प्रमुख शास्त्रीय संगीत गायक :-
पं. भीमसेन जोशी – किराना घराना
गंगुबाई हंगल – किराना घराना
पं. जसराज – मेवात घराना
कुमार गंधर्व व गोकी बाई- पटियाला घराना
राजस्थान में लोक गायन की प्रमुख शैलियाँ :-

1 मांड गायिकी :- जैसलमेर।

  • प्राचीन काल में जैसलमेर को मांड क्षेत्र कहा जाता था।
    प्रमुख मांड गायिकाएँ :-
    गवरी देवी (बीकानेर), स्व. अल्लाह जिलाह बाई (बीकानेर), गवरी देवी (पाली), मांगी बाई (उदयपुर), श्रीमति जमीला बानो (जोधपुर), श्रीमति बन्नो बेगम (जयपुर)।

2 मांगणियार गायिकी :-

  • इसका प्रचलन बाड़मेर, जैसलमेर व जोधपुर में है।
  • इसमें 6 राग व 36 रागनियाँ होती है।
    प्रसिद्ध कलाकार :-
    साकर खाँ मांगणियार (कामायचा), रूकमा देवी।

3 लंगा गायिकी :-

  • इसका प्रचलन बीकानेर, बाड़मेर, जैसलमेर व जोधपुर में है।
  • लंगा गायकों के प्रसिद्ध वाद्ययंत्र सारंगी व कामायचा होते है।
    प्रसिद्ध कलाकार :- करीम खाँ लंगा।

प्रमुख लोकगीत :-
1 मूमल (जैसलमेर) :-

  • मूमल लोद्रवा की राजकुमारी थी।
    बोल :- “म्हारी बरसाले री मूमल, हालैनी ए आलीजे रे देख।”
    2 ढोलामारू (सिरोही) :-
  • यह ढाढ़ी जाति गाती है।
  • इसमें ढोलामारू की प्रेमकथा का वर्णन है।

3 गोरबंद (मरूस्थलीय क्षेत्र व शेखावाटी) :- गोरबंद ऊँट के गले का आभूषण होता है।
बोल :- “म्हारों गोरबंद नखरालो।”
4 घूमर :- यह प्रसिद्ध लोकनृत्य घूमर के साथ गाया जाता है।
5.पंछीड़ा :- हाड़ौती व ढूंढाड़ क्षेत्रों में अलगोजे, ढोलक व मंजीरे के साथ गाया जाने वाला लोकगीत।
6.बादली (शेखावाटी, मारवाड़ व हाड़ौती) :- यह वर्षा ऋतु से संबंधित गीत है।

7 हरजश :- राजस्थानी महिलाओं द्वारा गाये जाने वाले लोकगीत जिनमें मुख्यतः राम व कृष्ण की लीलाओं का वर्णन होता है।
8 पपैयो :- इसमें प्रेयसी अपने प्रियतम से उपवन में आकर मिलने का अनुरोध करती है।

9 लावणी :-लावणी का मतलब बुलाने से है।
इसमें प्रेमी अपने प्रेयसी को उपवन में आकर मिलने का अनुरोध करता है।
10 मोरियो :- इस सरस लोकगीत में ऐसी बलिका की व्यथा है जिसका संबंध तो तय हो चुका है लेकिन विवाह में देरी है।

11 बना-बनी :- विवाह के अवसर पर गाये जाने वाले गीत।
12 रातीजगा :- विवाह के अवसर पर रात्रि में गाये जाने वाले गीत।

  • रातीजगा गीतों का समापन कुकड़ी के गीतों से होता है।
    13 टूट्या गीत :-
  • यह गीत महिलाओं द्वारा रात्रि में गाया जाता है।
  • ये गीत बारात के जाने के बाद गाये जाते है।
    14 जलो और जलाल :- वधू के घर से स्त्रियाँ वर की बारात का ढेरा देखने जाती है तब यह गीत गाया जाता है।
    15 सीठणे :- इन्हें गाली गीत भी कहते है।
    16 कामण :- यह गीत विवाह के अवसर पर वधू पक्ष की महिलाओं द्वारा वर को जादू-टोने से बचाने हेतु गाये जाते है।
    17 कोयलड़ी :- यह लड़की की विदाई के अवसर पर वधू पक्ष की महिलाएं गाती है।
    18 ओल्यूँ :- ओल्यूँ किसी की याद में गायी जाती है। जैसे- बेटी की विदाई के अवसर पर उसके घर की स्त्रियाँ गाती है।
    19 चिरमी :- इस गीत में चिरमी के पौधे को सम्बोधित कर वधू द्वारा अपने भाई व पिता के प्रतीक्षा के समय की मनोदशा का चित्रण होता है।

