- वे नदियाँ जो अपना जल किसी सागर या महासागर में नहीं लेकर जाती बल्कि राज्य या राज्य से बाहर स्थलीय भागों में ही लुप्त हो जाती है या वे नदियाँ जिनके उद्गम स्थल का तो पता है मगर समापन स्थल का पता नही होता उन्हें आन्तरिक प्रवाह की नदियाँ कहते है।
1 घग्घर नदी - उद्गम- कालका माता का मन्दिर, शिवालिक पहाड़ियां (हिमाचल प्रदेश)
- प्रवाह- गंगानगर, हनुमानगढ (तलवाड़ा गाँव, टिब्बी तहसील, हनुमानगढ़ से राज्य में प्रवेश)।
- अन्य राज्य- हिमाचल, हरियाणा, राजस्थान।
- देश- भारत, पाकिस्तान।
- समापन- बाढ़ नहीं आने पर- भटनेर का मैदान, हनुमानगढ़ बाढ़ आने पर- अनुपगढ़, गंगानगर या फोर्ट अब्बास, पाकिस्तान।
- लम्बाई – 465 किमी.
- उपनाम – मृत नदी, सोतर नदी, नट नदी, राजस्थान का शोक, सरस्वती, दृषद्वती
- सभ्यता- कालीबंगा, पीलीबंगा
- विशेष- इसके किनारे तलवाड़ा झील स्थित है। राज्य में इसके प्रवाह क्षेत्र को ‘नाली’ तथा पाकिस्तान में ‘हकरा’ कहा जाता है। राजस्थान के आन्तरिक प्रवाह की सबसे लम्बी नदी।
- हनुमानगढ़ जंक्शन नदी के पेटे से नीचे स्थित इस कारण बाढ़ आने यह डूब जाता है।
नोट:- राज्य की एक मात्र अन्तर्राष्ट्रीय नदी ।
2 कांकनी नदी
- उद्गम- कोठारी गाँव- जैसलमेर
- प्रवाह क्षेत्र- जैसलमेर ।
- समापन- मीठी खाड़ी (जैसलमेर)
- लम्बाई- 17 किमी.
- उपनाम- काकनेय नदी, मसूरदी नदी
- विशेष- रुपसी गाँव के निकट बुझ झील का निर्माण करती है।
- आन्तरिक प्रवाह की सबसे छोटी नदी।
3 कांतली नदी - उद्गम- खण्डेला की पहाड़ियां सीकर
- प्रवाह क्षेत्र – सीकर, झुंझुनूं
- समापन- चूरू व झुंझुनूं की सीमा पर
- लम्बाई- 100 किमी.
- उपनाम- मौसमी नदी
- सभ्यता- गणेश्वर सभ्यता, नीमकाथाना (सीकर)
- विशेष- इसके प्रवाह क्षेत्र को तोरावाटी क्षेत्र कहा जाता है।
- पूर्ण बहाव के आधार पर राज्य की आन्तरिक प्रवाह की सबसे लम्बी नदी।
- मिट्टी के कटाव एवं झुंझुनूं को दो समान भाग में बाटने के कारण इसे कांटली नदी कहा जाता है।
4 साबी नदी - उद्गम- सेवर की पहाड़िया, जयपुर
- प्रवाह क्षेत्र- जयपुर, सीकर, अलवर
- समापन- नफजगढ़ झील, पटौदी हरियाणा
- सभ्यता- जोधपुरा सभ्यता, जयपुर
- विशेष- अलवर जिले की सबसे लम्बी नदी।
- आन्तरिक प्रवाह की एक मात्र नदी जो उत्तर दिशा से पूर्व की और बहती है।
- N.H. 8 को यह दो बार काटती है।
5 रुपारेल नदी - उद्गम- उदयनाथ की पहाड़ियां, थानागाजी, अलवर
- प्रवाह क्षेत्र- अलवर, भरतपुर
- समापन- सीकरी- कुशलपुर- भरतपुर
- उपनाम- वराह नदी, लसवारी नदी, भरतपुर की जीवन रेखा।
- बाँध- सीकरी बाँध, भरतपुर
- झील- मोती झील
6 मेन्था नदी - उद्गम- मनोहरपुर की पहाड़िया, जयपुर
- प्रवाह क्षेत्र- जयपुर, सीकर, नागौर
- समापन- सांभर झील (जयपुर) (उत्तर दिशा से)
- सभ्यता- प्रसिद्ध जैन तीर्थ लूणवाँ (नागौर) इसी के किनारे स्थित है।
7 रुपनगढ़ नदी - उद्गम- कुचिल झील, किशनगढ़ अजमेर
- प्रवाह क्षेत्र- अजमेर, जयपुर
- समापन- सांभर झील में (दक्षिणी दिशा से)
- विशेष- निम्बार्क सम्प्रदाय की प्रमुख पीठ सलेमाबाद, किशनगढ़ अजमेर इसी के किनारे स्थित है।
8 खारी व खण्डेल नदी - उद्गम- जयपुर के आस पास की पहाड़ियों से निकल कर ये दोनों नदियाँ सांभर झील में गिर जाती है
9 नीमड़ा व रोहिली नदी - उद्गम- बाड़मेर व जैसलमेर में बहने वाली इन्हीं दोनों नदियों के कारण 2006 में कवास (बाड़मेर) में बाढ़ आई थी।
10 कुकुन्द नदी - भरतपुर में बहने वाली इस नदी पर बंधबारेठा बाँध स्थित है जिसके किनारे बंधबारेठा वन्यजीव अभ्यारण की स्थापना की गई।
- अरब सागर की ओर बहने वाली नदियां
- खम्भात की खाड़ी की ओर बहने वाली नदियाँ
1 साबरमती नदी
- उद्गम- पदराला की पहाड़ियां, गोगुन्दा, उदयपुर।
- प्रवाह क्षेत्र- उदयपुर
- समापन- खम्भात की खाड़ी (अरब सागर)
- लम्बाई- 416 किमी. (राजस्थान में 45 किमी.)
- विशेष- यह नदी राजस्थान से निकलती है मगर इसका सम्पूर्ण महत्व गुजरात के लिए है।
- गाँधीजी का साबरमती आश्रम व गुजरात की राजधानी गाँधीनगर इसी के किनारे स्थित है।
- प्रमुख सहायक नदियाँ:-
वाकल, मानसी, सेई, हथमति, मेश्वा, वेतरक, माजम - साबरमती का पानी देवास सुरंग के माध्यम से उदयपुर की झीलों तक पहुँचाया जा रहा है। यह राज्य की सबसे लम्बी सुरंग परियोजना है(11.5 किमी.)
