राजस्थान में रियासती शासकों ने औद्योगिकी विकास के लिए कोई प्रयास नहीं किये। इस कारण स्वतन्त्रता से पहले राज्य में औद्योगिकी विकास न के बराबर था। इस समय राज्य में 11 वृहत उद्योग कार्यरत थे। जिनमें एक 7 सुती वस्त्र की मीले, दूसरी चीनी के कारखाने, तीसरा 2 सीमेन्ट के कारखाने कार्यरत थे।
1 प्रथम सुती वस्त्र का कारखाना-कृष्णा मील ब्यावर, अजमेर 1889 में
2 चीनी उद्योग- मेवाड़ शुगर मील भोपालसागर, चित्तौड़
3 सीमेन्ट उद्योग-एसोसिएट सिमेन्ट कम्पनी लाखोरी, बूंदी

स्वतन्त्रता के बाद औद्योगिक विकास पंचवर्षीय योजनाओं की नजर में
1 प्रथम पंचवर्षीय योजना – 1951-1956 – कृषि का विकास व उद्योग स्थापित
2 दुसरी पंचवर्षीय योजना – 1956-1961 – औद्योगिक विकास उद्योग स्थापना
3 तृतीय पंचवर्षीय योजना – 1961-1966 – कृषि+औद्योगिक विकास

1 भाखड़ा नांगल परियोजना, 2. चम्बल परियोजना

  • 1966 से 1969 के मध्य पंचवर्षीय योजना नहीं चलाई गई। इस काम को योजना अवकाश के नाम से जाना जाता है।
    4 चतुर्थ पंचवर्षीय योजना-11969 से 1974 तक
  • उद्देष्य- इस योजना में राज्य में ओद्योगिक विकास के लिए 8.4 करोड़ रु. खर्च किये गये।
    5 पांचवी पंचवर्षीय योजना- 1974-1978 तक
  • उद्देष्य- यह योजना समय में एक वर्ष पूर्व ही समाप्त कर दी गई इसके बाद जनता पार्टी सरकार द्वारा अनवरन योजना की शुरूआत की गई। जो अगले दो साल तक कार्यरत रही- (1978 से 1980)
    6 छठी पंचवर्षीय योजना- 1980-85 तक
  • उद्देष्य- इसमें राज्य के औद्योगिक विकास के लिए 24 करोड़ रु. खर्च किये गए।
    7 सातवी पंचवर्षीय योजना- 1985 से 1990 तक
  • उद्देष्य- चम्बल फर्टिलाइजर्स (कोटा)
  • जैन स्टोन इंडस्ट्रीज पार्क (जयपुर)
  • 1990 से 1992 के मध्य- दो वार्षिक योजनायें चलाई गई।
    8 आठवी पंचवर्षीय योजना- 1992 से 1997 तक
  • उद्देश्य- इस योजना के तहत राज्य में किसी उद्योग की स्थापना नहीं की गई।
    9 नवीं पंचवर्षीय योजना- 1997 से 2002
    10 दसवीं पंचवर्षीय योजना-2002 से 2007
    11 ग्यारहवी पंचवर्षीय योजना- 2007 से 2012
    12 बारहवी पंचवर्षीय योजना-2012 से 2017 (जारी)

राजस्थान में दो प्रकार के उद्योग कार्यरत है:-
1 कृषि आधारित उद्योग:- चीनी उद्योग, सुती वस्त्र उद्योग, ऊन उद्योग, वनस्पति व तेल आधारित उद्योग।
2 खनिज आधारित उद्योग- सीमेंट उद्योग, नमक उद्योग, कांच उद्योग, इंजीनियरिंग उद्योग, रासायनिक उद्योग।
(1) सुती वस्त्र उद्योग:- राज्य का सबसे प्राचीन सबसे बड़ा सर्वाधिक रोजगार प्रदान करने वाला उद्योग।

  • प्रारम्भ में सात सुती वस्त्र की मीले थी।
  • वर्तमान में 23 सुती वस्त्र मील है। जिनमें 17 निजी क्षेत्र, 3 सर्वाजनिक क्षेत्र, 3 सहकारी क्षेत्र में कार्यरत है।
    सुती वस्त्र की मील:-
    1 द कृष्णा मिल्स ब्यावर, अजमेर 1889 , संस्थापक- सेठ दामोदर दास राठी।
    2 एडवर्ड मिल्स लिमिटेड- ब्यावर, अजमेर, 1906 में
    3 महालक्ष्मी मिल- ब्यावर, अजमेर, 1925 में
    4 मेवाड़ टेक्सटाईल- भीलवाड़ा, 1936 से 1938
    5 सार्दुल टेक्सटाईल- गंगानगर, 1942
    6 महाराजा उम्मेदसिंह मिल- पाली, 1946
  • राजस्थान में सबसे बड़ी व सर्वाधिक उत्पादन करने वाली सुती वस्त्र मिल।
    7 बीकानेर टेक्सटाईल- बीकानेर, 1946 में ।
    स्वतन्त्रता के पश्चात स्थापित:- प्रथम मिल
    1 कोटा टेक्सटाईल- कोटा, स्थापना- 1956
    (भीलवाड़ा को राजस्थान का मेनचेस्टर कहा जाता है, राजस्थान का नवीन मेनचेस्टर- भीवाड़ी, अलवर है।)
    सार्वजनिक क्षेत्र की मिल :-
    1 एडवर्ड मिल- ब्यावर (अजमेर)
    2 महालक्ष्मी मिल- ब्यावर (अजमेर)
    3 विजय कोटन मिल- भीलवाड़ा
    1974 में इन्हें घाटे के कारण राष्ट्रीय वस्त्र निगम के अधीन कर दिया गया।
    सहकारी क्षेत्र वाली क्षेत्र मिल –
    1 गंगापुर सहकारी कताई मिल – गंगापुर (भीलवाड़ा) 1965 में
    2 गंगानगर सहकारी कताई मिल – हनुमानगढ़ 1978 में
    3 राजस्थान सहकारी कताई मिल – गुलाबपुरा (भीलवाड़ा) 1981 में
  • घाटे के कारण उपरोक्त तीनों मिलों को व जिन्निग मिल गुलाबपुरा (भीलवाड़ा) को एककर एक सहकारी अभिकरण की स्थापना की गई जिसे- स्पीनफैण्ड के नाम से जाना जाता है।
  • राजस्थान राज्य सहकारी स्पिनिंग जिनिंग मिल्स संचालित (स्पीनफैड) 1 अप्रैल, 1993 को स्थापना की गई।

चीनी उद्योग-

  • राज्य का दुसरा प्राचीन व बड़ा उद्योग है चीनी का उत्पादन करने के लिए गन्ना चकुन्दर की कृषि की जाती है। जो राज्य के बूंदी व गंगानगर जिलों में पैदा होता है। वर्तमान में तीन चीनी मिल कार्यरत है। जिनमें से दो बंद है। चीनी मिल
    1 मेवाड़ सुगर मिल्स लिमिटेड, भोपाल सागर (चित्तोड़गढ़) 1932 में निजी क्षेत्र में स्थापित।
    2 गंगानगर सुगर मिल्स मिमिटेड, गंगानगर 1937 में सार्वजनिक क्षेत्र में स्थापित। इस मिल के अन्तर्गत राज्य में चार अभिकरण और कार्यरत।
    अ. शुगर फैक्ट्री- गंगानगर
    ब. डिस्टलरीज ईकाईयाँ- गंगानगर व गेटस् (बारा)
    स. जनजातीय क्षेत्रों में शराब की दुकाने-उदयपुर व कोटा
    द. घाटे के कारण इसका अधिग्रहण 1 जुलाई, 1956 को बीकानेर औद्योगिक निगम द्वारा कर लिया गया।
    3 केशवोराय पाटन शुगर मिल्स लिमिटेड- केशवोरायपाटन (बूंदी) स्थापना-1965 में सहकारी क्षेत्र में।
  • मेवाड़ शुगर मिल्स लिमिटेड के अन्तर्गत 1976 मे उदयपुर में उदयपुर शुगर मिल्स लिमिटेड की स्थापना हुई (निजी क्षेत्र में)

