पशुधन
- राजस्थान में पशु गणना का कार्य अजमेर स्थित राजस्व मण्डल द्वारा किया जाता है। वर्ष 2003 में 17वीं पशु गणना की गई।
- 18वीं पशुगणना 2007 में की गई तथा वर्तमान में 19वीं पशुगणना 15 सितम्बर से 18 अक्टूबर 2012 को राज्य पशुगणना अधिकारी श्री भंवरलाल के नेतृत्व में की गई। कुल पशु सम्पदा
- वर्ष 2007 की पशुगणना के अनुसार राज्य के कुल पशुधन 566. 63 लाख था।
- वर्ष 2007 में वर्ष 2013 की तुलना में राज्य की पशु सम्पदा में 75. 27 लाख (15.32%) की वृद्धि तथा कुक्कुट में 19.35% की कमी हुई थी।
- वर्ष 2012 की 19वीं पशुगणना के अनुसार 577.32 लाख पशुधन है।
- 2012 के अनुसार राज्य में पशुधन घनत्व 169/km2 है।
- सर्वाधिक पशुधन घनत्व दौसा व राजसमंद में पशु 292/km2है।
- न्यूनतम पशुधन घनत्व जैसलमेर में 83 है।
- 2012 की पशुगणना के अनुसार प्रदेश में प्रति हजार जनसंख्या पर पशुओं की संख्या 842 है। भारत में द्वितीय स्थान राजस्थान 11.27%
- भारत में सर्वाधिक पशु- उत्तर प्रदेश में।
- भारत में सर्वाधिक पक्षी- सिक्किम में।
- भारत में सर्वाधिक वन्य जीव- असोम में।
- भारत में सर्वाधिक मनुष्य- उत्तर प्रदेश में ।
- भारत में पशुगणना 1919 में प्रारंभ हुई थी।
- पशु गणना का कार्य हर 5वें वर्ष होता है।
- पशु गणना बारह प्रकार के पशुओं की जाती है।
- 2003-04 में जो पशु गणना हुई थी उसमें 491.36 लाख पशु थे।
- 2007 की पशु गणना के अनुसार- 566,63 लाख पशु पाये गये।
- वर्ष 2007 में वर्ष 2003 की तुलना में राज्य की पशुसम्पदा में 75. 27 लाख (15.32%) की वृद्धि हुई।
- स्वतंत्र राजस्थान में 1951 में प्रथम पशु गणना की गई।
- 2012 में 19वीं पशुगणना के अनुसार 577.32 लाख पशुधन है।
- भारत में कुल पशुधन का लगभग 11.2 प्रतिशत भाग राजस्थान में पाया जाता है।
- राजस्थान में बाड़मेर जिला सबसे अधिक पशुओं की संख्या को रखे हुए प्रथम स्थान पर है।
- 2011 की जनगणना के अनुसार राज्य में प्रति हजार जनसंख्या पर पशुओं की संख्या 826 (2007 की पशुगणना के अनुसार) है।
- भारत विश्व के कुल पशुपालन के लगभग 16% (6वां भाग) के साथ द्वितीय स्थान पर (ब्राजील प्रथम स्थान पर) है।
- देश का सर्वाधिक पशुधन उत्तरप्रदेश में (12.46%) तथा मुर्गियां आंधप्रदेश में (23.84%)।
पशु | 1997 | 2003 संख्या | % | 2003 में 1997 से परिवर्तन | 2007 संख्या | % | %परिवर्तन |
गौवंश | 12141 | 108.54 | 22.08 | -1061 | 124.11 | 21.43 | 14.35 |
भैंस | 97.70 | 104.14 | 21.19 | +6.58 | 115.42 | 19.93 | 10.83 |
भेड़ | 145.85 | 100.54 | 20.46 | -31.06 | 112.84 | 19.49 | 12.23 |
बकरी | 169.71 | 168.09 | 34.21 | -0.96 | 218.82 | 37.79 | 30.18 |
घोड़े | 0.24 | 0.253 | 0.05 | +5.44 | 0.256 | 0.04 | 1.18 |
ऊँट | 6.69 | 4.98 | 1.01 | -25.61 | 4.30 | 0.75 | -13.57 |
गधे व खच्चर | 1.90 | 1.45 | 0.30 | -23.06 | 1.08 | 0.19 | -26.0 |
सूअर | 3.05 | 3.38 | 0.69 | +10.77 | 2.18 | 0.38 | -35.5 |
