- महाद्वीप और महासागर की उत्पति के दो सिद्धांत
1 प्लेट विवर्तनिक सिद्धांत – प्रतिपादक- हैरी हैस
2 महाद्वीपीय विस्थापन का सिद्धांत – प्रतिपादक- वेगनर - अति प्राचीन युग में ‘वेगनर’ के अनुसार सम्पूर्ण पृथ्वी पर दो ही भाग थे। __ 1. जिया/स्थलीय भाग
2 पैंथालासा- जलीय भाग - जब युग परिवर्तन हुआ तो पैंजिया का विभाजन दो भागों में हो गया।
1 लोरेसिया या अंगारालैण्ड/उत्तरी भाग
2 गोड़वाना लैण्ड/ दक्षिण भाग - इन दोनों भागों के मध्य पैंथालासा का जल भरने से एक उथला सागर सामने आया जिसे टैथिस सागर कहा गया।
- अंगारालैण्ड एवं गोडवाना लैण्ड के विभाजन से महाद्वीपों का निर्माण तथा पैंथालासा से महासागरों का निर्माण हुआ। भारत गौडवानालैण्ड का भाग था जिसके उत्तर की ओर खिसकने के कारण टैथिस सागर का जल ऊपर उठ गया जिससे हिमालय पर्वत तथा थार के मरुस्थल का निर्माण हुआ।
- राजस्थान भारत का वह भाग है जिसके भौतिक प्रदेशों का निर्माण टेथिस सागर व गौडवाना लैण्ड से हुआ
- राजस्थान को चार भौतिक प्रदेशों में बांटा गया है।
1 पश्चिमी मरूस्थलीय प्रदेश- अवशेष-टैथिस सागर
2 अरावली प्रदेश- अवशेष- गोडवानालैण्ड
3 पूर्वी मैदानी प्रदेश- अवशेष- टेथिस सागर
4 दक्षिणी पूर्वी पठारी प्रदेश- अवशेष- गोडवानालैण्ड - निर्माण के क्रम में राज्य के भौतिक प्रदेश
1 अरावली प्रदेश
2 पठारी प्रदेश
3 पूर्वी मैदान प्रदेश
4 मरूस्थलीय प्रदेश
1 पश्चिमी मरूस्थलीय प्रदेश
- अवशेष- टैथिस सागर
- विस्तार- 12 जिले
- क्षेत्रफल- 1,75,000 वर्ग भाग (61.11%)
- सिरोही का उत्तरी पश्चिमी भाग व जयपुर का पश्चिमी भाग मिलाकर राज्य के 61.11% भाग पर मरूस्थल का विस्तार।
- यह मरूस्थल दक्षिण-पूर्व से उत्तर-पश्चिम की और 640km लम्बाई | व पश्चिम से पूर्व की और 300km चौड़ाई में फैला हुआ है।
- जनसंख्या – 40%
- वर्षा – 0-40 सेमी.
- जलवायु – शुष्क व अत्यधिक विषम
- मिट्टी- रेतीली बलुई मिट्टी
- वनस्पति – मरूद्भिद जिरोफाइट
- उपनाम – रूक्ष क्षेत्र
- तापमान – गर्मियों में उच्चत्तम – 49°C
सदियों में निम्नत्तम-° C - समुद्र तल से औसत ऊँचाई- 150 मी.
- ढाल- उत्तर पूर्व से दक्षिण पश्चिम की ओर।
- इस प्रदेश के उत्तर पूर्वी ऊँचे भाग को थली व दक्षिण पश्चिमी निचले भाग को तली के नाम से जाना जाता है।
- इस प्रदेश को दो भागों में बांटा गया है-
1 शुष्क मरुस्थल
2 अर्द्ध शुष्क मरूस्थल
1 शुष्क मरूस्थल - विस्तार – 4 जिलों
- वर्षा- 0–20 सेमी.
