व विद्युतरोधी गुणों के कारण इलैक्ट्रॉनिक्स, ताप भट्टी निर्माण, सजावट व सुरक्षा उद्योग में प्रयुक्त।
बेराइट :- अलवर, उदयपुर, भरतपुर, राजसंमद, भीलवाड़ा, जालौर आदि जिलों में प्राप्त, उपयोग- पेट्रोलियम उद्योग, तेल कुओं की ड्रिलिंग मड निर्माण पेंट व कागज उद्योग में प्रयुक्त।
इसके अलावा राजस्थान में बेन्टोनाइट, डोलामाइट, सोपस्टोन, चूनापत्थर, (जोधपुर, नागौर, प्रमुख), गेरू, चीनी मिट्टी, मुल्तानी मिट्टी (बाड़मेर, बीकानेर, जोधपुर) पन्ना, हीरा, संगमरमर व ग्रेनाइट भी उत्पादित होते है।
प्रश्नः 13 भारत के पश्चिमी तटीय मैदान व पूर्वी तटीय मैदान का तुलनात्मक वर्णन कीजिए।
उत्तर :- भारत की तटरेखा 7516 कि.मी. लम्बी है जिसमें से 6100 कि.मी लम्बी तटरेखा प्रायद्वीपीय पठार से लगती है जो तटीय मैदानों का निर्माण करती है। इसे दो भागों बांटा जाता है।
पश्चिमी तटीय मैदान –
पश्चिमी घाट व पश्चिमी तट रेखा के बीच स्थित मैदान को पश्चिमी तटीय मैदान कहते हैं।
ये सूरत से लेकर कन्याकुमारी तक लगभग 1600 किमी. लम्बा है।
ये 10 से 80 किमी. तक चौड़ा है जो 64000 वर्ग किमी. में फैला है।
इसे कोकण कन्नड़ व मालाबार के मैदान में बांटा जाता है।इस तट पर बालू के अनेक टीले एवं लैगून मिलते है।
इस मैदान में बहने वाली नदियां छोटी व तीव्रगामी हैं। जो एश्चुरी का निर्माण करती है।
इस मैदानी भाग में अधिक वर्षा होती है।
इसमें वर्षा केवल ग्रीष्म ऋतु में ही होती है।
इसमें नारियल, गरम मसाले, सुपारी केला व चावल की कृषि की जाती है।
पूर्वी तटीय मैदान –
पूर्वी घाट व पूर्वी तट रेखा के बीच स्थित मैदान को पूर्वी तटीय मैदान कहते है।
ये सुवर्णरेखा नदी से कन्याकुमारी तक 2100 किमी. लम्बा है
ये 100-200 किमी. तक चौड़ा है जो 102000 वर्ग किमी. में फैला है।
इस पर बालूका स्तुपों की अधिकता है।
इस मैदान में बहने वाली नदीयां लम्बी व मंदगति की होती है, जो डेल्टा का निर्माण करती है।
इसमें वर्षा की मात्रा पश्चिमी मैदान से कम रहती है।
इसमें वर्षा ग्रीष्म व शीत दोनों ऋतुओं में होती है।
इस मैदान में प्रमुखता से चावल की कृषि की जाती है।
प्रश्नः 14 वायु प्रदूषण क्या है इसके कारण तथा रोकने के उपाय बताओं।
उत्तर :- WHO के अनुसार वायुप्रदूषण वह स्थिति है जिसमें वायुमण्डल में ऐसे पदार्थों की मात्रा बढ़ जाती है जो जीव एवं पर्यावरण के लिए हानिकारक होती है। वायुमण्डल में होने वाला अवांछनीय परिवर्तन वायु प्रदूषण कहलाता है।
औद्योगीकीकरण, यातायात के साधन, जनसंख्या वृद्धि, वनों की कटाई इसके प्रमुख कारण है। जिससे वायुमण्डल मे कार्बनमोनोक्साइड, सल्फर डाई-ऑक्साइड, नाइट्रोजन के आक्साइड, सीसा, बेन्जीन एवं अन्य हाइड्रोकार्बन की मात्रा बढ़ जाती है जो मनुष्य में कैंसर एलर्जी, निमोनिया जैसे अनेक रोगों को जन्म देते है। वायुप्रदूषण ग्रीन हाउस प्रभाव, जलवायु परिवर्तन, ओजोन परत क्षरण तथा अम्लीय वर्षा का भी कारण है।