वाकल नदी- - उद्गम- गौरा गाँव की पहाड़ियां, उदयपुर
- प्रवाह क्षेत्र- उदयपुर
- समापन- गुजरात व उदयपुर की सीमा पर साबरमती में।
- प्रमुख सहायक- मानसी नदी
- मानसी वाकल मिलकर उदयपुर में मानसीवाकल पेयजल परियोजना का निर्माण करती है जिससे उदयपुर को पेयजल आपूर्ती होती है।
- मानसी वाकल व देवास बाँध का पानी कोटड़ा तालाब में डालते हुए नान्देश्वर चैनल की सहायता से उदयपुर की पिछोला झील में पहुँचाया जा रहा है।
सेई नदी – - उद्गम- यह नदी गोगुन्दा (उदयपुर) से निकलकर उदयपुर में ही साबरमती में मिल जाती है।
- इस पर सेई परियोजना स्थापित की गई है जिसका पानी सुरंग के माध्यम से पाली के जवाई बाँध में पहुचाया जा रहा है।
2 माही नदी
- उद्गम- महद झील, अमरोरू की पहाड़ियां, धार-मध्यप्रदेश
- प्रवाह- बांसवाड़ा, प्रतापगढ़, डूंगरपुर (खांदू ग्राम- बांसवाड़ा से राज्य में प्रवेश)।
- समापन- खम्भात की खाड़ी, अरब सागर।
- लम्बाई- 576 किमी. (राज्य में 171 किमी.)।
- उपनाम- दक्षिणी राजस्थान की स्वर्ण रेखा/जीवन की रेखा/ बागड़ की गंगा/कांठल की गंगा/आदिवासियों की गंगा।
- बाँध- माही बजाज सागर बाँध – बोरखेड़ा (बांसवाड़ा)
कागदी पिकअप बाँध – बांसवाड़ा।
कड़ाना बाँध – रामपुर, गुजरात। - विशेष- यह कर्क रेखा को दो बार काटती है।
त्रिवेणी संगम - सोममाही-जाखम।
- स्थान- बैणेश्वर धाम, नेवटपुरा-डूंगरपुर
- यहाँ प्रतिवर्ष माघ पूर्णिमा को आदिवासियों का कुंभ मेला भरता है।
- इसके किनारे गलियाकोट डूंगरपुर में दाउदी बोहरा सम्प्रदाय की प्रमुख पीठ व सैयद फखरुद्दीन की मजार स्थित है।
- स्वतंत्रता से सम्बंधित सुजलाम्-सुफलाम् क्रान्ति का सम्बंध माही नदी से है।
- इसके किनारे औदिच्य ब्राह्मणों की प्रमुख पीठ दूंगरपुर में स्थित है। प्रमुख सहायक नदियाँ-
1 सोम
2 जाखम
3 अन्नास
4 हरण
5 चाप
6 मोरेन
7 ईरू
8 ऐराव
1 सोम नदी - उद्गम- बीछामेड़ा की पहाड़िया, ऋषभदेव (उदयपुर)
- प्रवाह क्षेत्र- उदयपुर, डूंगरपुर।
- समापन- बेणेश्वर धाम, नेवटपुरा, डूंगरपुर, माही में।
- प्रमुख सहायक- जाखम नदी।
- पेयजल परियोजना
1 सोम कागदर परियोजना- उदयपुर
2 सोम कमला अम्बा परियोजना- डूंगरपुर
2 जाखम नदी - उद्गम- भंवरमाल की पहाड़िया, छोटी सादड़ी (प्रतापगढ़)
- प्रवाह- प्रतापगढ़, डूंगरपुर ।
- समापन- नौरावल बिलूरा गांव (डूंगरपुर) सोम नदी में मिलती है।
- बाँध- जाखम बाँध- प्रतापगढ़ (राज्य का सबसे ऊँचा बाँध-81मी.)
- पहाड़ों में सबसे तीव्र गति से बहने वाली नदी।
3 अन्नास नदी - इस नदी का उद्गम मध्यप्रदेश के आम्बेर गाँव से होता है।
बाँसवाड़ा जिले के मेलेड़ी खेड़ा गाँव के पास से राजस्थान में प्रवेश करने के बाद यह पहले उत्तर दिशा में प्रवाहित होती है एवं बाद में अपनी दिशा परिवर्तित कर दक्षिण दिशा में बहती हुई गलियाकोट को निकट (डूंगरपुर) माही नदी में मिल जाती है।
4 ऐराव नदी - इस नदी का उद्गम प्रतापगढ़ की पहाड़ियों से माना जाता है और बाँसवाड़ा के सेमेलिया गाँव में यह नदी माही नदी में मिल जाती है।
5 चाप नदी - यह नदी बाँसवाड़ा की कालिंजरा पहाड़ियों से उद्गमित होकर बाँसवाड़ा में माही नदी में गिर जाती है।
6 मोरेन नदी - इस नदी का उद्गम डूंगरपुर जिले की पहाड़ियों से होता है। डूंगरपुर में बहते हुए मोरेन नदी गलियाकोट के निकट माही नदी में मिल जाती है।
- कच्छ के रण में बहने वाली नदियाँ-
1 लूणी नदी,
2 पश्चिमी बनास।
1 लूणी नदी - उद्गम- नागपहाड़, अजमेर।
- प्रवाह क्षेत्र- अजमेर, नागौर, पाली, जोधपुर, बाड़मेर, जालौर।
- समापन- कच्छ का रण, अरबसागर, गुजरात
- लम्बाई-495 किमी. (राजस्थान- 330 किमी.)