- 25 सेमी. वर्षा रेखा शुष्क मरूस्थलीय प्रदेश को अर्द्ध शुष्क मरूस्थलीय
प्रदेश से अलग करती है। - इस भाग की प्रमुख संरचनाएँ-
1 बालुका स्तूप
2 टाट/रन
3 मरूस्थल के प्रकार
4 रेगिस्तान का मार्च
1 बालुका स्तूप – रेत के बड़े-बड़े टीले/टिब्बे या धोरे जिसे जैसलमेर में धरियन के नाम से जाना जाता है।
बालुका स्तूपों के प्रकार
1 बरखान- सर्वाधिक गतिशील अर्द्धचन्द्राकार बालुका स्तूप है। - सर्वाधिक शेखावाटी में इसका विस्तार पाया जाता है।
2 अनुदैर्ध्य- वायु की दिशा के समानान्तर बनने वाले बालुकास्तूपो को अनुदैर्ध्य कहते है। - सर्वाधिक- जैसलमेर में देखने को मिलते है।
3 अनुप्रस्थ- वायु की दिशा के समकोण पर बनने वाले बालुका स्तूपों को अनुप्रस्थ कहा जाता है। - सर्वाधिक- बाड़मेर में देखने को मिलते है।
4 पवनानुवर्ती बालुका स्तूप- वर्षभर एक ही दिशा में बहने वाली वायु से बनने वाले बालुका स्तूप को पवनानुवर्ती बालुका स्तूप कहते है।
5 सीफ- विपरीत दिशा में बहने वाली वायु से बनने वाले बालुका स्तूपो को सीफ कहते है।
6 नेबखा- झाड़ियों के पीछे बनने वाले बालुका स्तूपों को नेबखा के नाम से जाना जाता है। - सभी प्रकार के बालुका स्तूप जोधपुर जिले में पाये जाते है।
- राज्य में मार्च से जुलाई के मध्य बालुका स्तूपों का निर्माण होता है|
- जैसलमेर, बाड़मेर का चट्टानी प्रदेश बालुका स्तूपों से मुक्त प्रदेश है|
2 टाट/रन:- बालुका स्तूपों के मध्य बने गड्डों में वर्षा का जल भर जाने से अस्थाई खारे पानी की झीलों का निर्माण होता है जिसे टाट/रन कहा जाता है। * प्रमुख टाट/रन-
1 कनोड, भाखरी, बरमसर, पोकरण, (जैसलगर में है।
2 बाप, फलौदी- (जोधपुर)
3 धोब, लावा- (बाड़मेर)
3 मरूस्थल के प्रकार – तीन प्रकार
1 इर्ग मरूस्थल- रेतिला मरूस्थलीय का विस्तार बीकानेर, जोधपुर।
2 हम्माद मरूस्थल- पथरीला चट्टानी मरूस्थलीय भाग जिसका विस्तार- जैसलमेर, बाड़मेर जिलों में है।
3 रैग मरूस्थल- मिश्रित मरूस्थलीय भाग का विस्तार सम्पूर्ण शुष्क प्रदेश में मिलता है।
4 रेगिस्तान का मार्च:- मरूस्थलीय भागों का लगातार पश्चिम से । पूर्व की ओर गतिशील या स्थानांतरित होना रेगिस्तान का मार्च कहलाता है। - इसके लिए जैसलमेर का नाचना गाँव प्रसिद्ध है।
- इसी कारण जैसलमेर का समगाँव पूर्णतया वनस्पति रहित क्षेत्र है।
“शुष्क मरूस्थल की प्रमुख विशेषताएँ”
- यहाँ स्थित पोखर की तली में जमी ऊपजाऊ मिट्टी को ‘मरहो’ कहा जाता है।
- वर्षा जल जमा करने का गड्डा नाड़ी या बैरी के नाम से जाना जाता है।
- पर्वतो के मध्य बनने वाली खारे पानी की झीले ‘बालसन’ कहलाती है।
- वह स्थान जहाँ पर्वतीय जल आकर समाप्त हो जाता है ‘बजादा’ कहलाता है।
- मरूस्थलीय प्रदेशों में ढालनुमा पाई जाने वाली सीधी खड़ी आकृति द्वीपीय पर्वत ‘इंसेलबर्ग’ कहलाती है। जिसका सुन्दर उदाहरणसांभर झील है।
- पोकरण से मोहनगढ़ (जैसलमेर) तक पाई जाने वाली भूगर्भीय जल पट्टी को लाठी श्रृंखला कहा जाता है जहाँ सेवण घास मिलती है।
- इन क्षेत्रों में वर्षाजल इकट्ठा करने के लिए बनाये गए टांको को ‘आगोर’ कहा जाता है।
- यहाँ होने वाली मावट को ‘गोल्डन ड्रोप्स’ के नाम से जाना जाता है।
- यहाँ जैसलमेर बाड़मेर क्षेत्र में राज्य पक्षी गोडावण को बचाने के लिए राष्ट्रीय मरु उद्यान की स्थापना की गई।
- इसी उद्यान के अन्तर्गत जैसलमेर के सुदासरी क्षेत्र में ‘आकल जीवाश्म पार्क’ की स्थापना की गई है।
- पीवणा नामक विषैला सर्प यहाँ पाया जाता है।
- चौहटन (बाड़मेर) गोंद उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है।
- चंदननलकूप (जैसलमेर) को थार का मीठे पानी का घड़ा कहा जाता है।
2 अर्द्धशुष्क मरूस्थलीय प्रदेश
- विस्तार-11 जिलों
- वर्षा- 20-40 सेमी.
