राजस्थान की चित्रकला :-

  • कार्ले खड़ालवाला ने 17वीं-18वीं शताब्दी को राजस्थानी चित्रकला’ का स्वर्णकाल कहा।
  • राजस्थानी चित्रकला में लाल व पीले रंगों का प्रयोग सर्वाधिक किया गया।
  • राजस्थानी चित्रकला में मोर पक्षी सर्वाधिक चित्रित किया गया।
  • हाड़ौती में शैलचित्रों को खोजने का कार्य सर्वप्रथम 1953 ई. में . पद्मश्री डॉ. विष्णु श्रीधर वाकणकर ने किया। उन्होंने कोटा के निकट आलनिया नदी के किनारे चट्टानेश्वर मंदिर के पास 5 समूहों में 35 शैलाश्रय खोजे ।
  • हाल ही में बूंदी जिले में छाजा नदी के किनारे गरदड़ा नामक स्थान पर महत्वपूर्ण शैल चित्र मिले है। जिन्हें भारतीय इतिहास की प्राचीनतम बर्ड राइडर रॉक पेन्टिंग माना गया।
  • राजस्थान में सर्वाधिक प्राचीन उपलब्ध चित्रित ग्रंथ 1060 ई. के . “ओध नियुक्ति वृत्ति” एवं “दस वैकालिक सूत्र चूर्णि” मिले जो जैसलमेर भण्डार में सुरक्षित है। इन ग्रंथों को भारतीय कला का दीपस्तंभ कहा जाता है।
  • पूर्व मध्यकाल में जब गुजरात पर अरबी आक्रमण प्रारंभ हुए तो । गुजराती चित्रकार जिन्हें सोमपुरा चित्रकार कहा जाता है। गुजरात से आकर राजस्थान के दक्षिणी पश्चिम भाग में प्रविष्ट हुए। ये चित्रकार अपने साथ एक समृद्ध चित्रकला शैली लाये जिसे जैन चित्रकला, अजंता चित्रकला या अपभ्रंश शैली कहा जाता है।
  • राजस्थानी चित्रकला की मूल शैली मेवाड़ शैली को माना जाता है।
  • राजस्थानी चित्रकला का सबसे पहला वैज्ञानिक विभाजन आनन्द कुमार स्वामी ने राजपूत पेन्टिंग्स् नामक अपने ग्रंथ में 1916 में किया।
  • आधुनिक चित्रकला को प्रकाश में लाने का श्रेय कुंदन लाल मिस्त्री को दिया जाता है।
  • ओपन आर्ट गैलेरी के लिए शेखावाटी प्रसिद्ध है।
  • आलागिला/आरायश/फ्रेंस्को कला के लिए शेखावाटी प्रसिद्ध है।
  • सोने-चांदी की पेन्टिंग के लिए महणसर गाँव (झुंझुनू) प्रसिद्ध है।।
    भौगोलिक आधार पर राजस्थानी चित्रकला को चार स्कूलों में बांटा गया है।
    मेवाड़ स्कूल | मारवाड़ स्कूल | ढूढ़ांड़ स्कूल | हाड़ौती स्कूल
    उदयपुर शैली | जोधपुर शैली | आमेर शैली | बूंदी शैली
    नाथद्वारा शैली | बीकानेर शैली | जयपुर शैली | कोटा शैली
    चावण्ड शैली | किशनगढ़ शैली | अलवर शैली|
    देवगढ शैली | जैसलमेर शैली | उणियारा शैली।
    अजमेर शैली
    नागौर शैली

ONE LINER QUESTION ANSWER

1 मेवाड़ शैली या उदयपुर शैली :-

  • इस शैली का प्रारम्भ कुम्भा के काल से माना जाता है।
  • स्वतंत्र मेवाड़ शैली के उद्भव का काल महाराणा अमरसिंह प्रथम के शासनकाल (1597-1620 ई.) को माना जाता है।
  • महाराणा जगतसिंह का शासनकाल (1628-1652 ई.) मेवाड़ शैली का स्वर्णकाल माना जाता है। इन्होंने राजमहलों में ‘चितेरों की ओवरी’ नामक कला विद्यालय स्थापित करवाया। जिसे ‘तस्वीरों रों कारखानों के नाम से जाना जाता है।
  • मेवाड़ चित्रकला शैली में सूरसागर का चित्रांकन सर्वप्रथम महाराणा जगतसिंह प्रथम के समय हुआ।