- उपनाम- पश्चिमी राजस्थान की गंगा/मारवाड़ की गंगा/ मरूस्थल की गंगा/लवणवती/सागरमती/साक्री नदी/मिट्टी-खारी नदी/रेल नदी/नाड़ा नदी।
- विशेष- उद्गम स्थल से पुष्कर की पहाड़ियों तक इसे सागरमती या साक्री नदी, आगे इसे लूणी नदी, बालोतरा बाड़मेर के बाद मीठी-खारी नदी तथा जालौर के स्थानीय क्षेत्रों में रेल नदी या नाड़ा नदी कहा जाता है।
- कालिदास ने इसे अतः शलीला कहा है।
- राज्य में कुल अपवाह का 1041 प्रतिशत भाग लूणी नदी बनाती है। बालोतरा-बाड़मेर लूणी नदी के पेटे से नीचे स्थित है। इस कारण जब पुष्कर की पहाड़ियों में भारी बरसात आती है तो बालोतरा में बाढ़ आती है।
- प्रमुख सहायक नदी- जोजड़ी, लीलड़ी, मीठड़ी, बाण्डी, सूकड़ी, जॅवाई, खारी, सागी।
(A) जोजड़ी - उद्गम- पाडलू गाँव (नागौर)।
- प्रवाह क्षेत्र- नागौर व जोधपुर।
- समापन- खेडली खुर्द, जोधपुर-लूणी में, लूणी एकमात्र सहायक नदी जो बाई दिशा से आकर मिलती है तथा अरावली पर्वतमाला से नहीं निकलती।
(B) लीलड़ी नदी - उद्गम- सोजत, पाली।
- प्रवाह- पाली।
- समापन- पाली में, लूणी नदी में।
(C) मीठड़ी नदी - उद्गम- पाली तथा आगे बहती हुई पाली में ही लूणी में मिल जाती है।
(D) बाण्ड़ी नदी - उद्गम- हेमाबास गाँव (पाली)
- प्रवाह क्षेत्र- पाली।
- समापन- लाखर गाँव, पाली, लूणी में।
- इस पर हेमावास बाँध का निर्माण किया गया है, बाण्डी अपनी बाढ़ के लिये जानी जाती है।
(E) सूकड़ी नदी - उद्गम- देसुरी गाँव (पाली)।
- प्रवाह क्षेत्र- पाली, जालौर, बाड़मेर।
- समापन- समदड़ी (बाड़मेर) लूणी में।
- यह अपनी शुष्कता के लिए प्रसिद्ध है।
- इस नदी पर जालौर में बांकली बांध का निर्माण किया है।
(F) जवाई नदी - उद्गम- गौरियाँ गाँव (पाली)
- प्रवाह- पाली, जालौर व बाड़मेर।
- समापन- गुढ़ा गाँव- बाड़मेर, लूणी में।
- बाँध- जवाई बाँध पाली में, इसे मारवाड़ का अमृत सरोवर कहा जाता है, इसमें सुरंग के माध्यम से उदयपुर की सेई नदी का पानी यानी जवाई बाँध में पहुँचाया जाता है।
(G) खारी नदी - उद्गम- शेरपुर, सिरोही से निकल कर यह नदी जालौर में बहती हुई, सिवाना बाड़मेर के निकट लूणी में मिल जाती है।
(H) सागी नदी - जसवंतपुरा जालौर से निकलकर यह नदी चितलवाना जालौर के निकट लूणी में मिल जाती है।
2 पश्चिमी बनास
- उद्गम- नया सोनवारा गाँव, सिरोही।
- प्रवाह- सिरोही।
- समापन- कच्छ के रण में।
- इसके किनारे राजस्थान का आबुशहर व गुजरात का दीसानगर स्थित है।
- प्रमुख सहायक- सूकली, गोहलन, कूकड़ी।
(A) सूकली - उद्गम- सिटौरा की पहाड़ियां, सिरोही।
- प्रवाह- सिरोही।
- समापन- सिरोही व गुजरात की सीमा पर पश्चिमी बनास में। इस पर सिरोही में सेलबाड़ा बाँध परियोजना स्थित है।
बंगाल की खाड़ी की ओर बहने वाली नदियाँ - राजस्थान के कुल अपवाह का 22 प्रतिशत बंगाल की खाड़ी में जाता है। जिसमें तीन नदियों का तंत्र शामिल है।
1 बाणगंगा नदी तंत्र,
2 गम्भीर नदी तंत्र,
3 चम्बल नदी तंत्र।
1 बाणगंगा नदी तंत्र - उद्गम- बैराठ की पहाड़ियां, जयपुर।
- प्रवाह क्षेत्र- जयपुर, दौसा, भरतपुर ।
- समापन- फतेहाबाद (उत्तर प्रदेश) के निकट, यमुना नदी में।
- लम्बाई- 380 किमी.
- उपनाम- अर्जुन की गंगा, ताला नदी, रूण्डित नदी।
- सभ्यता- बैराठ सभ्यता, जयपुर।
बाँध-
1 रामगढ़ बाँध, जयपुर। जयपुर को पेयजल आपूर्ति करता है।
2 कानोता बांध, जयपुर। राज्य का सबसे बड़ा मछली उत्पादक बाँध।
3 अजान बाँध, भरतपुर। घाना पक्षी विहार को पानी की आपूर्ति करता है। - राज्य की एक मात्र उत्तर से पूर्व की ओर बहने वाली नदी।
- बाणगंगा की कोई सहायक नदी नहीं है।
2 गम्भीर नदी तंत्र - उद्गम- नादौती की पहाड़ियाँ, सपोटरा, करोली।
- प्रवाह क्षेत्र- करौली, सवाईमाधोपुर, भरतपुर।
- समापन- मेनपुरी (यूपी) के निकट यमुना नदी में ।
- प्रमुख सहायक- पार्वती || – धौलपुर में इस पर पार्वती बाँध का निर्माण किया गया है।
- अटा, माची, बरखेड़ा, भैंसावट, भद्रावती- इन पांचों नदियों के संगम पर करौली में पांचना बांध का निर्माण किया गया है।
- यह राज्य में मिट्टी से निर्मित सबसे बड़ा बांध हैं।
3 चम्बल नदी तंत्र - उद्गम- जनापाव की पहाड़ियाँ, विंध्याचल पर्वतमाला- महू (मध्य प्रदेश)
- प्रवाह- चित्तौड़, बूंदी, कोटा, सवाई माधोपुर, करौली, धौलपुर।
- समापन- मुरादगंज (उत्तर प्रदेश) के निकट, यमुना में।
- लम्बाई- 966 किमी. (राज्य में 135 किमी.)