- वनस्पति- स्टेपी प्रकार की
- 50 सेमी वर्षा रेखा अर्द्ध शुष्क प्रदेशों को उपआर्द्र से अलग करती है,
राज्य को दो भागों में बांटती है, तथा अरावली को दो भागों में बांटती है इस कारण अर्द्ध शुष्क प्रदेश को संक्रमणीय या परवर्ती जलवायु प्रदेश कहा जाता है। - इस प्रदेश के भाग के चार उपभाग है।
1 घग्घर का मैदान
2 शेखावाटी प्रदेश
3 नागौरी उच्च भूमि का प्रदेश
4 लूनी बेसिन
1 घग्घर का मैदान– - विस्तार- गंगानगर, हनुमानगढ़
- यह घग्घर नदी द्वारा निर्मित प्रदेश है।
- यहाँ घग्घर के पाट को नाली व उसके द्वारा निर्मित उपजाऊ मैदान को बग्गी कहा जाता है।
2 शेखावाटी प्रदेश– - विस्तार- सीकर, झुंझुनूँ, चूरू व बीकानेर
- इसे आंतरिक जल प्रवाह का क्षेत्र कहा जाता है।
- यहाँ स्थानीय भाषा में कुँओं को जोहड़ व घास के मैदानों को ओरण या बीड़ के नाम से जाना जाता है। कुँओं के अंतिम गहराई वाले भाग चोभी के नाम से जाना जाता है।
- यहाँ सर्वाधिक बालुका स्तूप पाये जाते है जिनके मध्य वर्षा का जल भरने से बनी झीलों को सर या सरोवर के नाम से जाना जाता है।
- सर्वाधिक गर्मी व सर्दी इसी भाग में पड़ती हैं।
3 नागौरी उच्चभूमि का प्रदेश- - विस्तार- नागौर, बीकानेर, सीकर, जोधपुर, बाड़मेर।
- यह सामान्य धरातल से 300 से 500 मी. ऊँचा भाग है जहाँ सर्वाधिक खारे पानी की झीले पाई जाती है।
- इस भाग में नागौर व अजमेर के मध्य भूमिगत जल पट्टी में सर्वाधिक फ्लोराइड पाया जाता है।
- जिससे दांत व हड्डियों में फ्लोरोसिस रोग हो जाता है। इस रोग से व्यक्ति की पीठ पर कुबड़ निकल आती है जिसके कारण इसे कुबडपट्टी के नाम से जाना जाता है।
4 लूनी बेसिन- - लूनी व उसकी सहायक नदियों द्वारा निर्मित प्रदेश।
- विस्तार- नागौर, पाली, जोधपुर, बाड़मेर, जालौर ।
- यहाँ लूनी द्वारा निर्मित नवीन जलोढ़ मिट्टी के प्रदेश की गौड़वाड़ प्रदेश कहा जाता है।
- जालौर व बाड़मेर का वह भाग जहाँ समुद्र का जल लहराता था। उसे नेहड़ प्रदेश कहा जाता है।
- इस भाग में बाड़मेर में छप्पन की पहाड़ियों के नाकोड़ा पर्वत की हल्देश्वर पहाड़ी पर स्थित पीपलूद को राजस्थान का लघु माउण्ट आबू या मारवाड़ का माउण्ट आबू कहा जाता है।
2 अरावली पर्वतीय प्रदेश
- अरावली की भूगर्भिक संरचना का प्रथम अध्ययन A.M. हैरान द्वारा 1923 में किया गया था।
