अजमेर का इतिहास
- बिजौलिया शिलालेख :- भीलवाडा।
- इस शिलालेख की रचना जैन श्रावक लोलक ने करवाई।
रचयिता :- गुणभद्र। - इस शिलालेख में अजमेर व सांभर के चौहानों को वत्सगोत्रिय ब्राह्मण बताया गया है।
- इसी शिलालेख में सांभर झील का निर्माता वासुदेव चौहान को बताया है। प्राचीन नाम :-
जालौर – जबलिपुर
नाडोल – नड्डूल
नागदा – नागहृद
बिजौलिया- विंध्यावली
भीनमाल – श्रीमाल
मांडलगढ़ – मडंलकर
दिल्ली – दिल्लीका - हर्षनाथ प्रशस्ति :- 973 ई. ।
- विग्रहराज द्वितीय के काल की प्रशस्ति है।
- इस प्रशस्ति के अनुसार चौहानों की उत्पत्ति स्थल अनन्त नगर (सीकर) को बताया गया है।
- हमीर महाकाव्य (नयनचन्द्र सूरी) व सर्जन चरित्र (चन्द्रशेखर) ग्रंथों । के अनुसार चौहानों का मूल स्थान पुष्कर को बताया गया है।
- वासुदेव चौहान :- बिजौलिया शिलालेख के अनुसार चौहान वंश । की स्थापना 551 ई. में वासुदेव/आदिपुरुष के द्वारा की गई।
- इसका साम्राज्य सांभर के आस-पास होने के कारण सपादलक्ष कहलाता है, जिसकी राजधानी अहिछत्रपुर (नागौर) है।
- गूवक प्रथम :- यह माना जाता है कि गूवक प्रथम ने ही सीकर जिले के प्रसिद्ध हर्षनाथ मंदिर का निर्माण करवाया।
- विग्रहराज द्वितीय :- इसने गुजरात के चालुक्य शासक मूलराज प्रथम का पराजित किया था। और भड़ौच में अपनी कुलदेवी आसापुरा माता का मंदिर बनवाया।
- दुर्लभराज द्वितीय :- अभिलेखों में इसे ‘दुर्लध्यमेरु’ (जिसकी आज्ञा का कोई उल्लंघन ना करें) कहा गया।
- नाडौल के चौहान (पाली) :- यहाँ चौहान वंश की स्थापना सांभर नरेश वाक्पतिराज के पुत्र लक्ष्मण ने 960 ई. में की। यह चौहानों का द्वितीय राज्य है।
- अजयराज/अजयपाल (1113 ई.) :- इसने अजमेर बसाया।
- इसने अजयमेरू दुर्ग बनवाया व श्री अजयदेव नाम से चांदी के सिक्के चलवाए।
- इसकी रानी सोमलेखा के नाम से सिक्के चलवाए।
- अजयमेरू दुर्ग – तारागढ़/गठबिठली
- विशप हेबर ने इस दुर्ग को पूर्व का जिब्राल्टर कहा।
- इसका तारागढ़ नाम रानी तारा के नाम पर पड़ा।
- शाहजहाँ के काल में यहाँ का शासक बीठल दास गौड था।
- पृथ्वीराज सिसोदिया :- उडता राजकुमार/तेज धावक घोड़े का नाम – साहण * RPSC भवन घुघरा घाटी, अजमेर में स्थित है। वर्तमान अध्यक्ष ललित के. पंवार है।
- अध्यक्ष सहित सदस्य = 1+7=8
अर्णोराज/आनाजी (1133 ई.) :- - इसने अजमेर में आनासागर झील बनवाई। इसमें चन्द्रा नदी का पानी आता है।
- इस झील के किनारे जहाँगीर ने दौलताबाग बनवाया। जिसे अब सुभाष उद्यान कहा जाता है।
- इस झील के किनारे शाहजहाँ ने बारह दरियाँ बनवाई।
- आनाजी ने पुष्कर में वराह मंदिर बनवाया।
- इनकी हत्या इनके बेटे जगदेव ने की थी। जो पितृहंता कहलाया।
Q 1 वे दो मुगल शासक जिनके पिता मुगल व माता राजपूत थी?
उत्तर :- जहाँगीर, शाहजहाँ।
विग्रहराज चतुर्थ/बीसलदेव (1153 ई.) :- - इसे कवि बांधव/कटिबांधव की उपाधियाँ मिली।
- इसने संस्कृत में हरिकेली नाटक की रचना की। यह नाटक कवि भारवि के किरातार्जुनियम ग्रंथ पर आधारित है।
- इनके दरबारी विद्वान :-
सोमदेव – ललित विग्रह राज
नरपति नाल्ह – बीसलदेव रासौ (नायिका – राजमती) - इसने टोंक में बीसलपुर बांध बनवाया।
- अजमेर में संस्कृत पाठशाला (सरस्वती कंठावरण) बनवाई, जिसे बाद में कुतुबुद्दीन ऐबक ने तुड़वाकर इसकी जगह अढ़ाई दिन का झोपड़ा बनवाया, जो राजस्थान की पहली मस्जिद है। 16 खम्भे है।
- यहाँ पंजाब शाह संत की स्मृति में अढ़ाई दिन का मेला लगता है।
- इसने दिल्ली के तौमर वंश को पराजित किया।
- इसने अमीर खुसरूशाह (गजनी शासक) को पराजित किया।
नोट :- विग्रहराज चतुर्थ/बीसलदेव का शासन काल चौहानों का स्वर्णकाल कहलाता है। - इसी के काल में दिल्ली का शिवालिक स्तम्भ अभिलेख उत्कीर्ण कराया गया।
- पृथ्वीराज चौहान तृतीय/राय पिथौरा (1177 ई.) :-
पिता :- सोमेश्वर। - पृथ्वीराज चौहान 11 वर्ष की उम्र में शासक बना।
- उम्र में छोटा होने के कारण इसकी संरक्षिका माँ कर्पूरी देवी बनी।
- P.M. – केमास (कदम्ब दास) था, तथा सेनापति भुवनमल्ल था।
- पृथ्वीराज ने युद्धों में दिविजय की नीति अपनाई।
- कर्पूरी देवी दिल्ली के तौमरवंश के शासक अनंगपाल की बेटी थी। अनंगपाल ने अपना उत्तराधिकारी पृथ्वीराज को बनाया।
1 पृथ्वीराज ने अपने चचेरे भाई नागार्जुन को गुड़गांव के युद्ध में पराजित किया।
2 गुजरात के शासक भीमसिंह द्वितीय को पराजित किया। (नागौर का युद्ध)
3 1182 में भण्डानकों का दमन :- भण्डानक जाति सिंध से आई थी। इसने भरतपुर, मथुरा क्षेत्र पर अपना अधिकार जमाया, पृथ्वीराज ने इनकों यहां से खदेड़ दिया।
4 1182 में महोबा का युद्ध :- तुमुल का युद्ध, उत्तरप्रदेश । - इस युद्ध में पृथ्वीराज ने परमर्दिदेव चन्देल व आल्हा-ऊदल को पराजित किया।
5 पृथ्वीराज कन्नौज शासक जयचंद गहड़वाल की पुत्री संयोगिता को स्वयंपर से उठा लाया। - पृथ्वीराज व गौरी के मध्य संघर्ष :- मोहम्मद शाहबुद्दीन गौरी गजनी से आया था। व इसने भटिण्डा (तँबर-ए-हिन्द) पर अपना अधिकार कर लिया।
- तराईन का प्रथम युद्ध (1191 ई.) :- इस युद्ध में पृथ्वीराज ने गौरी को बुरी तरह पराजित किया व भागते हुए गौरी का पीछा न करके वह अपने जीवन की सबसे बड़ी राजनीतिक भूल की।
- तराईन का द्वितीय युद्ध (1192 ई.) :- इस युद्ध में गौरी ने पृथ्वीराज को पराजित किया। व गौरी का साथ कन्नौज शासक जयचंद ने भी दिया। पृथ्वीराज को बंधक बना कर गजनी ले गया व अंधा कर दिया।
- पृथ्वीराज की समाधि गजनी में है।
- गोविन्दराज :- गौरी ने 1192 से 1194 तक अजमेर का शासक पृथ्वीराज के बेटे गोविन्दराज को भारी कर के बदले में बनाया।
- 1194 में चाचा हरिराज ने गोविन्दराज को अजमेर से भगा दिया।
- गोविन्दराज ने रणथम्भौर में शरण ली।
- 1194 में गौरी के सेनापति कुतुबुद्दीन ऐबक ने अजमेर पर आक्रमण किया, जिससे भयभीत होकर हरिराज व सेनापति जैत्रसिंह ने अग्नि में कूदकर आत्म हत्या कर ली।
- पृथ्वीराज का साहित्यिक जीवन :- इसने अजमेर में कला-साहित्य विभाग की स्थापना की, जिसका अध्यक्ष पद्मनाभ को बनाया।
पृथ्वीराज के निम्न दरबारी विद्वान थे :-
1 वागीश्वर
2 जनार्दन
3 विधापति गोड़
4 जयानक भट्ट – पृथ्वीराज विजय
5 चन्द्रबरदायी – पृथ्वीराज रासो (तराईन युद्ध का वर्णन)
चार बास चौबीस गज अंगुल अष्ट प्रमाण।
ता ऊपर सुल्तान हैं, मत चुके र चौहान।। - ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती (ख्वाजा साहब) :- अप्रैल, 2016 में इनका 804वाँ उर्स निकला था।
जन्म :- संजरी – फारस (ईरान)
बचपन :- खुरासान में बीता
पिता :- ग्यासुद्दीन
माता :- बीबी साहेनुर/बीबी माहेनूर
गुरु :- ख्वाजा उस्मान हारुनी - पृथ्वीराज चौहान के काल में गौरी के साथ भारत आये थे।
- चिश्ती संत जहाँ रहते है वह स्थान खानकाह कहलाता है। कब्बालियों का उद्गम इन्हीं खानकाहों से हुआ है।
- चिश्ती स्वयं को प्रेमी व अल्लाह को प्रेमिका मानते है।
- मुसलमानों में गुरु को पीर, शिष्य को मुरीद व उत्तराधिकारी को बली कहते है।
- चिश्ती संत धन का संग्रह नहीं करते है, इसलिए इन्हें गरीब नवाज/सन्यासियों का सुल्तान (हम्मीद्दोदीन नागौरी)/फकीर कहा जाता है।