ऊन उद्योग:-

  • राजस्थान सम्पूर्ण भारत में ऊन उत्पादन में प्रथम स्थान पर है। जिसकी सबसे बड़ी मण्डी बीकानेर में कार्यरत है।
    प्रमुख ऊन मिल-
    1 स्टेट वूलन मिल्स- बीकानेर
    2 वस्टैड स्पिंनिग मिल- चुरू
    3 वस्टैड स्पिंनिग मिल- लाडनू (नागौर)
    4 विदेशी आयात-निर्यात संस्थान-कोटा
    4 वनस्पति घी व तेल उद्योग :-
  • सर्वप्रथम वनस्पति घी राज्य में 1950 में ही तैयार कर लिया गया था। प्रथम कारखाना 1964 में भीलवाड़ा वनस्पति घी की आवश्यकता सामने रखते हुए इसके कारखाने अलग-अलग स्थापित किये।
  • प्रथम कारखाना – 1964 (भीलवाड़ा)
  • जिलों में स्थापित हुए। जिनमें प्रमुख है।
    1 आमेर वनस्पति- झोटवाड़ा (जयपुर)
    2 रोहिताश्त वनस्पति- दुर्गापुरा (जयपुर)
    3 विश्वकर्मा वनस्पति- विश्वकर्मा (जयपुर)
    4 केसरी वनस्पति- निवाई (टोंक)
    5 मेहता बंजीटेबल्स- चित्तौड़गढ़
  • तेल उद्योग- तेल उद्योग के अन्तर्गत राज्य में लगभग 4000 छोटी बड़ी इकाईयाँ कार्यरत है। जिनमें इजन माकी का तेल भरतपुर का हरि ऑयल जयपुर का प्रसिद्ध है।
    खनिज आधारित उद्योग:-
    1 सीमेन्ट उद्योग
    2 नमक उद्योग
    3 काँच उद्योग
    4 इंजनियरिंग उद्योग
    5 रासायनिक उर्वरक उद्योग
    1 सीमेन्ट उद्योग:- राजस्थान भारत का सबसे बड़ा सीमेन्ट उत्पादन राज्य है। राज्य में सर्वाधिक सीमेन्ट का उत्पादन चित्तौड़गढ़ जिला करता है।
  • भविष्य की संभावना जैसलमेर जिलें में देखने को मिलती है।
    A. एसोसियेट कम्पनी सीमेन्ट कम्पनी (ACC) लाखेरी बुंदी, स्थापना-1915, उत्पादन प्रारम्भ-1917, मंजूरी-1912-13 इसकी स्थापना क्लिक निक्सन कम्पनी द्वारा की गई।
    B. जयपुर उद्योग लिमिटेड- सवाई माधोपुर, स्थापना-1953 (एशिया का सबसे बड़ा सीमेन्ट का कारखाना) (सरकारी क्षेत्र) यहा त्रिभुवन छाप सीमेन्ट का उत्पादन होता था।
  • घाटे के कारण 1988 में बन्द कर दिया गया। वर्तमान में पुनः प्रारम्भ करने के लिए प्रस्तावित किया गया।
    C. बिरला सीमेन्ट वर्क्स– स्थापना 1967 में चित्तौड़गढ़ में, यह सीमेन्च उत्पादन बड़े उद्योगो में शामिल किया जाता है।
    D J.K सीमेन्ट वर्क्स- निम्बाहेड़ा (चित्तौड़गढ़) स्थापना-1974, राज्य में सर्वाधिक सीमेन्ट उत्पादित करने वाला कारखाना।

अन्य:-

  • मंगलम् सीमेन्ट- मोडक (कोटा)
  • श्री सीमेन्ट- ब्यावर (अजमेर)
  • श्री राम सीमेन्ट- कोटा
  • डी.एल.एफ. सीमेन्ट- राम (पाली)
  • बिनानी सीमेन्ट- पिण्डबाड़ा (सिरोही)
    राजस्थान में सफेद सीमेन्ट के कारखाने:-
    1 जे.के.व्हाइट सीमेन्ट – गोटन (नागौर) 1984 स्थापना
    2 बिरला व्हाइट सीमेन्ट- खारिया खंगाल (जोधपुर)
  • स्थापना- 1988 (राज्य में सबसे बड़ा सफेद सीमेन्ट उत्पादन)
  • इसे IRIL (इंडियन रेयॉन इंन्डस्ट्रीज लिमिटेड) नाम से जाना जाता है।
  • राज्य में ब्यावर (अजमेर) में स्थापित श्री सीमेन्ट लिमिटेड को ऊर्जा संरक्षण के क्षेत्र में 2005 व 2008 में ‘गोल्डन पिकॉक अवार्ड से सम्मानित किया जा चुका है। जो राज्य में ‘ड्राई प्रोसेस’ से सीमेन्च उत्पादन का सबसे बड़ा कारखाना है।
  • राजस्थान ने सर्वप्रथम 1912-13 में लाखेरी (बूंदी) में क्लीक निकसन कंपनी (ACC) द्वारा सीमेंट संयंत्र साहू जैन ग्रुप द्वारा स्थापित किया गया। 1917 में उत्पादन प्रारंभ हुआ।
  • स्वतंत्रता के पश्चात् 1953 ई. में सवाई माधोपुर में दूसरा सीमेंट संयंत्र साहू जैन ग्रुप द्वारा ही स्थापित किया गया जिसे जयपुर उद्योग नाम दिया गया। एशिया का सबसे बड़ा कारखाना था।
  • चित्तौड़गढ़ में बिड़ला ग्रुप द्वारा स्थापित कारखाना।
  • उदयपुर में चित्तौड़गढ़ सीमेंट वर्क्स नाम से सीमेंट कारखाना खोला गया था।
  • सवाईमाधोपुर स्थित जयपुर उद्योग लिमिटेड नामक संयंत्र को रूग्ण इकाई घोषित कर बन्द कर दिया गया।
  • राजस्थान का देश में सीमेंट उत्पादन की दृष्टि से प्रथम स्थान है परन्तु सीमेंट क्षमता की दृष्टि से राज्य का दूसरा स्थान है। (प्रथम- आन्ध्रप्रदेश)।
  • चित्तौड़गढ़ में सर्वाधिक सीमेंट संयंत्र (5) है।
  • सर्वाधिक सीमेंट उत्पादन क्षमता वाला संयंत्र- जे.के सीमेंट (निम्बाहेड़ा)
  • न्यूनतम सीमेंट उत्पादन क्षमता वाला संयंत्र- श्रीराम सीमेंट (कोटा)
  • सीमेंट उत्पादन के कच्चे माल के रूप में कोयला, चूना-पत्थर व जिप्सम का प्रयोग होता है।
  • कोयले की कमी को पूरा करने के लिए झारखंड, उड़ीसा, छत्तीसगढ़ से कोयला आता है।
  • सफेद सीमेंट कारखाने –
    1 गोटन (नागौर) में जे.के. व्हाइट सीमेंट तथा बिरला व्हाइट सीमेंट,
    2 खरिया खंगार (जोधपुर)- इंडियन रॉयल इंडस्ट्रीज लिमिटेड
  • वर्तमान में सफेद सीमेंट का कारखाना मांगरोल (चित्तौड़गढ़) में स्थापित हुआ।
  • चित्तौड़गढ़ में चेतक छाप सीमेंट, सवाई माधोपुर में त्रिशुल छाप सीमेंट, ब्यावर में श्री छाप सीमेंट का उत्पादन होता है।
  • ब्यावर में श्री सीमेंट का कारखाना राज्य का सबसे बड़ा कारखाना है जहां सीमेंट का उत्पादन ड्राई प्रोसेस से होता है।
  • जैसलमेर जिले में छ: सीमेंट कारखाने स्थापित किये जाने का प्रस्ताव है।

