राजस्थान के प्रसिद्ध लोक-नृत्य
- भारत का शास्त्रीय नृत्य – भरतनाट्यम्।
- उत्तर भारत का शास्त्रीय नृत्य – कत्थक।
- दक्षिण भारत का शास्त्रीय नृत्य – कथकली (केरल)।
- राजस्थान का शास्त्रीय नृत्य – कत्थक।
शास्त्रीय नृत्य :- उत्तर भारत में शास्त्रीय नृत्य के दो आदिम घराने है।
- जयपुर घराना
- लखनऊ घराना।
- जयपुर घराना
प्रर्वतक :- भानूजी महाराज।
प्रसिद्ध :- बिरजू महाराज।
- इस घराने में पद व ताल को महत्व दिया जाता है।
- जयपुर शासक सवाई जयसिंह चन्द्र महल (सिटी पैलेस) के महल खास में बैठकर इस नृत्य को देखा करता था।
- सवाई जयसिंह के समय कत्थक नृत्य के प्रसिद्ध कलाकार हरि प्रसाद व हनुमान प्रसाद थे। जिन्हें सवाई जयसिंह ने देवपरियों की संज्ञा दी।
प्रसिद्ध नृत्यांगना :- लाछा प्रजापति, तारा शर्मा, रोहिणी, मालविका, प्रेरणा श्रीमाली। - पण्डित दुर्गालाल ने कत्थक नृत्य को विश्व में प्रसिद्ध किया।
कत्थक नृत्य से संबंधित शब्द :
- आमद :- कलाकार का मंच पर प्रवेश।
- थाट :- कलाकार का मंच के एक सिरे से दूसरे तक बिना पैर उठाये चलना।
- गणेश वंदना :- लोगों का अभिवादन करते हुए कलाकार गणेश वंदना करता है।
- उठान :- कलाकार का पद व ताल के साथ मंच के साथ खिलवाड़ करते हुए लोगों का मनोरंजन करना।
NOTES
- लखनऊ घराना :
प्रवर्तक :- ईश्वरी प्रसाद।
- इस घराने में भाव को महत्व दिया जाता है।
- लखनऊ घराने से ही यह नृत्य बनारस पहुंचा।
राजस्थान का राजकीय नृत्य :- घूमर ।
घूमर :- नृत्यों का सिरमोर/नृत्यों की आत्मा/राजस्थान का हृदय। - घूमर शब्द “घूम्म” धातु से बना है। जिसका अर्थ होता है-लहंगे का घेर।
- इसे केवल महिलाएं करती है।
- यह पुरुष रस प्रधान नृत्य है।
- यह सर्वाधिक गणगौर पर किया जाता है। जो चैत्र शुक्ल तृतीया को आती है।
- घूमर नृत्य का संबंध मध्य एशिया के मृग/भृग नृत्य से है।
- छोटी बालिकाओं द्वारा किया जाने वाला घूमर “झुमरियों” कहलाता है।
मारवाड़ के नृत्य :-
मारवाड़ के प्रसिद्ध नृत्य – 1. घुड़ला, 2. डांडिया, 3. मछली।
1. घुड़ला :- यह सर्वाधिक शीतलाष्टमी को किया जाता है। जो चैत्र कृष्ण अष्टमी को आती है।
- घुड़ला को संरक्षण रूपायन संस्थान बोरूंदा, जोधपुर ने दिया।
- इसे संरक्षण स्व. कोमल कोठारी ने दिलवाया।
- इस नृत्य का संबंध 1492 ई. में घटित घटना से है। इस समय मारवाड़ का शासक सातलदेव व अजमेर के सुबेदार मलू खाँ का सेनापति घुड़ले खाँ था।
- घुड़ले खाँ ने पीपाड़ स्थान जोधपुर में गोर की पूजा कर रही 140 कुवारी लड़कियों का अपहरण किया। सातलदेव ने लड़कियों को छुड़वाने के लिए घुड़ले खाँ से युद्ध किया।
- इस युद्ध में घुड़ले खाँ मारा गया।
- वर्तमान में यह नृत्य छिद्र युक्त मटकी के साथ किया जाता है।
- घुड़ले खाँ की पुत्री का नाम गिंदोली था।
- डांडिया :- यह नृत्य मूलतः गुजरात का है।
राजस्थान में डांडिया जोधपुर का प्रसिद्ध है।
यह सर्वाधिक अश्विन नवरात्रों में किया जाता है।
यह युगल नृत्य है। - मछली :- बंजारों के खेमे में पूर्णिमा की चांदनी रात को महिलाएं गोल घेरा बनाकर खड़ी हो जाती है। इस गोल घेरे के मध्य में कुंवारी लड़की होती है। जो स्वयं को पार्वती व चांद को शिव समझकर मछली की तरह तड़पते हुए नृत्य करती है। व बेहोश हो जाने तक नृत्य करती है।