- ख्वाजा साहब :- ख्वाजा साहब की दरगाह अजमेर में स्थित है, जिसका निर्माण सुल्तान इल्तुतमिश ने करवाया।
- इसे विश्व का दूसरा मक्का मदीना कहा जाता है।
- ख्वाजा साहब की पक्की मजार सुलतान ग्यासुद्दीन ने बनवाई। इस मंजार के चारों तरफ चांदी का कटहरा सवाई जयसिंह ने बनवाया।
- दरगाह का पहला मुख्य द्वार निजाम द्वार कहलाता है। जिसका निर्माण हैदराबाद के निजाम उसमान अली खाँ ने करवाया।
- मजार पर सोने के गुबंद रामपुरा के ठाकुर ने लगवाया।
- दूसरा द्वार शाहजानी द्वार कहलाता है, जिसका निर्माण शाहजहाँ ने करवाया।
- तीसरा द्वार बुलंद दरवाजा कहलाता है, जिसका निर्माण ग्यासुद्दीन ने करवाया। इसकी ऊँचाई 84 फीट है।
- इसी दरवाजे पर उर्स का झंड़ा चढ़ता है।
- ख्वाजा साहब का उर्स 1 से 6 व 9 रज्जब तक चलता है, जिसका उद्घाटन भीलवाड़ा में रहने वाला गौरी परिवार करता है।
- दरगाह में दो देग (बड़ी कडाई) है, बड़ी देग अकबर ने (1567 ई.) व छोटी देग जहाँगीर ने (1613 ई.) भेट की।
- दरगाह में बेगमी दालान का निर्माण शाहजहाँ की बेटी जहाँआरा ने करवाया।
- ग्रंथ होली बायोग्राफी जिसका लेखक मिर्जा वहीउद्दीन बेग है, इसमें ख्वाजा साहब की जीवनी व दरगाह में हुए निर्माणों का उल्लेख है।
पृथ्वीराज स्मारक – अजमेर में
जुबली क्लॉक टॉवर – अजमेर में
शीशाखान गुफा – अजमेर में
शीशाखान गुफा : – यह अजमेर में तारागढ़ की पहाड़ियों के नीचे एक ऐसी गुफा है, जो गर्मियों में ठण्डी व सर्दियों में गर्म रहती है, पृथ्वीराज इसी गुफा से चामुण्डा माता के दर्शन के लिए जाया करते थे। - मुस्लिम महीनों के नाम :-
1 मोहर्रम
2 सफर
3 रबी-उल-अब्बल
4 रबी-उल-सानी
5 जमादि-उल-अब्बल
6 जमादि-उल-सानी
7 रज्जब
8 सावान
9 रमजान
10 सब्बाल
11 जिल्काद
12 जिलहिज
रणथम्भौर का इतिहास
- रणथम्भौर में चौहान वंश की स्थापना गोविन्द राज ने 1194 में की।
- रणथम्भौर के चौहानों का प्रतापी/यशस्वी – हम्मीर देव चौहान
- हम्मीर देव चौहान :- इसके बारे में जानकारी निम्न ग्रंथों से मिलती है।
ग्रंथ :- हम्मीर महाकाव्य – नयनचंद्र सूरी ।
हम्मीर हठ – चन्द्रशेखर
सुर्जन चरित्र – चन्द्रशेखर
हम्मीर रासों – सारंगधर – 13वीं शताब्दी भाषा :- पिंगल
हम्मीर रासों – जोधराज – 18वीं शताब्दी
हम्मीरायण – गाण्डऊ व्यास
हम्मीर देव चौहान के बारे में :-
पिता :- जैत्रसिंह
माता :- हीरादेवी
पुत्री :- देवलदे/पद्मला
भाई :- वीरमा सुल्ताना
घोड़ा :- बादल
गुरु :- राघवदेव
राज्यकवि :- विजयादित्य
ग्रंथ :- श्रंगाहार - हम्मीर देव चौहान :- 1282-1301
1 चौहान वंश का कर्ण
2 सोलह नृप मर्दानी – गोपीनाथ शर्मा
3 सोलह विजयी कर्ण - हम्मीर ने महाकोटिजन यज्ञ करवाया, जिसका पुरोहित विश्वरूप को बनाया।
प्रारम्भ :- 17 दिसम्बर, 1300
समाप्त :- 17 फरवरी, 1301 - हम्मीर व जलालुद्दीन के मध्य युद्ध :-
- जलालुद्दीन खिलजी ने रणथम्भौर पर दो बार आक्रमण किए। क्रमशः 1291 व 1292 में।
- 1292 वाला युद्ध झाइन/छान/छाण की वजह से हुआ।
- झाइन दुर्ग – रणथम्भौर दुर्ग की कुंजी।
- दोनों युद्धों में यह पराजित हुआ, अतः इसने रणथम्भौर दुर्ग के बारे में कहा- “मैं ऐसे दस दुर्गों को मुसलमानों के 1 बाल के बराबर भी महत्व नहीं देता हूँ।”
- 1296 में जलालुद्दीन खिलजी की हत्या इसी के भतीजे व दामाद अलाउद्दीन खिलजी ने कर दी।
- जलालुद्दीन खिलजी का शासनकाल – 1290-1296
अलाउद्दीन खिलजी का शासनकाल – 1296-13161 ]
हम्मीर व अलाउद्दीन खिलजी के मध्य संघर्ष :- - अलाउद्दीन खिलजी ने निम्न कारणों से रणथम्भौर पर आक्रमण किए-
1 अलाउद्दीन खिलजी की साम्राज्यवादी नीति।
2 हम्मीर का कर देने से मना करना।
3 अलाउद्दीन अपने चाचा की हार का बदला लेना चाहता था।
4 हम्मीर ने अलाउद्दीन के मंगोल विद्रोही मोहम्मद शाह को शरण दी तथा लौटने से मना कर दिया।
- रणथम्भौर का युद्ध 1299 ई. :- अलाउद्दीन खिलजी ने रणथम्भौर पर आक्रमण के लिए दो सेनापति नुसरत खाँ (नेतृत्व) व उलुग खाँ को भेजा। जिनका सामना हम्मीर के सेनापति भीमसिंह व धर्मसिंह से हुआ, इस युद्ध में नुसरत खाँ व भीमसिंह मारे गए।
- रणथम्भौर का युद्ध 1301 :- अलाउद्दीन खिलजी ने रणथम्भौर पर आक्रमण किया। लेकिन दुर्ग अभेद्य होने के कारण यह प्रवेश नहीं कर सका। अतः इसने कूटनीति का प्रयोग करते हुए हम्मीर के सेनापति रणमल व रतिपाल को लालच देकर अपनी ओर मिलाया हम्मीर युद्ध में लड़ता हुआ मारा गया।
- रानी रंग देवी ने जौहर किया जो राजस्थान का प्रथम जौहर/साका माना जाता है। (जल जौहर)
- पुत्री देवलदे पारस लेकर कुण्ड में कूद गई। (पदमला कुण्ड)
- युद्ध के बाद अलाउद्दीन खिलजी को मोहम्मद शाह घायल अवस्था में नजर आया, जिसे हाथी के पैरों से कुचलवा दिया।
- अमीर खुसरो इस युद्ध में अलाउद्दीन के साथ उपस्थित था।
- विश्व का सबसे बड़ा घेरा 9 माह 16 दिन का इसी दुर्ग पर डाला गया।
- अलाउद्दीन खिलजी का 11 जुलाई, 1301 को रणथम्भौर दुर्ग पर अधिकार हुआ।
रणथम्भौर के दर्शनीय स्थल :-
गणेश मंदिर – लेटे गणेश/रणत भंवर का लाडला/त्रिनेत्र गणेश।
मेला – गणेश चतुर्थी (भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी – 624)
1 पद्मला तालाब,
2 पीर सदुद्दीन की दरगाह
3 बादल महल
4 जोगी महल
5 रानी हाड़ा तालाब
6 हम्मीर कचहरी
7 गुप्त गंगा
8 शिवलिंग की छतरी
9 जोरा भोरा (अन्न भण्डारण हेतु)
- 32 खंभो की छतरी :- पिता जैत्रसिंह के 32 वर्षों के सुशासन के उपलक्ष्य में हम्मीर देव ने बनवायी।
- अधूरा स्वप्न :- 32 खंभों की अधूरी छतरी (निर्माण सांगा की पत्नी रानी कर्मावती ने करवाया)।
- सुपारी महल :- मंदिर + मस्जिद + गिरजाघर।
- रणथम्भौर के द्वार
Trick :- नो हाथी गणेश जी को सूरज ढलने से पहले त्रिपोलिया बाजार ले जाते है।
1 नौलखा गेट।
2 हाथी पोल।
3 गणेश पोल।
4 सूरज पोल।
5 त्रिपोलिया गेट (अंधेरी गेट)। - हम्मीर के बारे में कहावत है कि- “सिंह गमन सत्पुरुष वच कदली फलै एक बार तिरया तेल हम्मीर हठ चले न दूजी बार”
- इस दुर्ग के बारे में अबुल फजल ने कहा है कि- “बाकी दुर्ग नंगे है, केवल यहीं बख्तरबंद हैं।”
जालौर का इतिहास
प्राचीन नाम – जबालीपुर
चौहान वंश की स्थापना – 1181-82 कीर्तिपाल
उपाधि – कीतू – एक महान राजा (यह उपाधि मुहणौत नैणसी ने दी)
मुहणौत नैणसी – जोधपुर के जसवंत सिंह का दीवान था।
1 मारवाड़ परगना री विगत – राजस्थान का गजेटियर
2 नैणसी री ख्यात (भाषा – राजस्थानी)। इसमें राजपूतों की 36 शाखाएं बताई गई है।
- मुहणौत नैणसी को राजस्थान का अबुल फजल मुंशी देवी प्रसाद शर्मा ने कहा है।
- कान्हड़देव :- जालौर का प्रतापी शासक।
- इसके बारे में जानकारी पद्मनाभ के ग्रंथ कान्हड़दे प्रबंध से मिलती है।
- गुजरात विजय से लौट रही अलाउद्दीन खिलजी की सेना पर 1298 में कान्हड़देव के सेनापति जैता देवड़ ने आक्रमण किया। व टूटे हुए शिवलिंग को लाकर कान्हड़देव को सौंपा। शिवलिंग की स्थापना जालौर में की।
जालौर पर एन-उल-मुल्क मुल्तानी का आक्रमण 1305 ई. :-
अलाउद्दीन खिलजी ने अपने सेनापति एन-उल-मुल्क मुख्तानी को जालौर पर आक्रमण के लिए भेजा, लेकिन जालौर शासक कान्हड़देव व इसके मध्य समझौता हुआ। जिसके तहत् कान्हड़देव ने अपने पुत्र वीरमदेव को अलाउद्दीन खिलजी के दरबार में नियुक्त किया। - फिरोजा :- यह अलाउद्दीन खिलजी की पुत्री थी। इसने वीरमदेव के सामने विवाह का प्रस्ताव रखा, जिसे ठुकरा दिया गया। इसी वजह से वीरमदेव दिल्ली से भागकर जालौर आ गया।