अन्य कारखाने-

  • बिड़ला जूट (चित्तौड़गढ़)
  • हिन्दुस्तान शुगर (उदयपुर)
  • मंगलम् (मोड़क-कोटा)
  • स्ट्रा प्रोडक्ट्स, बनास (सिरोही)
  • बांगड़, रास-बाबरा (पाली)
  • अंबुजा, रास-बाबरा (पाली)
    2 सीसा जस्ता उद्योग-
  • केन्द्र सरकार द्वारा हिन्दुस्तान जिंक लिमिटेड, देबारी (उदयपुर) में 1965 में स्थापित किया गया।
  • भारत सरकार द्वारा 10 जनवरी, 1966 में मेटल कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया का अधिग्रहण कर हिन्दुस्तान जिंक लिमिटेड की स्थापना की गई।
  • यह कंपनी जावर, दरीबा, चित्तौड़गढ़, आगूचा आदि के जस्ता-सीसा भण्डारों का उपयोग कर रही है।
  • रामपुरा (आगूचा, भीलवाड़ा) के कारखाने का प्रधान कार्यालय उदयपुर में है।
  • देबारी का शोधन संयंत्र पांच भागों में जस्ता गलाने का कार्य करता है-
    1 फ्लूओसोलिड रोस्टर
    2 सल्फ्यूरिक एसिड प्लांट
    3 लिंचिंग और प्यूरिफिकेशन प्लांट
    4 इलेक्ट्रो लाइसिस और मेल्टिंग प्लांट
    5 सुपर फास्फेट प्लांट
  • इस संयंत्र से सीसे जस्ते गलने से कुछ मात्रा में चांदी भी निकाली जाती है।
    3 ग्रेनाइट उद्योग-
  • ग्रेनाइट पत्थर बहुत कठोर होता है तथा यह चट्टान के परिवर्तित होने से बनता है।
  • राजस्थान का ग्रेनाइट उत्पादन में प्रमुख स्थान है।
  • राजस्थान में जालौर जिला अग्रणी है । अतः इसे ग्रेनाइट शहर भी कहा जाता है।
  • पश्चिमी राजस्थान में जोधपुर, बाड़मेर, पाली, सिरोही आदि जिलों में इसका खनन होता है।
  • आबूरोड़ से बहरोड़ तक अरावली पर्वतमालाओं व ‘इन्सलबर्ग’ में यह पाया जाता है।
  • जालौर में ग्रेनाइट की प्रथम इकाई सन् 1965 में राज्य सरकार ने खान व भू विभाग द्वारा खोली।
  • राज्य सरकार व जालौर के इंजीनियर मदन राज बोहरा के प्रयत्न से ग्रेनाइट उद्योग ने प्रगति कर विश्व में अपनी पहचान बनाई।
  • जालौर में केशवणा, बोरटा, रानीवाड़ा, हलबाव, धवला, खाम्बी, मूरी, कवला, मोटाला से उच्च कोटि का ग्रेनाइट निकाला जाता है।
  • ग्रेनाइट के खनन, कटिंग व पॉलिशिंग का कार्य रीको द्वारा किया जाता है।
  • राजस्थान वित्त निगम रीको, उद्योग निदेशालय व वाणिज्यिक बैंक आर्थिक सहायता प्रदान करते हैं।
    ग्रेनाइट मार्बल नीति 2002 में घोषित की गई।
    4 नमक उद्योग-
  • राजस्थान नमक उत्पादन में भारत में चतुर्थ स्थान पर है। झीलों से नमक उत्पादन में भारत में प्रथम स्थान पर है।
  • राजस्थान भारत का 12% नमक उत्पादन करता है। सांभर झील 8.7% के सबसे बड़ी नमक उत्पादक है।
  • राज्य में नमक निर्यात मुख्यालय दो प्रकार से होता है।

1 क्यारनमक:- लवणीय पानी को क्यारीयों में सुखा कर नमक निर्माण अर्थात वाष्पीकरण विधि द्वारा नमक निर्माण ।
2 रेस्ता नमक:- वायु प्रवाह विधि से नमक निर्माण नमक निर्माण के प्रमुख कारखानें :-
1 पंचवदरा साल्ट लिमिटेड- पंचपदरा (बाडमेर)

  • स्थापना- 1960, राज्य सरकार का उपक्रम ।
    2 राजस्थान स्टेट केमिकल्स वर्क्स (RSCW) डीडवाना (नागौर)
  • स्थापना-1968, यह नमक खाने के अयोग्य। चमड़ा व कागज उद्योग के काम आता है। 1968 में स्थापित व 2008 में इसका निजीकरण कर दिया गया।
    3 सोडियम सल्फेट संयत्र-डीडवाना (नागौर)
  • यहां सोडियम सल्फेट का निर्माण होता है।
    4 सांभर साल्ट लिमिटेड- सांभर (जयपुर)
  • स्थापना- 1964 में, (केन्द्र सरकार का उपक्रम)
  • देश का 12% नमक उत्पादित कर राजस्थान का देश में चतुर्थ स्थान है।
  • सार्वजनिक क्षेत्र में नमक कारखाने सांभर, डीडवाना, पचपदरा मे तथा निजी क्षेत्र में नमक कारखाने फलौदी, कुचामण, पोकरण व सुजानगढ़ में स्थित है।
  • राज्य का 70% नमक सार्वजनिक कारखानों में उत्पादित होता है।
  • सबसे बड़ा आंतरिक नमक स्रोत सांभर झील है जहां से 8.7% नमक उत्पादित होता है।
  • सांभर झील में नमक उत्पादन ‘सांभर सॉल्ट लिमिटेड’ द्वारा किया जाता है, जो केन्द्र सरकार का उपक्रम है। इसकी स्थापना 25 जनवरी, 1960 में हुई।
  • नमक निष्कर्षण प्रक्रिया तब प्रारंभ होती है जब लवण जल स्फटकीय क्यारों में 25° से 26° सेन्टग्रेड तक का घनत्व प्राप्त कर लेता है। इसे क्यार नमक कहते हैं।
  • सांभर में दूसरी किस्म का नमक वायु प्रवाह द्वारा बनाया जाता है, जिसे रेशता कहते हैं।
  • पचपदरा नमक स्रोत बाड़मेर में स्थित है जहां खारवाल जाति के लोग कार्य करते हैं।
  • डीडवाना नमक क्षेत्र में निर्माण कार्य निजी संस्थानों द्वारा होता है। जिसे स्थानीय भाषा में देवल कहा जाता है।
  • डीडवाना में दो फैक्ट्रियां राजस्थान स्टेट कैमिकल वर्क्स द्वारा स्थापित की गई जो सोडियम सल्फाइट व सोडियम सल्फेट का निर्माण करती है।
  • पोकरण का नमक सबसे उत्तम श्रेणी का है।
  • पचपदरा व डीडवाना में आयोडाइज्ड नमक के कारखाने स्थापित है (पहाड़ी क्षेत्रों में आयोडीन की कमी से घंघा रोग होता है।) मॉडल सॉल्ट फार्म लवण निर्माताओं को तकनीकी ज्ञान उपलब्ध करवाने हेतु नावां (नागौर) में सांभर सॉल्टस की भूमि पर स्थित है।
  • भारत की सबसे बड़ी परियोजना ‘साबू सोडियम परियोजना’ (आयोडीन युक्त) नावां (नागौर) में गोविन्द ग्राम से स्थापित की गई। यह परियोजना जर्मनी व अमरीका की आधुनिक तकनीक काउंटर करेंट हाइड्रो एक्ट्रेक्शन प्रोसेस पर आधारित है।