योग | 546.55 | 491.36 | -10.10 | 5.59 | -19.83 | ||
खरगोश | 0.19 | 0.23 | 22.79 | 0.12 | -49.0 | ||
श्वान | 16.74 | 23.72 | 41.64 | 12.56 | -47.0 | ||
कुक्कुट | 44.06 | 16.92 | 40.52 | 50.12 | -19.1 |
- संख्या में सर्वाधिक वृद्धि- बकरी। दूसरे स्थान पर- गौवंश। तीसरे स्थान पर- भेड़।
- संख्या में सर्वाधिक कमी- खरगोश। दूसरे स्थान पर- कुत्ते। तीसरे स्थान पर- सूअर।
नस्ल (पशु) अधिकतम न्यूनतम
पशु बाड़मेर धौलपुर
गौवंश उदयपुर धौलपुर
भैंस अलवर जैसलमेर
बकरी बाड़मेर धौलपुर
घोड़े बाड़मेर बांसवाड़ा
गधे व खच्चर बाड़मेर टोंक
भेड़ बाड़मेर धौलपुर
ऊँट बाड़मेर धौलपुर
खरगोश उदयपुर –
कुत्ते श्रीगंगानगर –
कुक्कुट अजमेर धौलपुर/बाड़मेर
सूअर भरतपुर बांसवाड़ा
- पशु घनत्व- 169/km2 (2012 की पशुगणना के अनुसार)
- सर्वाधिक पशु घनत्व- डूंगरपुर (309/km2)|
- न्यूनतम पशु घनत्व- जैसलमेर (74/km2)|
- राजस्थान की अर्थव्यवस्था के राजस्व में पशु सम्पदा का योगदान13%। भारत के दुग्ध उत्पादन में राजस्थान का योगदान- 9.17% (तीसरा स्थान)।
- मांस उत्पादन में भारत में राजस्थान का योगदान- 30% (प्रथम स्थान)।
- ऊन उत्पादन में भारत में राजस्थान का योगदान– 40% (प्रथम स्थान)
- दुग्ध उत्पादन में विश्व में भारत का प्रथम स्थान है।
- राजस्थान में सर्वाधिक दुग्ध उत्पादन क्रमशः जयपुर, श्रीगंगानगर व अलवर जिले में होता है एवं बांसवाड़ा जिले में न्यूनतम दुग्ध उत्पादन होता है।
- राजस्थान में प्रति व्यक्ति दुग्ध उपलब्धता 360 ग्राम है, जो राष्ट्रीय औसत से अधिक है।
- राजस्थान राज्य पशुपालक कल्याण बोर्ड का गठन 13 अप्रैल, 2005 को किया गया।
1 गौवंश
- राजस्थान राज्य जौ सेवा आयोग का गठन 23 मार्च, 1995 को किया
गया। - भारत की समस्त गायों का लगभग 8 प्रतिशत भाग राजस्थान में पाया जाता है (देश में 8वां स्थान)।
1 थारपारकर - मूल उत्पति स्थल- मालाणी गांव, गुढ़ा के पास (बाड़मेर)।
- जिले- जैसलमेर, बाड़मेर में मुख्यतः तथा जोधपुर व बीकानेर के कुछ भागों में।
- द्विकाजी नस्ल- गायें अच्छा दूध देती है व बैल अच्छा कार्य करते है।
- पूंछ सर्वाधिक लम्बी होती है आखरी सिरे पर बाल कम होते हैं।
- प्रजनन केन्द्र- चांदन, जैसलमेर (बुल मदर फार्म)।
- थारपारकर गाय विकास एवं प्रजनन केन्द्र- किशनगढ़, अजमेर।
- प्रमुख पशु मेला- मल्लीनाथ मेला, तिलवाड़ा, बाड़मेर।
2 राठी - प्रमुख क्षेत्र- गंगानगर, हनुमानगढ़, बीकानेर ।
- मूल उत्पति- लालसिंधी व साहीवाल के संकरण से राठी नस्ल की उत्पति हुई।
- द्विकाजी नस्ल है। दूध- सर्वोत्तम राजस्थान की कामधेनू कहते है।
- राज्य में गौवंश की सर्वश्रेष्ठ नस्ल ।
- प्रजनन केन्द्र- नौहर, हनुमानगढ़।
3 हरियाणवी - प्रमुख क्षेत्र- चूरू, हनुमानगढ़, सीकर, झुंझुनूं, जयपुर, अलवर (बहरोड़) आदि जिलों में।
- मूल उत्पति- रोहतक, हरियाणा।
- प्रजनन केन्द्र- कुम्हेर, भरतपुर
- प्रमुख पशु मेला- जसवंत मेला,भरतपुर तथा गौगमेड़ी मेला, हनुमानगढ़