औद्योगिक वायु प्रदूषण को रोकने हेतु साइक्लोन सेपरेटर, इलेक्ट्रोस्टेटिक प्रेसिपिटेटर, स्क्रबर, वाय अवशोषक प्लेटों आदि का प्रयोग किया जा सकता है। वाहनों से निकलने वाले धुआँ में प्रदुषकों को कम करने हेतु केटाबालिक कन्वर्टर, यूरोमानक/भारत मानक का ईंधन तथा उच्च तकनीक के इंजनों का प्रयोग। गैर परम्परागत एवं नवीकरणीय ऊर्जा संसाधनों के विकास को अधिक महत्व दिया जाना चाहिए।
लोगों को वायुप्रदुषण के प्रति जागरूक करना एवं अधिक से अधिक वनारोपण करके वायु प्रदुषण के प्रभाव को कम किया जा सकता है।
प्रश्न: 15 विश्वव्यापी वर्गीकरण के आधार पर राज्य की मिट्टीयों का वर्गीकरण प्रस्तुत करें।
उत्तर :– विश्वव्यापी वर्गीकरण के आधार पर राज्य की मिट्टीयों को 5 समूहों में बाँटा जाता है।
एन्टीसोल्स :- विभिन्न प्रकार की जलवायु में स्थित मृदा समुह एन्टीसोल्स कहते हे।
राज्य के पश्चिमी भाग के 12 जिलों में इस प्रकार का मृदा समूह पाया जाता है।
इसका रंग हल्का पीला-भूरा होता है जो रेतीली मृदा समूह के समान होता है।
राज्य में इस समूह के दो उप मृदा समूह पाए जाते है।
1 सामेन्ट्स- राज्य में इसका टोरी सामेन्ट्स समूह है।
2 फ्लूवेन्ट्स- राज्य में इसके दो समूह
a. टोरी फ्लूवेन्ट्स
b. उष्टीफ्लूवेन्ट्स पाये जाते हैं।
एरिडीसोल्स :- ये मृदा अर्द्ध शुष्क जलवायु क्षेत्रों में ही पाई जाती है।
• ये भूरी रेतीली मृदा समूह के समान होती है।
• राज्य में केवल इसका “ऑरथिड” समूह ही पाया जाता है।
• राज्य के चुरू सीकर, झुंझुनूं, नागौर, जोधपुर, पाली व जालौर जिलों में पाई जाती है।
इनसेप्टीसोल्स :- ये मृदा अर्द्ध शुष्क से लेकर आर्द्र जलवायु क्षेत्रों में पायी जाती है, लेकिन शुष्क जलवायु क्षेत्रों में नही पाई जाती है।
• राज्य में इसका उष्टोक्रेप्ट्स समूह, पाया जाता है।
• ये लाल-लोमी मृदा के समान होती है।
• ये राज्य के सिरोही, पाली, राजसमंद, भीलवाड़ा, चितौड़ व उदयपुर जिलों में विस्तृत है।
अल्फीसोल्स :- इस मृदा का निर्माण प्रवाहित जल द्वारा लाई गई गाद के जमा करने से होता है।
• ये जलोढ़ मृदा के समान होती है।
• कृषि की दृष्टि से उतम मृदा मानी जाती है।
• राज्य के उ.पूर्वी मैदानी भागों में पाई जाती है।
वर्टीसोल्स :- इसका निर्माण उष्ण व उपोष्ण क्षेत्रों में लावा उद्गार से होता है। इसे काली/कपासी/या रेगूर मृदा भी कहते है।
• इसके कण छोटे होते है तथा इसमें मतिका (clay) की अधिकता होती है।
• राज्य के झालावाड़, कोटा, बारां व बंदी जिलों में यह मुदा पाई जाती है।
प्रश्नः 16 राजस्थान में कृषि अनुसंधान की स्थिति स्पष्ट करों।
उत्तर :- किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार में कृषि अनुसंधान की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। राजस्थान के कुल क्षेत्रफल में 61 प्रतिशत मरूस्थल, मृदा में पोषक तत्वों की कमी जल की सीमित उपलब्धता आदि कारणों से उच्च तकनीक का प्रयोग करके ही कृषि उत्पादन को बढ़ाया जा सकता है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार तथा राजस्थान सरकार ने प्रदेश में अनेक अनुसंधान संस्थान स्थापित किए है जिनमें से प्रमुख निम्न है।