6 कांच उद्योग-

  • कांच उद्योग में बालू मिट्टी के अलावा रासायनिक पदार्थ व शक्ति के लिए कोयला काम में लिया जाता है।
  • राज्य में कांच उद्योग मुख्यतः धौलपुर में स्थापित है।
  • धौलपुर ग्लास वस- यह निजी क्षेत्र का कारखाना है, जो वर्तमान में बंद है।
  • दी गई टैक्नीकल प्रिसीजन ग्लास वर्क्स – यह सार्वजनिक क्षेत्र का कारखाना है, जो ‘दी गंगानगर सुगर मिल्स लिमिटेड, गंगानगर’ के अधीन है।
  • कोटा में पिक्चर ट्यूब बनाने क लिए सेमकोर ग्लास इंडस्ट्रीज की स्थापना की गई।
  • बीकानेर में सिरेमिक पार्क है।

7 तांबा उद्योग-

  • खेतड़ी में तांबा खानें- माधव कुधन, कोलीहान, चांदमारी व दरीबा।
  • तांबा खनिज को गलाने व शोधन के लिए सन् 1967 में केन्द्र सरकार द्वारा खेतड़ी (झुंझुनू) में हिन्दुस्तान कॉपर लिमिटेड की स्थापना की गई।
  • इसकी स्थापना संयुक्त राज्य अमेरिका की वेस्टर्न नेप इंजीनियसिंग कंपनी की सहायता से हुई।
  • हिन्दुस्तान कॉपर लिमिटेड का प्रधान कार्यालय कलकता में है।
    इसकी अन्य परियोजनाएं-
    (1) खेतड़ी कॉपर कॉम्पलेक्स (झुंझुनूं)
    (2) दरीबा ताम्र परियोजना (अलवर)
    (3) चांदमारी ताम्र परियोजना (झुंझुनूं)।
    अन्य क्षेत्र-
  • कीटनाशक रसायन उद्योग- उदयपुर, जयपुर, गंगानगर, कोटा में कीटनाशी रसायन तैयार करने के कारखाने हैं।
  • पाली विनाइल क्लोराइड (PVC)- इसके कारखाने कोटा व जयपुर में है।
  • गंधक का तेजाब- इसके कारखाने अलवर, सीकर, खेतड़ी, चन्देरिया (चित्तौड़गढ़)।
  • सिरेमिक उद्योग- इसकी इकाइयां बीकानेर, कोटा, जोधपुर, अजमेर में स्थापित है। फेल्सपार पर आधारित हाई टेन्शन इन्सुलेटर्स निर्माण करखाना आबूरोड़ (सिरोही) में अवस्थित है, जो साइमन कंपनी (जर्मनी) के सहयोग से स्थापित किया गया है।
  • माल्ट उद्योग- इसका कारखाना ‘माउण्ट मालबू लिमिटेड’ श्री माधोपुर में है। * पैन एशिया एग्रो ऑयल्स- यह मालपुरा में स्थित है। राजस्थान ट्यूब मैन्यूफैक्चरिंग कंपनी लिमिटेड आबूरोड़ में स्थित है।
  • कृत्रिम रेशम के कारखाने- कोटा, गुलाबपुरा, जयपुर, बांसवाड़ा।
  • उर्वरक उद्योग के कारखान- कोटा, उदयपुर में है।
  • टायर उद्योग- कोटा, कांकरोली (राजसमंद)।
  • घीया पत्थर बनाने के कारखाने- दौसा, भीलवाड़ा, उदयपुर में है।
  • खेलकूद का सामान – हनुमानगढ़ में।
  • एलाय स्टील- जयपुर, उदयपुर ।
  • बड़ी लाइन के वैगन- कोटा
  • नाप तौल यंत्र- कोटा
  • सल्फ्यूरिक एसिड प्लांट – अलवर
  • अवन्ती स्कूटर्स- अलवर

औद्योगिक उपक्रम
केन्द्र सरकार के उपक्रम-

  • हिन्दुस्तान जिंक लिमिटेड, देबारी- उदयपुर (1966)
  • हिन्दुस्तान कॉपर लिमिटेड, खेतड़ी- झुंझुनूं (1967)
  • हिन्दुस्तान मशीन टुल्स, अजमेर (1967)
  • इन्स्टुमेंटेशन लिमिटेड, कोटा (1967)
  • सांभर सॉल्ट लिमिटेड, नागौर (1964)
  • मॉडर्न बेकरीज इंडिया लिमिटेड, जयपुर (1965)
  • राजस्थान इलेक्ट्रोनिक्स एण्ड इन्स्ट्रुमेंटस लिमिटेड, जयपुर (1982-83)
    राज्य सरकार के उपक्रम-
  • दी गंगानगर शुगर मिल्स लिमिटेड, गंगानगर- इसके अधीन चार इकाइयां-
    (1) शुगर फैक्ट्री- श्रीगंगानगर
    (2) श्रीगंगानगर व अटारू में स्थित डिस्टरलीज,
    (3) कोटा व उदयपुर संभाग में मदिरा दुकानों का संचालन
    (4) हाइटेक ग्लास फैक्ट्री, धौलपुर
  • राजस्थान स्टेट केमिकल वर्क्स- इसके अधीन तीन इकाईयां-
    (1) सोडियम सल्फेट वर्क्स
    (2) सोडियम सल्फेट संयंत्र
    (3) सोडियम सल्फाइट फैक्ट्री
  • राजकीय लवण स्रोत, डीडवाना व पचपदरा
  • स्टेट वूलन मिल्स, बीकानेर (1960)
  • राजस्थान स्टेट टेनरीज लिमिटेड, टोंक (1971)
  • वर्टेड स्पिनिंग लिमिटेड, चूरू व लाडनूं
  • फ्लोर्सपार, बेनिफिशियेन संयंत्र, मांडो की पाल (डूंगरपुर)
  • मयूर बीडी इंडस्ट्रीज, टोंक
  • सेन्ट्रल इंडिया मशीनरी मैन्यूफेक्चरिंग कंपनी, भरतपुर- इसे सिमको कहते हैं |
  • अरावली स्वचालित वाहन लिमिटेड, अलवर।

सहकारी उपक्रम-

  • केशोरायपाटन शुगर मिल्स, बूंदी
  • राजस्थान सहकारी स्पिनिंग मिल्स, गुलाबपुरा (भीलवाड़ा)
  • शीत भण्डार, जयपुर व अलवर
  • पशु आहार कारखाना, जयपुर
  • कीटनाशक कारखाना, जयपरु
  • चावल मिलें- बूंदी, बारां, बांसवाड़ा, कोटा, हनुमानगढ़, उदयपुर।
    औद्योगिक विकास को समर्पित संस्थाएं-
    1 राजस्थान वित्त निगम (1955)- जयपुर
    2 राजस्थान खादी व ग्रामोद्योग बोर्ड (1955)
    3 राजस्थान राज्य औद्योगिक विकास व विनियोग निगम लिमिटेड RIICO- जयपुर (1980)
    4 राजस्थान लघु उद्योग निगम (राजसीको)- 1961 में स्थापित।
    5 आधारभूत ढांचा विकास व विनियोग प्रोत्साहन बोर्ड (BIDI)-2000 में स्थापित।
    6 ग्रामीण गैर कृत्रि विकास एजेंसी (RUDA)- 1995 में स्थापित।
    7 राजस्थान राज्य खान एवं खनिज लिमिटेड (RSSML)- उदयपुर में 1974 में स्थापित।
    8 राजस्थान राज्य टंगस्टन विकास निगम (RSMDC)- 1983 में स्थापित।