- कान सबसे छोटे होते हैं। मस्तक पर एक छोटी हड्डी उभरी रहती है।
- पिछला भाग, अगले भाग से ऊँचा होता है। अगले स्तन पिछले स्तनों से बड़े होते हैं।
4 नागौरी - उत्पति स्थल- नागौर का सुहालक प्रदेश (नागौर के 12 भागों में)।
- इसका बैल सर्वोत्तम होता है।
- रंग सफेद सुर्ख होता है, ज्वार (प्रोटीन बहुलता) के चारे के कारण अधिक ताकतवर होते हैं।
- प्रमुख पशु मेले- तेजाजी पुशमेला, परबतसर, नागौर।
- प्रजनन केन्द्र- नागौर। सर्वाधिक नागौर जिले में।
5 मेवाती (काठी) - प्रमुख क्षेत्र- अलवर, भरतपुर, धौलपुर, करौली।
- उत्पति स्थल- मेवात क्षेत्र।
- प्रजनन केन्द्र- बस्सी, जयपुर।
- शांत स्वभाव का बैल, गर्दन झालरदार (लटकी) हुई होती है।
6 कांकरेज - प्रमुख क्षेत्र- जालौर के नेहड़ क्षेत्र में पाली, सिरोही आदि में।
- उत्पति स्थल- कछ, गुजरात ।
- प्रजनन केन्द्र- चोहटन, बाड़मेरा
- द्विकाजी प्रकार की नस्ल।
7 अजमेरा (गिर, रेंडा) - मूल उत्पति स्थल- गिर-गुजरात।
- जयपुर र प्रमुख क्षेत्र-पाली, अजमेर, राजसमंद।।
- द्वि प्रयोजनिय नस्ल- डेयरी व्यवसाय में सर्वाधिक मांग।
- प्रजनन केन्द्र- डग, झालावाड़।
8 मालवी - मूल उत्पति- मालवा, मध्यप्रदेश।
- प्रमुख क्षेत्र- कोटा, दूंगरपूर, बांसवाड़ा, झालावाड़ के आस-पास।
- प्रजनन केन्द्र- डग, झालावाड़।
- प्रमुख पशुमेले- चंद्रभागा तथा गोमतीसागर पशु मेला, झालावाड़।
9 सांचौरी - मूल उत्पति स्थल- जालौर की सांचौर तहसील में मिलती है।
गाय की विदेशी नस्लें
1 जर्सी- अमेरिका।
- कम उम्र में दूध देने वाली।
- प्रजनन केन्द्र- बस्सी, जयपुर।
2 हॉलस्टीन (फ्रीजियन)- हॉलैण्ड/नीदरलैण्ड। - सर्वाधिक दूध देने वाली विदेशी नस्ल। ।
- पूर्वी राजस्थान में पायी जाती है।
3 रेड डेन- डेनमार्क (दूध में दूसरे स्थान पर)।
4 स्विस ब्राउन – स्विट्जरलैण्ड। - सर्वोत्तम चमड़े हेतु विश्व प्रसिद्ध नस्ल ।
2 भेड़ - सर्वाधिक-बाड़मेर, न्यूनतम- धौलपुर।
- 10 नस्लें उपलब्ध है- नाली, मगरा, पूगल, चोकला, जैसलमेरी मारवाड़ी, सोनाड़ी, देशी या खेरी, मालपुरी तथा बागड़ी।
1 नाली- गंगानगर, हनुमानगढ़, बीकानेर, चूरू, जिलों में। - ऊन- मध्यम श्रेणी की सबसे लम्बी ऊन (12-14 cm)| गलीचे के लिए प्रयोग की जाती है।
- प्रजनन केन्द्र- हनुमानगढ़।
2 पूगल- मूल उत्पति स्थल- पूगल, बीकानेर। - प्रमुख क्षेत्र- बीकानेर, जैसलमेर, नागौर ।
- मध्यम मोटी ऊन गलीचे के लिए प्रयुक्त होती है।
- प्रजनन केन्द्र- बीकानेर।
3 मगरा- मूल उत्पति स्थल- बीकानेर। - इसे चकरी व बीकानेरी चौकला भी कहते हैं।
- जिले- बीकानेर, नागौर, चूरू। ऊन- मध्यम मोटी।
4 जैसलमेरी- उत्पति स्थल- जैसलमेर (बाड़मेर, जोधपुर)। - प्रति भेड़ सर्वाधिक ऊन देने वाली नस्ल है। (3-4kg)
- प्रजनन केन्द्र- पोकरण, जैसलमेर तथा मण्डोर, जोधपुर।
5 मारवाड़ी- जोधपुर संभाग में पाई जाती है। - सर्वाधिक संख्या में यही भेड़ पाई जाती है (50 प्रतिशत)।
- रोग प्रतिरोधक क्षमता सर्वाधिक अतः लम्बी दूरी तक चल सकती है।