CAZRI- Central Arid Zone Reserch Centre Jodhpur मरूस्थल के प्रसार को रोकने तथा शुष्क क्षेत्र के अनुसार कृषि अनुसंधान हेतु कार्यरत प्रमुख संस्थान।
National Research Centre on Seed Spices – Tabiji Ajmer – मसाला बीजीय अनुसंधान को बढ़ाने हेतु ICAR के अधीन कार्यरत प्रमुख संस्थान है।
Directorate of Rapseed Mustard Research-Sewar भरतपुर – सरसों उत्पादन में राजस्थान प्रथम स्थान पर है। यह संस्थान उन्नत किस्म के बीज विकसित करता है।
Central Institute for Arid Horticulture – Beechhwal बीकानेर – राज्य में बागवानी के क्षेत्र में अनुसंधान को बढ़ाने के लिए प्रमुख संस्थान । राजस्थान में बेर, सन्तरा, अनार खजुर आदि के बगीचे लगाए गए है।
Rajasthan Agriculture Rasearch Institute – Durgapura जयपुर – कोटपुतली, तबीजी तथा डिग्गी में इसके उपकेन्द्र भी है।
इनके अतिरिक्त राज्य में कृषि विज्ञान केन्द्र कृषि विश्वविद्यालय आदि भी अनुसंधान का कार्य करते
प्रश्नः 17 आप उत्तर भारत के एक जिले की तहसील में उपजिलाधिकारी के रूप में Springbeard क्षेत्राधिकार में कई बालिका सुधार गृह चल रहे हैं। अभी हाल ही में एक स्वतंत्र संस्थान द्वारा किये गये सर्वे एवं निरीक्षण की रिपोर्ट में आपके क्षेत्राधिकार के दो बालिका सधार गहों की स्थिति के है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि कुछ बालिकाए डरी हुयी एवं चुपचाप रहती हैं। दो दिन पहले उन्हीं दोनों सुधार गृहों में से एक से कुछ बालिकाएं चुपके से भागकर आपको जानकारी देती हैं कि उनके साथ शारीरिक शोषण, प्रताड़ना तथा अन्य कई प्रकार के दुष्कर्म संस्था चलाने वाले व्यक्ति एवं पुलिस की मिलीभगत से किया जा रहा है। वे उन्हें फिर सुधार गृह भेज देंगे जहां उनकी पिटाई और शोषण फिर किया जायेगा। वे आपसे अपनी अन्य सहेलियों को वहां से छुड़ाने की प्रार्थना करती हैं। वह बताती हैं कि उनके साथ रोजाना दुष्कर्म किया जाता है। जब आप उस संस्था के मालिक के बारे में पता लगाते है तो आपको पता चलता है कि वह राज्य के मुख्यमंत्री का बहुत ही करीबी व्यक्ति है तथा उसका भाई महिला एवं बाल विकास मंत्री है। वह एक दबंग व्यक्ति है तथा उसकी आपराधिक पृष्टभूमि के कारण कोई उसके खिलाफ नहीं बोलता। स्थानीय पुलिस को डरा-धमका के एवं पैसे देकर अपने अनुसार कार्य करने पर मजबूर कर देता है। उस व्यक्ति की आपके जिले के जिलाधिकारी से भी अच्छे सम्बन्ध हैं। यदि आप उसके खिलाफ कार्यवाही करते हैं तो शायद आपका तबादला तुरन्त कर दिया जायेगा। ऐसी स्थिति में आपकी क्या कार्रवाही होगी? आपके पास क्या-क्या विकल्प उपलब्ध हैं?