कृषि आधारित उद्योग
1 सती वस्त्र उद्योग

  • देश का सबसे बड़ा कृषि आधारित उद्योग है।
  • भारत में प्रथम सूती वस्त्र मिल की स्थापना धुसरी (कलकत्ता) में सन् 1818 में की गई थी।
  • राज्य का सबसे प्राचीन व संगम्ति वृहत् उद्योग है।
  • राजस्थान का भीलवाड़ा क्षेत्र सूती वस्त्र उद्योग का प्रमुख केन्द्र है अतः इसे राजस्थान का मैनचेस्टर भी कहा जाता है। टेक्साटाइल सिटी भी कहते हैं।
  • राज्य में निजी क्षेत्र की प्रथम सूती वस्त्र मिल की स्थापना सन् 1889 ई. में दामोदर दास राठी व श्याम जी कृष्ण वर्मा द्वारा ब्यावर (अजमेर) में ‘द कृष्ण मिल्स लिमिटेड’ स्थापित की गई।
  • दूसरी सूती वस्त्र मिल ब्यावर (अजमेर) में ही एडवर्ड मिल सन् 1906 ई. में स्थापित की गई, जिसे 1998 में पूर्ण रूप से बंद कर दिया गया।
  • राजस्थान निर्माण के समय राज्य में सात सूती वस्त्र उद्योग थे। वर्तमान में 23 सूती वस्त्र मिलें हैं, जो मुख्यत ब्यावर, पाली, भीलवाड़ा, कोटा, चित्तौड़गढ़, जयपुर, किशनगढ़, गंगानगर, बांसवाड़ा में केन्द्रित है।
    राज्य में सूती वस्त्र मिलें तीन क्षेत्रों में है-

(1) निजी क्षेत्र
(i) महालक्ष्मी मिल (ब्यावर)- 1925 में स्थापित ।
(ii) एडवर्ड मिल (ब्यावर)- 1906 में स्थापित ।
(iii) श्री विजय कॉटन मिल, विजयनगर
(iv) मेवाड़ टेक्सटाईल, ब्यावर- 1938 में स्थापित।
(v) महाराजा उम्मेद मिल्स, पाली- राज्य की सबसे बड़ी मिल है।
(vi) सार्दुल टेक्सटाईल, भीलवाड़ा- 1946 में स्थापित।

  • कृष्णा मिल करघों की दृष्टि से सबसे बड़ी मिल है जो वर्तमान में बंद है।
  • एडवर्ड मिल, महालक्ष्मी मिल व विजयनगर कॉटन मिल आदि मिलों को N.T.C. द्वारा रूग्णता के कारण 1974 में अधिगृहीत कर लिया गया है।
    अन्य निजी मिलें-
  • कोटा टेक्सटाईल (1956) कोटा में।
  • राज. स्पीनिंग एंड वीविंग मिल (1960) भीलवाड़ा में।
  • आदित्य मिल (1960) किशनगढ़ में।
  • उदयपुर कॉटन मिल (1961) उदयपुर में स्थापित की गई।

(2) सार्वजनिक क्षेत्र
(i) एडवर्ड मिल,
(ii) महालक्ष्मी मिल,
(iii) विजयनगर कॉटन मिल।

  • वर्तमान में तीनों बंद है।
    (3) सहकारी क्षेत्र
    (i) राजस्थान सहकारी कताई मिल लिमिटेड, गुलाबपुरा (भीलवाड़ा)- 1965 (ii) गंगानगर सहकारी कताई मिल लिमिटेड, गंगापुर (भीलवाड़ा)- 1981
    (iii) श्रीगंगानगर सहकारी कताई मिल लिमिटेड, हनुमानगढ़- 1978
  • 1 अप्रैल, 1993 को इन तीनों कताई मिलों व सहकारी जिनिंग मिल (गुलाबपुरा) को मिलाकर राजस्थान राज्य सहकारी स्पिनिंग व जिनिंग मिल्स संघ लिमिटेड (SPINFED) की स्थापना की गई
  • राज्य में 17 निजी क्षेत्र में, 3 सार्वजनिक क्षेत्र में व 3 सहकारी कताई मिलें (कुल 23) कार्यरत हैं।
  • राज्य में पावरमूल उद्योग में कम्प्यूटर एडेड डिजाइन सेट भीलवाड़ा में स्थापित किया गया है।
  • सिंथेटिक फाइबर की मिल बहरोड़ में खोली गई है।

2 चीनी उद्योग

  • देश का दूसरा बड़ा कृषि आधारित उद्योग है।
  • राजस्थान का गन्ना उत्पादन में प्रथम स्थान है।
  • चीनी मिलें गन्ना उत्पादक क्षेत्रों में ही उत्पादित की जाती है।
  • राजस्थान में चीनी का बहुत कम उत्पादन होता है।
  • गन्ना उत्पादन में प्रथम स्थान गंगानगर का व द्वितीय स्थान बूंदी का है।
    राज्य में तीन चीनी मिलें हैं-
    (i) दी मेवाडत्र शुगर मिल्स लिमिटेड, भोपालसागर (चित्तौड़गढ़) 1932 में स्थापित राज्य की प्रथम चीनी मिल है।
  • यह मील निजी क्षेत्र में स्थापित की गई।
    (ii) दी गंगानगर शुगर मिल्स लिमिटेड, गंगानगर- 1945 में यह मिल बीकानेर इंडस्ट्रियल कॉर्पोरेशन लिमिटेड के नाम से स्थापित की गई।
  • 1956 में राज्य सरकार द्वारा अधिगृहीत करने पर इसका वर्तमान नाम ‘दी गंगानगर शुगर मिल्स लिमिटेड’ रखा गया।
  • यह मिल सार्वजनिक क्षेत्र की मिल है।
  • यहां चुकन्दर से चीनी बनाने का संयंत्र भी स्थापित है। प्रक्रिया 1968 से प्रारंभ हुई।
  • हाइटेक प्रिसीजन ग्लास फैक्ट्री (धौलपुर) बोतलें बनाने की मिल इसी मिल के कार्यक्षेत्र में है।
  • यह राज्य की प्रथम सार्वजनिक शुगर मिल है।
    (iii) केशोरायपाटन सहकारी शुगर मिल्स लिमिटेड, बूंदी।
  • 1965 में सहकारी क्षेत्र में स्थापित की गई।
  • यह मिल वर्तमान में बंद है।
  • राज्य में तीनों क्षेत्रों में- सार्वजनिक, निजी, सहकारी- एक-एक चीनी मिल है।

3 वनस्पति घी उद्योग

  • राज्य में वनस्पति घी का कारखाना भीलवाड़ा में खोला गया।
  • राज्य में तिलहनों की अच्छी पैदावार होने की वजह से इस उद्योग की अच्छी संभावनाएं है।
  • यह उद्योग विश्वकर्मा का महाराजा व झोटवाड़ा का आमेर छाप वनस्पति (जयपुर), निवाई की केसर छाप वनस्पति (टोंक), दुर्गापुर में रोहिताश घी उद्योग है।
  • अन्य- उदयपुर, गंगानगर, अलवर, चित्तौड़गढ़, सवाई माधोपुर आदि स्थानों पर स्थापित है।

4 ऊन उद्योग

  • देश के कुल उत्पादन की 42% ऊन राज्य में उत्पादित होती है।
  • उत्तर-पश्चिम में शुष्क व अर्द्धशुष्क जिलों में ऊन का उत्पादन अधिक होता है।
  • ऊन का उपयोग करने के लिए दो कारखाने बीकानेर में व एक कारखाना जोधपुर में है।
  • ग्रामीण उद्योग परियोजना के अंतर्गत दो मिले लाडनूं (नागौर) व चूरू में स्थापित की गई है। (वर्टेड स्पिनिंग मिल्स)
  • विदेशी आयात-निर्यात संस्था, कोटा के अंतर्गत एक कलगी संयंत्र (कॉम्बिंग प्लांट) है।
  • 1963 में भेड़ व ऊन विभाग की स्थापना की गई है।
  • भीलवाड़ा में ऊन उद्योग हेतु एक विधायन गृह की स्थापना की गई।
  • 1992 में बीकानेर में अखिल भारतीय ऊन विकास बोर्ड द्वारा गलीचा प्रशिक्षण केन्द्र स्थापित किया गया है। स्टेट वूलन मिल भी यहीं स्थापित है।
  • एशिया की सबसे बड़ी ऊन मण्डी बीकानेर है।
  • ऊन के व्यवसाय को सुव्यवस्थित करने के लिए जोधपुर में केन्द्रीय ऊन बोर्ड स्थापित है।
  • ऊनी कपड़ा सबसे अधिक- भीलवाड़ा।