यह राजस्थान का एकमात्र नृत्य है। जो हर्षोल्लास के साथ शुरू होता है व दुःख के साथ समाप्त होता है।
मेवात के नृत्य :
- बम नृत्य :- अलवर, भरतपुर।
कारण :-
i. फाल्गुन मास की मस्ती।
ii. नयी फसल आने की खुशी।
वाद्ययंत्र :- बम।
गीत :- रसिया।
- इसे पुरुष करते है।
2 खारी नृत्य (अलवर) :-
विवाह के अवसर पर दुल्हन की सहेलियों के द्वारा सिर पर खारी रखकर इस नृत्य को किया जाता है।
3 चरकुला नृत्य (भरतपुर) :-
यह मूलतः उत्तरप्रदेश का नृत्य है।
दीपावली के अवसर पर विवाहित महिलाएं दीपक युक्त थाली लेकर इस नृत्य को करती है।
SUBJECT QUIZ
शेखावाटी के नृत्य :-
1 चंग/ढफ नृत्य :- यह गाँव के चोक/गुवाड़ में किया जाता है।
- यह होली पर किया जाता है। जो फाल्गुन मास की पूर्णिमा को आती है।
- इसे केवल पुरुष करते है।
वाद्ययंत्र :- चंग/ढफ
गीत :- फाग/धमाल (ढफ नृत्य सर्वाधिक बसंत पंचमी पर किया जाता है।)
2 गीदड़ नृत्य :- यह डांडारोपण से होली तक किया जाता है। (डांडरोपण होली के एक महीने पहले होता है।) - इसे केवल पुरुष करते है।
- नृत्याकार गीदड़िया कहलाते है।
- वाद्ययंत्र :- नगाड़ा।
- इस नृत्य में वे पुरुष जो महिलाओं का भेष धारण करते है। गणगौर कहलाते है।
3 कच्छी घोड़ी नृत्य :- यह नृत्य मांगलिक अवसरों पर किया जाता है। - इसे केवल पुरुष करते है।
- यह लोक व्यवसायिक नृत्य है।
- इसमें नृत्याकार दुल्हे का भेष धारण करता है। व अपनी कमर में बांस की बनी घोड़ी बांधता है।
- इस नृत्य में पेटर्न बनाने की कला पायी जाती है।
ONE LINER QUESTION ANSWER
क्षेत्रिय नृत्य :-
1 तेरहताली नृत्य :-
- यह रामदेवजी के मेले का मुख्य आकर्षण है।
- इनका मेला भाद्रपद शुक्ल द्वितीया से एकादशी तक लगता है।
- नृत्य का उद्गम स्थल :- पादरला गाँव, पाली।
- इस नृत्य का सर्वाधिक कामड़ जाति की विवाहित महिलाएं बैठकर करती है।
- इस नृत्य में तेरह मंजिरे उपयोग में आते है। नौ मंजिरे दायें पैर में, दो दायें हाथ की कोहनी में, दो दोनों हाथों में लिये जाते है।
- इस नृत्य में पुरुष तंदूरा बजाते है| जो एक तत् वाद्ययंत्र है।
- प्रसिद्ध नृत्यांगना :- मांगी बाई।
- प्रसिद्ध कलाकार :- लक्ष्मण दास कामड़।
2 अग्नि नृत्य :- - नृत्य का उद्गम :- कतरियासर, बीकानेर ।
- सर्वाधिक जसनाथी सम्प्रदाय के पुरुष ।
- अंगारों का ढेर :- धुणा।
- कलाकार :- सिद्ध
- कलाकार धुणे पर नंगे पाँव चलता है। अन्य लोग फतै-फतै व सिद्ध कस्तम जी का नारा लगाते है।
- यह नृत्य सर्वाधिक अश्विन शुक्ल सप्तमी को किया जाता है। क्योंकि इसी दिन जसनाथ जी को ज्ञान प्राप्ति हुई थी।
3 चरी नृत्य :- - प्रसिद्ध :- किशनगढ़, अजमेर |
- इसे सर्वाधिक गुर्जर जाति की विवाहित महिलाएं करती है।
- प्रसिद्ध नृत्यांगना :- फलकू बाई व सुनीता रावत।
- इस नृत्य में महिला अपने सिर पर चरी रखती है। जिसमें कांकडा के बीज व तेल डालकर आग जलायी जाती है। व जलती हुई चरी के साथ नृत्य किया जाता है।
4 भवाई नृत्य :- - प्रवर्तक :- बाघाजी।
- नृत्य का उद्गम :- मेवाड़ से।
- यह नृत्य भवाई जाति के द्वारा किया जाता है। इस जाति की उत्पत्ति केकड़ी, अजमेर से हुई।