- घुमक्कड़ रेवड़ों में होती है। राजस्थान में सर्वाधिक ऊन इसी भेड़ से प्राप्त होती है।
- प्रजनन केन्द्र- जोधपुर।
6 चोकला- इसे छापर भी कहते हैं। शेखावाटी क्षेत्र में मिलती है। इस नस्ल को भारतीय मेरिनो कहा जाता है। - सर्वोत्तम ऊन यही देती है, क्योंकि यह मुलायम है।
- भेड़ की सर्वोत्तम नस्ल।
- प्रजनन केन्द्र-कोडमदेसर, बीकानेर।
7 बांगड़ी- अलवर, भरतपुर । - मुंह काला व शेष शरीर सफेद होता है। इसका रेशा सबसे छोटा होता है।
8 देशी/खेरी- पाली, अजमेर, नागौर। - इसकी ऊन सफेद होती है।
9 मालपुरी- उत्पति स्थल- मालपुरा टोंक। - प्रमुख क्षेत्र-दौसा, जयपुर, सवाई माधोपुर में।
- इसे मांस के लिए काम लेते हैं। ऊन छोटी होती है।
- प्रजनन केन्द्र- जयपुर।
10 सोनाड़ी (चनोथर)- उदयपुर व कोटा संभाग। - कान व पूंछ लम्बे। कान चरते समय जमीन को छूते हैं इस कारण इसे चनोथर नस्ल कहा जाता है। ऊन का रेशा मोटा व साधारण ।
- भेड की द्विप्रयोजनीय नस्ल ।
- प्रजनन केन्द्र- चित्तौड़गढ़।
विदेशी नस्लें
1 रूसी मेरिनो (रूस)- टोंक व जयपुर में सर्वाधिक।
2 डोसेर्ट नस्ल (डेनमार्ग)- टोंक में सर्वाधिक।
3 रेम्बुले (फ्रांस)- टोंक में सर्वाधिक।
4 कोरिडेल नस्ल- चित्तौड़गढ़ में सर्वाधिक।
3 भैंस –
- भैंसों की दृष्टि से राजस्थान का भारत के राज्यों में चौथा स्थान है। | सर्वाधिक भैंसे उत्तर प्रदेश में है।
- सर्वाधिक- अलवर, न्यूनतम- जैसलमेर ।
- प्रमुख नस्लें- मुर्राह, मेहसाना, सूरती, जाफराबादी, नागपुरी भदावरी, भूरा, जमनापुरी, राबी, रथ, पण्डरपुरी है।
1 मुर्राह (खुंडी)- राजस्थान में सर्वाधिक पाई जाने वाली भैंस । - मूल उत्पति स्थल-मांटगुमरी जिला (पंजाब-पाकिस्तान)।
- दूध देने में सर्वोत्तम।
- प्रमुख क्षेत्र- अलवर, जयपुर, भरतपुर, दौसा, नागौर ।
- प्रजनन केन्द्र- कुम्हेर भरतपुर।
- प्रमुख पशु मेला- बहरोड़, अलवर।
2 मेहसाना- जालौर, सिरोही। - मूलतः गुजरात की प्रमुख नस्ल ।
3 सूरती- सिरोही, उदयपुर। - मूलतः गुजरात की प्रमुख नस्ल।
4 जाफरावादी- डूंगरपुर, बांसवाड़ा, उदयपुर। - मूल उत्पति स्थल- काठियावाड़, गुजरात।
- भैंस की सर्वाधिक ताकतवर नस्ल।
- प्रमुख क्षेत्र- राज्य का दक्षिणी-पश्चिमी क्षेत्र (गुजरात सीमा)।
5 नागपुरी- सींग पतले व लम्बे होते है। - कोटा, बारां, झालावाड़ में।
6 भदावरी (बदावरी)- मूलतः भदोही (उत्तर प्रदेश) की। - भरतपुर, धौलपुर में।
- इस नस्ल के दुध में सर्वाधिक वसा पाई जाती है।
- नागौर के एक गांव ‘बासनी’ का ‘नूर मोहम्मद मारवाड़ी’ मुम्बई मे भैंसों के लिए प्रसिद्ध है। इसे अभी पुरस्कृत किया गया है।
4 बकरी वंश
- राज्य में सर्वाधिक संख्या बकरीयों की ही पाई जाती है।
- राजस्थान सम्पूर्ण देश बकरी सम्पदा में प्रथम स्थान पर है।
- सर्वाधिक- बाड़मेर, न्यूनतम- धौलपुर।
प्रमुख नस्लें
1 झखराणा (जखराना) – मूलतः उत्पति गांव- झखराणा, अलवर - बकरी की सर्वश्रेष्ठ नस्ल। सर्वाधिक दूध देने वाली नस्ल।
- विशेषताएं- दूध के लिए प्रसिद्ध, कान बहुत लम्बे, जन्म के डेढ़ माह बाद काट देते हैं।