इस शैली के प्राचीनतम ग्रंथ :-
(i) श्रावक प्रतिक्रमण सूत्रचूर्णी :-
चित्रकार :- कमलचन्द्र। 1260 ई. में महाराणा तेजसिंह के काल में आहड़ में चित्रित।
(ii) सुपासनाहचरियम् :-
चित्रकार :- हीरानन्द। 1423 ई. में महाराणा मोकल के काल में देलवाड़ा में चित्रित।

  • यह ग्रंथ पार्श्वनाथ के चरित्र पर आधारित है। जो वर्तमान में सरस्वती संग्रहालय में सुरक्षित है।
    विशेषता :-
    प्रमुख रंग लाल और पीला
    प्रमुख वृक्ष कदम्ब
    प्रमुख पशु हाथी
    प्रमुख पक्षी चकोर
    हाशिये की पट्टी पीला रंग

प्रमुख चित्रकार :- साहिबदीन (1648 ई., भागवत का चित्रण), कृपाराम, मनोहर, उमरा, जीवा।
पुरुष आकृति :- छोटा कद, गठीला बदन, भरा हुआ चेहरा, लम्बी मूंछे, सिर पर चपटी पगड़ी, कानों में मोती।
महिला आकृति :- छोटा कद, लंबी नाक, मीन नेत्र, रक्ताभ पतले होठ, खुले केश।
कलीला दमना चित्रांकन :-

  • इसका चित्रांकन महाराणा संग्रामसिंह द्वितीय के शासनकाल में हुआ।
  • कलीला दमना एक रूपात्मक कहानी है। जिसमें एक ब्राह्मण राजपुत्रों को रूपात्मक कहानियाँ सुनाता है।
  • इनमें कलीला दमना दो गीदड़ है जो शेर के प्रमुख दरबारी है।
  • कलीला दमना का प्रमुख चित्रकार नुरूद्दीन (संग्रामसिंह द्वितीय के काल में) है।

2 नाथद्वारा शैली :-

  • महाराणा राजसिंह के समय 1672 ई. में सिहाड़ गांव में श्रीनाथ जी के मंदिर की स्थापना के समय मेवाड़ और ब्रज की सांस्कृतिक परम्पराओं का समन्वय प्रारंभ हुआ। इस समन्वय के परिणामस्वरूप विकसित चित्रकला शैली नाथद्वारा शैली कहलायी।
  • इस शैली में आसमान में फूल बरसाते हुए देवता, पृष्ठभूमि में सघन वनस्पति का अंकन मुख्य है।
  • पिछवाई चित्रण इस शैली की प्रमुख विशेषता है।
  • इस शैली में प्रेम कथाओं का चित्रण नहीं हुआ है।
  • इस शैली में कृष्ण को बाल रूप में चित्रण किया गया है।
  • इस शैली में नंद बाबा, यशोदा, माखन चोरी आदि बाल-लीलाओं का चित्रण है।
    प्रमुख चित्रकार :- उदयराम, नारायण, घासीराम, चतुरभुज, भगवान, पुरुषोतम, खुबीराम।
    विशेषता :-
    प्रमुख रंग हरा और पीला
    प्रमुख वृक्ष केला
    प्रमुख पशु गाय
    प्रमुख पक्षी मोर
    नारी आकृति :- छोटा कद किन्तु आकर्षक मांसल शरीर, तिरछी आंखे, नथ का मोती व मंगल सूत्र।

3 देवगढ़ शैली :-

  • मेवाड़ व मारवाड़ चित्रकला शैलियों के समन्वय से देवगढ़ चित्रकला शैली का विकास हुआ।
  • इस चित्रकला शैली के विकास में देवगढ़ के रावत द्वारिकादास का प्रमुख योगदान रहा।
  • इस शैली को प्रकाश में लाने का श्रेय डॉ. श्रीधर अंधारे को जाता है।
    विशेषता :-
    प्रमुख रंग पीला
    पुरुष व महिला आकृति जोधपुर शैली के समान
    प्रमुख विषय राजसी ठाठ बाट, अंतःपुर के दृश्य।