- इसके अनुसार अरावली का निर्माण 65 करोड़ वर्ष पूर्व प्रिकेम्ब्रियन काल में हुआ।
- अरावली विश्व की प्राचीनतम वलित पर्वतमाला है जिसकी तुलना अमेरिका के अप्लेशियन पर्वतामाला से की गई। अरावली का उद्भव अरब सागर में स्थित मिनीकॉय द्वीप से होता है इस कारण अरब सागर को अरावली का पिता कहा जाता है।
- अरावली प्रदेश गौड़वानालैण्ड का अवशेष है जो पालनपुर (गुजरात)
से रायसीना हिल्स (दिल्ली) तक 692 कि.मी. लंबाई में फैली है। - इसका निर्माण धारवाड़ युग की समाप्ति व विध्यनकाल के प्रारम्भ में माना जाता है।
राजस्थान में अरावली- - राज्य में इसे मेरू प्रदेश या परिपत्र के नाम से जाना गया है।
1 अवशेष- गोडवानालैण्ड
2 विस्तार- 17 जिलों में
3 क्षेत्रफल- 9.3% भाग
4 जनसंख्या – 10%
5 वर्षा- 50-90 सेमी.
6 जलवायु – उपआर्द्र जलवायु
7 मिट्टी- भूरी, लाल, कंकरीली मिट्टी
8 वनस्पति- पर्वतीय प्रकार की
9 औसत ऊचाई – 930 मी.
10 राज्य में विस्तार- दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पूर्व की ओर
अरावली का महत्व – - राज्य को दो भौतिक प्रदेशों में विभाजित करती है।
- अरावली के पश्चिम में राज्य के 13 जिले (60%) भाग। जबकि इसके पूर्व में राज्य के 20 जिले (40%) भाग स्थित।
- यह भारत की महान जल विभाजक रेखा का कार्य करती है।
- मरूस्थल को पश्चिम से पूर्व की ओर बढ़ने से रोकती है।
- अरावली पर्वत माला को तीन भागों में विभाजित किया गया है।
1 उत्तरी अरावली
2 मध्य अरावली
3 दक्षिणी अरावली
1 उत्तरी अरावली - विस्तार- सीकर, झुंझुनूँ, जयपुर, अलवर, भरतपुर, दौसा।
- निर्माण- क्वार्टजाइट व फाइलाइट की चट्टानों से।
- औसत ऊँचाई- 450 मी.
- सबसे ऊँची चोटी- रघुनाथगढ – 1055 मी. I
- दुसरी ऊँची चोटी- मालखेत (सीकर) 1052 मी.
- तीसरी ऊँची चोटी- लोहार्गल (झुंझुनूँ) 1051 मी.
- इस भाग में नाहरगढ़, जयगढ़, आमेर की पहाड़िया, जयपुर में तथा मालखेत व हर्ष की पहाड़ियों सीकर में स्थित है।
2 मध्य अरावली - विस्तार- अजमेर, पाली, राजसमंद, भीलवाड़ा, नागौर
- निर्माण- क्वार्टजाइट व ग्रेनाइट की चट्टानों से
- औसत ऊँचाई- 700मी.
- सबसे ऊँची चोटी-मोरामजी (अजमेर) 933 मी.
- दूसरी ऊँची चोटी-तारागढ़ (अजमेर) 870 मी.
- तीसरी ऊँची चोटी- नागपहाड़ (अजमेर) 792 मी.