2 परबतसरी- मूल स्थल- परबतसर, नागौर। - बकरी प्रजनन एवं चारा अनुसंधान केन्द्र रामसर (अजमेर) में स्विट्जरलैण्ड की नस्ल बीटल व भारतीय नस्ल सिरोही के संकरण से इसे उत्पन्न किया गया है। दूध के लिए अच्छी है।
- प्रमुख क्षेत्र- नागौर, अजमेर, जयपुर, टोंक।
3 मारवाड़ी- राज्य की सबसे प्राचीन बकरी नस्ल । - सबसे अधिक क्षेत्र में सर्वाधिक संख्या में पाई जाती है।
- द्विप्रयोजनीय नस्ल- यह मांस व दूध दोनों के लिए उपयुक्त है।
- प्रमुख क्षेत्र- जोधपुर, बाड़मेर, जालौर, पाली इत्यादि जिलों में पाई जाती है।
4 सिरोही- सिरोही व उदयपुर में। मांस के लिए उपयुक्त।
5 जमनापरी- साधारण नस्ल। हाड़ोती क्षेत्र में पाई जाती है। - अच्छे मांस के लिए प्रसिद्ध ।
6 बारबरी- भरतपुर संभाग, दूध के लिए उपयुक्त । बकरी की सबसे सुन्दर नस्ल । सर्वाधिक प्रजनन क्षमता वाली नस्ल।
7 शेखावाटी- CAZRI- जोधपुर के द्वारा विकसित नस्ल । - बिना सींग वाली बकरी की नस्ल । दूध अच्छा देती है।
- प्रमुख क्षेत्र- सीकर, झुंझुनूं, चूरू ।
- नागौर का ‘वरूण’ गांव बकरियों के लिए प्रसिद्ध ।
- बकरी के मांस को ‘चेवण’ कहते हैं।
- उपनाम- गरीब की गाय, राजस्थान का चलता फिरता फ्रिज ।
5 ऊँट वंश
- राजस्थान का सम्पूर्ण भारत में एकाधिकार।
- सर्वाधिक- बाड़मेर, न्यूनतम-धौलपुर।
प्रमुख नस्लें
1 जैसलमेरी- सवारी व मरूस्थल में तेज दोड़ने के लिए प्रसिद्ध । - ऊँट की सर्वोत्तम नस्ल ।
- प्रमुख क्षेत्र- जैसलमेर, बाड़मेर, जोधपुर व बीकानेर।
2 बीकानेरी- भार वहन के लिए प्रसिद्ध । - ऊँट की सबसे भारी नस्ल।
- प्रमुख क्षेत्र- बीकानेर, गंगानगर, हनुमानगढ़ व नागौर।
- राज्य में सर्वाधिक पाई जाने वाली ऊँट नस्ल (50 प्रतिशत)।
3 अलवरी- कद छोटा होता है।
4 कच्छी- साधारण।
5 नाचना-नाचना गांव (जैसलमेर)- सवारी व दौड़ के लिए प्रसिद्ध । - भारतीय सेना द्वारा प्रयोग की जाने वाली नस्ल ।
6 गोमठ- गोमठ गांव (फलौदी) जोधपुर- सवारी के लिए सर्वोत्तम नस्ल।
7 सिंधी- साधारण नस्ल।
6 घोड़ा (अश्व) वंश
- सर्वाधिक- बाड़मेर, न्यूनतम- बांसवाड़ा।
प्रमुख नस्लें
1 मालाणी- मूल उत्पति स्थल- मालाणी गांव (बाड़मेर)। - घोड़े की सर्वोत्तम नस्ल ।
- मिश्रित नस्ल- (काठियावाड़ी व सिंधी का मिश्रण)
- कलाबाजियों के लिए प्रसिद्ध नस्ल ।
2 काठियावाड़ी-मूल उत्पति- काठियावाड़, गुजरात। - प्रमुख क्षेत्र- गुजरात के सीमावर्ती जिले।
3 मारवाड़ी- तेज दोड़ने के लिए प्रसिद्ध नस्ल । - प्रमुख क्षेत्र- बीकानेर, जोधपुर, जालौर।
- एक रंग का घोड़ा अच्छा नहीं माना जाता है।
- कुमेत (लाल) रंग का घोड़ा सबसे अच्छा माना जाता है, जो पंचकल्याण (पांच धब्बे) होता है। चार पैरों पर व एक माथे पर।
- आलम जी का धोरा, गुढ़ामलानी, बाड़मेर को घोड़ों के तीर्थ स्थल रूप में जाना जाता है।
- यहां गर्भवती घोड़ियों की जात दिलाते हैं। अरबी लोग इसे राधरा कहते थे।
- यह स्थान तुगलक काल से प्रसिद्ध है।