- चौरासीगढ़, चित्तौड़गढ़ से राज्य में प्रवेश।
- उपनाम-चर्मण्वती, नित्यवाही, बारहमाशी नदी, राजस्थान की कामधेनु।
बांध-
1 गांधी सागर बांधः- मध्यप्रदेश- चम्बल पर निर्मित सबसे बड़ा बांध ।
2 राणा प्रताप सागर बांध :- रावतभाटा (चितौड़) राजस्थान, चम्बल पर निर्मित सर्वाधिक भराव क्षमता वाला बांध ।
3 जवाहर सागर बांध – कोटा।
4 कोटा बेराज- कोटा- एक मात्र सिंचाई के लिए निर्मित बांध । - विश्व की एक मात्र नदी जिस पर 100 किमी. की लम्बाई में चार बांधो का निर्माण हुआ हैं।
- जल प्रपात
- चुलिया जल प्रपात – भैंसरोड़गढ़, चित्तौड़गढ़।
- निर्माण- चंबल व बामनी नदी द्वारा।
- राज्य का सबसे ऊँचा जल प्रपात (18 मी.)।
- विशेष तथ्य– राज्य के कुल अपवाह क्षेत्रका 2090 प्रतिशत चम्बल बनाती है।
- यह सर्वाधिक अवनालिका अपरदन (पानी द्वारा मिट्टी का कटाव) करती है।
- यह राज्य को सर्वाधिक सतही जल उपलब्ध कराती है।
- इस नदी में गंगा में मिलने वाला स्तनपायी जीव गांगेय सूस/शिशुमार मछली/चपल गंगाई डॉल्फिन पाई जाती है।
- चम्बल की सर्वाधिक गहराई केशोरायपाटन (बूंदी) के निकट मिलती है।
- इस नदी को यूनेस्को की विश्व धरोहर के लिए नामित किया गया है।
- यह राज्य की सबसे लम्बी नदी।
- प्रमुख सहायक नदी- सीप, कुनु, पार्वती, कालीसिन्ध, गुजाली, बामनी, मेज, चाकण, बनास ।
1 चम्बल की दक्षिणी पूर्वी दिशा की सहायक नदियाँ
1 कुन्नु नदी- मध्यप्रदेश से निकल कर यह नदी मुसेड़ी गांव (बारा) व गोर्वधन पुरा (कोटा) में बहती हुई करौली की सीमा पर चम्बल में मिल जाती है।
2 सीप नदी- मध्य प्रदेश से निकल कर बारां, कोटा में बहती हुई रामेश्वर घाट पदरागांव-खण्डार, सवाईमाधोपुर में चम्बल में मिल जाती है। यह नदी चम्बल व बनास के साथ मिलकर त्रिवेणी संगम बनाती है।
3 पार्वती नदी- - उद्गम- सेहोर, मध्य प्रदेश।
- प्रवाह क्षेत्र- कोटा, बारां, सवाई माधोपुर।।
- समापन- पालीघाट, सवाईमाधोपुर में चम्बल में।
- प्रमुख सहायक- ल्हासी, अंधेरी, बेन्थली, रेतड़ी, डूबराज, अहेली, विलास।
- यह नदी करियाहट बारां से राजस्थान में प्रवेश करती है। बारां व कोटा के मध्य प्राकृतिक सीमा बनाती है।
- बारां का किशनगंज शहर इसी के किनारे स्थित है।
- यह नदी राजस्थान व मध्य प्रदेश के मध्य दो बार सीमा बनाती है।
4 कालीसिंध नदी- - उद्गम- बागली गांव- देवास, मध्य प्रदेश।
- प्रवाह क्षेत्र- झालावाड़, बारां, कोटा। (बिंदा गांव झालावाड़ से राज्य में प्रवेश करती है।)
- समापन- नोनेरा (कोटा) में चम्बल में।
- प्रमुख सहायक- अमझरा, चवली, चन्द्रभागा, उजाड़, परवन आहू।
कालीसिन्ध की प्रमुख सहायक नदीयां
1 परवन नदी - उद्गम- अजनार व घोड़ापछाड़ दो धाराओं के रूप में । मालवा का पठार मध्य प्रदेश।
- प्रवाह क्षेत्र- झालावाड़, बारां, (खरीबोर, झालावाड़ से राज्य में प्रवेश)
- समापन- पलायता- रामगढ़ (कोटा) कालीसिन्ध में।
- इस नदी के किनारे मनोहर थाना दुर्ग स्थित है तथा यह शेरगढ़ वन्य जीव अभ्यारण के मध्य से होकर गुजरती है।
- इस नदी के किनारे बारां में शेरगढ़ दुर्ग बना हुआ है।
- प्रमुख सहायक- निमाज या नेवज नदी, धार,
- छापी या छाप- इस नदी पर छापी सिंचाई परियोजना बारां में स्थित है।
2 आहू नदी - उद्गम- सुसनेर (मध्य प्रदेश)
- प्रवाह- झालावाड़ (राज्य मे नंदपुर झालावाड़ से प्रवेश।)
- समापन- गागरोन (झालावाड़) कालीसिन्ध में।
- आहू व कालीसिंध के मिलन स्थल को ‘सामेला’ कहा जाता है। जहाँ गागरोन का जल दुर्ग (गागरोनगढ़) बना हुआ है।
- इस नदी के किनारे मुकुन्दरा हिल्स नेशनल पार्क स्थित है।
- मुख्य सहायक नदी- पिपलाज, रेवा, क्यासरी ।
3 गुजाली नदी - उद्गम- जाट गाँव मध्य प्रदेश।
- प्रवाह क्षेत्र- चित्तौड़गढ़ (दौलतपुरा- चित्तौड़ से राज्य में प्रवेश)
- समापन- अरनियाँ (चित्तौड़) में चम्बल में मिल जाती है।
2 चम्बल की पश्चिमी दिशा की सहायक नदियाँ
1 बनास नदी
- उद्गम- खमनौर की पहाड़ियां (राजसंमद)
- प्रवाह- राजसमंद, चित्तौड़, भीलवाड़ा, अजमेर, टोंक, सवाई माधोपुर
- समापन- रामेश्वरम घाट, पदरागाँव, खण्डार, सवाई माधोपुर में चम्बल में
- लम्बाई- 480 किमी.