- फिरोजा की जिद्ध पर अलाउद्दीन खिलजी ने अपने सेनापति कमालुद्दीन गुर्ग को जालौर भेजा।
- कमालुद्दीन गुर्ग की सिवाणा विजय 1308 ई. :- कमालुद्दीन गुर्ग ने जालौर जाते समय रास्ते में पड़े सिवाणा दुर्ग पर आक्रमण किया, लेकिन दुर्ग अभेध होने के कारण अंदर प्रवेश नहीं कर सका।
- इसने कूटनीति का प्रयोग करते हुए सिवाणा के शासक सातलदेव के सेनापति भावलां को अपनी ओर मिलाया। भावलां ने भाण्डेराव तालाब में गौरक्त मिलाया, जिससे दुर्ग में पेयजल की कमी हो गई।
- वीर सातलदेव ने दुर्ग के द्वार खोलकर युद्ध किया और वीरगति को प्राप्त हुआ। साथ में बेटा सोम भी मारा गया।
- कमालुद्दीन गुर्ग ने सिवाणा दुर्ग का नाम बदलकर खेराबाद रखा। (सिवाणा/खेराबाद)
- मलकाना का युद्ध 1310 ई. :-
- मेड़ता के समीप (नागौर)।
- इस युद्ध में कान्हड़देव ने अलाउद्दीन खिलजी के सेनापति शम्स खाँ को पराजित किया और बंदी बनाकर रखा और बाद में रिहा कर दिया।
- कमालुद्दीन गुर्ग की जालौर विजय 1311 ई. :- कमालुद्दीन गुर्ग ने कान्हड़देव के सेनापति दहिया राजपूत बीका को लालच देकर अपनी ओर मिलाया।
- सेनापति बीका ने दुर्ग के गुप्त रास्ते बताए। इस सेनापति की हत्या इसी की रानी हीरा दे क्षत्रिया ने कर दी। (जालौर/जलालाबाद)
- कान्हड़देव युद्ध में मारा गया। वीरमदेव ने अपनी कुलदेवी आशापूर्णा माता के सामने कटार से आत्महत्या कर ली।
- कमालुद्दीन गुर्ग ने दुर्ग का नाम बदलकर जलालाबाद रख दिया।
- दुर्ग कहावत :- “राई का भाव रात में आए तथा रात में ही चले गए।”
1 अलाउद्दीन खिलजी मस्जिद (जालौर में)
2 तोप मस्जिद (जालौर में)
3 फिरोजा मस्जिद (जालौर में)
4 मलिकशाह की दरगाह (जालौर में)
मेवाड़ का इतिहास/हिंदुआ सूरज
- प्राचीन नाम :- शिवी प्रग्वाट/मेदपाटन/मेवाड़ – उदयपुर।
- अबुल फजल ने गुहिलों की उत्पत्ति ईरान के नोशेखा आदिल से बताई।
- मेवाड़ पर सर्वप्रथम मौर्यों ने शासन किया।
- चित्रांगद मौर्य :- इसने 7वीं शताब्दी में चित्रकूट पहाड़ी पर मेसा पठार पर चित्तौड़गढ़ दुर्ग बसाया।
- गुहिलादित्य :- इसने 566 ई. के लगभग मेवाड़ में गुहिल वंश की स्थापना की थी।
- कालभोज (बप्पारावल) :- हरित ऋषि का शिष्य व इसी की गायें चराता था।
- हरित ऋषि के आर्शीवाद से 734 ई. में कालभोज ने मौर्य शासक मानमोरी को पराजित किया व गुहिल साम्राज्य की स्थापना की।
- हरित ऋषि ने इसे बप्पारावल की उपाधि दी।
- बप्परावल ने कैलाशपुरी गाँव उदयपुर में एकलिंगजी का मंदिर बनवाया।
- सोने के सिक्के चलाये – 115 ग्रेन के।
- बप्पारावल की राजधानी – नागदा (उदयपुर)।
- बप्पारावल का मंदिर – नागदा में।
- रणकपूर प्रशस्ति 1439 पाली के अनुसार, कालभोज व बप्पारावल को अलग-अलग व्यक्ति बताया है।
- आसकां लेना :- मेवाड़ के शासक जब कभी राज्य से बाहर जाते थे, तो भगवान एकलिंगजी से अनुमति लेते थे। इसी प्रथा को आसकां लेना कहते हैं।
- अल्लट :- इसने हुण राजकुमारी हरियादेवी से विवाह किया।
- वह हुणों की सहायता से राज्य विस्तार किया।
- इसी के काल में मेवाड़ में नौकरशाही प्रारम्भ हुई।
- इसने अपनी राजधानी नागदा के अलावा आहड़ को भी बनाया। तथा आहड़ में ही वराह मंदिर का निर्माण करवाया।
- रणसिंह/कर्णसिंह :- इसके समय गुहिल वंश दो शाखाओं में बँटा।
- इसके दो पुत्र थे :-
1 क्षेम सिंह – रावल शाखा
2 राहप – सिसोदिया शाखा - जैत्रसिंह :- इसके समय दिल्ली शासक इल्तुतमिश ने राजधानी नागदा पर बार-बार आक्रमण किया।
- इसकी वजह से नागदा पूरी तरह ध्वस्त हो गया।
- जैतसिंह ने भूताला के युद्ध में इल्तुतमिश को पराजित किया।
- जैतसिंह ने अपनी राजधानी नागदा से बदलकर चित्तौड़गढ़ को बनाई।
- तेजसिंह :- 1250-73
- इसके काल में 1260 ई. में “श्रावक प्रतिकर्म सूत्र चूर्णी” नामक ग्रंथ कमलचन्द्र ने चित्रित किया।
- रावल रतन सिंह :- 1301-03
- यह रावल शाखा का अंतिम शासक था। इसके समकालीन दिल्ली शासक अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ पर आक्रमण किया। यह 28 जनवरी, 1303 को दिल्ली से रवाना हुआ और 26 अगस्त, 1303 को चित्तौड़गढ़ जीत लिया। * रतनसिंह युद्ध में लड़ता गया व मारा गया। इसकी रानी पद्मिनि ने 1600 रानियों के साथ जौहर किया। इसकी याद में चित्तौड़गढ़ में जौहर मेला लगता है। जौहर मेला 01-01-11 (चैत्र कृष्ण एकादशी) को भरता है। यह चित्तौड़ का प्रथम जौहर कहलाता है।
- रतन सिंह के सेनापति गौरा व बादल जो रिश्ते में चाचा भतीजे थे, वो युद्ध में मारे गए। गौरा पद्मिनी का चाचा व बादल भाई था।
- अमीर खुसरो :- खेजाइन-उल-फतूह/तारीख-ए-अलाई। (युद्ध का सजीव वर्णन)
युद्ध का कारण :- अलाउद्दीन खिलजी की साम्राज्यवादी नीति। - 1540 में लेखक – मलिक मोहम्मद जायसी (शेरशाह का दीवान)
ग्रंथ :- पद्मावत।
युद्ध का कारण :- पद्मिनी की सुन्दरता। - अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ का शासक अपने बेटे खिज्र खाँ को बनाया और स्वयं दिल्ली चला गया।
- खिज खाँ :- इसने चित्तौड़गढ़ का नाम बदलकर खिजाबाद रख दिया।
- इसने चित्तौड़ का साम्राज्य मालदेव सोनगरा (कान्हड़देव का भाई) को सौंपा और स्वयं दिल्ली चला गया।
(मालदेव सोनगरा – मुछाला मालदेव) - हम्मीर :- 1326-64
- इसने 1326 में जयसिंह को पराजित किया।
- हम्मीर को मेवाड़ का उद्धारक कहा जाता है।
- हम्मीर को सिसोदिया सत्ता का वास्तविक संस्थापक कहा जाता है।
उपाधि :- - विषमघाटी पंचानन (कीर्ति स्तंभ प्रशस्ति में)
- वीरा राजा – रसिक प्रिया टीका
- हम्मीर की जानकारी हम्मीरमदमर्दन ग्रंथ से मिलती है। जो जयसिंह सूरी ने लिखा।
- लक्ष्य सिंह/लाखा :- 1382-1421
- इसके काल में छीतर/पिच्छू नामक बंजारे ने अपने बैल की याद में पिछोला झील का निर्माण 14वीं शताब्दी में करवाया।
- इसी झील के किनारे दो महल है :-
1 जग मंदिर महल – जगत सिंह प्रथम
2 जग निवास महल – जगत सिंह द्वितीय - इसी झील के किनारे नटणी का चबूतरा स्थित है।
- लाखा के काल में जावर में चांदी की खान खोजी गयी, जो एशिया की सबसे बड़ी खान है।
- इस खान से जस्ता व सीसा निकलता है, जो मिलकर गैलेना मिश्रधातु का निर्माण करती है।
- लाखा का बेटा राणा चूड़ा मेवाड़ का भीष्म पितामह कहलाता है।
- मारवाड़ के शासक रणमल राठौड़ ने अपनी बहन हंसाबाई का विवाह लक्ष्यसिंह के साथ सशर्त किया।
- हंसाबाई का बेटा मोकल था।
- मोकल :- 1421-1433
- हंसाबाई ने मोकल का संरक्षक राव चूड़ा को बनाया जो हंसाबाई का शक दूर करने के लिए मांडु (गुजरात) चला गया।
- इसके बाद हंसाबाई ने अपने भाई रणमल राठौड़ को संरक्षक बनाया, जिसने मेवाड़ के ऊँचे पदों पर मारवाड़ के राठौड़ों को नियुक्त किया।
- 1433 ई. में चाचा व मेरा ने जीलवाड़ा (भीलवाड़ा) नामक स्थान पर मोकल की हत्या कर दी।
- कुम्भा (1433-68) :- शासक बनते ही दो समस्याएँ उत्पन्न होती है।
1 पिता के हत्यारों से बदला लेना।
2 रणमल राठौड़ के बढ़ते प्रभाव को रोकना। - सांरगपुर युद्ध/मालवा विजय – 1437 ई.