7 खच्चर वंश - नर गधे व मादा घोड़ी के संकरण से खच्चर पैदा होते है।
- सर्वाधिक- अलवर, न्यूनतम- सिरोही।
8 गधा वंश - सर्वाधिक-बाड़मेर, न्यूनतम-टोंक।
9 कुक्कुट वंश - सर्वाधिक-अजमेर, न्यूनतम- धौलपुर ।
- सर्वोत्तम नस्ल व विदेशी नस्ल की मुर्गीयां सर्वाधिक अजमेर जिले में मिलती है।
- स्वदेशी नस्ल की मुर्गीया सर्वाधिक- बांसवाड़ा में।
- प्रमुख नस्लें- स्वदेशी नस्ल- बरसा, ट्रेनी, असील। विदेशी नस्लव्हाईट लेग होन।
10 सुअर वंश
सर्वाधिक- भरतपुर, न्यूनतम-सिरोही।
मत्स्य पालन - यह विभाग पृथक रूप से 1962 में खोला गया।
- उदयपुर में मत्स्य प्रशिक्षण विद्यालय स्थित है।
- राष्ट्रीय मत्स्य बीज उत्पादन फार्म कासिमपुरा (कोटा),भीमपुर (बांसवाड़ा), रावतभाटा, (चित्तौड़गढ़) में कार्यरत है।
- मत्स्य प्रजातियों को संरक्षण देने के लिए उदयपुर के बड़ी तालाब को प्रदेश का पहला मत्स्य अभ्यारण्य बनाया जायेगा।
- प्रमुख नस्लें- देशी नस्लें- मृगल, कतला, रोहु । विदेशी नस्लें- ग्रास कोर्य, सिल्वर कोर्य, कॉमन कोर्य ।
पशु प्रजनन व अनुसंधान केन्द्र
केन्द्र सरकार
- पशुमाता उन्मूलन योजना- पशुओं में संक्रामक रोकथाम हेतु 1958-59 में यह योजना राजस्थान में शुरू की गई।
- केन्द्रीय पशु प्रजनन फार्म- सूरतगढ़ (गंगानगर)– 1956 में।
- केन्द्रीय भेड़ प्रजनन व ऊन अनुसंधान केन्द्र- अविकानगर (टोंक)।
- इसका एक उपकेन्द्र है मरू क्षेत्रीय अनुसंधान केन्द्र, बीछवाल (बीकानेर)।
- केन्द्रीय ऊँट प्रजनन व अनुसंधान केन्द्र- जोडबीड़, शिवबाड़ी (बीकानेर)।
- इसकी स्थापना 5 जुलाई, 1984 को हुई।
- संचालन- भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR)|
- यहीं पर भारत की प्रथम केमल मिल्क डेयरी स्थापित की गई है।
- पश्चिम क्षेत्रीय बकरी अनुसंधान केन्द्र- अविकानगर (टोंक)। स्थापना 1986 में।
राज्य सरकार - पशुपालन विभाग के द्वारा स्थापित अनुसंधान केन्द्र-
- बकरी प्रजनन एवं चारा उत्पादन (अनुसंधान) केन्द्र- रामसर (अजमेर) स्थापना- 1981 में स्विट्जरलैण्ड के सहयोग से।
- सूअर प्रजनन एवं अनुसंधान केन्द्र- अलवर में। दूसरा नया प्रस्तावित अजमेर में।
- अश्व प्रजनन फार्म- राजस्थान में 10 फार्म है।
1 गांधीनगर (जयपुर), 2 बिलाड़ा (जोधपुर), 3 बाली (पाली), 4 सिवाणा (बाड़मेर), 5 जालौर, 6 सिरोही, 7 उदयपुर, 8 चित्तौड़गढ़ 9 बीकानेर, 10 मनोहरथाना, झालावाड़। I - चेतक नस्ल के वंशज बीकानेर में तैयार किये जाते है।
- गौसंवर्द्धन हेतु दो सीमन बैंक (हिमीकृत वीर्य बैंक)– बस्सी (जयपुर) व नारवा खिंचियान (जोधपुर)।
- बीकानेर कृषि विश्वविद्यालय- स्वामी केशवानन्द कृषि विश्वविद्यालय (बदला हुआ नाम) द्वारा खोले गये अनुसंधान केन्द्र।
1 गोवत्स परिपालन केन्द्र- नोहर (हनुमानगढ़)- राठी नस्ल के लिए।
2 Bull Mother फार्म- चांदन गांव (जैसलमेर)। - महाराणा प्रताप कृषि एवं तकनीकी विश्वविद्यालय (उदयपुर) के द्वारा
स्थापित केन्द्र- - भैंस प्रजनन एवं अनुसंधान केन्द्र- वल्लभनगर (उदयपुर)