- उपनाम- वन की आशा, वर्णाशा, वशिष्ठी नदी।
- बाँध- बीसलपुर बाँध- राजमहल (टोंक)।
- यहां पर भी त्रिवेणी संगम स्थित है। (बनास खारी, डाई)
- बीसलपुर बाँध अजमेर, जयपुर, टोंक को पेयजल की आपूर्ति करता है।
- त्रिवेणी संगम- बिगोंद, भीलवाड़ा में। (बनास, बेड़च, मेनाल)।
- पूर्ण बहाव के आधार पर राजस्थान की सबसे लम्बी नदी (बनास)
- सभ्यता- आहड़ सभ्यता (बनास संस्कृति)
- प्रमुख सहायक नदियां – आयड़/बेड़च, कोठारी, खारी, डाई मेनाल, कालीसिल, मोरन, मांसी।
1 आयड़/बेड़च - उद्गम- गोगुंदा की पहाड़ियाँ (उदयपुर)।
- प्रवाह क्षेत्र- उदयपुर, चित्तौड़गढ़, भीलवाड़ा।
- समापन- बिगोंद, भीलवाड़ा बनास में।
- बाँध- घोसुण्डा बाँध, अप्पावास गांव, चित्तौड़।
- उद्गम स्थल से उदयसागर झील तक इसे आयड़ व यहाँ से निकलने के बाद इसे बेड़च कहा जाता है।
- सभ्यता- आहड़ सभ्यता।
- प्रमुख सहायक- गम्भीरी नदी।
गम्भीरी नदी - उद्गम- जावद मध्य प्रदेश से निकलकर यह नदी निम्बाहेड़ा (चित्तौड़) से राज्य में प्रवेश कर चटियावली (चित्तौड़) में बेड़च में मिल जाती है।
2 कोठारी नदी - उद्गम- दिवेर की पहाड़ियों से- राजसमंद
- प्रवाह क्षेत्र- राजसमंद, भीलवाड़ा।
- समापन- माण्डल गढ़, भीलवाड़ा बनास में।
- सभ्यता- बागोर सभ्यता। यहाँ से प्राचीनतम पशुपालन के अवशेष मिले है। ।
- बाँध- मेजा बाँध- माण्डल गढ़ (भीलवाड़ा)। इस बाँध की पाल पर मेजा पार्क का विकास किया गया है। जिसे राजस्थान का Green Mount कहते है।
3 मेनाल नदी - उद्गम- माण्डल की पहाड़ियां- भीलवाड़ा।
- प्रवाह- भीलवाड़ा।
- समापन- बिंगोद, भीलवाड़ा, बनास में
- यह माण्डलगढ़ भीलवाड़ा के निकट मेनाल जल प्रपात का निर्माण करती है। यह त्रिवेणी संगम भी बनाती है।
4 खारी नदी - उद्गम- बिजराल की पहाड़ियां- राजसमंद ।
- प्रवाह- राजसमंद, भीलवाड़ा, अजमेर |
- समापन- बीसलपुर, बांध- राजमहल, टोंक बनास में।
- इस नदी के किनारे शाहपुरा (भीलवाड़ा) में शिव व सूर्य का संयुक्त मार्तण्ड भैरवमंदिर (देव नारायण जी का मंदिर) स्थित है। (गुर्जरों के आराध्य देव)
- त्रिवेणी संगम- बनास, खारी, डाई- बीसलपुर बाँध टोंक।
5 डाई नदी - उद्गम- किशनगढ़ की पहाड़ियाँ- अजमेर।
- प्रवाह- अजमेर, टोंक।
- समापन- बीसलपुर बाँध– राजमहल, टोंक। त्रिवेणी संगम (बनास खारी-डाई)
6 मासी नदी - उद्गम- सिलोरा की पहाड़ियां, किशनगढ़- अजमेर ।
- प्रवाह- अजमेर, टोंक।
- समापन- गलोंद (टोंक)। बनास में।
- प्रमुख सहायक- सहोदरा नदी।
- सहोदरा व मासी के मिलन स्थल से थोड़ा आगे मासी नदी पर टोरडी सागर बाँध- अजमेर में बना है।
7 मोरेल नदी - उद्गम- चेनपुरा-बस्सी-जयपुर
- प्रवाह- जयपुर, दौसा, सवाई माधोपुर।
- समापन- सवाई माधोपुर में बनास में।
- ढूढ़ इसकी प्रमुख सहायक नदी।
8 कालीसिल नदी - उद्गम- सपोटरा, करौली।
- प्रवाह क्षेत्र- करौली, सवाई माधोपुर।
- समापन- सवाई माधोपुर में बनास में।
2 बामणी नदी
- उद्गम- हरिपुरा, चित्तौड़गढ़ निकलकर, चित्तौड़ में बहती हुई, भैंसरोड़गढ़, चित्तौड़गढ़ के निकट चम्बल में मिल जाती है।
- यह चम्बल के साथ मिलकर चूलिया जल प्रपात का निर्माण करती है।
3 मेज नदी - उद्गम- बिजौलियां की पहाड़ियां, भीलवाड़ा।
- प्रवाह क्षेत्र- बूंदी, भीलवाड़ा, कोटा।
- समापन- भैंसखाना कोटा में चम्बल में।
- प्रमुख सहायक- बाजन, कुराल, मांगली।
1 मांगली नदी- - उद्गम- यह बूंदी से निकलकर बूंदी में ही मेज में मिल जाती है। इस पर बूंदी में भीमतल जल प्रपात स्थित है।
4 चाकण नदी - उद्गम- बूंदी जिले से।
- प्रवाह क्षेत्र- बूंदी व सवाई माधोपुर ।
- समापन- करणपुरा, सवाई माधोपुर, चम्बल में।
झीलें - पानी की गुणवता के आधार पर इनका विभाजन दो भागों में किया गया है-
1 खारे पानी की झीलें
2 मीठे पानी की झीलें।
1 खारे पानी की झीलें - ये राज्य के पश्चिमी मरूस्थलीय भागों में स्थित है। इन्हें ‘टेथिस सागर का अवशेष माना जाता है। इनका निर्माण मानसून की अरबसागरीय शाखा के द्वारा लाये गये लवणीय कणों के कारण माना जाता है, जिसके कारण इन्हें वायुनिर्मित माना जाता है।
- खारे पानी की झील के प्रमुख प्रकार :
1 टाट/रन:- अस्थायी रूप से निर्मित खारे पानी की झीलें।
2 प्यालाः- स्थायी रूप से निर्मित खारे पानी की झीलें।
3 कयाल/लैंगून:- तटीय क्षेत्रों में निर्मित पश्चजल लैगून या खारे पानी की झीलें।
4 बॉलसनः- रेगिस्तानी क्षेत्रों में चट्टानी या पर्वतीय क्षेत्रों में निर्मित खारे पानी की झीलें। - राज्य की प्रमुख खारे पानी की झीलें :
1 लूणकरणसर (बीकानेर) - वर्तमान में नमक निर्माण बन्द है।
- यह राष्ट्रीय राजमार्ग 15 पर स्थित है।
2 पचपदरा (बाड़मेर) - निर्माण-