- इस युद्ध में कुंभा ने महमूद खिलजी प्रथम को पराजित किया।
- युद्ध का कारण महमूद खिलजी प्रथम द्वारा चाचा मेरा, महपा पंवार को शरण देना था।
- कुंभा ने मालवा विजय के उपलक्ष्य में विजय स्तम्भ बनवाया।
- रणमल राठौड़ की हत्या :- कुंभा ने दासी भारमली के द्वारा जहर दिलवाकर इसे मरवाया।
- कुंभा व राव जोधा :- कुंभा ने रणमल राठौड़ के बेटे राव जोधा को भगा दिया। इसने मण्डोर में शरण ली।
- कुंभा ने राणा चूड़ा की सहायता से मण्डोर पर आक्रमण किया।
- राव जोधा ने काहनी गाँव (बीकानेर) में शरण ली।
- आँवल-बाँवल की संधि :- 1453
- यह संधि हंसा बाई के द्वारा करवाई गई (सोजत, पाली में)। यह संधि कुंभा व राव जोधा के मध्य हुई।
- इस संधि से मेरवाड़ा की पहाड़ियों के द्वारा मेवाड़, मारवाड़ सीमाओं का निर्धारण किया।
- राव जोधा ने इस संधि को मजबूत करने के लिए अपनी पुत्री श्रृंगार देवी का विवाह कुंभा के छोटे बेटे रायमल के साथ किया।
- श्रृंगार देवी :- घोषुण्डी बावड़ी, चित्तौड़गढ़ में बनवाई।
- 1442 सेनापति सरदार गोडिय नृसिंह का सिरोही पर आक्रमण :
- कुंभा के सेनापति सरदार गोडिय नृसिंह ने सिरोही शासक साहसमल को पराजित किया।
- साहसमल ने 1425 में सिरोही बसाया।
- चंपानेर की संधि :- 1456
- यह संधि गुजरात शासक कुतुबुद्दीन शाह व मालवा शासक महमूद खिलजी प्रथम के मध्य हुआ।
- कुंभा के विरुद्ध हुई इस संधि को असफल कर दिया। कुंभा ने बदनोर विजय के उपलक्ष्य में भीलवाड़ा में कुशालमाता का मंदिर 1457 में बनवाया।
- मालवा विजय के उपलक्ष्य में :- विजय स्तम्भ/जय स्तम्भ/ विष्णु ध्वज/भारतीय मूर्ति कला का विश्वकोष/नोखण्ड़ा महल विक्ट्री टावर।
मूर्तियों का अजायबघर :- गर्जट
रोम के टार्जन से तुलना की :- फर्ग्युसन
यह कुतुबमीनार से भी बेहतरीन है :- कर्नल टॉड - चित्तौड़गढ़ दुर्ग में स्थित है।
निर्माण :- राणा कुंभा (1440-48), 9 मंजिला, 157 सीढ़िया।
ऊँचाई :- 120/122 फीट
वास्तुकार :- जेता व पुंजा - तीसरी मंजिल पर 9 बार “अल्लाह”
- यह राजस्थान पुलिस व माध्यमिक शिक्षा बोर्ड का प्रतीक चिहन है।
- इसकी नवीं मंजिल आकाशीय बिजली गिरने से टूट गई थी। जिसका पुनर्निर्माण राणा स्वरूपसिंह ने करवाया।
- कीर्ति स्तम्भ प्रशस्ति/जैन कीर्ति प्रशस्ति :-
निर्माण :- जैन व्यापारी – जीजा/जीजब 7 मंजिला - चित्तौड़गढ़ दुर्ग में स्थित है।
- ऊँचाई :- 75/76 फीट
- वास्तुकार :- अत्री भट्ट
- पुरा किया :- अत्री भट्ट के पुत्र महेश भट्ट ने।
- समर्पित :- भगवान ऋषभदेव/आदिनाथ/केसरिया नाथ/कालाजी
- पूर्ण निर्माण :- 1460
- कुंभा के जैन विद्वान :- सोमदेव, सोम सुन्दर, मुनि सुंदर, सुंदर सूरी, जयचंद सूरी, माणिक्य, भूवन सुंदर सूरी और सुंदरगणि।
- कुंभा के वास्तुकार :- मण्डन, जेता, पुंजा, पोमा, नापा।
मण्डन :- गुजरात
- मण्डन के ग्रंथ :-
- राजबलभ :- आवासीय गृहाओं का निर्माण, महलों का निर्माण ।
- रूप मण्डन :- मूर्ति निर्माण
- देवमूर्ति प्रकरण (रूपावतार) :- मूर्ति निर्माण, मूर्ति स्थापना।
- प्रसाद मण्डन :- महलों के निर्माण ।
- शकुन मण्डन :- शुभ-अशुभ
- वास्तु सार/वास्तु मण्डन :- वास्तुकला
- कोदण्ड मण्डन :- धनुर्विद्या से संबंधित
वैद्यमण्डन :- व्याधियों के लक्षण व उपचार। - मण्डन :- इसके भाई नाथा ने वास्तुमंजरी नामक ग्रंथ लिखा।
- कुंभलगढ़ दुर्ग का वास्तुकार मण्डन है।
- कुंभलगढ़ दुर्ग :-
जिला :- राजसमंद
निर्माण :- कुंभा ने 1457-58 ई. में।
वास्तुकार :- मण्डन - दुर्ग के अंदर स्थित छोटा दुर्ग – कटारगढ़।
- इसे मेवाड़ की आँख कहते हैं। (तीसरी आँख)
- दुर्ग की प्राचीर की लंबाई 36 किमी. है।
- कर्नल टॉड ने इस दुर्ग की तुलना एस्टूस्कन (सुदृढ़ प्राचीरो, बुर्जा व विशाल कंगुरो के कारण) से की।
- अबुल फजल ने इस दुर्ग के बारे में कहा है कि- “यह दुर्ग इतनी बुलंदी पर है कि इसे देखने से सिर की पगड़ी नीचे गिर जाती है।”
- इसकी प्राचीर भारत की महान दीवार कहलाती है।
कुंभा :- - संगीत गुरु – सारंग व्यास
- गुरु – जैन आचार्य हीरानंद
- पुराण वाचक – आशानंद
- स्वयं का लिखा ग्रंथ – एकलिंग महात्म्य
- पूरा किया – वेतन कवि कान्ह व्यास
- पुत्री – रमाबई – महान् संगीतज्ञ (वागीश्वरी)
- विवाह स्थल – चित्तौड़गढ़, श्रृंगार चवरी।
- रमा बाई ने जावर में रमा मंदिर बनवाया।
- जिसका वास्तुकार ईश्वर था।
- जावर का प्रचीन नाम योगिनी पट्टनम था।
कुंभा के ग्रंथ – संगीतराज – 5 भाग
1 संगीत मीनांसा
2 सुधा प्रबंध
3 कामराज रतिसार
4 संगीत सुधा
5 रसिक प्रिया पर टीका-गीत गोविंद पर टीका – जयदेव
6 चण्डी शतक पर टीका
7 बसंती दुर्ग – सिरोही
8 अचलगढ़ दुर्ग – आबू, सिरोही
9 कुभ श्याम-मीरा मंदिर – चित्तौड़गढ़ - 1460 ई. कुंभलगढ़ प्रशस्ति से बूंदी का नाम वृंदावती मिलता है।
- कुंभा का शासन स्थापत्य कला का स्वर्णकाल कहलाता है।
- वीर विनोद ग्रंथ :- लेखक – श्यामलदास (भीलवाड़ा)
- इस ग्रंथ के अनुसार मेवाड़ में 84 दुर्ग है, जिनमें से 32 का निर्माण कुंभा ने करवाया।
- कुम्भलगढ़ दुर्ग में स्थित मामा देव कुण्ड के पास बैठे कुंभा की हत्या इसी के बेटे ऊदा ने कर दी।
- कुंभा के उपनाम :- अभिनव भटरताचार्य/राणा रासो/दान गुरु/छाप गुरु/हाल गुरु/हिन्दु सुरताण। ।
- ऊदा :- 1468-73
- इसने 1468 ई. में अपने पिता की हत्या कर दी।
- दाडिम पुर का युद्ध :- 1473
- इस युद्ध में रायमल ने ऊदा को पराजित किया।
- ऊदा की हत्या आकाशीय बिजली के गिरने से हुई।
- रायमल :- 1473-1509
- सांगा/संग्राम सिंह प्रथम :- 1509-1528
- इसके भाइयों पृथ्वीराज, जयमल ने इसकी एक आँख फोड़ दी।
- भाइयों के प्रहार से बचकर इसने अजमेर के कर्मचन्द के पारा शरण ली।
- इसने कर्मचन्द को “रावत” की उपाधि दी।
- इसके शरीर पर 80 घाव थे इसलिए कर्नल टॉड ने “सैनिक भग्नवशेष” बताया।
- यह 16वीं शताब्दी क शक्तिशाली शासक रहा। इसे हिंदुपंत की उपाधि मिली।
- सांगा के युद्ध :-
मेवाड सांगा 1509-28
दिल्ली (कोटा) इब्राहिम लेदी 1517-26 1. खातोली क युद्ध आक्रमण 1517
मा पराजित हुआ
1518
2 बाड़ी का युद्ध (धौलपुर)
1519 3. गागरोण का युद्ध
(झालावाड़) मालवा – महमूद खिलजी द्वितीय
पराजित हुआ
जयपर - सेनापति दौलत खाँ लोदी, आलग खाँ तोदी ने बाबर को भारत आने का निमंत्रण भेजा।
पानीपत का प्रथम युद्ध :- - हरियाग में 21 अप्रैल, 1526 को पानीपत का प्रथम युद्ध हुआ।
- इब्राहिम लोदी मारा गया – बाबर के द्वारा
- इस युद्ध में सर्वप्रथम बारूद और तोपों का प्रयोग हुआ।
- आगरा व दिल्ली का शासन बाबर के अधिकार हो गया।
- बयाना का युद्ध :- 16 फरवरी, 1527 (भरतपुर)।