राजस्थान की कला एवं संस्कृति

4 चावण्ड शैली :-

  • इस शैली का विकास महाराणा प्रताप तथा अमरसिंह प्रथम के काल में हुआ।
  • नसीरुद्दीन इस शैली का प्रमुख चित्रकार था। जिसने रागमाला का चित्रण किया।
  • चावण्ड शैली में आकाश को साकार व लहरियादार तरंगित बादलों के रूप में प्रदर्शित किया गया है।
  • इस शैली में पंक्तियों में उड़ती हुई चिड़ियों को दर्शाया गया है।

मारवाड़ शैली :-

1 जोधपुर शैली :-

  • इस शैली का प्रारम्भ मालदेव के काल से माना जाता है। इसके समय जोधपुर दुर्ग के चोखेलाव महल में बने राम-रावण युद्ध के दृश्य अत्यंत प्रभावशाली है।
  • पाली के विठ्ठलदास चम्पावत वीर जी के 1623 ई. में चित्रित रागमाला के चित्र इस शैली के प्रारम्भिक चित्र माने जाते है।
  • इस शैली पर नाथ सम्प्रदाय का प्रभाव पड़ा।
  • इस शैली में नायिका को पतिका के रूप में दर्शाया गया है।
  • इस शैली में प्यासे कौए की कहानी, ढोलामारू की कहानी आदि का चित्रण मिलता है।
    प्रमुख चित्रकार :- शिवदास भाटी, अमरदास, विष्णुदास, नारायणदास, किशनदास भाटी और रतनदास।
    रामा, नाथा, छज्जू व सेफू।
    विशेषता :-
    प्रमुख रंग पीला
    प्रमुख वृक्ष आम
    प्रमुख पशु ऊँट
    प्रमुख पक्षी कौआ, चील
    इस शैली में मरू के टीले, झाड़ी व खेजड़ी वृक्ष का चित्रण मिलता है।
    पुरुष आकृति :- लम्बा कद, घनी दाढ़ी-मूंछे, खिड़कीदार व छज्जेदार पगड़ी, मोतीयों की माला व ढाल तलवार से युक्त।
    नारी आकृति :- गठीला बदन, लम्बी अंगुलियाँ, बादाम सी आंखें, लम्बे बाल, ठेठ राजस्थानी वेशभूषा।

2 बीकानेर शैली :-

  • इस शैली का प्रारंभ महाराजा रायसिंह के शासनकाल से माना जाता है।
  • रायसिंह के समय चित्रित भागवत पुराण इस शैली का प्रारंभिक चित्र माना जाता है।
  • महाराजा अनूपसिंह का शासनकाल इस शैली के विकास का स्वर्णकाल माना जाता है।
  • इस शैली पर उस्ता कला का प्रभाव पड़ा।
    विशेषता :-
    प्रमुख रंग पीला
    प्रमुख वृक्ष आम
    प्रमुख पक्षी कौआ, चील
    प्रमुख पशु ऊँट, घोड़ा
    पुरुष आकृति :- पीठ पर ढ़ाल व हाथ में माला।
    नारी आकृति :- मृग नयनी, बड़ी आंखें, मोतियों के आभूषण ।
    प्रमुख चित्रकार :- रामलाल, अली रजा, हसन, रूक्नुद्दीन, आसीर खाँ। उस्ताद :- बीकानेर के चित्रकार अपने चित्रों पर अपना नाम व समय अंकित करते थे। अतः ये उस्ताद कहलाये।