1 भूगोल के अनुसार प्राकृतिक।
2 जनश्रुतियों के अनुसार ‘पंचा नामक भील’ ने 400 वर्ष पूर्व निर्माण करवाया था। - इस झील के पानी में 98 प्रतिशत सोडियम क्लोराइड पाया जाता है। जो इसके नमक को सर्वश्रेष्ठ बनाता है।
- यह भारत की सबसे खारी व सर्वोत्तम झील है।
- यह भारत की सर्वश्रेष्ठ नमक देने वाली झील है।
- नमक निर्माण विधि:-
1 कोषीया:- कुएँ बनाकर नमक निर्माण करना।
2 रैस्ता:- वायु प्रवाह विधि से नमक निर्माण । - नमक निर्माण सयंत्र:-
1 पचपदरा साल्ट लिमिटेड:- यह राज्य सरकार का उपक्रम है जो 1960ई. में स्थापित किया गया है।
2 स्थानीय स्तर पर:- यहाँ स्थानीय स्तर पर ‘खारवाल’ जाति के लोग ‘मोरली’ नामक झाड़ी की टहनी से नमक निर्माण करते है। - यहाँ नमक निर्माण की अधिकांश खाने ‘हीरागढ़ क्षेत्र में है।
3 डीडवाना (नागौर) - यहाँ का नमक खाने के लिए अयोग्य है।
- इसमें सोडियम सल्फेट की मात्रा अधिक है।
- नमक का उपयोग कागज उद्योग व चमड़ा उद्योग एवं रंगाई-छपाई में किया जाता है।
- नमक निर्माण सयंत्र:-
1 राजस्थान स्टेट केमिकल वर्क्स:- राज्य सरकार का उपक्रम जिसकी स्थापना 1960 में की गई।
2 सोडियम सल्फेट सयंत्रः- यह राज्य सरकार द्वारा स्थापित सबसे बड़ा सोडियम सल्फेट सयंत्र है। - स्थानीय स्तर पर ‘देवल’ नामक संस्थाएं नमक निर्माण का कार्य करती है।
- यहां लवणीय पानी को क्यारियों में सुखाकर नमक निर्माण किया जाता है, जिसे ‘ब्राइन’ के नाम से जाना जाता है।
4 नावां (नागौर)
- राजस्थान में नमक निर्माण की यह सबसे बड़ी मण्डी है।
- यहां स्थानीय स्तर पर नमक निर्माण होता है।
- यहां स्थानीय स्तर के नमक निर्माताओं को नमक निर्माण का तकनीकी ज्ञान उपलब्ध करवाने के लिए अमेरिका के सहयोग से ‘गोविन्दी’ ग्राम में ‘मॉडल साल्ट फॉर्म’ (आर्दश नमक उद्योग) की स्थापना की गई है।
5 सांभर (जयपुर)
निर्माण:-
1 भूगोल के अनुसार:- प्राकृतिक रूप से निर्मित राज्य की खारे पानी की सबसे बड़ी झील।
2 इतिहास के अनुसार:- बिजौलिया शिलालेख के अनुसार इसका निर्माण चौहानों के संस्थापक वासुदेव ने 550 ई. के लगभग करवाया था। - आकार – आयताकार
- लम्बाई – 32 किमी.
- चौड़ाई – 3-12 किमी.
- धरातल से ऊँचाई – 300 से 400 मीटर
- वर्षा ऋतु में आकार फैलता है और 145 वर्ग किमी. हो जाता है जो एशिया का सबसे बड़ा अन्तः स्थलीय नमक उत्पादन केन्द्र है।
- भारत का 8.7 प्रतिशत नमक यहाँ उत्पादित होता है। इसमें स्थानीय 4 नदियों का पानी गिरता है:-
1 मेंथा 2 रूपनगढ़ 3 खारी 4 खण्डेल - नमक निर्माण उद्योगः
1 सांभर साल्ट लिमिटेड:- केन्द्र सरकार द्वारा 1964 में स्थापित यह हिन्दुस्तान साल्ट लिमिटेड की सहायक कंपनी है। - 1990 के रामसर समझौते के तहत् इस झील को नम भूमि/आद्र स्थल /वेटलैण्ड स्थल घोषित किया गया।
- विश्व पर्यटन परिपथ पर इसे रामसर साईट के नाम से जाना जाता है।
- 1870 में अंग्रेजों द्वारा यहां म्यूजियम साल्ट (नमक संग्रहालय) की स्थापना की गई जो देश का एक मात्र नमक संग्रहालय है।
- गुजरात का राज्य पक्षी ‘राजहंस’ व विरह का प्रतीक ‘कुरजां’ पक्षी यहां विचरण के लिए आते है।
6 तालछापर झीलः- चुरू स्थित यह झील काले हिरणों के लिए प्रसिद्ध है।
7 कावोद झील :- जैसलमेर में इस झील का नमक आयोडीन की दृष्टि से सर्वश्रेष्ठ नमक है।
8 डेगाना झील:- यह झील नागौर जिले में स्थित है। नागौर का डेगाना नामक स्थान भारत की सबसे बड़ी टंगस्टन परियोजना के लिए विख्यात है।
9 फलौदी:- यह झील जोधपुर के फलौदी नामक स्थान पर है। फलौदी राजस्थान का सबसे शुष्क स्थान है।
10 रेवासाः- रेवासा झील सीकर जिले में स्थित खारे पानी की झील है जिसे प्राचीन काल में सम्पूर्ण एशिया नमक उत्पादन हेतु जानता था। घोड़े वाले बाबा/कर्नल जेम्स टॉड ने अपनी पुस्तक में भी रेवासा झील का उल्लेख किया है।
2 मीठे पानी की झीलें
1 बीकानेर संभाग
1 कोलायत झील (बीकानेर) :-
- निर्माण
- भूगोल- प्राकृतिक
- इतिहास- कपिल मुनि ने अपनी माता की मुक्ति के लिए पाताल गंगा निकालकर इसका निर्माण करवाया। झील के किनारे सांख्य दर्शन के प्रवर्तक कपिल मुनि का मेला प्रतिवर्ष कार्तिक पूर्णिमा को भरता है। जिसमें दीपदान उत्सव मनाया जाता है।
- उपनाम:
1 मारवाड़ का सुन्दर मरूउद्यान
2 शुष्क मरूस्थल का सुन्दर उद्यान
3 कपिल सरोवर - झील के किनारे एक शिवालय स्थित है, जिसमें 12 शिवलिंग स्थापित है।
- चारण जाति के लोग यहाँ नहीं जाते है।
- राष्ट्रीय राजमाग 15 पर स्थित।
2 गजनेर (बीकानेर) - निर्माण:- 1920 में महाराजा गंगासिंह द्वारा
- उपनाम:- 1. गजरूप सागर, 2. गंगा सरोवर, 3. पानी का शुद्ध दर्पण ।