- इस युद्ध में सांगा की सेना ने बाबर की सेना को बुरी तरह पराजित किया।
- खानवा का युद्ध :- 17 मार्च, 1527 (भरतपुर)
- इस युद्ध से पूर्व बाबर ने अपने सैनिकों से कहा :-
1 मैं शराब का सेवन नहीं करूंगा –x
2 मैं तमगा कर हटा दूंगा – x
3 मैं काबुल के प्रत्येक व्यक्ति को चांदी का सिक्का दूंग –x
4 जिहाद का नारा दिया। (धर्म क) – सैनिकों ने माना - यह युद्ध बाबर व सांग के मध्य लड़ा गया।
- सांगा ने इस युद्ध में पाती पेरवनी की रस्म निभाई।
- सांगा का साथ देने जो शसक आए :-
1 आमेर का पृथ्वीराज कच्छवाहा मारा गया।
2 चंदेरी (मध्यप्रदेश) का मदीनिराय।
3 जगनेर उत्तरप्रदेश का अशोक परमार ।
4 इब्राहिम लोदी का चचेर भाई महबूब लोदी।
5 मारवाड़ का मालदेव
6 बीकानेर का कल्याण सिंह
7 मेवत का हसन खाँ लोदी।
8 रायसिन का सहलदी तंवर।
9 नागौर का खानजादा।
10 बांगड़ का उदयसिंह। - इस युद्ध में बाबर के दो प्रसिद्ध तोपची थे। ( बाबर ने तोप चलाना ईरानियों से सिखा )
1 मुरतफा
2 उस्ताद अली - बाबर ने इस युद्ध में तुलुगमा युद्ध पद्धति अपनाई। जो उज्जबेगों से सिखी थी।
- बाबर ने इस युद्ध में अपनी तोपों को लोहे की जंजीरों से बांधा । इस युद्ध में सांगा के साथ सहलदी तंवर व खानजादा ने विश्वासघात किया। सांगा को घायल अवस्था में युद्ध स्थल से बाहर अखैराज (सिरोही) ने निकाला।
- इस युद्ध में सांगा के सेनापति झाला अज्जा ने राजमुकुट धारण किया व वीरगति को प्राप्त हुआ।
- युद्ध के बाद बाबर ने गाजी की उपाधि धारण की। जिसका अर्थ काफिरों का वध करने वाला।
- इस युद्ध के बाद सांगा ने शपथ ली कि- “जब तक मैं मेवाड़ को मुगलों से आजाद नहीं करा देता पगड़ी धारण नहीं करूंगा व चित्तौड़ की पवित्र भूमि पर पैर नहीं रखूगा।”
- सांगा, बाबर को हराने की योजना रणथम्भौर दुर्ग में बनाने लगा।
- सांगा को इसी के साथियों ने कालपी (उत्तरप्रदेश) नामक स्थान पर जहर दिया।
- बसवा (दौसा) में देहांत हुआ – चबूतरा बनवाया।
- माण्डलगढ़ – भीलवाड़ा में दाह संस्कार हुआ। 32 खंभों की छतरी बनी।
- राणा सांगा की मृत्यु 30 जनवरी, 1528 को हुई।
- रतनसिंह :- बूंदी के शासक सूरजमल हाड़ा के साथ अहेरिया उत्सव (आखेट) में मारा गया।
- विक्रमादित्य :- उम्र में छोटा होने के कारण इसकी संरक्षिका माँ कर्मावती बनी।
- चित्तौड़गढ़ का दूसरा जौहर 1534 में माँ कर्मावती ने किया। गुजरात शासक बहादुर शाह ने चित्तौड़ पर आक्रमण किया।
- कर्मावती ने विक्रमादित्य व उदयसिंह को सुरक्षा के लिए बूंदी में देवालिया के रावत बाघ सिंह के पास भेज दिया।
- कर्मावती ने चित्तौड़ की रक्षा के लिए हुमायुं को राखी भेजी। लेकिन समय पर सैनिक सहायता नहीं मिल पाई।
- कर्मावती ने अन्य रानियों के साथ जौहर किया, जो चित्तौड़गढ़ का दूसरा जौहर/साका कहलाया। (यह जौहर बारूद के ढेर पर हुआ)
- इस युद्ध में मेवाड़ सेना का नेतृत्व रावत बाघ सिंह ने किया।
- रावत बाघ सिंह का स्मारक :- चित्तौड़गढ़ में। यह युद्ध बीका पहाड़ी (चित्तौड़गढ़) पर हुआ।
- बनवीर :- पृथ्वीराज सिसोदिया का अनौरस पुत्र।
- इसने विक्रमादित्य को मार दिया व उदयसिंह को मारना चाहा, जिसे धाय माँ पन्ना के पुत्र चंदन की बली देकर बचाया।
- उदयसिंह को कीरत-बारिन दम्पति द्वारा कुम्भलगढ़ दुर्ग से आशादेवपुरा के पास भिजवाया।
- उदयसिंह (1537-72):- इसने मावली नामक स्थान पर मारवाड़ के मालदेव की सहायता से बनवीर को पराजित किया।
- 1544 में शेरशाह सूरी की अधीनता स्वीकारी।
- 1559 में उदयपुर बसाया।
- उदयपुर राजमहलों को विण्डसर महलों की संख्या दी गई।
- इसने 1559-64 के मध्य उदयसागर झील बनाई।
- मेवाड़ पर अकबर का आक्रमण :-
- अकबर ने चित्तौड़ पर आक्रमण किया – 1567-68
- उदयसिंह युद्ध का भार जयमल राठौड़ व फत्ता सिसोदिया पर छोड़कर स्वयं गोगुन्दा की पहाड़ियों में चला जाता है।
- जयमल-फत्ता बहादुरी से युद्ध लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए।
- इस युद्ध में जयमल का साथ इसके भतीजे वीरकल्ला ने दिया। जिसे अकबर ने 4 हाथों वाला देवता कहा है।
- फत्ता सिसोदिया की रानी फूलकंवर ने जौहर किया जो चित्तौड़ का तीसरा जौहर कहलाता है।
- चित्तौड़ का तीसरा साका – 1567-68
वीर कल्ला की छतरी – चित्तौड़गढ़
- यह युद्ध पिंडिली के युद्ध के नाम से जाना जाता है।
- इस युद्ध के बाद अकबर ने चित्तौड़गढ़ में कत्ले आम का आदेश दिया, जो इसके जीवन का अमिट कलंक माना जाता है।
- अकबर ने जयमल, फत्ता दोनों वीरों की गजारूढ़ मूर्तियां आगरा दुर्ग के द्वार पर लगाई, जिसे बाद में औरंगजेब ने तुड़वाई।
- राजस्थान में इन दोनों वीरों की मूर्ति जूनागढ़ बीकानेर द्वार पर रायसिंह ने लगवाई।
- मोहर मगरी :- टीला निर्माण अकबर ने करवाया। इसमें एक तगारी मिट्टी डालने पर अकबर द्वारा एक मोहन दी जाती है।
- इसरदान चौहान :- उदयसिंह का सैनिक। इसने अकबर के हाथी की सूण्ड पकड़कर ऊपर जाकर वार किया।
- हरमाड़ा का युद्ध (1557) :- हरमाड़ा का युद्ध 1557 ई. में उदयसिंह व मेवात के हाजी खाँ के मध्य हुआ, इस युद्ध में हाजी खाँ का साथ मारवाड़ का शासक मालदेव देता है। इस युद्ध में उदयसिंह पराजित होता है।
- उदयसिंह का देहांत 28 फरवरी, 1572 को गोगुन्दा में हुआ।
उदयसिंह की छतरी – गोगुन्दा
- उदयसिंह की 3 रानियाँ :-
1 सजना बाई – शक्ति सिंह (बेटा)
2 धीर बाई अटियाणी – जगमाल, सागर
3 जेवन्ता बाई – कीका (प्रताप) - महाराणा प्रताप :-
पिता :- उदयसिंह
माता :- जेवन्ताबाई (पाली के अखैराज की पुत्री)
बचपन का नाम :- कीका
जन्म :- कुम्भलगढ़ दुर्ग (बादल महल की जुनी कचहरी में), 9 मई, 1540 - राज्य अभिषेक :- गोगुंदा (प्रथम) (28 फरवरी, 1572) कुम्भलगढ़ (द्वितीय) (मारवाड़ का रावचन्द्र से उपस्थित)
- कमर में शाही तलवार कृष्ण दास ब्राह्मण ने बांधी।
- गुहील वंश का 54वाँ व सीसोदिया शाखा का 12वाँ शासक बना। अगर बनवीर को सम्मिलित किया जाए तो – 13वाँ ।
महाराणा प्रताप जयंती :- 323 (ज्येष्ठ शुक्ल तृतीया)
प्रताप की रानी का नाम :- अजबदे
पुत्र :- अमरसिंह प्रथम - अकबर ने प्रताप को समझाने के लिए 4 शिष्ट मण्डल जाते है (जमाभटों)
1 जलाल खाँ – 1572
2 मानसिंह प्रथम – 1573
3 भगवान दास – 1573
4 टोडरमल – 1573 - ये चारों ही समझाने में असफल रहे।
- प्रताप व मानसिंह प्रथम की मुलाकात उदयसागर झील की पाल पर हुई।
- अकबर ने प्रताप को पकड़ने के लिए युद्ध की योजना बनाई। (मेग्नीज दुर्ग में – अजमेर)
उपनाम :- अकबर का किला/दौलतखाना/अकबर का शस्त्रागार। - हल्दी घाटी का युद्ध :- 18 जून/21 जून, 1576, बनास नदी। (Dr.A. L. श्रीवास्तव के अनुसार – 18 जून)