5 कागज उद्योग

  • राज्य में कागज बनाने का कारखाना सर्वप्रथम सांगानेर (जयपुर) में मानसिंह प्रथम द्वारा लगाया गया था।
  • घोसुण्डा (चित्तौड़गढ़) व सांगानेर (जयपुर) में हाथ से कागज बनाया जाता है।
  • स्ट्रा बोर्ड का कारखाना- कोटा
  • कृष्णा पेपर मिल- कोटपूतली में दिल्ली द्वारा स्थापित।
  • उदयपुर, बांसवाड़ा, चित्तौड़गढ़ में बांस की प्रचुर उपलब्धता के कारण कागज उद्योग पनप सकता है।
    6 लकड़ी उद्योग
  • लकड़ी के सुन्दर खिलौने बनाने के लिए उदयपुर जिला तथा चन्दन की मल्यागिरी लकड़ी पर खुदाई कार्य के लिए चूरू जिला प्रसिद्ध है।
    7 बीड़ी उद्योग
  • राज्य में बीड़ी उद्योग के लिए तेंदू की पत्तियां पर्याप्त मात्रा में उत्पादित होती है।
  • क्षेत्र- जोधपुर, अजमेर, टोंक, ब्यावर, चित्तौड़गढ़, कोटा, भीलवाड़ा (बनेड़ा) प्रसिद्ध है।
    8 तेल उद्योग
  • तेल बनाने के कारखाने भरतपुर, जयपुर, खैरथल (अलवर), अजमेर बीकानेर, निबाई (टोंक), दौसा, गंगापुर सिटी में अवस्थित है।
  • भरतपुर का ‘इंजन छाप’ तथा जयपुर विश्वकर्मा का वीर बालक छाप तेल प्रसिद्ध है।
    9 कत्था, लाख व गौंद उद्योग
  • कत्थे का मुख्य रूप से उपयोग पान बनाने में किया जाता है।
  • लाख (आरी/ कूकी) से चूड़ियां बनाई जाती है।
  • लाख ‘लेसिफर लेसिका’ नामक कीटाणु द्वारा एकत्रित किया जाने वाला पदार्थ है।
  • लाख की चूड़ियों के लिए जयपुर व जोधपुर प्रसिद्ध है।
  • गौंद का उत्पादन मुख्य रूप से चौहटन (बाड़मेर) में होता है।
    10 हाथ करघा उद्योग
  • कोटा की मसूरियां साड़ी प्रसिद्ध है।
  • जोधपुर व जयपुर में चुनरियां व लहरिया प्रसिद्ध है।
  • गोविन्दगढ़, करौली व जालौर का बना कपड़ा भी प्रसिद्ध है।
  • उदयपुर व जयपुर में पगड़ियां व पेच अच्छे तैयार किये जाते हैं।

11 रेशम उद्योग

  • राजस्थान में रेशम उत्पादन के लिए टसर कृषि की जाती है।
  • राजस्थान में टसर खेती कोटा तथा उदयपुर में होती है।
  • रेशम की खेती के प्रकार-
    1 मुरबेरी,
    2 एरी,
    3 टसर,
    4 मूंगा
  • इसके लिए उदयपुर व बांसवाड़ा जिलों में अर्जुन के पेड़ लगाए जाते हैं।
    12 माचिस उद्योग
  • राजस्थान में अलवर में सर्वाधिक माचिस उद्योग है।
  • उदयपुर, अजमेर, पाली में माचिस के कारखाने स्थित है।
    13 गोटा उद्योग
  • यह उद्योग जयपुर, अजमेर, खंडेला (सीकर) में व्यवस्थित रूप से सक्रिय है।
    14 रंगाई, बंधाई व छपाई उद्योग
  • रंगाई उद्योग का कार्य पाली, पीपाड़, सांगानेर व कोटा में किया जाता है।
  • बंधेज का कार्य जोधपुर, जयपुर, उदयपुर, कोटा में किया जाता है |
  • छपाई का कार्य जोधपुर, जयपुर, भरतपुर व चित्तौड़गढ़ में होता है |
    15 गुड़-खांडसारी उद्योग
  • गन्ना उत्पादन करने वाले सभी जिलों में यह उद्योग विकसित है।
    16 दरी व निवार उद्योग
  • राजस्थान की जेलों में सुन्दर, मजबूत दरियां बनाई जाती है।

