राजस्थान के प्रसिद्ध लोक नाट्य
1 रम्मत :-
- यह जैसलमेर, बीकानेर की प्रसिद्ध है।
- रम्मत लोकनाट्य शैली का प्रारम्भ जैसलमेर में हुआ।
- बीकानेर में रम्मत के लिए आचार्यों का चोक प्रसिद्ध है।
- रम्मत खेलने वाला खेलार कहलाता है।
- होली व सावन के महीने में होने वाली काव्य प्रतियोगिताओं को रम्मत कहा जाता है।
- जैसलमेर में रम्मत का प्रसिद्ध कलाकार कवि तेज हुआ। जिसने स्वतंत्रता बावनी नामक ग्रंथ लिखा। जिसे इसने गांधीजी को भेट किया।
- हेडाऊमेरी की रम्मत का सूत्रपात जवाहर लाल पुरोहित ने किया। _ रम्मत का आयोजन रात्रि 11-12 बजे से प्रारंभ होकर सुबह तक चलता है।
2 तमाशा :-
- यह मूलरूप से महाराष्ट्र का लोकनाट्य है।
- जयपुर महाराजा प्रतापसिंह ने तमाशा के प्रमुख कलाकार वंशीधर भट्ट (महाराष्ट्र) को अपने गुणीजन खाने में प्रश्रय देकर इस लोकनाट्य विधा को प्रोत्साहित किया।
- तमाशा खुले मंच पर होता है। जिसे अखाड़ा कहते है।
- वंशीधर भट्ट के समय जयपुर की मशहूर नृतकी गौहरजान तमाशों में स्त्री पात्र का अभिनय किया करती थी।
- वंशीधर भट्ट द्वारा रचित तमाशों में पठान, हीर-राँझा, जोगी-जोगन, लैला-मजनू, छैला पनिहारिन, छुट्टन मियाँ आदि प्रमुख है।
3 स्वांग :-
- यह भीलवाड़ा का प्रसिद्ध है।
- इसमें देवी-देवताओं का वेश धारण करके उनका अभिनय किया जाता है।
- स्वांग दिखाने में भांड जाति के लोग प्रसिद्ध होते है जिन्हें बेहरूपिया कहा जाता है।
- प्रसिद्ध कलाकार :- जानकी लाल भांड (भीलवाड़ा) :- इसे मंकी मैन कहा जाता है। पुरुषोत्तम लाल (केलवा, राजसमंद)
4 नोटंकी :-
- यह भरतपुर, धौलपुर, करौली व सवाई माधोपुर की प्रसिद्ध है।
- इसमें राजा-महाराजाओं के जीवन से जुड़ी हुई घटनाओं को दर्शाया जाता है।
- प्रवर्तक :- भूरी लाल (डीग)
- प्रसिद्ध कलाकार :- गिर्राज प्रसाद (कामा)
- प्रसिद्ध नोटंकी :- राजा भर्तृहरि, राजा हरिशचंद्र, रूप बसंत, रूठी रानी उमादे आदि।
5 चारबैत (टोंक):-
- शेर-ओ-शायरी के माध्यम से होने वाली काव्य प्रतियोगिताओं , को चारबैत कहते है।
- भारत में इस कला का प्रवर्तक अब्दुल करीम खाँ को माना जाता है।
- टोंक में इस लोक नाट्य शैली का प्रारम्भ टोंक के नवाब फैजुल्ला के समय खलीफा करीम खाँ निहंग द्वारा किया गया।
6 तुर्रा कलंगी (चित्तौड़गढ़) :-
- इसकी उत्पत्ति चंदेरी (मध्यप्रदेश) के हिन्दू संत तुकनगीर एवं मुस्लिम संत शाह अली के द्वारा मानी जाती है।
- संत तुकनगीर शिव के आराधक थे तो शाह अली शक्ति के उपासक थे।
- तुकनगीर भगवा वस्त्र धारण करते थे तो शाह अली हरे वस्त्र धारण करते थे।
- इन दोनों के मध्य शास्त्रार्थ के काव्य दंगल हुआ करते थे। इनकी विद्वता से प्रभावित होकर चंदेरी के राजा ने तुकनगीर को अपने मुकुट का तुर्रा एवं शाह अली को कलंगी भेंट की। तभी से इनके अखाड़े तुर्रा-कलंगी के नाम से प्रसिद्ध हुए।
- इस लोकनाट्य की मंच सज्जा प्रसिद्ध मानी जाती है। जिसे शीश महल कहा जाता है।
- तुर्रा-कलंगी में प्रमुख वाद्ययंत्र चंग होता है व इसके संवाद “बोल” कहलाते है।
- प्रसिद्ध कलाकार :- चेतराम सोनी, जय दयाल सोनी, हमीद बेग, नाना लाल गंधर्व।
7 गवरी (उदयपुर) :
- यह राजस्थान का सबसे प्रसिद्ध लोकनाट्य है। अतः इसे लोकनाट्यों का मेरूदंड कहा जाता है।
ख्याल :-
- यह लोकनाट्य की वह विधा है जिसमें धार्मिक, सामाजिक, ऐतिहासिक या पौराणिक आख्यान को पद्यबद्ध रचनाओं के रूप में अलग-अलग पात्रों द्वारा गा-गा कर लोक मनोरंजन हेतु लोकनाट्य के रूप में प्रस्तुत किया जाता है।
- नाटक के प्रारंभ में इसका सूत्रधार हलकारा आता है।
- जयपुर ख्याल शैली के प्रवर्तक भूपत खाँ मनरंग को माना गया है।
1 हेला ख्याल :- यह ख्याल शैली की सबसे प्रसिद्ध विधा है। यह लालसोट, दौसा, सवाई माधोपुर, करौली, धौलपुर, भरतपुर की प्रसिद्ध है। इसकी मुख्य विशेषता हेला देना’ (लम्बी टेर में आवाज देना) है। ख्याल प्रारंभ होने से पूर्व बम वाद्ययंत्र का प्रयोग किया जाता है।
2 तालबंदी/कन्हैया ख्याल :- यह सवाई माधोपुर, लालसोट, दौसा, करौली, धौलपुर की प्रसिद्ध है। इस ख्याल का मुख्य पात्र मेडिया होता है। जिसके नेतृत्व में अभ्यास तथा प्रस्तुति की जाती है।
3 कुचामनी ख्याल (कुचामन, नागौर) :- इस ख्याल शैली के प्रवर्तक लच्छीराम जी थे। उगमराज इस शैली का प्रसिद्ध खिलाड़ी है।
4 अली बख्शी ख्याल (अलवर) :- यह अलवर रियासत के मुण्डावर ठिकाने के राव राजा अली बख्श के समय से प्रारम्भ हुई।
5 चिड़ावा ख्याल (चिड़ावा, झुंझुनू) :- स्व. नानूलाल राणा एवं दूलिया राणा इस ख्याल शैली के प्रसिद्ध कलाकार है।
6 माच का ख्याल :- यह भीलवाड़ा, चित्तौड़गढ़ व झालावाड़ जिलो का प्रसिद्ध है। भीलवाड़ा के बगसूलाल खमेसरा को माच के ख्याल का पितामह कहा जाता है।
7 ढप्पाली ख्याल :- यह अलवर, भरतपुर व लक्ष्मणगढ़ क्षेत्र में प्रसिद्ध है।
विशेष :- बिसाऊ (झुंझुनू) की रामलीला मूकाभिनय पर आधारित है। बारां जिले में अटरु कस्बे में रामलीला में धनुष राम द्वारा न तोड़ा जाकर जनता द्वारा तोड़ा जाता है।
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