- इस युद्ध में अकबर ने प्रधान सेनापति मानसिंह प्रथम को बनाया।
- युद्ध में प्रताप घायल हुआ, जिसे सेनापति झालाबीदा ने युद्ध स्थल से बाहर निकाला। तथा राजमुकुट स्वयं ने धारण किया व अंत में मारा गया।
- प्रताप का नेतृत्व हकीम खां सूरी पठान ने किया। प्रताप का पीछा करते हुए मुगल सैनिकों को भाई शक्ति सिंह ने रोका।
- दोनों भाई बालीचा गांव के समीप मिले। यहीं चेतक ने अंतिम सांसे ली।
- शक्ति सिंह के बारे में जानकारी निम्न ग्रंथों से मिलती है :-
1 अमर काव्य वंशावली
2 राज प्रशस्ति - इन दोनों ग्रंथों का लेखक रणछोड़ भट्ट तेलंग है।
चेतक की छतरी – हल्दीघाटी बालीचा गांव
- अब्दुल कादिर-बदायुं ने इस युद्ध का सजीव वर्णन अपने ग्रंथ । मुन्तकाफ तवारिफ में किया तथा इस युद्ध को गोगुंदा का युद्ध कहा तथा इसी युद्ध में हाथियों की लड़ाई का वर्णन है।
प्रताप के हाथी अकबर के हाथी (मानसिंह प्रथम)
रामप्रसाद मर्दाना
लुणा गजराज
गजमुक्त
रणमदायू - रामप्रसाद (हाथी) को उपहार स्वरूप युद्ध के बाद अकबर के पास भेजा गया, जिसे अकबर ने इसका नाम बदलकर पीर प्रसाद रखा।
- अबुल फजल (जन्म – नागौर) अपने ग्रंथ अकबर नामा/आइने अकबरी में इस युद्ध को खमनौर का युद्ध कहा। (अकबर का नवरत्न)
- कर्नल टॉड ने इस युद्ध को मेवाड़ की थर्मोपल्ली कहा।
- आसफ खाँ :- इसने हल्दीघाटी युद्ध में जिहाद का नारा दिया।
- मिहतर खाँ :- मुगलों की रिजर्व सेना का प्रभारी। अफवाह फैलाई अकबर के आने की।
- मुहम्मद खाँ :- इसे अकबर ने हल्दीघाटी युद्ध की सूचना लाने के लिए भेजा।
- मानसिंह प्रथम :- मानसिंह प्रथम हल्दीघाटी युद्ध माण्डलगढ़ दुर्ग भीलवाड़ा से लड़ा।
- यह प्रताप को पकड़ने में असफल रहा।
- अकबर ने नाराज होकर इससे मनसबदारी छीन ली व सेना को शाही दाग से मुक्त किया।
- हल्दीघाटी युद्ध के बाद प्रताप ने कमलनाय पर्वत पर स्थित आवरगढ़ को अपनी अस्थाई राजधानी बनाई।
- गोगुंदा के समीप मांजेरी गांव में स्थित राणेराय तालाब के समीप अपनी सैनिक छावनी स्थापित की व अंत में कुंभलगढ़ दुर्ग में शरण ली।
- अकबर ने नवम्बर, 1976 में अजमेर से मेवाड़ पर आक्रमण किया व उदयपुर का नाम बदलकर मोहम्मदाबाद रखता है। (उदयपुर/मोहमम्दाबाद)
- सेनापति शाहबाज खाँ का आक्रमण, 1577 :- इसी आक्रमण में इसने 3 अप्रैल, 1578 कुम्भलगढ़ दुर्ग पर विजय प्राप्त की। (एकमात्र मुगल सेनापति जिसने कुम्भलगढ़ पर विजय प्राप्त की)
- अन्य आक्रमण :- 1 1578, 2. 15791
- सेनापति अबूर्रहीम खानखाना का आक्रमण, 1580 :- शेरपुर गांव में।
- अकबर ने प्रताप को पकड़ने के लिए 4 सैनिक छावनियाँ स्थापित की।
देवारी – उदयपुर
देवल – डूंगरपुर
देसूरी – पाली
दिवेर – राजसमंद - भामाशाह :- जन्म – रणथम्भौर दुर्ग।
- पाली निवासी ताराचंद का भाई।
- प्रताप से मुलाकात – 1578/1580 ई. चूलिया नामक स्थान पर।
- इसने प्रताप को आर्थिक सहायता दी।
- प्रताप के सबसे बुरे दिन 1578 वाले माने जाते है।
- दिवेर का युद्ध :- 1582
- इस युद्ध में प्रताप के बेटे अमरसिंह प्रथम ने अकबर के चाचा सुल्तान खाँ को मार दिया। कर्नल टॉड ने इस युद्ध को मेवाड़ का मेराथन कहा।
- जगन्नाथ कछवाहा का सैनय अभियान :-
- 5 दिसम्बर, 1584 :- अकबर ने प्रताप के विरूद्ध यह अंतिम सैन्य अभियान भेजा जो असफल रहा।
- चावण्ड पर प्रताप का अधिकार, 1585 :- प्रताप ने चावण्ड के लूणा राठौड़ को पराजित किया।
- चावण्ड – प्रताप की संकटकालीन राजधानी।
- मालपुरा की लूट :- कच्छवाहों से बदला लेने के लिए बेटे अमरसिंह प्रथम व भामाशाह को आमेर के सबसे सम्पन्न कस्बे मालपुरा को आमेर के सबसे सम्पन्न कस्बे मालपुरा को लूटने के लिए भेजा तथा इन्होंने मालपुरा को लूट लिया।
- प्रताप ने मेवाड़ के 2 दुर्गों (चित्तौड़गढ़ व मांडलगढ़) को छोड़कर बाकी सभी दुर्गों पर अपना अधिकार कर लिया।
- 19 जनवरी, 1597 को ‘चावण्ड में प्रताप का देहान्त हुआ।
- इनका दाहसंस्कार बाण्डोली उदयपुर में हुआ। यहाँ 8 खम्भो की भव्य छत्री बनी हुई है।
- मोती मगरी :- प्रताप का स्मारक – फतहसागर झील की पाल पर स्थित है। * प्रताप का सांस्कृतिक जीवन :- प्रताप ने चामुण्डा माता का मंदिर व बादरायण में हरिहर मंदिर बनवाया।
- चक्रपाणी मिश्र :- प्रताप का दरबार कवि।
- इसने विश्व वल्लभ, मूहर्तरत्नमाता, राज्याभिषेक पद्धति नामक ग्रंथ लिखे।
- मुन्नी हेमरत्न :- ताराचंद का आश्रित कवि।
- इसने “गोरा-बादल – पद्यमिनी चरित्र चौपाई” नामक ग्रंथ लिखा।
- रामासांधु-मालासाधु :- चारण कवि प्रताप की सेना के साथ में रहते है।
- मालासाधु ने महाराणा प्रताप का झुलणा” नामक ग्रंथ लिखा, जिसमें बप्पारावल से प्रताप तक का वर्णन था।
- पुंजा भील :- प्रताप का भील सेनापति।
- जगमाल :- रानी धीर बाई भटीयाणी का पुत्र ।
- प्रताप से पराजित होकर अकबर की शरण में चला गया। व 1583 में दताणी के मैदान में सिरोही के सुल्तान देवड़ा के साथ युद्ध में मारा गया।
- सागर :- जहाँगीर ने इसे “मेवाड़ का महाराणा” घोषित किया।
जहाँगीर नामा में सागर को सगर के नाम से संबोधित किया। - अमरसिंह प्रथम (1597-1620) :-
जन्म – मचीन्द (राजसमंद)
राज्याभिषेक – चावण्ड
बेटा – कर्णसिंह - उठाँला/ऊटाँला दुर्ग पर आक्रमण :- वल्लभ नगर, उदयपुर।
दुर्ग अध्यक्ष – कायम खान । - अमरसिंह प्रथम ने दुर्ग पर आक्रमण किया व कायम खाँ को मार दिया।
- इसी दुर्ग को लेकर चुड़ावत व शक्तावतों के मध्य मतभेद हुआ।
- मुगल मेवाड़ संधि (5 फरवरी, 1615 ई.) :- यह संधि अमरसिंह प्रथम व जहांगीर के मध्य हुई।
संधि की शर्ते :- - अमरसिंह प्रथम दिल्ली दरबार में नहीं जाएगा।
- अपने बेटे कर्णसिंह को 1000 सैनिकों के साथ दरबार में भेजेगा।
- अमरसिंह मुगलों के साथ वैवाहिक संबंध नहीं करेगा। अमरसिंह चित्तौड़गढ़ की मरम्मत नहीं करवाएगा।
- कर्णसिंह (1620-28) :- इसने पिछोला झील के समीप जग मंदिर महलों का निर्माण कार्य प्रारम्भ करवाया।
- इन्हीं महलों में शाहजहाँ ने अपने विद्रोही दिनों में शरण ली। इसने उदयपुर में कर्ण विलास व दिलखुश महल बनवाए।
- जगतसिंह प्रथम (1628-52) :- इसने जग मंदिर महलों का निर्माण पूर्ण करवाया। इसने उदयपुर में जगन्नाथ राय मंदिर बनवाया, जिसे “सपनों से बना मंदिर” कहा है।
- इसका निर्माण अर्जुन, सूत्रधार भाणा व मुकुंद की देखरेख में हुआ।
- इसी मंदिर के समीप जगन्नाथ राय प्रशस्ति स्थित है। जिसका लेखक कृष्ण भट्ट है।
- जगतसिंह प्रथम के काल में 1631 में शाहजहाँ के आदेश पर प्रतापगढ़ व शाहपुरा को अलग रियासते बनवाई।
- इसी ने सर्वप्रथम मुगल मेवाड़ संधि का उल्लंघन किया।