3 किशनगढ़ शैली :-

  • भारतीय कला के इतिहास में लघु आश्चर्य के नाम से प्रसिद्ध किशनगढ़ चित्रकला शैली को प्रकाश में लाने का श्रेय एरिक डिक्सन व डॉ. फैयाज अली को जाता है।
  • इस शैली का प्रारंभ राजा मानसिंह के समय से माना जाता है। राजा सावंतसिंह (नागरीदास) का काल इस शैली का स्वर्णकाल माना जाता है।
  • नागरीदास की प्रेमिका रसिकप्रिया जिसे चित्रों में बणी-ठणी के रूप में चित्रित किया गया।
  • बणी-ठणी का चित्रकार मोरध्वज निहालचन्द है।
  • बणी-ठणी को एरिक डिक्सन ने भारतीय मोनालिसा कहा।
  • डाक विभाग द्वारा 1973 ई. में बणी-ठणी पर 20 पैसे का डाक टिकिट जारी किया गया।
    विशेषता :-
    प्रमुख रंग श्वेत और गुलाबी
    प्रमुख वृक्ष केला
    प्रमुख पक्षी भ्रमर, मोर
    बणी-ठणी :- लम्बी व सुराहीदार ग्रीवा, चमेली की पंखड़ियों से अधर, हाथ में अर्द्ध मुकुलित कमल कली।
  • इस शैली में नौका विहार, कमल से भरे सरोवर, चांदनी रात में राध -कृष्ण की केलि क्रीड़ा, फूलों के बाहर से झुके हरित आभा वाले वृक्षों का चित्रण प्रमुख है।
    प्रमुख चित्रकार :-
    निहालचंद :- इसने अपने बनाए चित्रों पर फारसी में अपना नाम अंकित कर दिया।
    अमरचंद :- इसने चांदनी रात की संगीत संगोष्ठी नामक चित्र चित्रित किया। भंवरलाल, धन्ना, लाड़लीदास, मूलराज आदि।
  • मोतियों का भव्य चित्रण किशनगढ़ शैली की निजी विशेषता है।

SUBJECT QUIZ

4 अजमेर शैली :- इस शैली की मुख्य विशेषता है कि यह राजकीय संरक्षण में पलने के साथ-साथ आम आदमी के सहयोग से पल्लवित हुई। अतः इस शैली को अमीरो व गरीबों की शैली कहा जाता है।
पुरुष आकृति :- बांकी या छल्लेदार मूंछे।
महिला आकृति :- लम्बे हाथ, पेनी अंगुलियां, हाथों में मेहंदी रची हुई।
प्रमुख चित्रकार :- रायसिंह भाटी, लालसिंह भाटी, नारायण भाटी, चांद तैयब नक्ला, साहिबा (महिला चित्रकार)।

5 जैसलमेर शैली :-

  • इस शैली पर मुगल प्रभाव नहीं पड़ा है।
  • मूमल जैसलमेर शैली का सर्वाधिक लोकप्रिय चित्र है। जो वहाँ । के राजप्रासादों की प्रमुख शोभा है।

6 नागौर शैली :-

  • बुझे हुए रंगों का अधिकता से प्रयोग नागौर शैली की प्रमुख विशेषता है।
  • इस शैली में नायक-नायिकाओं की छोटी आंखें, चपटा ललाट, विशिष्ट झुर्रियाँ प्रमुख है।
  • नागौर शैली के चित्रों में तेजी व हलचल न होकर स्थिरता है। जैसे- वृक्ष की छाव में संगीत सुनते नायक व नायिका।

ढूंढाड़ शैली :-

1 जयपुर शैली :-

  • इस शैली का प्रारम्भ सवाई जयसिंह के काल से माना जाता है।
  • सवाई जयसिंह ने इस शैली को विशेष प्रोत्साहन दिया।
  • सवाई प्रतापसिंह का शासनकाल जयपुर चित्रकला शैली का स्वर्णकाल माना जाता है।
  • मुगल शैली का सर्वाधिक प्रभाव इसी शैली पर पड़ा।
    विशेषता :-
    प्रमुख रंग
    प्रमुख पक्षी मोर
    प्रमुख पशु घोड़ा
    प्रमुख वृक्ष पीपल, वट
    पुरुष आकृति :- साफ चेहरा (बिना दाढ़ी के), सिर पर खुंटेदार पगडी।
    महिला आकृति :- अण्डाकार चेहरा, मछली जैसी आंखें, कमर से नीचे तक लम्बे बाल, तिलक, जूतियाँ पहने हुए।
    प्रमुख चित्रकार :-
    साहिबराम :- इसने ईश्वरीसिंह का आदमकद चित्र बनाया।
    मोहम्मद शाह :- यह सवाई जयसिंह का दरबारी था। इसने कृष्ण लीला से संबंधित चित्र बनाये।
    लालचंद :- इसने लड़ाईयों के चित्र बनाये।, सालिगराम ।
  • सिसोदिया रानी का बाग जो भित्ति चित्रों के लिए प्रसिद्ध है, का निर्माण सवाई माधोसिंह प्रथम के शासनकाल में हुआ।
  • वह स्थान जहां जयपुर के चित्रकार चित्र बनाते थे व प्रदर्शनी करते थे सूरतखाना कहलाता था।
  • जयपुर शैली के चित्रों में नायिका को रूपगर्विता के रूप में चित्रित किया गया है जो दर्पण में मुँह देखती हुई व बालों को संवारती हुई तथा श्रृंगार करती हुई दिखाई गयी है।
  • सवाई रामसिंह ने चित्रकला को प्रोत्साहित करने के लिए जयपुर में महाराजा स्कूल ऑफ आर्टस् की स्थापना की।