- अरावली के इस भाग में सर्वाधिक अन्तराल पाया जाता है जिस कारण यहाँ दर्रे व नाल स्थित है।
- दर्रा या नाल- पहाड़ो के बीच में स्थित कट्टा-फटा तंग रास्ता जहाँ से आवागमन संभव होता है उसे दर्रा कहते है।
- राज्य के दक्षिणी भागों में इसे स्थानीय भाषा में नाल कहा जाता है।
- मध्य अरावली में स्थित प्रमुख दर्रे या नाल –
1 कचबाली की नाल
2 स्वरूपा घाट की नाल
3 देबारी की नाल
4 उदाबारी की नाल
5 पीपली की नाल - सभी नाल टाटगढ़ अजमेर में स्थित है जो अजमेर को जोधपुर से जोड़ती है।
- बर्र की नाल-पाली में स्थित है। पाली को राजसमंद से जोड़ती है।
- N.H.14 यही से होकर गुजरता है।
- परबेरिया की नाल – अजमेर में स्थित है। अजमेर व मसूदा को आपस में जोड़ती है।
- शिसुरा घाट व सुराघाट की नाल – अजमेर में है। अजमेर को मेवाड़ से जोड़ता है।
- गोरमघाट व खामली घाट की नाल – राजसमंद में स्थित है। ये मारवाड़ जंक्शन पाली को आमेट (राजसमंद) से जोड़ती है।
3 दक्षिणी अरावली - विस्तार- राजसमंद, उदयपुर, सिरोही, डूंगरपुर, चित्तौड़ भीलवाड़ा, बूंदी
- निर्माण- संगमरमर व ग्रेनाइट की चट्टानों से हुआ।
- औसत ऊँचाई- 1000मी.
1 सबसे ऊँची चोटी- गुरू शिखर (सिरोही) 1722/1727मी. (यहाँ भगवान दतात्रय का मंदिर है जिसकी ऊँचाई 5 भी हैं।) - कर्नल टॉड ने इसे संतो का शिखर कहा है
- इसे गुरूमाथा के नाम से भी जाना जाता है।
2 दूसरी ऊँची चोटी- सेर (सिरोही) 1597मी.
3 तीसरी ऊँची चोटी- दिलवाडा (सिरोही) 1442 मी.
4 चौथी ऊँची चोटी- जरगा (उदयपुर) 1431मी.
5 पाँचवी ऊँची चोटी- अचलगढ़ (सिरोही) 1380मी. - अन्य ऊँची चोटियां- जयराज, ऋषिकेश, कमलनाथ – सिरोही माकड़ मगरा- सज्जनगढ़, उदयपुर
- अरावली का यह भाग सबसे ऊँचा व सर्वाधिक विस्तृत है इस भाग में स्थित प्रमुख दर्रे या नाल –
1 हाथी की नाल
2 केवड़ा की नाल
3 फुलवारी की नाल
4 सोमेश्वर की नाल
5 पगल्या की नाल/जीलवा की नाल- मेवाड़ व गुजरात के मध्य का रास्ता बनाती है।
6 हाथी गुढा की नाल- राजसमंद- N.H.76 यही से गुजरता है
7 देसूरी की नाल- पाली- पाली व राजसमंद को आपस में जोड़ती है
8 जेतावास की नाल
9 खटखट की नाल
10 लाखेरी की नाल
11 रामगढ़ की नाल - दक्षिणी अरावली की प्रमुख विशेषताएँ ।
- सिरोही के उत्तरी-पूर्वी भागों में स्थित तीव्र ढाल वाली पहाड़ियों को भाकर कहा जाता है।
- डूंगरपुर बांसवाड़ा के मध्य का पहाड़ी प्रदेश मेवल कहलाता है।
- उदयपुर के चारों ओर स्थित तश्तरीनुमा पहाड़ी प्रदेश गिरवा कहलाता है। जहाँ 1559 में उदयसिंह ने उदयपुर की स्थापना की थी।
- उदयपुर का उत्तर-पश्चिमी पर्वतीय भाग ‘मगरा’ कहलाता है।
- गिरवा प्रदेश से आगे के पहाड़ी भाग में जरगा व रागा की पहाड़िया स्थित है।
- जरगा व रागा की पहाड़ियों के मध्य स्थित हरा-भरा प्रदेश देशहरो कहलाता है।
- अरावली की सर्वाधिक ऊँची पहाड़ियाँ गोगुन्दा (उदयपुर) से कुम्भलगढ़ (राजसमंद) के मध्य स्थित है।
- डूंगरपुर, उदयपुर व सिरोही का पहाड़ी प्रदेश भोमठ’ कहलाता है जहाँ सर्वाधिक भील जनजाति निवास करती है।
- उदयपुर में ‘भोराठ’ का पठार स्थित है जिसके पूर्व में स्थित दक्षिणी सिरे का पर्वत स्कन्ध कहलाता है जो अरबसागर व बंगाल की खाड़ी के मध्य जल विभाजक का कार्य करता है।
3 पूर्वी मैदानी प्रदेश
- उत्पति या अवशेष- टैथिस सागर
- विस्तार- अरावली के पूर्वी भागों में
- क्षेत्रफल- 23.3% भाग
- जनसंख्या- 39% (सर्वाधिक घना बसा भाग)
- वर्षा- 60-90 सेमी.