उत्तर :- एक सिविल सेवक होने के नाते मेरा यह कर्त्तव्य है कि मैं संविधान एवं सेवा शर्तों के नियमों का पालन करते हुए अपने कार्य को अंजाम दूं। चूंकि मामला एक उच्च वर्ग के ऐसे व्यक्ति का है जो कि समाज की अनाथ बालिकाओं के लिए सुधार गृह चलाने का नाटक कर उनके साथ दुष्कर्म कर रहा है। यह अत्यंत ही जघन्य मामला है वो भी नाबालिग बालिकाओं के साथ। उपर्युक्त परिस्थिति में मेरे पास तीन विकल्प हैं
जब स्थानीय पुलिस एवं जिलाधिकारी तथा सरकार उसके पक्ष में है तो मैं क्यूं अपनी नौकरी को खतरे में डालूं। अतः मैं इस मामले को वहीं दबा दूं तथा उन बच्चियों को किसी अन्य सुधार गृह में भेज दूं।
मैं उन बच्चियों को मेडिकल जांच हेतु भेजूं तथा रिपोर्ट में उनके खिलाफ प्रताड़ना एवं दुष्कर्म की पुष्टि होने के बाद उसकी रिपोर्ट उच्च पदाधिकारियों को भेजकर कार्यवाई का जिम्मा उनके ऊपर छोड़ दूं।
मैं सबसे पहले उन बालिकाओं को चिकित्सकीय परीक्षण हेतु भेजूं तथा रिपोर्ट में उनके साथ हुए दुष्कर्म की पुष्टि होने के बाद उस संस्था के खिलाफ कदम उठाऊं। इसके लिए मैं एक रिपोर्ट तैयार कर इसकी जानकारी अपने जिलाधिकारी एवं अन्य वरिष्ठ अधिकारियों को दूं। यदि वे इस मामले में मुझे कार्रवाई करने से मना करें तो उन्हें ये बता दूं कि यह एक अत्यंत ही निन्दनीय एवं जघन्य अपराध है। उनहें ये भी समझाने का प्रयास करूं कि आज नहीं तो कल तक यह रिपोर्ट मीडिया में चली जायेगी फिर उन्हें भी अपनी नौकरी और साख बचाना मुश्किल पड़ जायेगा। साथ ही मैं कुशल एवं योग्य पुलिसकर्मियों एवं अधिकारीयों की टीम गठित करूंगा जो उस संस्थान की बालिकाओं को वहां से छुड़ाकर किसी अन्य सुधार गृह में स्थानान्तरित करे। मैं संस्था के मालिक तथा अन्य कर्मियों के खिलाफ गिरफ्तारी का वारंट जारी करूंगा ताकि दोषियों के खिलाफ शीघ्र कार्यवाही की जा सके।
चूंकि उस संस्थान के मालिक की पहुंच प्रदेश के मुख्यमंत्री एवं मंत्री तक है तो लाजमी है कि मुख्यमंत्री एवं अन्य मंत्रीयों के द्वारा मेरे ऊपर दबाव बनाया जाये। एसे में मैं उन्हें समझाने की कोशिश करूंगा कि यह समाज में गरीब एवं असहाय बालिकाओं के खिलाफ हुए शोषण एवं दुष्कर्म का मामला है। अतः मैं अपनी कार्यवाही जारी रखूगा तथा उन्हें मेरा साथ देने की बात कहूंगा।
उन्हें ये भी बताऊंगा की मामला अब खुल चुका है और कभी भी रिपोर्ट मीडिया के पास पहुंच सकती है और यदि लोगों को पता चल गया कि मुख्यमंत्री एवं मंत्री का भी इसमें हाथ है तो आपको अपने पद एवं प्रतिष्ठा से हाथ धोना पड़ सकता है। साथ ही उनका राजनीतिक कैरियर भी समाप्त हो जायेगा। इसके अलावा मैं योग्य अधिकारियों एवं सिविल सेवकों की एक समिति का गठन करूंगा जो मेरे क्षेत्राधिकार में चल रहे अन्य सुधार गृहों का निरीक्षण समय-समय पर कर अपनी रिपोर्ट देते रहें। जिससे भविष्य में इस प्रकार अन्य घटनाओं से बचा जा सके।