- कलाकार :- सांगीलाल सांगदिया, बाड़मेर,
- अस्मिता काला
- लाछा प्रजापति, कजली, कुसुम, द्रोपदी।
- इस नृत्य में महिला अपने सिर पर मटके रखती है। व नंगे पांव, नंगी तलवार, थाली की कोर व कांच के टुकड़ों पर नृत्य करती है।
5 चकरी नृत्य :- - यह हाड़ौती का प्रसिद्ध नृत्य है।
- इस सर्वाधिक कंजर जनजाति की अविवाहित लड़कियाँ करती है।
- कंजर जनजाति नृत्यों में सर्वाधिक निपुण जनजाति है।
- यह नृत्य चैत्र के महीने में तेज रफ्तार में गोल-गोल चक्कर काटकर किया जाता है।
- इस नृत्य के प्रसिद्ध स्थान :-
- चांचोड़ा, बारां
- रामनगर, बूंदी
- इस नृत्य को प्रकाश में लाने का श्रेय चांचोड़ा, बारां के रसिद अहमद पहाड़ी को जाता है।
- इस नृत्य में अविवाहित लड़कियाँ विवाहित महिलाओं का भेष धारण करती है। व अपने प्रियतम से शृंगार की वस्तुएं मंगाने का अनुरोध करते हुए नृत्य करती है।
6 बिंदोरी नृत्य :- - यह नृत्य झालावाड़ का प्रसिद्ध नृत्य है।
- यह नृत्य विवाह व होली के अवसर पर किया जाता है।
7 डांग नृत्य :- नाथद्वारा, राजसमंद। - यह युगल नृत्य है।
- इसमें पुरुषों द्वारा श्रीकृष्ण की एवं महिलाओं द्वारा राधाजी की नकल निकाली जाती है।
8 नाहर नृत्य :- मांडल गांव, भीलवाड़ा।
9 ढोल नृत्य :- जालौर। - इसमें वाद्ययंत्र ढोल होता है। जो थांकना शैली में बजता है।
- इसमें सहायक वाद्ययंत्र थाली होता है।
राजस्थान के जनजातिय लोक नृत्य :-
भील जनजाति के नृत्य :-
1 गैर नृत्य :-
- यह होली के अवसर पर किया जाता है।
- इसे केवल पुरुष करते है।
- इसमें वाद्ययंत्र ढोल होता है।
- इसमें नृत्याकार गैरिये कहलाते है। जो अपने हाथों में छड़ी/डंडिया रखते है।
- यह छड़ियाँ खांड़ा कहलाती है।
- इस नृत्य में महिलाएं फाग गाती है।
- गैर के लिए कणाना गाँव बाड़मेर व मेवाड़ प्रसिद्ध है।
2 गवरी नृत्य :- - यह नाटक का रूप है। जो भाद्रपद के महीने में किया जाता है। (रक्षाबंधन के बाद 40 दिनों तक)
- इस नृत्य में शिव का अभिनय करने वाला व्यक्ति पुरिया/राईबुढ़िया कहलाता है।
- एकी-बेकी, झामट्या, खडक्या आदि इस नृत्य के पात्र है।
- खडक्या-खडक्या कहने वाला व्यक्ति खटखड़िया कहलाता है।
- संवादों को जोड़ने वाला गवरी का घाई कहलाता है।
- गोमा मीणा, कालू कीर, कान गूजरी, मियाबंद व नाहर लघु नाटिकाएं है जिनका मंचन गवरी उत्सव में किया जाता है।
- इस नृत्य को केवल पुरुष करते है।
3 नेजा नृत्य :- - यह होली के तीसरे दिन होता है।
- यह युगल नृत्य है। इस नृत्य में जो नारियल होता है उसे नेजा कहा जाता है।
4 द्विचकरी :- - विवाह के अवसर पर भील पुरुषों व महिलाओं के द्वारा दो वृत्त । बनाकर यह नृत्य किया जाता है।
- बाहरी वृत्त में पुरुष व आंतरिक वृत्त में महिलाएं होती है।
5 गोसाई नृत्य :- - होली के अवसर पर भील पुरुषों द्वारा किया जाता है।
- यह नृत्य जोगण माता को समर्पित है।
6 पालीनोच नृत्य :- - यह विवाह के अवसर पर किया जाता है।
- यह युगल नृत्य है।
7 अन्य नृत्य :- हाथीमना, युद्ध, घूमरा।
गरासिया जनजाति के नृत्य :-
1 गरवा नृत्य :-
- यह नृत्य नवरात्रों में महिलाओं के द्वारा किया जाता है।
- यह नृत्य माता शक्ति की उपासना करते हुए किया जाता है।
