राजपूतों की उत्पत्ति से संबंधित मत
चन्द्रबरदायी मत :-
- ग्रंथ :- पृथ्वीराज रासो
- वीर रस
- भाषा :- पिंगल
- वास्तविक नाम :- पृथ्वीराज/वल्लादी
- इस ग्रंथ को इसके बेटे जलहण ने पूरा किया। कर्नल जैम्स टॉड को “पृथ्वीराज रासों का उद्धारक” कहा जाता है।
- चन्द्रबरदायी के अनुसार वशिष्ट मुनि ने माऊण्ट आबू में अग्नि यज्ञ किया जिसमें से 4 वीर पुत्र उत्पन्न हुए।
1 प्रतिहार,
2 परमार,
3 चालुक्य/सौलंकी,
4 चौहान। - इनकी उत्पत्ति का कारण राक्षसों का वध करना बताया है तथा राक्षस अरबी आक्रमणों को कहा है।
- गुर्जर प्रतिहारों ने 7वीं से 12वीं शताब्दी से इन अरबी आक्रमणों का सफलता पूर्वक सामना किया।
नयन चंद्र सूरी :- - ग्रंथ :- हम्मीर महाकाव्य
- इनके अनुसार राजपूत सूर्यवंशी है।
- C.V. वेद के अनुसार राजपूत विशुद्ध भारतीय है।
- पण्डित गौरी शंकर ओझा :- रोहिड़ा गांव, सिरोही।
- इनके अनुसार राजपूत आर्यो की संतान है, अर्थात् क्षत्रिय है, आबू लेख व श्रृंग ऋषि के लेख के आधार पर ओझा के अनुसार इनकी उत्पत्ति रघुकुल से हुई है।
ग्रंथ :- भारतीय प्राचीन लिपि माला।
कर्नल टॉड :- - इनके अनुसार निम्न विदेशी जाति भारत आई। शक, कुषाण, हुण, सीथियन।
- इन लड़ाकू जातियों के आपस में वैवाहिक संबंध हुए जिससे 5वीं जाति उत्पन्न हुई जो राजपूत कहलाई।
- विन्सेन्ट आर्थर स्मिथ के अनुसार राजपूतों की उत्पत्ति हूणों से हुई।
- कनिंघम ने ब्रोच गुर्जर ताम्रपत्र के आधार पर राजपूतों की उत्पत्ति यु–चि जाति अर्थात् कुषाणों से बतायी।
- डॉ. दशरथ शर्मा के अनुसार राजपूतों की उत्पत्ति ब्राह्मणों से हुई।
ग्रंथ :- द अर्ली चौहान डायनेस्टी
गुर्जर प्रतिहार वंश

- राजस्थान में गुर्जर प्रतिहारों की 3 शाखाएं थी।
1 मण्डोर के प्रतिहार
2 भीनमाल के प्रतिहार
3 राजों गढ़ के प्रतिहार - मण्डोर के प्रतिहार :-
हरिशचन्द्र :-
उपनाम :- रोहिलाद्धि - इसे प्रतिहार वंश का गुरू माना गया है। इनकी रानी भद्रा से 4 संतानों की उत्पत्ति हुई जो है :-
1 भोगभट्ट,
2 कदक,
3 रज्जिल,
4 दह। - हरिशचन्द्र ने अपना उत्तराधिकारी रज्जिल को बनाया।
Q.1 वर्ण व्यव्यवस्था के आधार पर मण्डोर के प्रतिहारों को माना गया है? उत्तर :- क्षत्रिय। - नरभट्ट :- हेनसांग ने इसे पैला-पैली नाम से संबोधित किया। इसका अर्थ है, साहसिक कार्य करने वाला।
- नागभट्ट प्रथम :- इसने अपनी राजधानी मण्डोर से मेड़ता अंत में भीनमाल को बनाया।
- शिलुक :- इसने देवराज भाटी को पराजित किया व अपना साम्राज्य बल्ल/मांड (जैसलमेर) तक फैलाया ।
- कक्क :- यह व्याकरणज्ञाता, महान ज्योतिषि, कई भाषाओं का ज्ञाता व निपुण कवि था। कक्क के दो बेट थे :-
1 बाऊक,
2 कक्कूक - कक्कूक :- इसने 861 ई. में घटियाला शिलालेख लगवाया। जिससे राजस्थान में सर्वप्रथम सती होने की जानकारी मिलती है।
नोट :- 1395 ई. के लगभग मण्डोर के सामंतों ने मण्डोर दुर्ग राव चूड़ा को सौंप दिया। - गुर्जर प्रतिहारों की भीनमाल शाखा :-
- नागभट्ट प्रथम (730 ई.-756 ई. तक) :-
- इसके काल में भारत पर अरबी आक्रमण शुरू हुए, जिसका इसने सफलता पूर्वक मुकाबला किया, इसलिए इसे मलेच्छो का नाशक कहा जाता है।
- इसे प्रतिहार वंश का वास्तविक संस्थापक कहा जाता है। इसे नारायण की उपाधि मिली है, जिसकी जानकारी ग्वालियर प्रशस्ति (मध्यप्रदेश) में मिली थी।
वत्सराज :- - इसने कन्नौज शासक इन्द्रायुद्ध को पराजित किया।
- इसने बंगाल शासक धर्मपाल को पराजित किया।
- राष्ट्रकूट वंश के शासक ध्रुव प्रथम ने कन्नौज पर आक्रमण किया और वत्सराज को पराजित किया।