2 आमेर शैली :-

  • इस शैली का प्रारंभ मानसिंह प्रथम तथा मिर्जाराजा जयासह फ काल से माना जाता है।
    विशेषता :- इस शैली की प्रमुख विशेषता प्राकृतिक रंगों जैसेहरि मिर्च, गैरू, सफेदा आदि का प्रमुखता से प्रयोग है।
  • इस शैली में बिहारी जी के ग्रंथ बिहारी सतसई पर सर्वाधिक चित्र बने। बिहारी जी मिर्जाराजा जयसिंह के दरबारी कवि थे।
    प्रमुख चित्रकार :- हुकुमचंद, मुरली, मन्नालाल आदि।

3 उणियारा शैली (टोंक) :-

  • जयपुर और बूंदी रियासत की सीमा पर बसे उणियारा ठिकाने में जयपुर चित्रकला शैली पर बूंदी चित्रकला शैली के कलात्मक प्रभावों के परिणामस्वरूप एक नवीन चित्रकला शैली का विकास हुआ। जिसे उणियारा शैली के नाम से जाना गया।
    प्रमुख चित्रकार :- भीमा मीर बख्श, काशीराम, रामलखन ।
  • कवला व बख्ता बिशनसिंह के समय के प्रमुख चित्रकार है।

4 अलवर शैली :-

  • इस शैली का प्रारंभ राव प्रतापसिंह के समय से माना जाता है।
  • महाराजा विनयसिंह (बन्नेसिंह) का शासनकाल इस शैली का स्वर्णकाल माना जाता है।
  • इस शैली का प्रमुख विषय योगाशन है।
  • शेखसादी के गुलिस्ताँ का चित्रण बलदेव व गुलाम अली ने जवाहरातों (सोने-चांदी) के रंगों से किया।
  • वैश्याओं के चित्र/कामसूत्र पर आधारित चित्रों का चित्रण इस शैली की प्रमुख विशेषता है। जिनका सर्वाधिक चित्रण महाराजा शिवदानसिंह के समय हुआ।
  • हाथीदांत पर चित्रण इस शैली की प्रमुख विशेषता है। हाथीदांत पर चित्रण के लिए प्रसिद्ध चित्रकार मूलचंद था।
  • इस शैली में पान खाती हुई महिलाएं व गले में रूमाल व टोपी युक्त पुरुषों का चित्रण प्रमुख है।

Current Affairs

हाड़ौती शैली :- हाथीयों की लड़ाई व खजूर के वृक्ष का प्रमुखता से चित्रण इस शैली की प्रमुख विशेषता है।