- जलवायु- आर्द्र जलवायु
- मिट्टी – जलोढ़, दोमट, कांप, कछारी मिट्टी
- वनस्पति- पतझड़ वनस्पति
- इस भाग का निर्माण नदियों द्वारा लाई गई जलोढ़ मिट्टी से हुआ है। जिस कारण यह राज्य का सबसे उपजाऊ भाग है।
- इसे चार भागों में बांटा गया है।
1 बाणगंगा का मैदान
2 बनास का मैदान
3 माही का मैदान
4 चम्बल का मैदान
1 बाणगंगा का मैदान - विस्तार- जयपुर, अलवर, भरतपुर, दौसा
- निर्माण- बाणगंगा नदी द्वारा
- पूर्वी मैदानी प्रदेशों में यह सबसे ऊपजाऊ भाग है।
2 बनास का मैदान - विस्तार- राजसमंद, चित्तौड़ भीलवाड़ा, अजमेर, टोंक, सवाई माधोपुर, करौली।
- निर्माण- बनास व उसकी सहायक नदियों द्वारा।
- इस भाग को दो उपभागों में बांटा गया है-
(अ) करौली मालपुरा का मैदान – उत्तरी भागों में स्थित है जहाँ कांपीय मिट्टी का विस्तार।
(ब) मेवाड़ का मैदान – दक्षिणी भाग में स्थित उपजाऊ भाग।
3 माही का मैदान - विस्तार- चित्तौड़गढ़, प्रतापगढ़, बाँसवाड़ा, उदयपुर, डूंगरपुर।
- निर्माण- माही व उसकी सहायक नदियों द्वारा।
- डुंगरपुर बांसवाड़ा, प्रतापगढ़ वाले भागों में छप्पन ग्रामों व छप्पन नदी नालों
का समूह स्थित है जिसे छप्पन के मैदान के नाम से जाना जाता है। - बाँसवाड़ा व प्रतापगढ़ के मध्य का भाग जहां माही नदी का पेटा स्थित है, उसे कांठल का मैदान कहा जाता है।
4 चम्बल का मैदान - निर्माण- चम्बल की पश्चिमी दिशा की सहायक नदियों के द्वारा किया गया।
4 दक्षिणी पूर्वी पठारी प्रदेश (हाडौती का पठार)
- अवशेष- गोडवाना लैण्ड
- निर्माण- ज्वालामुखी उद्गार से निकले लावा के ठण्डा होने से इन पठारी प्रदेशों का निर्माण हुआ है।
- हाड़ौती का पठार अरावली एवं विंध्याचल पर्वतमाला को जोड़ने वाली कड़ी है। अतः संक्राति प्रदेश कहा जाता है।
- विस्तार- धोलपुर, करौली, सवाई माधोपुर, भीलवाड़ा, चित्तौड़।
- मूल विस्तार- कोटा बूंदी, बाराँ, झालावाड़।
- क्षेत्रफल – 6.89%
- जनसंख्या – 11%
- वर्षा – 90-120 सेमी.
- जलवायु- अतिआर्द्र जलवायु – मिट्टी- काली मिट्टी (यहाँ कपास, गन्ना, सोयाबीन की खेती अच्छी होती है।)
- वनस्पति- शुष्क सागवान
- ढाल- दक्षिण से उत्तर पूर्व की ओर
- समुद्रतल से औसत ऊँचाई- 320 से 400 मी.