3 बुढ़ा जोहड़ (गंगानगर) - निर्माण:- 1815 में संत फतहसिंह द्वारा।
- यहां सिख सम्प्रदाय का मेला लगता है।
2 जोधपुर सम्भागमा
1 जोधपुर
1 बालसमन्द झील:- - निर्माण:- 1159ई. में प्रतिहार शासक बालकराव द्वारा।
- झील में नहरों के माध्यम से गुलाबसागर का पानी आता है।
- महाराजा सुरसिंह ने झील के मध्य ‘अष्ठखम्भा महल’ तथा झील के किनारे शाही महल व जनाना बाग का निर्माण करवाया था।
2 कायलाना झील:- - जोधपुर जिले की सबसे बड़ी झील।
- जोधपुर को पेयजल की आपूर्ति करती है।
- निर्माण:- 1872ई. में जसवन्त सिंह द्वितीय के भाई सर-प्रताप (प्रतापसागर) सिंह द्वारा बनाई गई थी।
- झील मेंराजीव गांधी नहर के माध्यम से इंदिरा गांधी नहर का पानी आता है।
- झील के किनारे देश का प्रथम ‘मरू वानस्पतिक उद्यान’ ‘माचिया सफारी पार्क स्थापित किया गया है।
2 सिरोही
1 नक्की झील (माउण्ट आबू) - भूगोल:- विवर्तनिक (पृथ्वी की आन्तरिक हलचल)/क्रेटर प्रक्रिया (ज्वालामुखी) से निर्मित प्राकृतिक झील।
- जनश्रुतिः- देवताओं के नाखूनों से निर्मित झील।
- राज्य की सबसे ऊँची व गहरी झील।
- झील के मध्य 3 चट्टानें स्थित है-
1 टॉड रॉक:- मेंढ़क जैसी आकृति।
2 नन रॉक:- चूंघट निकाले स्त्री जैसी आकृति।
3 नन्दी रॉक:- शिव के बैल नान्दिया जैसी आकृति। - झील की पहाड़ी पर गुफाएं स्थित है:- हाथी गुफा, चम्पा गुफा और रामझरोखा गुफा।
- झील से 1 किमी. दूरी पर सनसैट प्वांइट/हनीमून प्वांइट स्थित है।
3 उदयपुर संभाग
1 पिछोला झील:- - निर्माण:- राणा लाखा के शासनकाल में 1387ई. के आसपास छितर नामक चिड़ीमार बंजारे द्वारा अपने बैल की स्मृति में करवाया था।
- स्थानीय सीसरमा व बुझड़ा नदी का पानी झील में गिरता है।
- जीर्णोद्वार:- महाराणा सांगा द्वारा 1525ई. में।
- उदयसिंह ने इसकी पाल (किनारे) को पक्का करवाया।
- झील के मध्य 2 महल स्थित है-
A जगमंदिर महल:- इसका निर्माण 1620ई. में करण सिंह द्वारा प्रारम्भ व जगतसिंह प्रथम द्वारा पूर्ण हुआ। - जहांगीर से विद्रोह के समय शाहजंहा इन्हीं महलों में आकर ठहरा, जहाँ से उसे ताजमहल की प्रेरणा मिली।
- 1857 की क्रांति के समय स्वरूप सिंह ने अंग्रेजों को यही शरण दी थी।
B जगनिवास महल:- - निर्माण:- जगतसिंह द्वितीय द्वारा
- वर्तमान में इसमें होटल लैक पैलेस संचालित है।
- झील के किनारे बिजारी नामक स्थाप पर ‘नटनी का चबूतरा’ स्थित है। जिसे ‘नटनीगलकी का चबूतरा’ कहा जाता है।
- झील के पास बागौर की हवेली स्थित है, जिसमें विश्व की सबसे बड़ी पगड़ी रखी गई है।
- इस झील के किनारे चामुण्डा माता का मन्दिर स्थित है जहां देवी के पद चिन्हों (पगल्यों की पूजा की जाती है
- झील के किनारे उदयसिंह ने सिटी पैलेस का निर्माण करवाया, जिसकी तुलना फर्ग्युसन ने विण्डसर महलों से की है।
- राज्य की प्रथम सौर ऊर्जा संचालित नाव इसी में चलाई गई थी।
2 जयसमंद झील - राज्य की मीठे पानी की सबसे बड़ी झील है।
- गोमती नदी के ढेबर दर्रे से निकलने के कारण इसे ढेबर झील भी कहते है।
- निर्माण:- महाराणा जयसिंह द्वारा 1685 से 1691ई. के मध्य गोमती नदी पर इसका निर्माण करवाया गया।
- आकार:- 15 किमी. लम्बी, 28 किमी. चौड़ी
- झील के मध्य छोटे-छोटे 7 टापू स्थित है।
- सबसे बड़ा टापू बाबा का भंगड़ा है और वर्तमान में इस पर आइसलैण्ड रिसार्ट नामक होटल बना हुआ है।
- सबसे छोटा टापू प्यारी टापू है।
- झील से सिंचाई के लिए 2 नहरें निकाली गई है।
1 श्यामपुरा नहर
2 भाटनहर - गोविन्द सागर जलाशय के बाद यह भारत की मीठे पानी की कृत्रिम रूप से निर्मित सबसे बड़ी झील है।
- जयसिंह द्वारा झील के पास नर्वदेश्वर शिवालय का निर्माण करवाया गया। I
- झील के पास स्थित पहाड़ी पर चित्रित हवामहल स्थित है।
- रूठी रानी का महल भी इसी झील के पास स्थित पहाड़ी पर है।
3 फतेहसागर झील
- निर्माण:- 1678ई. में डयूक ऑफ कनॉट द्वारा कनॉट बांध के नाम से इसका निर्माण हुआ।
- 1688 में महाराणा जयसिंह द्वारा इसका निर्माण देवाली तालाब के नाम से करवाया गया।
- 1795 में आयी बाढ़ से क्षतिग्रस्त होने के बाद इसका पुननिर्माण 1879 में महाराणा फतेहसिंह द्वारा करवाया गया।
- यह झील उदयपुर को पेयजल की आपूर्ति करती है।
- झील के मध्य स्थित टापू पर नेहरू उद्यान बना हुआ है।
- पिछोला व फतेहसागर के मध्य स्वरूप सागर झील स्थित है। जिसका निर्माण महाराणा स्वरूप सिंह द्वारा करवाया गया।
- झील के पास सहेलियों की बाड़ी स्थित है।
- फतेहसागर झील के किनारे मोती मगरी में महारणा प्रताप की अश्वारूढ, धातु प्रतिमा (प्रताप स्मारक) लगी हुई है।
- झील के मध्य देश की प्रथम सौर वेधशाला की स्थापना की गई है।
4 उदयसागर झील - निर्माण:- 1559 से 1565 के मध्य उदयसिंह द्वारा।