20 हिचकी :-

  • किसी के द्वारा याद किये जाने पर हिचकी आती है।
  • हिचकी गीत अलवर, मेवात का प्रसिद्ध गीत है।
  • बोल :- “म्हारा पियाजी बुलावें म्हानें आई हिचकी।”
    21 पावणा :- नये दामाद के ससुराल में आने पर स्त्रियों द्वारा पावणा गीत गाये जाते है।
    22 सुपणा :- विरहनी के स्वप्न से संबंधित गीत जिसके बोल है :- “सूती थी रंगमहल में, सूताँ में आयो रे जंजाल, सुपणा में म्हारा मँवर न मिलायो जी।”
    23 कुरजाँ :- विरहनी द्वारा अपने प्रियतम को संदेश भिजवाने हेतु कुरजाँ पक्षी
    को माध्यम बनाकर यह गीत गाया जाता है।
    24 जोरावा (जैसलमेर) :- पति के परदेश जाने पर उसके वियोग में गाये जाने वाले गीत।

25 पीपली (शेखावाटी, बीकानेर व मारवाड़) :-

  • यह गीत वर्षा ऋतु में गाया जाता है।
  • यह गीत एक विरहनी के प्रेमोद्गारों को अभिव्यक्त करता है। जिसमें विरहनी अपने परदेशी पति को बुलाती है।
    26 सूंवटिया (भील) :- यह दक्षिण राजस्थान का प्रसिद्ध गीत है। जो विरह वेदना से संबंधित है।
    27 केसरिया बालम :-
  • इस गीत में पति की प्रतीक्षा करती हुई एक नारी की विरह व्यथा है।
  • यह एक रजवाड़ी गीत है।
    28 कागा :-
  • इसमें विरहनी नायिका कौए को संबोधित करके अपने प्रियतम के आने का शगुन मनाती है। और कौए को प्रलोभन देकर उड़ने को कहते है।
  • बोल :- “उड़-उड़ रे म्हारा काला रे कागला, जद म्हारा पिवजी घर आवै।”
    29 कांगसियों :-
  • कांगसियो कंघे को कहते है।
  • बोल :- “म्हारो छैल भँवर रो कांगसियो पणिहारियाँ ले गई रे।”
    30 बीछूड़ो (हाड़ौती) :-
  • इसमें एक पत्नि जिसे बिच्छू ने डस लिया है और मरने वाली है। यह अपने पति को दूसरा विवाह करने का संदेश देती है।
  • बोल :- “मैं तो मरी होती राज मरी होती, खा गयो बैरी बीछूड़ो।”

राजस्थान के प्रमुख कला एवं संगीत संस्थान :-
1 राजस्थान संगीत नाटक अकादमी, जोधपुर (1957)
2 राजस्थान संगीत संस्थान, जयपुर (1950)
3 जयपुर कत्थक केन्द्र (1978)
4 भारतीय लोक कला मण्डल, उदयपुर (1952):- इसकी स्थापना पद्मश्री देवीलाल सामर द्वारा की गई।
5 पश्चिमी क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र, उदयपुर (1986) :- इसका कार्यक्षेत्र गोवा, महाराष्ट्र, गुजरात व राजस्थान में है। देश की लुप्त हो रही कलाओं का पुनरूत्थान करने व कलाकारों को उपयुक्त मंच उपलब्ध कराने के उद्देश्य से इसकी स्थापना की गई।
6 जवाहर कला केन्द्र, जयपुर :- इसका उद्घाटन 8 अप्रैल, 1993 को तत्कालीन राष्ट्रपति श्री । शंकरदयाल शर्मा द्वारा किया गया। इसके भवन के वास्तुकार श्री चार्ल्स कोरिया थे।
7 रूपायन संस्थान बोरूंदा, जोधपुर (1960) :- इसकी स्थापना स्व. कोमल कोठारी व विजयदान देथा द्वारा की गई। * वर्तमान में इस संस्थान का मुख्यालय जोधपुर में है।
8 रविन्द्रमंच सोसायटी, जयपुर (1963) :-


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