हस्त उद्योग

  • परिभाषा- हाथों द्वारा कलात्मक व आकर्षक वस्तुएं बनाना ही हस्तकला या हस्तशिल्प कहलाती है।
  • हस्तशिल्प उद्योगों को लघु उद्योग निगम का संरक्षण मिलने के कारण इनमें वृद्धि हुई।
  • संरक्षक- राजसीको (1961)
  • राजस्थान औद्योगिक नीति 1998 में इस उद्योग पर अधिक बल दिया गया जिससे राज्य के आर्थिक विकास की क्षेत्रीय असमानताओं को दूर किया जा सके।
  • राज्य के हस्तशिल्प निर्यात विदेशी मुद्रा अर्जन करने वाला सर्वाधिक अच्छा स्रोत है।
    प्रमुख हस्त उद्योग
    1 मीनाकारी व मूल्यवान पत्थरों की कटाई-
  • सर्वोत्कृष्ट कृतियां जयपुर में तैयार की जाती है।
  • प्रतापगढ़ की ‘मीनाकारी थेवा’ भी अति सुन्दर है, जो मिट्टी में पकाई जाती है पक्की मीनाकारी कहलाती है।
  • सोने, चांदी के कलात्मक आभूषण बनाने के लिए जयपुर, जोधपुर, अजमेर व उदयपुर के स्वर्णकारा प्रसिद्ध है।
  • कागज जैसे पतले पत्थर पर मीनाकारी ने बीकानेर के मीनाकार प्रसिद्ध है।
  • संगमरमर पर मीनाकारी का काम जयपुर में होता है।
  • मीनाकारी के उत्कृष्ट कार्यकार- ज्ञान प्रकाश मीनाकार।
  • संगमरमर की उत्कृष्ट कलाकृति- पं. लल्लू प्रसाद शर्मा
  • संगमरमर पर सुनहरी नक्काशी- मो. हनीफ उस्ताद
  • सोने चांदी व अन्य आभूषणों व कलात्मक वस्तुओं पर मीना चढ़ाना मीनाकारी कहलाती है।
  • जयपुर में महाराजा मानसिंह प्रथम द्वारा 16वीं शताब्दी में लाहौर से लाई गई थी।
  • यह कला मूलतः फारस से मुगलों द्वारा लाई गई थी।
  • इसे कुन्दन मीनाकारी भी कहा जाता है, जो जयपुर में प्रसिद्ध है।
    2 हाथी दांत की वस्तुएं-
  • जोधपुर में काली, हरी, लाल धारियों की हाथी दांत की चूड़ियां बनाई जाती है।
  • हाथी दांत के मणिए, अंगूठियां, कर्णाभूषण आदि भरतपुर मेड़ता, उदयपुर, जयपुर और पाली में बनाए जाते हैं।
  • राजपूत महिलाओं को विवाह के अवसर पर हाथी दांत से बना चूड़ा पहनाये जाने की प्रथा है।
    3 कपड़े पर हाथ से छपाई (ब्लॉक प्रिंटिंग) व रंगाई के वस्त्र-
  • छपाई कार्य करने वाले छींपे कहलाते हैं।
  • सांगानेर के छींपे ‘नामदेवी’ छींपे कहलाते हैं।
  • बाड़मेर में खत्री जाति के लोग परम्परागत रूप से छपाई का कार्य करते है।
  • लीलगरों व रंगरेजों द्वारा कपड़े की रंगाई का कार्य सम्पन्न होता है।
  • हाथ से वस्त्र छपाई शिल्प- बृजलाल उदयपाल स्थानाधारित छपाई।
    (i) बाड़मेर की अजरख प्रिंट- मुख्य रंग लाल व नीला है।
  • बाड़मेर की मलीर प्रिंट में मुख्य रंग कत्थई व काला है। दोनों प्रिंय में अलंकरण ज्यामितिक होते हैं।
    (ii) आकोला (चित्तौड़गढ़) की आजम प्रिंट – मुख्य रंग लाल, काला व हरा है। यहां की छपाई के घाघरे भी प्रसिद्ध है। यह दाबू प्रिंट भी कही जाती है।
    (iii) सांगानेर की सांगानेरी प्रिंट
    (iv) जाजम छपाई चित्तौड़गढ़
    (v) बगरू की बगरू प्रिंट में काला व लाल रंग मुख्य है।
    (vi) बाड़मेर में मिट्टी का दाबू व बगरू व सांगानेर में गेहूं बीधण का दाब लगता है।
    (vii) बीकानेर की लहरिया व मोण्डे छपाई।
  • किशनगढ़, चित्तौड़गढ़ व कोटा में पहली व सुनहरी छपाई होती है।
    3 बंधेज का कार्य-
  • जयपुर का लहरिया व पोमचा प्रसिद्ध है।
  • पोमचा व जच्चा स्त्री पहनती है, जिसमें मुख्य रंग पीला होता है।
  • लहरिया राजस्थान की स्त्रियों द्वारा श्रावण तीज पर पहनी जाने वाली ओढ़नी है।
  • जयपुर व उदयपुर में लाल रंग की ओढ़नियों पर गोंद मिश्रित मिट्टी की छपाई कर लकड़ी के छापों द्वारा सोने, चांदी के तवक की छपाई की जाती है, जिसे खड्डी की छपाई कहते हैं।
  • टुकड़ी मारवाड़ के देशी कपड़ों में सर्वोत्तम मानी जाती है तथा यह जालौर तथा मारोठ (नागौर) में बनाई जाती है।
    4 कढ़ाई व कशीदाकारी-
  • कपड़ों पर विभिन्न रंगों के धागों से कढ़ाई के कार्य के लिए झुंझुनूं सीकर प्रसिद्ध है।
  • सूती या रेशमी कपड़े पर बादले से छोटी-छोटी बिंदकी की कढ़ाई ‘मुकेश’ कहलाती है।
  • अन्य क्षेत्र- जयपुर, जोधपुर, अजमेर, उदयपुर, कोटा आदि।
  • कोटा की मसूरिया मलमल व कोटा डोरिया साड़ियां प्रसिद्ध है।
  • हाथी, मोर, कमल व ऊँट राजस्थानी कशीदाकारी के प्रतीक माने गये हैं।
    5 पेच वर्क-
  • विविध रंग के पकड़ों के टुकड़े काटकर कपड़ों पर विविध डिजाइनों में सिलना पेच वर्क कहलाता है।
  • शेखावाटी क्षेत्र में विशेष रूप से प्रचलित है।
    6 संगमरमर की मूर्तियां-
  • किशोरी ग्राम (अलवर) में मूर्तियां व घरेलू उपयोग की वस्तुएं निर्मित होती है।
  • जयपुर में सिलावटों का मोहल्ला संगमरमर की मूर्तियों हेतु प्रसिद्ध है |
  • इनका निर्यात जयपुर से किया जाता है।
  • पत्थर की सुन्दर मूर्तियां बनाने का कार्य सर्वाधिक जयपुर में होता है, जहां सफेद संगमरमर काम आता है।
  • डूंगरपुर व बांसवाड़ा में तलवाड़ा ग्राम में सोमपुरा जाति के मूर्तिकार काले संगमरमर की मूर्तियां बनाते हैं।
  • लाल पत्थर की मूर्तियां अलवर के थानागाजी में बनती है।
  • पत्थर की मूर्ति बनाने वाले सिलावट कहलाते हैं।
    7 पीतल से निर्मित वस्तुएं-
  • जयपुर व अलवर प्रसिद्ध है।
  • जोधपुर में पानी का ठण्डज्ञ रखने हेतु प्रसिद्ध बर्तन बनाए जाते हैं।
  • जिंक से निर्मित बोतले बादला नाम से।
    8 ऊनी कम्बल व कालीन-
  • जयपुर, जोधपुर, टाडगढ़ (अजमेर) के ऊनी कम्बल प्रसिद्ध है।
  • जयपुर, बीकानेर व बाड़मेर में ऊनी कालीन ईरानी व भारतीय पद्धति के अनुरूप बड़े सुन्दर बनाए जाते हैं, जिनका निर्यात विदेशों में होता है।
  • टोंक व बीकानेर में नमदे बनते हैं।
  • ऊन को कूट-कूट कर जो वस्त्र बनाए जाते हैं, उसे नमदे कहते हैं।
  • जयपुर गलीचे निर्माण के लिए प्रसिद्ध है।
  • टांकला ग्राम (नागौर) की दरियां प्रसिद्ध है।
    9 कपड़ों पर चित्रकारी-
  • इसकी मुख्य कलाएं-
    (i) पड़ या फड़ चित्रण- शाहपुरा (भीलवाड़ा) का जोशी परिवार इसमें प्रसिद्ध है। मुख्य रंग- लाल व हरा है।
  • यह कपड़े पर लोक देवी-देवताओं के कारखानों को चित्रित करने की शैली है।
    (ii)नाथद्वारा की पिछवाइया- नाथद्वारा (राजसमंद) में पिछवाईयों में श्रीकृष्ण की लीलाओं का चित्रण किया जाता है।
  • कपड़े पर मोम की परत चढ़ा कर जो चित्र बनाए जाते हैं, उसे बातिक शैली कहा जाता है।
  • चित्रों के माध्यम से कथा कहना पड़ या फड़ कहा जाता है।
  • आर.बी. रायजादा बातिक कला के सिद्ध हस्त है।
    10 चमड़े पर हस्तशिल्प-
  • जयपुर और जोधपुर की नागरी और मौजड़िया जूतियां प्रमुख है।
  • भीनमाल व जालौर की कशीदे वाली जूतियां मारवाड़ में विख्यात है।
  • बडू (नागौर) में कशीदायुक्त जूतियों की एक परियोजना संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा यूएन.डी.पी. के तहत चलाई जा रही है।