- राजसिंह (1652-80):- इसने राजसमंद झील बनवाई व इसका उत्तरी भाग व चौकी पाल कहलाती है।
- यहाँ 25 संस्कृत शीला लेखों में मेवाड़ का इतिहास वर्णित है।
- यह राज प्रशस्ति एशिया की सबसे बड़ी प्रशस्ति है।
- इस झील के किनारे घेवर माता का मंदिर है।
- इस झील में गोमती ताल केवला नदियों का पानी आता है।
- शाहजहाँ ने राजसिंह पर आक्रमण के लिए शादुल्ला खाँ के नेतृत्व में दल भेजा।
- राजसिंह व औरंगजेब के मध्य संघर्ष :- प्रारम्भ में दोनों के मध्य अच्छी मित्रता थी जो बाद में दुश्मनी में बदल गई। जिसके निम्न कारण थे :-
1 औरंगजेब ने जजिया कर लगाया (1679), राजसिंह ने इसका विरोध किया। 2 औरंगजेब ने मंदिर तोड़ने के आदेश दिए (1669)। - राजसिंह ने मंदिर बनवाए।
- अम्बा माता का मंदिर, उदयपुर
- द्वारिकाधीश जी का मंदिर – कांकरोली (राजसमंद)
- श्रीनाथ जी का मंदिर – नाथद्वारा (राजसमंद)
3 किशनगढ़ के शासक रूपसिंह की पुत्री चारुमति के साथ औरंगजेब विवाह करना चाहता था, चारुमति ने अपने धर्म की रक्षा के लिए राजसिंह से विवाह किया। - हाड़ी रानी/सहल कंवर :-
पति – सलूंबर के ठाकुर रतनसिंह चूड़ावत। - अपने पति के द्वारा निशानी मांगने पर इसने अपना सिर काटकर दे दिया।
- रतनसिंह, राजसिंह की ओर से औरंगजेब के खिलाफ युद्ध में शामिल होता है।
- सेनाणी नामक कविता मेघराज मुकुल ने लिखी।
- कविता – चूडावत मांगी सेनाणी, सरकाट दे दियों क्षत्राणी।
- जयसिंह (1680-98) :- इसने जयसमंद झील बनवाई। जिसे ढेबर झील भी कहते है। यह राजस्थान की मीठे पानी की सबसे बड़ी झील है। इस झील पर 7 टापू है। बड़ा टापू बाबा का भांखड़ा व छोटा प्यारी/पाइरे।
- इस झील से दो नहरे निकाली गई।
1 श्यामपुरा,
2 भाटपुरा - इस झील में गोमती, झामरी, रूपारेल व बघेर नदियों का पानी आता है।
- अमरसिंह द्वितीय (1698-1710) :- इसने अपनी पुत्री चन्द्राकुमारी का विवाह आमेर शासक सवाई जयसिंह के साथ देबारी समझौते के तहत किया।
- संग्राम सिंह द्वितीय (1710 – Jan, 1734):-
- इसने उदयपुर में सहेलियों की बाड़ी व सिसारमा में वैधनाथ मंदिर बनवाया।
- इसे हुरड़ा सम्मेलन का अध्यक्ष नियुक्त किया गया, लेकिन आयोजन के पहले ही इसकी मृत्यु हो गई।
- हुरड़ा सम्मेलन – भीलवाड़ा
आयोजन की तिथि – 17 जुलाई, 1734
सर्वप्रथम अध्यक्ष बनाया – संग्राम सिंह द्वितीय को
अध्यक्षता की – जगतसिंह द्वितीय ने आयोजन का कारण – मराठों का राजस्थान में प्रवेश रोकने हेतु। असफलता का कारण – राजपूत राजाओं के निजी स्वार्थ। - जगतसिंह द्वितीय (1734-78):- हुरड़ा सम्मेलन की अध्यक्षता की।
- पिछोला झील के किनारे जगनिवास महल बनवाए।
- इसी के समय मराठो ने मेवाड़ से सर्वप्रथम कर वसूला।
- भीमसिंह सिसोदिया (1778-1828) :- 1818 में कर्नल जैम्स टॉड के प्रयासों से इसने ईस्ट इंडिया कम्पनी (EIC) के साथ संधि की।
- कृष्णा कुमारी विवाद :- यह भीमसिंह सिसोदिया की पुत्री थी। जिसकी सगाई सर्वप्रथम मारवाड़ के भीमसिंह राठौड़ के साथ हुई। लेकिन कुछ समय पश्चात् ही इसका देहांत हो गया। बाद में इसकी सगाई आमेर के जगतसिंह कछवाहा के साथ हो गई। इस बात से भीमसिंह राठौड़ का भाई मानसिंह राठौड़ नाराज हुआ।
- मानसिंह राठौड़ व कच्छवाह के मध्य 1807 ई. में गिंगोली का युद्ध हुआ। इसमें जगतसिंह विजयी हुआ।
- बाद में आमिर खाँ पिण्डारी के कहने पर भीमसिंह ने 1810 में कृष्णा को जहर दे दिया।
- कृष्णा कुमारी महल – उदयपुर ।
- अमीर खाँ पिण्डारी ने 1817 में टोंक बसाया।
- सरदार सिंह (1838 to 1842):- इसके काल में खेरवाड़ा, उदयपुर में MBC (मेवाड़ भील कोर) की स्थापना की।
- स्वरूप सिंह (1842-61):- स्वरूपशाही सिक्के चलाए।
- इनके काल में MBC के कमांडर J.C. ब्रुक ने डाकन प्रथा (1853) पर रोक लगाई।
डाकन प्रथन प्रचलित :-
पहले – मेवाड़
अब – उदयपुर। - सज्जनसिंह (1872-84) :- खेरवाड़ा, उदयपुर में सज्जन विलास नामक पुस्तकालय बनाया।
- 1881 ई. में मेवाड़ में जनगणना का कार्य इसी के काल में शुरू हुआ।
- फतेहसिंह (1884-1921) :- छपनिया अकाल (वि.सं. 1956) इसके काल में पड़ा।
- इसके काल में वाल्टरकृत राजपूत हितकारिणी सभा (1888-89) की स्थापना हुई जिसने त्याग प्रथा पर रोक लगाई।
- लार्ड रिपन ने चित्तौड़ आकर GCI (Grand Commander of the Star of India) की उपाधि दी।
- इसी के काल में बीजौलिया किसान आंदोलन 1897 को शुरू हुआ।
- साधु सीताराम दास ने इसका नेतृत्व किया।
- 1903 में लार्ड कर्जन ने एडवर्ड सप्तम् के लंदन में राजतिलक के अवसर पर दिल्ली दरबार का आयोजन किया। इसमें शामिल होने महाराणा फतेहसिंह भी गए। इन्हें दरबार में शामिल होने से रोकने के लिए प्रसिद्ध क्रांतिकारी केसरी सिंह बारहठ ने डिंगल भाषा में 13 सोरठे (चेतावनी रा चूंगटिया) लिखे।
- भूपालसिंह (1921-48):- इसने मेवाड़ राज्य की ओर से एकीकरण पर हस्ताक्षर किए।
- विशेष :- मेवाड़ महाराणा की अनुपस्थिति में राज्य की सुरक्षा का भार सलुम्बर (उदयपुर) के ठाकुर पर होता है। व मेवाड़ महाराणा का राजतिलक बगड़ी के ठाकुर के द्वारा होता है।
मारवाड़ का इतिहास
- प्रारम्भ में यहाँ प्रतिहारों ने शासन किया। जो बाद में कन्नौज चले गए।
- बदायूं स्थान उत्तरप्रदेश से राजपूतों की राठौड़ गोत्र का आगमन हुआ।
- राव सीहा (13वीं शताब्दी) :- द्वारिका जाते समय फिरोजशाह द्वितीय से इसने पाली की रक्षा की। दोनों के मध्य लाखा झवर का युद्ध हुआ, वह स्थान धोला चोतरा कहलाता है।
- राव सीहा ने पाली के आस-पास राठौड़ वंश की स्थापना की।
- बीठू के लेख (पाली) से इसकी मृत्यु की तिथि निश्चित होती है। (1273 – मृत्यु)
- आस्थान (1290-96) :- यह जलालुद्दीन खिलजी की सेना के साथ युद्ध लड़ता मारा गया।
- राव चूड़ा :- इसने मण्डोर को अपनी राजधानी बनाया। अपने चाचा मल्लीनाथ की सहायता से इसने नागौर शासक जलाल खाँ खोखर को पराजित किया।
- मल्लीनाथ ने राव चूड़ा को सालौड़ी की जागीर प्रदान की थी।
- राव चूड़ा को मारवाड़ में सामन्ती प्रथा का संस्थापक माना जाता है।
- राव चूड़ा की रानी चांद कंवर ने जोधपुर में चांद बावड़ी का निर्माण करवाया।
- राव चूड़ा ने अपना उत्तराधिकारी पुत्र कान्हा को घोषित किया। और रणमल राठौड़ को जोजावर की जागीर प्रदान की। रणमल नाराज होकर मेवाड़ चला गया।
- रणमल राठौड़ (1426-38):- इसे मेवाड़ में राणा लाखा के द्वारा धणला की जागीर दी गई। रणमल राठौड़ ने अपनी बहन हंसाबाई का विवाह मेवाड़ के लाखा के साथ सशर्त किया।
- यह मेवाड़ के मोकल का संरक्षक भी बना।
- रणमल राठौड़ की हत्या कुंभा ने दासी भारमली के द्वारा जहर दिलवाकर की।