- प्रमुख नदी- चम्बल
- इस प्रदेश को दो भागों में बांटा गया है-
1 विध्यनकगार भूमि
2 दक्षिणी पूर्वी लावा प्रदेश (दक्कन का लावा प्रदेश)
1 विंध्यन कगार भूमि- विस्तार- धौलपुर, करोली, सवाई माधोपुर, बूंदी। - यह विंध्याचल पर्वत माला का अंतिम भाग है।
- निर्माण- बलुआ पत्थर से निर्मित विंध्यनक्रम की चट्टानें यहां स्थित है।
- जैसे- धोलपुर- लाल बलुआ पत्थर
- करौली- गुलाबी बलुआ पत्थर
- बूंदी- स्लेटी बलुआ पत्थर
- भीलवाड़ा की कातलें प्रसिद्ध है।
- चितौड़गढ़ के केसरपुरा, मानपुरा से हीरा निकलता है।
- इस भाग में धौलपुर, करौली, सर्वाई माधोपुर में चम्बल नदी द्वारा निर्मित
बीहड़ भूमि स्थित है। जिसे डांग प्रदेश के नाम से जाना जाता है - कोटा का भाग भी विंध्यन कगार भूमि में शामिल किया जाता है।
2 दक्षिणी पूर्वी लावा प्रदेश ( दक्कन का लावा प्रदेश) – - विस्तार- कोटा, बूंदी, बाराँ, झालावाड़।
- यह विध्यांचल पर्वत माला का पश्चिमी भाग है।
- यहाँ मुख्य रूप से काली मिट्टी का विस्तार है जिसमें कपास, गन्ना, सोयाबीन की फसलें होती है तथा सर्वाधिक नाइट्रोजन की मात्रा पाई जाती है।
- इस भाग के तीन उपभाग है –
1 मुकुन्दरा की पहाड़ियां- अर्द्धचन्द्राकार पहाड़िया जो कोटा के दक्षिण पश्चिमी से झालारापाटन (झालावाड़) तक फैली हुई है।
2 डग गंगाधर उच्च प्रदेश- यह झालावाड़ के उत्तर पश्चिमी भागों में विस्तारित पठारी प्रदेश है।
3 शाहबाद उच्च प्रदेश- विस्तार- बारां जिले में है जहाँ घोड़े की नाल के आकार की पहाड़ियां स्थित है।
राज्य में स्थित प्रमुख पठार
1 उड़िया का पठार- सिरोही - राज्य का सबसे ऊँचा पठार
- ऊँचाई 1360मी.
- गुरू शिखर के नीचे स्थित है।
2 आबू का पठार – सिरोही - राज्य का दूसरा ऊँचा पठार
- ऊँचाई- 1200 मी.
- इस पर माउण्ट आबू नगर बसा हुआ है।
3 भोराठ का पठार – गोगुन्दा (उदयपुर) से कुम्भलगढ़ (राजसमंद) के मध्य फैला हुआ पठारी भाग
4 मेसा का पठार- चित्तौडगड़ यहां पर चित्तौड़ का किला बना हुआ है।
5 लासड़िया का पठार – उदयपुर जिले के जयसमंद झील के आस-पास स्थित है।
6 ऊपरमाल का पठार- बिजोलिया (भीलवाड़ा) से भैंसरोड़गढ़ (चित्तौड़ तक फैला पठारी प्रदेश। यहां सर्वप्रथम किसान आन्दोलन की शुरुआत हुई।
7 क्रासका का पठार व कांकनबाड़ी का पठार – अलवर ।
सरिस्का वन्यजीव अभ्यारण्य इसी पठारी भागों में स्थित है।
8 भोमठ का पठार- दक्षिणी उदयपुर, उत्तरी डूंगरपुर, पूर्वी सिरोही वाले भाग में स्थित पठार जिसे दक्षिणी-पश्चिमी मेवाड़ के नाम से भी जाना जाता है।
9 मानदेसरा का पठार (चित्तौड़) इस पठारी भाग में भैंसरोडगढ़ वन्यजीव अभ्यारण्य स्थित है।