- भेड़ व ऊन विभाग (पशुपालन विभाग-1957)- भेड़ व ऊन विभाग अलग से 1963 में खोला गया तथा 2000-01 में इसका विलय पशुपालन विभाग में कर दिया गया। भेड़ व ऊन विभाग द्वारा राज्य में 4 भेड़ प्रजनन फार्म खोले गये है-
1 फतेहपुर (सीकर) 2 बाकलिया, नागौर 3 जयपुर, 4 चित्तौड़गढ़ - 2001 में जयपुर व चित्तौड़गढ़ दोनों को बन्द कर दिया गया।
- भेड़ व ऊन प्रशिक्षण संस्थान- जयपुर (1963)।
- एशिया की सबसे बड़ी ऊन मण्डी- बीकानेर में।
- केन्द्रीय ऊन विकास बोर्ड- जोधपुर (1987) में।
- केन्द्रीय ऊन विश्लेषण प्रयोगशाला- बीकानेर में।
- राजस्थान पशुधन विकास बोर्ड (Rajasthan Livestock Development Board- RLDB) – जयपुर । इसकी स्थापना 25 मार्च, 1998 में की गई।
- राजस्थान पशुपालन विकास बोर्ड (जयपुर) 13 अप्रैल, 2005 ।
- राजस्थान की सबसे बड़ी गौशाला– पथमेड़ा (सांचौर-जालौर)।
- राजस्थान गौशाला संघ का मुख्यालय- पिंजरपौल गौशाला, सांगानेर-जयपुर।
- गौसदन नामक गौ शालाएं- दौसा व कोडमदेसर में।
- पशु पोषाहार संस्थान- जामडोली (जयपुर)।
- पशु पोषाहार संयंत्र (RCDF)- द्वारा जोधपुर, लालगढ़ (बीकानेर), नदबई (भरतपुर), तबीजी (अजमेर) तथा झोटवाड़ा, जयपुर में स्थापित है।
- वृहद चारा बीज उत्पादन फार्म- केन्द्र सरकार द्वारा मोहनगढ़ (जैसलमेर) में स्थापित |
- गोपाल योजना- संचालन- 1989-90 राज्य सरकार द्वारा।
- राज्य के 10 जिलों में संचालित।
- उद्देश्य- शिक्षित नवयुवकों को प्रशिक्षित कर पशुधन विकास में सहायता लेना।
- प्रतिमाह भत्ता- प्रथम वर्ष 600 रु. प्रतिमाह, द्वितीय वर्ष 400 रु. प्रतिमाह।
- कामधेनु योजना- संचालन 1997-98 |
- उद्देश्य– गौशालाओं को उन्नत नस्ल के दुधारू पशुओं के प्रजनन केन्द्र बनाना।
- गाय बीमा योजना- कामधेनु बीमा योजना- 1997-98 |
- गोपालक बीमा योजना- 2005-06 |
- गोरक्षक बीमा योजना- 2005-06
- बलेखण सीकर में राज्य का सबसे बड़ा बकरी पालन फार्म स्थापित किया गया है।
- राज्य में भेड़ प्रशिक्षण कार्यक्रम 19 जिलों में चलाया जा रहा है।
- ऊँट को रेगिस्तान का जहाज कहते है।
- ऊँट का छोटा बच्चा टोरड़ी कहलाता है।
- ऊँट में तीवर्षा व सर्रा रोग पाया जाता है।
- राष्ट्रीय मुर्गी बीज उत्पादन फार्म भीमपुर, बांसवाड़ा में स्थापित किया गया है।
- राज्य में 4 जिला स्तरीय कुकुट शालाएं स्थापित की गई है- अलवर,टोंक, कोटा व जोधपुर।
- राज्य में प्रतिव्यक्ति दुध उपलब्धता 252 ग्राम है।
- राज्य का एकमात्र पक्षी चिकित्सालय जोहरी बाजार जयपुर में।
राजस्थान के प्रमुख पशु मेले
1 मल्लीनाथ पशु मेला- तिलवाड़ा (बाड़मेर) में वि.स. 1431 को प्रारंभ । लुनी नदी के किनारे स्थित ।
- सबसे प्राचीन मेला, राजस्थान सरकार के पशु पालन विभाग द्वारा पहली बार 1957 में राज्य स्तरीय दर्जा । यह चैत्र कृष्णा 11 से चैत्र शुक्ला 11 तक।
2 बलदेव पशु मेला- बलदेव राम मिर्धा की स्मृति में। मेड़ता सिटी (नागौर) में 1947 से प्रारंभ। - राज्य सरकार द्वारा 1957 में राज्य स्तरीय दर्जा ।