- राव जोधा (1438-89):- यह अपने पिता रणमल राठौड़ के साथ मेवाड़ में रह रहा था। कुंभा ने इसे यहाँ से भगा दिया। इसने मण्डोर में शरण ली।
- कुंभा ने राणा चूड़ा के नेतृत्व में मण्डोर पर आक्रमण करवाया। इसने मण्डोर से भागकर बीकानेर के समीप काहुनी गांव में शरण ली।
- हंसाबाई ने 1453 ई. में राव जोधा व कुंभा के मध्य आंवल–बांवल की संधि करवाई। व मेवाड़-मारवाड़ की सीमाओं का निर्धारण किया।
- राव जोधा ने इस संधि को मजबूत आधार प्रदान करने के लिए अपनी पुत्री श्रृंगार देवी का विवाह कुंभा के छोटे बेटे रायमल के साथ कर दिया।
- श्रृंगार देवी ने चित्तौड़ में घोसुण्डी बावड़ी बनवाई।
- राव जोधा ने 1459 में मेहरानगढ़ दुर्ग की स्थापना की।
- राव जोधा व राठौड़ वंश की कुलदेवी नागणेची माता है। (बाड़मेर)
- 1459 में राव जोधा ने मेहरानगढ़ दुर्ग बसाया। जिसकी नींव करणीमाता/रिद्धी बाई द्वारा रखवाई। इस दुर्ग में रजिया नामक जीवित व्यक्ति की बलि दी गई।
- नागणेची माता का मंदिर इसी दुर्ग में बनवाया।
- नागणेची माता – नागणा गांव में (बीकानेर)- निर्माण धुहड़ ने।
- राव जोधा को मारवाड़ में सामंती प्रथा का वास्तविक संस्थापक कहा जाता है।
- राव सातलदेव (1489-92) :- राव सातलदेव ने अजमेर के सूबेदार मल्लू खाँ के सेनापति घुड़ले खाँ के साथ युद्ध किया। व इसे मार दिया। इस युद्ध में राव सातलदेव भी घायल हुआ व कुछ समय पश्चात् इसकी भी मृत्यु हो गई।
- घुड़ला नृत्य – 118 (चैत्र कृष्ण अष्टमी) शीतलाष्टमी।
- संरक्षण (स्व. कोमल कोठारी) – रूपायन संस्था ने (बोरूंदा – जोधपुर ने दिया)
- राव सूजा (1492-1515) :- इसके समय बीकानेर के शासक राव बीका ने जोधपुर पर आक्रमण किया।
- राव गांगा (1515-31) :- राव गांगा ने अपने पुत्र मालदेव को खानवां के युद्ध में सांगा का साथ देने के लिए 4000 सैनिकों के साथ भेजा।
- सेवकी गाँव का युद्ध 1529 ई. में हुआ इस युद्ध में राव गांगा ने नागौर शासक दौलत खाँ को पराजित किया।
- राव गांगा अफीम का बड़ा शौकीन था। यह नशे में दुर्ग की प्राचीर से गिर गया व इसकी मृत्यु हो गई। उसकी मृत्यु का शक पुत्र मालदेव पर किया जाता है।
- मालदेव (1531-62) :- मुस्लिम इतिहासकारों ने इसे हसमत वाला शासक बताया है। मालदेव ने सोजत के किले का निर्माण पाली में करवाया। जहाँ इसका राज्याभिषेक हुआ।
मालदेव ने पोकरण का किला जैसलमेर में बनवाया। - मालदेव ने नागौर दुर्ग की मरम्मत करवाई।
- मालदेव का अजमेर पर भी अधिकार रहा।
- हीराबाड़ी का युद्ध (1533) :- इस युद्ध में मालदेव ने नागौर के दौलत खाँ को पराजित किया।
- 1538 ई. में सीवाणा के डुंगरसी को पराजित किया।
- 1538 ई. में वीरमदेव को पराजित करके अजमेर व मेड़ता पर अपना अधिकार किया।
- पहोबा का युद्ध (1541):- यह युद्ध गंगानगर में हुआ। इस युद्ध में मालदेव के सेनापति जेता व कूपा ने बीकानेर के शासक जैतसिंह की हत्या कर दी।
- गिरी सुमेल का युद्ध/जैतारण का युद्ध (4-5 जनवरी, 1544) :-पाली में – जैतारण मैदान में।
- यह युद्ध शेरशाह सूरी व मालदेव के मध्य हुआ। इस युद्ध में मालदेव युद्ध का भार जैता व कूपा पर छोड़कर भाग गया। दोनों वीरों ने शेरशाह सूरी के साथ बड़ी बहादूरी के साथ युद्ध किया। अंत में ये वीरगति को प्राप्त हुए।
- शेरशाह सूरी इस युद्ध में अपने सेनापति जलाल खाँ जलवानी की वजह से हारते-हारते जीत गया। युद्ध के बाद शेरशाह सूरी ने कहा- “मैं एक मुट्ठी भर बाजरे के लिए हिंदूस्तान की बादशाहत खो देता।”
- 1545 ई. में कालीजंर दुर्ग पर आक्रमण करते समय एक बारूद का गोला दुर्ग से टकराकर इसी के बारूद के ढेर में आ गिरा। जिसके फटने से इसकी मृत्यु हो गई।
- मालदेव की रानी उमादे इतिहास में रूठी रानी के नाम से प्रसिद्ध है। यह जैसलमेर के लूणकरण की पुत्री थी। इसने अपना जीवन अजमेर दुर्ग में व्यतीत किया।
- मालदेव ने इसे लाने के लिए ईसरदास बारहठ को भेजा था। अन्य रानियों ने आशा बारहठ को भेजा।
- मालदेव की मृत्यु के बाद उमादे महासती हुई।
- शेरशाह सूरी के अजमेर पर आक्रमण के समय उमादे ने कोसाणा (जोधपुर), गुदोंच (पाली) व केलवा (राजसमंद) में शरण ली।
- राव चन्द्रसेन (1562-81) :-
- मारवाड़ का प्रताप
- प्रताप का अग्रगामी
- प्रताप का पथ प्रदर्शक
- मारवाड़ का भूला-बिसरा राजा
- मारवाड़ का विस्मृत नायक
- हुसैन कुली खाँ का चन्द्रसेन पर आक्रमण (1564 ई.):- राव चन्द्रसेन भाद्राजुण की पहाड़ियों (जालौर) में चला जाता है।
- 1570 ई. में शुक्र तालाब के पास अकबर ने नागौर दरबार लगवाया।
- इस दरबार में कई शासकों ने अकबर की अधीनता स्वीकारी।
बीकानेर – कल्याणमल
जैसलमेर – हरराय भाटी
हाड़ौती – सुर्जन हाड़ा - कल्याणमल (बीकानेर) :- इसने अपने दोनों बेटे रायसिंह व पृथ्वीराज राठौड़ को अकबर को दिल्ली दरबार में सौंप दिया।
- राव चन्द्रसेन अपने भाईयों राम व उदयसिंह के साथ इस दरबार में आया। लेकिन अकबर द्वारा सम्मान न देने के कारण बिना अधिनता स्वीकार किए ही दरबार से चला गया।
- शाहकुली खाँ व रायसिंह का आक्रमण 1572 :- चन्द्रसेन जंगलों में चला गया।
- जलाल खाँ का आक्रमण 1574 :- इसके आक्रमण के समय राव चन्द्रसेन ने सिवाणा में शरण ली। जलाल खाँ ने सिवाणा पर अधिकार कर लिया। अंत में राव चन्द्रसेन ने जलाल खाँ को मार दिया।
- राम का पुत्र कल्ला, जो सोजत का शासक था। इसने राव चन्द्रसेन का साथ दिया।
- शाहबाज खाँ का आक्रमण 1576 :- इसकी बड़ी सेना को देखकर चन्द्रसेन सारण के पर्वतों (पाली) में चला गया।
- यही रहते हुए 1581 ई. में चन्द्रसेन का देहांत हो गया। यहाँ इसकी पाली में अश्वारूढ़ मूर्ति स्थापित है। जिसके आगे 5 स्त्रियों की मूर्तियाँ लगी हुई है।
- 30 अक्टूबर, 1572 को अकबर ने बीकानेर के रायसिंह को जोधपुर का सूबेदार बनाया।
- अकबर ने जोधपुर को खालसा घोषित कर दिया।
- उदयसिंह (1583-95) :- इसे अकबर ने “मोटा राजा” की उपाधि दी। इसने अपनी पुत्री का विवाह मानीबाई/जगतगुसाई का विवाह अकबर के बेटे सलीम/जहांगीर से किया।
- यह विवाह हिंदू रीति-रिवाज से हुआ।
- मानीबाई का बेटा खुर्रम/शाहजंहा हुआ।
- शूरसिंह (1595-1619):- इसे अकबर ने “सवाई राजा” की उपाधि दी।
- गजसिंह :- इसे जहाँगीर ने दलथम्बन की उपाधि दी।
इसके दो बेटे थे :-
1 अमर सिंह राठौड़
2 जसवंतसिंह प्रथम - अनारा बेगम :- यह गजसिंह की पासवान थी। इसी के प्रभाव में आकर गजसिंह ने अपना उत्तराधिकारी जसवंत सिंह को बनाया।
- जसवंतसिंह प्रथम (1638-78):- शाहजहाँ ने इसका राज्याभिषेक आगरा में करवाया। व इसे महाराजा की उपाधि दी।