11 लकड़ी के खिलौने व कलात्मक सामान-

  • कठ पुतलियां बनाने का कार्य उदयपुर में होता है।
  • बस्सी (चित्तौड़गढ़) में गणगौर बनाने का कार्य, मेड़ता (नागौर) में खिलौने बनाने का कार्य, जयपुर में पशु-पक्षियों के सेट बनाने का उद्योग केन्द्रित है।
  • सोपस्टोन को तराश कर खिलौने बनाने का काम रमकड़ा उद्योग है, जो गलियाकोट (डूंगरपुर) में प्रसिद्ध है।
  • बीकानेर व शेखावाटी में लकड़ी के नक्काशीदार सजावटी किवाड़ बनते हैं। लकड़ी में पीतल की जड़ाई का कार्य भी होता है।
  • काष्ठ कला के जन्मदाता प्रभात जी सुथार है।
  • सवाई माधोपुर व उदयपुर में लकड़ी के खिलौने अधिक बनाए जाते हैं।
  • बस्सी (चित्तौड़गढ़) में खेरादी जाति के लोगों द्वारा लकड़ी की कपाटों की मंदिर की प्रतिकृति ‘कावड’ बनाई जाती है।
  • बाड़मेर नक्काशीदार खुदाई का फर्नीचर के लिए प्रसिद्ध है।
    12 पॉटरी वर्क-
  • बीकानेर में सुनहरी पेंटिंग वाले व अलवर में बहुत पतली परतदार बर्तन बनते हैं।
  • अलवर की डबल कट वर्क पॉटरी को कागजी नाम से जानते हैं।
  • कोटा की ब्लैक पॉटरी फूलदानों, मटकों, प्लेटों के लिए विख्यात है।
  • चीनी मिट्टी के बर्तनों पर रंगीन मुख्यतः नीले व हरे रंग की आकर्षक चित्रकारी ब्ल्यू पॉटरी है।
  • जयपुर ब्ल्यू पॉटरी के लिए विश्व में प्रसिद्ध है।
  • कृपालसिंह शेखावत इसके सिद्ध हस्त कलाकार है।
  • भारत में यह कला फारस से आई तथा मुगलों के समय आगरा व दिल्ली से जयपुर आई।
  • महाराजा रामसिंह के काल में यह बहुत फली-फूली।
    13 फौलाद से बनी वस्तुओं पर सोने के पतले तारों की जड़ाई कोफ्तगिरी कहलाती है।
  • यह अलवर व जयपुर में अधिक प्रचलित है।
  • यह कला दश्मिक से पंजाब तथा पंजाब से गुजरात व राजस्थान में लाई गई।
  • वह निशा के काम में डिजाइन को गहरा खोद कर उसमें पतला तार भर दिया जाता है। अलवर के तलवार साज व उदयपुर के सिगलीगर यह काम बहुत सुन्दर ढंग से करते हैं।
    14 टेराकोटा
  • पकाई हुई मिट्टी के बर्तन, खिलौने आदि समस्त राजस्थान में बनाए जाते हैं।
  • मोतेला गांव (नाथद्वारा, राजस्थान) व बस्सी मिट्टी के खिलौने, बर्तन के लिए प्रसिद्ध है।
  • कागजी टेराकोटा- मिट्टी की बिल्कुल बारीक व परतदार कलात्मक वस्तुएं बनाई जाती है, उसमें अलवर प्रसिद्ध है।
  • आलागीला कारीगरी – पत्थर व चूने की दीवारों पर चूने व कली के साथ आकर्षक चित्रकारी चूनगरों द्वारा की जाती है।
  • बीकानेर के इसके अधिकांश सिद्ध हस्त है।
    15 बुनाई उद्योग
  • सूत और सिल्क के ताने-बाने के लिए कैथून (कोटा), मसूरिया के मांगरोल (चित्तौड़गढ़), मलमल के लिए तनसुख और मथानिया (जोधपुर), ऊन के लिए बीकानेर और जैसलमेर तथा लोई के नापासर प्रसिद्ध है।
  • राजसीको शिल्पकलाओं से संबंधित कार्यक्रम चला रहा है।
  • उमर गांव (बूंदी) में दरी बुनाई, सीसारमा (उदयपुर) में फर्नीचर कार्य, धरियावा (उदयपुर) में दरी बुनाई प्रशिक्षण केन्द्र स्थापित है।
  • इन उद्योगों के विपणन के लिए राजसीको द्वारा राजस्थानी एम्पोरियम जयपुर, माउंट आबू, उदयपुर, जैसलमेर में संचालित किये गए हैं।
  • उदयपुर शिल्पग्राम व पाल शिल्प ग्राम (जोधपुर) हस्तशिल्प को बढ़ावा देने हेतु प्रयासरत है।
  • जयपुर व जोधपुर के इनलैण्ड कण्टेनर डिपो तथा सांगानेर के एयर कार्गो कॉम्प्लेक्स द्वारा हस्तशिल्प वस्तुओं का निर्यात किया जाता है।
  • राजस्थान लघु उद्योग निगम द्वारा एक अंतर्राष्ट्रीय व्यापारिक क्षेत्र ‘इण्डो बाजार कॉम’ स्थापित किया गया।
    16 उस्तकला
  • बीकानेर में ऊँट की खाल पर स्वर्णिम नक्काशी उस्तकला है।
  • यह मुनव्वती कला भी कही जाती है।
    17 थेवाकला
  • प्रतापगढ़ में कांच की वस्तुओं पर सोने का सूक्ष्म व कलात्मक चित्रांकन कार्य थैवा कला है।
  • सोनी परिवार इस कला के लिए सिद्ध हस्त है।
  • इसके मुख्य रंग हरा है।
    18 रत्नाभूषण
  • जयपुर में मूल्यवान पत्थरों युक्त सोने चांदी के आभूषण बनाने का कार्य होता है।
  • यह पन्ने की सबसे बड़ी अंतर्राष्ट्रीय मण्डी है।
    19 मुरादाबादी काम
  • पीतल के बर्तनों पर खुदाई करके उस पर नक्काशी का कार्य मुरादाबादी है।
  • जयपुर व अलवर में यह कार्य बहुत प्रचलित हैं।
    20 तारकशी- नाथद्वारा में चांदी के बारीक तारों से विभिन्न आभूषण व कलात्मक वस्तुएं बनाना तारकाशी है।
    21 मिरर वर्क- जैसलमेर के ग्रामीण क्षेत्रों में कपड़ों पर शीशे के छोटे-छोटे टुकड़ों को सिलने का काम मिरर वर्क है।
    22 पेपर मैशी या कुट्टे का काम- कागज की लुगदी बनाकर कलात्मक वस्तुएं बनाना पेपर मैशी है।
  • जयपुर व उदयपुर इस कार्य के लिए प्रसिद्ध है।
    23 जरी व गोटे का काम
  • कपड़ों पर जरी व गोटे का प्रयोग महिलाओं द्वारा किया जाता है।
  • यह काम मुख्यतः खण्डेला, जयपुर, भिनाय व अजमेर में होता है।
  • जरी का काम महाराजा सवाई जयसिंह के समय में सूरत से जयपुर लाया गया था।
    24 लाख का काम
  • लाख का काम जयपुर में सर्वाधिक होता है।
  • महाराजा रामसिंह के समय भरपूर संरक्षण मिला।
    25 मथैरण कला- विभिन्न देवी-देवताओं के आकर्षण भित्ति चित्र, ईसर, तोरण, गणगौर का निर्माण व सजाने की कला मथैरण कला।
    26 मैण कला- सवाई माधोपुर व जस्ते की मूर्तियां जोधपुर की प्रसिद्ध है |

महत्वपूर्ण तथ्य-

  • मटके, सुराही – रामसर (बीकानेर)
  • सुनहरी टेराकोटा – बीकानेर
  • रामदेवजी के घोड़े – पोकरण (जैसलमेर)
  • शीशम का फर्नीचर – हनुमानगढ़, गंगानगर
  • नांदण – भीलवाड़ा
  • खेसले – जयपुर
  • सूंघनी, सवार – ब्यावर
  • गरासियों की फाग – सोजत
  • लकड़ी के झूले – जोधपुर
  • कृषिगत औजार – गजसिंहपुरा (गंगानगर)
  • तुड़िय हस्तशिल्प – राजाखेड़ा (अलवर)
  • आन्तरिक प्रवाह प्रणाली – राज्य के 60.2 प्रतिशत भाग पर पायी जाती है।

ONE LINER QUESTION ANSWER

राजस्थान की कला एवं संस्कृति

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