2 वालर नृत्य :- - इस नृत्य का प्रारम्भ एक पुरुष हाथ में छाता या तलवार लेकर करता है।
- इसमें कोई वाद्ययंत्र नहीं होता।
- यह नृत्य अत्यंत धीमी गति के साथ किया जाता है।
- इसमें 2 वृत्त बनते है। बाहरी वृत्त में पुरुष व आंतरिक वृत्त में । महिलाएं होती है।
3 लुर नृत्य :- - लुर गौत्र की गरासिया महिलाओं के द्वारा विवाह के अवसर पर किया जाता है।
- इसे वर पक्ष की महिलाएं वधू पक्ष की महिलाओं से रिश्ते की मांग करते हुए करती है।
4 कुद नृत्य :- - यह बिना वाद्ययंत्र का नृत्य है। जो तालियों की ध्वनि पर किया जाता है।
5 मोरिया नृत्य :- - इसे विवाह के अवसर पर पुरुष करते है।
6 रायण नृत्य :- - यह नृत्य गरासिया पुरुषों द्वारा महिलाओं के वेश धारण करके किया जाता है।
7 जवारा नृत्य :- - यह होली के अवसर जवारा सेंकते हुए किया जाता है।
8 मांदल नृत्य :- - यह मांदल वाद्ययंत्र के साथ किया जाता है।
- इसे केवल महिलाएं करती है।
9 घूमर नृत्य :- - यह सभी जनजातियों का प्रसिद्ध लोक नृत्य है।
कथौड़ी जनजाति के नृत्य :-
- यह जनजाति कत्था तैयार करती है।
1 मावलिया नृत्य :- - इसे पुरुष नवरात्रों में करते है।
- यह नृत्य 9 दिनों तक किया जाता है।
2 होली नृत्य :- - यह नृत्य होली पर किया जाता है।
- इस नृत्य में महिलाएं पिरामिड बनाती है।
सहरिया जनजाति के नृत्य :-
1 शिकारी नृत्य :-
- इस नृत्य को पुरुष शिकार का प्रदर्शन करते हुए करते है।
2 लहंगी नृत्य :- - इसे महिलाएं करती है।
मेव जाति के नृत्य :-
1 रणबाजा नृत्य :-
- यह युगल नृत्य है। जिसे युद्ध का प्रदर्शन करते हुए किया जाता है।
2 रतवई नृत्य :- - इस नृत्य को महिलाएं अपने हाथों में हरी-हरी चूड़ियाँ खनखाते हुए करती है।
- पुरुष अलगोजा व दमामा (टामक) बजाते है।
रेबारियों के नृत्य :–
- यह राजस्थान की एकमात्र अर्द्धखानाबदोश जनजाति है। जिसका मुख्य व्यवसाय भेड़ पालन व ऊँट पालन है।
- यह जनजाति अपना लोकदेवता पाबूजी को मानती है।
1 गैर नृत्य :- - यह युगल नृत्य है। जो होली पर किया जाता है।
2 लुम्बर नृत्य : - यह होली व मांगलिक अवसरों पर किया जाता है।
- यह नृत्य रेबारी महिलाओं द्वारा हाथों की मुठ्यिा बांधकर किया जाता है।
कंजर जनजाति के नृत्य :-
- यह जनजाति नृत्य में निपुण होती है।
1 चकरी नृत्य
2 धाकड़ नृत्य :- - यह नृत्य झालापाव व बीरा के मध्य हुए युद्ध में झालापाव की विजय की खुशी में दो दल बनाकर किया जाता है। इस नृत्य में युद्ध की सभी कलाऐं प्रदर्शित की जाती है।
अन्य नृत्य :-
बादलिया नृत्य :- बादलिया एक घूमंतु जाति है जो गेरू को खोदकर बेचने का व्यापार करती है। इस नृत्य में गेरू को बेचने का प्रदर्शन किया जाता है।
माघरी नृत्य :- यह नृत्य बणजारा जाति द्वारा किया जाता है।
चरवा नृत्य :- यह नृत्य माली समाज में पुत्र प्राप्ति के अवसर पर सिर का कांसे का मटका रखकर किया जाता है।
किलियों-बारियों नृत्य :- यह नृत्य राजस्थान के पश्चिमी क्षेत्र में प्रचलित है। यह नृत्य नये जवाई के आगमन पर खुशी के रूप में किया जाता है।
लांगूरिया नृत्य :- यह नृत्य केलादेवी के मेले का प्रसिद्ध नृत्य है। यह युगल नृत्य है।
- राजस्थान में नाटको का जनक एवं निर्देशक कन्हैयालाल पंवार को माना जाता है।