1 बूंदी शैली :-

  • इस शैली का विकास राव सुर्जनसिंह के समय प्रारंभ हुआ।
  • महाराव उम्मेदसिंह प्रथम का शासनकाल इस शैली का स्वर्णकाल कहलाता है।
  • बूंदी शैली का सर्वाधिक प्रसिद्ध चित्र रागमाला है। जिसका चित्रण 1626 ई. के आसपास राव रतनसिंह के समय हुआ।
  • इस शैली को पशु-पक्षी चित्रकला शैली के नाम से जाना जाता है।
  • राजस्थानी विचारधारा की चित्रकला का प्रारंभ बूंदी चित्रकला शैली से माना जाता है।
  • टोड़ा रागिनी और रासमंडल चित्र बूंदी शैली से संबंधित है।
  • इस शैली में नायिका का अंकन विरहोत्कंठिता के रूप में किया गया। जो कुंज अथवा अन्तःपुर के किसी कोने में बैठी हुई अपने प्रियतम की प्रतीक्षा कर रही है।
  • सरोवर में खिलता हुआ कमल, वर्षा में नाचता मोर या फुदकते हुए बंदर इस शैली की प्रमुख विशेषता है।
  • महाराव उम्मेदसिंह प्रथम ने बूंदी के राजमहलों में चित्रशाला का निर्माण करवाया। इस चित्रशाला को भित्ति चित्रों का स्वर्ग कहा जाता है।

2 कोटा शैली :-

  • इस शैली का प्रारंभ रामसिंह के समय से जाना जाता है।
  • इस शैली का स्वर्णकाल उम्मेदसिंह के काल को माना जाता है।
  • महाराव भीमसिंह के समय से कोटा चित्रकला शैली पर वल्लभ सम्प्रदाय का पूर्ण प्रभाव पड़ा।
  • शिकार करती हुई रानियाँ, अंगड़ाई लेती हुई नायिका का चित्रण इस शैली की प्रमुख विशेषता है।
  • शेर, हिरण, बतख आदि का चित्रण इस शैली में मिलता है।
    प्रमुख चित्रकार :- नूर मोहम्मद, डालू, लच्छीराम, रघुनाथ, गोविन्द राम।
  • 1768 ई. में डालू राम द्वारा चित्रित रागमाला का सैट कोटा शैली का सबसे बड़ा रागमाला सैट माना जाता है।
    विभिन्न चित्रकला शैलियों में नायिका के नेत्रों का चित्रण
    उदयपुर शैली मछली के समान
    नाथद्वारा शैली तिरछी व चकोर के समान
    जोधपुर शैली बादाम के समान
    बीकानेर शैली मृग नयनी
    किशनगढ़ शैली कमल व खंजन सी आंखें
    जयपुर शैली बड़ी, मीन सदृश आंखें
    अलवर शैली मीन सदृश आंखें
    कोटा शैली मृग नयनी
    राजस्थान के प्रमुख चित्रकार
  • स्व. श्री भूरसिंह शेखावत (बीकानेर) :- गाँवों का चितेरा।
  • श्री गोवर्धन लाल बाबा (कांकरोली, राजसमंद) :- भीलों का चितेरा। इनका प्रमुख चित्र भीलों की बारात का चित्र है।
  • परमानंद चोयल (कोटा) :- भैंसों का चितेरा।
    (इनकी कर्मस्थली उदयपुर रही।)
  • सोभागमल गहलोत (जयपुर) :- नीड़ का चितेरा।
  • जगमोहन माथौड़िया (जयपुर) :- श्वानों का चितेरा।
  • कैलाशचन्द्र शर्मा (जयपुर) :- जैन शैली के प्रमुख चित्रकार ।
    जैन शैली में चित्रांकित कालीदास रचित ‘रघुवंशम्’ पर उन्हें 1990 ई. में कालीदास पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
  • स्व. रामगोपाल विजयवर्गीय (बालेर, सवाई माधोपुर) :- इन्हें एकल चित्र प्रदर्शनी को प्रारंभ करने का श्रेय जाता है।
  • डॉ. बीरबाला भावसर (बांसवाड़ा) :- इन्होंने रेत एवं फेविकोल के माध्यम से चित्र बनाये। इनके चित्रों में रहस्यवाद नजर आता है।
    विशेष :- ए.एच. मूलर (जर्मनी) – इनके चित्र वर्तमान में बीकानेर संग्रालय में सुरक्षित है।
    चित्रकला से संबंधित संगठन
    संगठन स्थान वर्ष
    राज, ललित कला अकादमी जयपुर 1957
    टखमण-28 उदयपुर 1968
    पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र उदयपुर 1986
    जवाहर कला केन्द्र जयपुर 1993

NOTES


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