- इस झील में आयड़ नदी गिरती है तथा बेड़च नाम से निकलती है।
2 जिला:- राजसमंद
A राजसमंद झील - निर्माण:- 1662 से 1676ई. के मध्य राजसिंह ने करवाया।
- झील की नींव घेवर माता के द्वारा रखी गई, जिसका मंदिर यहाँ स्थित है।
- राजसिंह ने यहाँ द्वारिकाधीश का मंदिर बनवाया।
- झील की उत्तरी पाल को नौचोकी की पाल कहा जाता है जहाँ संगमरमर के 25 शिलाखण्डों पर राजसिंह के कवि रणछोड़ भट्ट तैलग द्वारा संस्कृत भाषा में 1917 श्लोकों के रूप में मेवाड़ के शासकों का इतिहास लिखा गया, जिसे राज प्रशस्ति कहा जाता है।
- सम्भवतः विश्व में यह पत्थर पर लिखा गया सबसे लम्बा लेख है।
2 नन्दसमंद झील: - इसे राजसमंद की जीवन रेखा कहा जाता है जो राजसमंद को पेयजल आपूर्ति करती है।
4 कोटा संभाग
1 कोटा:-
2 बूंदी:- कनक सागर, नवलसागर, नौलक्खा सागर, दुगारी झील।
3 बांरा:- सीताबाड़ी।
4 झालावाड़:- कांडेला झील
5 भरतपुर संभाग - भरतपुर:- मोती झील।
- धौलपुर:- तालाबशाही।
- करौली:- पांचना बांध (मिट्टी का सबसे बड़ा बांध)
- सवाई माधोपुर:- मानसरोवर झील ।
1 तालाबशाही (धौलपुर):- - नर्माण:- जहांगीर के सूबेदार सालेह खां द्वारा करवाया गया।
2 मोतीझील (भरतपुर):- - रूपारेल नदी पर स्थित इस झील का निर्माण सूरजमल द्वारा करवाया गया।
6 जयपुर संभाग - जयपुर :- रामगढ़, मावठा, मानसागर, गलतातीर्थ।
- अलवर :- सिलीसेढ़
- दौसा :-
- सीकर :-
- झुंझुनूं :- अजीत सागर
1 सिलीसेढ़ (अलवर) - निर्माण:- 1845 में विनयसिंह द्वारा अपनी रानी शीला के ग्रीष्म कालीन प्रवास हेतु करवाया गया था।
- झील के किनारे 6 मंजिला शाहीमहल स्थित है जिसमें होटल लैक पैलेस का संचालन होता है।
- उपनामः- राजस्थान का नन्दन कानन ।
7 अजमेर संभाग - अजमेर- आनासागर, फांयसागर, पुष्कर।
- भीलवाड़ा- यहाँ सर्वाधिक तालाब है जिनसे सिंचाई होती है।
- नागौर- बांध
- टोंक- बांध
8 भालप
1 आनासागर झील (अजमेर) - निर्माण:- 1137ई. के आस-पास पृथ्वीराज के पितामह अर्णोराज द्वारा इसका निर्माण करवाया गया।
- उस समय तुर्क आक्रांता बहरामशाह किशलु के सेनापति सलहर हसन ने अजमेर पर आक्रमण कर दिया। सलहर हसन व अर्णोराज के मध्य नागपहाड़ व तारागढ़ के मैदान में युद्ध हुआ।
- तुर्को के संहार के बाद उनके रक्त से रंगी धरती को साफ करवाने के लिए इस झील का निर्माण करवाया गया।
- जहांगीर ने इसके किनारे दौलत बाग व चश्मा-ए-नूर नामक झरने का निर्माण करवाया।
- दौलत बाग को वर्तमान में ‘सुभाष उद्यान’ कहा जाता है जहां अस्मत बेगम ने इत्र का आविष्कार किया तथा जहांगीर ने अंग्रेज राजदूत सर टॉमस रॉ से मुलाकात की।
- शाहजहां ने यहाँ संगमरमर की 5 बारहदरियों का निर्माण करवाया। इनमें से 4 पूर्ण व 1 अपूर्ण है।
2 फॉयसागर (अजमेर) - निर्माण:- अकाल राहत कार्यों के तहत 1891-92 में इंजीनियर फॉय द्वारा करवाया गया।
3 पुष्कर झील (अजमेर) - निर्माण:-
- भूगोल:- इसके अनुसार ज्वालामुखी की काल्डेरा प्रक्रिया से निर्मित।
- जनश्रुतियां:- पुष्करणा नामक ब्राह्मणों ने निर्माण करवाया।
- राज्य में प्राकृतिक रूप से निर्मित मीठे पानी की सबसे बड़ी झील |
- झील के किनारे ब्रह्माजी का मंदिर स्थित है जिसकी नींव आदि गुरू शंकराचार्य द्वारा रखी गई व निर्माण गोकुलचंद पारीक ने करवाया।
- अर्णोराज ने इसके किनारे ‘वराहमंदिर’ बनवाया।
- मानसिंह ने इसके किनारे ‘मानमहल’ बनवाया।
- झील के चारो ओर 52 घाट बने हुए है, जिनका निर्माण मण्डोर के शासक ‘नाहरराव प्रतिहार’ ने करवाया।
- ‘गुरू गोविन्द सिंह ने यहां गुरू ग्रन्थ साहिब का पाठ किया जिसके बाद 1809 में मराठों ने इसका पुननिर्माण करवाया।
- 1911 ई. में ‘महारानी मेरी’ ने यहां महिला घाट बनवाया। जिसे गांधीजी के अस्थि विसर्जन के बाद ‘गांधीघाट’ कहा जाने लगा।
- 1997 में पुष्कर गेप परियोजना के तहत कनाडा के संहयोग से झील का सफाई कार्य करवाया गया।
- झील के उपनामः- तीर्थराज, तीर्थों का मामा आदि तीर्थ, हिन्दुओं का पांचवा तीर्थ, बावन घाट झील, प्रयागराज का गुरू, अर्द्धचन्द्राकार झील इत्यादि।
- झील के पास भर्तृहर की गुफा व कण्व ऋषि का आश्रम स्थित है। झील से जुड़े पौराणिक तथ्य :-
- कालिदास ने अभिज्ञान शाकुन्तलम व वेदव्यास ने महाभारत की रचना यहीं पर की थी।
- राम ने अपने पिता दशरथ का पिण्डदान इसी झील में किया था।
- कौरवों व पाण्डवों का दिव्य मिलन यहीं हुआ था।
- इन्द्र की अप्सरा मेनका ने विश्वामित्र की तपस्या यहीं भंग की थी।
- देवशयनी एकादशी के दिन समस्त देवता भगवान विष्णु के नेतृत्व में इसी झील के रास्ते पाताल लोक में राजा बलि के यहां विश्राम करने के लिए जाते है।