- वत्सराज ने ओंसिया (जोधपुर), सचिया माता का मंदिर बनवाया। जो ओसवालों की कुलदेवी है।
- जोधपुर में इसने सूर्य मंदिर व महावीर स्वामी का मंदिर बनवाया।
- इसी के काल में उद्योतन सूरी ने कुवलयमाता व जीनसेन सूरी ने हरीवंशपुराण ग्रंथ लिखा।
नागभट्ट द्वितीय :- - इसने कन्नौज शासक चक्रायुद्ध को पराजित किया।
- यह भगवती देवी का भक्त था।
- इसने बुचकला (जोधपुर) में शिवमंदिर व विष्णु मंदिर बनवाया। तथा अंत में गंगा में जीवित समाधि ली।
मिहिर भोज :- - कन्नौज पर अंतिम रूप से अधिकार मिहिर भोज का रहा।
- इसे आदिवराह, प्रवास पाटन की उपाधि मिली।
- इन उपाधियों की जानकारी ग्वालियर प्रशस्ति (मध्यप्रदेश) से मिलती है।
- इसी के काल में अरबी यात्री अलमसूदी व सुलेमान भारत आए।
अलमसूदी :- मजरूल जहब – ग्रंथ है।
सुलेमान :- सल सिलालु – ग्रंथ है।
महेन्द्रपाल प्रथम :- - इसका दरबारी विद्वान राजशेखर था।
राजशेखर के ग्रंथ :-
1 काव्य भिमांसा
2 कर्पूरी मंजरी
3 बाल रामायण
4 बाल भारत (प्रचण्ड पाण्डव)
5 विद्वसाल भंजिका
6 हर्य विलास
महिपाल :- - इसका गुरु व विद्वान राजशेखर था।
- इसे विनायक पाल व हेम्बर पाल की उपाधि मिली।
- 1018-19 में महमूद गजनवी ने प्रतिहार शासक राज्यपाल को पराजित किया।
- 1093 ई. में चन्द्रदेव गहड़वाल ने प्रतिहार शासक यशपाल देव को पराजित किया।
- यह गुर्जर प्रतिहार वंश का अंतिम शासक है।
राजोगढ़ (अलवर) :-
1 महाराजाधिराज सावर
2 महाराजाधिराज परमेश्वर मंथन देव। - माचेड़ी के लेख में सर्वप्रथम बडगुर्जर शब्द का प्रयोग किया गया।
- माचेड़ी का प्राचीन नाम :- साचेड़ी।
भीनमाल (जालौर) :- - चीनी यात्री ह्येसांग ने इसे पीलोमोलो कहा।
- यह महान संस्कृत कवि माघ की जन्मस्थली है। जिन्होंने संस्कृत भाषा में ही शिशुपालवध ग्रंथ लिखा।
- यह महान गणितज्ञ ब्रह्मगुप्त की जन्मस्थली व कर्मस्थली रहा।
परमार राजवंश
- परमार वंश :– परमार वंश का आदि पुरुष ध्रुमराज था।
धधुंक परमार :- - गुजरात के चालुक्य शासक भीमदेव के आबू पर आक्रमण किया और धधुंक को पराजित किया, लेकिन अंत में दोनों में संधि हो गई।
- भीमदेव के मंत्री विमलशाह ने देलवाड़ा गाँव (माऊण्ट आबू, सिरोही) में विमलवसही मंदिर बनाया।
- विमलवसही मंदिर :-
- निर्माण :- 1031 ई. में
- निर्माणकर्ता :- विमलशाह
- वास्तुकार :- किर्तीधर
- यह मंदिर आदिनाथ/केसरिया नाथ/कालाजी/ऋषभ देव को समर्पित है।
- धारावर्ष परमार :- इसने 60 वर्षों तक शासन किया।
- सामेदेव :- गुजरात के चालुक्य शासक वीरधवल ने आक्रमण किया। और इसे पराजित कर दिया।
- वीर धवल के महामंत्री वास्तुपाल व तेजपाल ने देलवाड़ा गांव में लूणवसही मंदिर बनवाया।
- लूणवसही मंदिर :- देलवाड़ा गांव, माऊण्ट आबू ।
निर्माण :- 1230-31 - यह मंदिर भगवान नेमीनाथ को समर्पित है।
- इसी मंदिर में देवरानी जेठानी के चबूतरे स्थित है।
देवरानी – आदिनाथ
जेठानी – शांतिनाथ
Q.1 निम्न में से राजस्थान का ताजमहल है :
(A) जसवंत थड़ा, जोधपुर
(B) अबला मीणी का महल, कोटा
(C) विमल वसही का मंदिर, सिरोही
(D) उपरोक्त सभी
(D) - 1311 में लुंबा चौहान ने परमारी को पराजित किया व दवेड़ा शाखा की नींव रखी।
- बागड़ के परमार :- बागड़ के परमारों की राजधानी अरथुना (उत्थुनक) बांसवाड़ा थी।
- मालवा के परमार :- परमार शासक भोज ने चित्तौड़ में त्रिभुवन नारायण शिव मंदिर का निर्माण करवाया, जिसका पुनः निर्माण मोकल ने करवाया। अतः यह मंदिर समिदेश्वर मंदिर कहलाया।