- तिथि-चैत्र शुक्ला प्रतिपदा से चैत्र पूर्णिमा (15 दिन) दिन।
3 गोमती सागर पशुमेला- झालरापाटन में, 1959 से राज्य सरकार द्वारा प्रारंभ। - तिथि- वैशाख 13 से ज्येष्ठ कृष्ण 5 तक (8 दिन)।
- हाड़ौती प्रसिद्ध पशु मेला।
4 तेजाजी पशु मेला- आय की दृष्टि से राज्य का सबसे बड़ा मेला - परबतसर (नागौर) में वि. स. 1791 में महाराजा अजीत सिंह द्वारा प्रारंभ
- तिथि- श्रावण पूर्णिमा से भाद्रपद पूर्णिमा (1 माह) तक।
5 जसवंत पशु प्रदर्शिनी- भरतपुर में 1958 से प्रारंभ। - तिथि-आश्विन शुक्ला 5 से आश्विन शुक्ला 14 तक।
6 पुष्कर पशु मेला (कार्तिक पशु मेला)- अंतर्राष्ट्रीय स्तर का मेला। - राजस्थान का रंगीन मेला।
- अजमेर में 1963 से प्रारंभ।
- तिथि- कार्तिक शुक्ला 8 से मार्ग शीर्ष कृष्णा द्वितीया तक (नवम्बर में)।
7 चन्द्रभागा पशु मेला- झालरापाटन (झालावाड़)में 1958 से प्रारंभ । - तिथि-कार्तिक शुक्ला 11 से मार्ग शीर्ष कृष्णा 5 तक।
8 रामदेव पशु मेला- महाराजा उम्मेदसिंह ने 1958 में प्रारंभ किया | - यह नागौर (मानासर गांव) में।
- तिथि- माघ शुक्ला 1 से माघ पूर्णिमा (15 दिन) तक।
9 महाशिव रात्रि पशु मेला (माल मेला)- करौली में 1959 से प्रारंभ | - तिथि- फाल्गुन कृष्ण 5 से फाल्गुन कृष्णा 14 तक लगता है।
10 गधो का मेला (खलकानी माता का मेला)- गधों का सबसे बड़ा (रियासत कालीन मेला)। यह भावगढ़ बन्ध्या लुणियावास, सांगानेर (जयपुर) में 1993 से राज्य सरकार द्वारा प्रारंभ । आ. शु. 7 से 11 तक।
पशु विकास से संबंधित योजनाए- - गोपाल योजना- पशु नस्ल सुधार के लिए 2 अक्टूबर, 1990 से 10 जिलों में प्रारंभ की थी।
- चयनित ग्रामीण युवक जो दसवीं पास हो गोपाल कहलाता है।
- कामधेनु योजना- गौशालाओं को उन्नत नस्ल के पशु उपलब्ध कराने के लिए व कृत्रिम गर्भाधान के लिए। यह 1997-98 में, सभी गौशालाओं में प्रारंभ।
- राष्ट्रीय गाय भैंस परियोजना- गाय-भैंस में कृत्रिम गर्भाधान द्वारा नस्ल सुधार के लिए। यह 2001 में प्रारंभ। पहले 20 जिलों में अब सभी जिलों में चल रही है। दस साल के लिए चलाई गई है।
- वेटनरी कॉलेज- पहला सरकारी वेटनरी कॉलेज 1954 में बीकानेर में खोला गया तथा निजी क्षेत्र का पहला वेटनरी कॉलेज अपोलो कॉलेज जयपुर में 2002 में प्रारंभ।
दुग्ध उत्पादन (डेयरी)
- 1970-71 में डेयरी कार्यक्रम वर्गीज कुरियन आणन्द/आनन्द (गुजरात) नामक स्थान पर अमूल (Amul) डेयरी की स्थापना से प्रारंभ किया गया।
- इसे श्वेत क्रांति की शुरूआत कहा जाता है। वर्गीज कुरियन को श्वेत क्रांति का जनक कहा जाता है।
- इस कार्यक्रम की सफलता को देखकर राजस्थान सहित 10 राज्यों में ‘Operation Flood’ शुरू किया गया। इसके तीन चरण थे-
- 1971 से 1978 तक
- 1978 से 1986
- 1986 से 1994 तक।
- भारत विश्व में दुग्ध उत्पादन में प्रथम है।
- भारत में सर्वाधिक दुग्ध उत्पादन वाले तीन राज्य- उत्तरप्रदेश, पंजाब तथा राजस्थान।
- राजस्थान में सर्वाधिक दुग्ध उत्पादन वाले तीन जिले- जयपुर, अलवर तथा श्रीगंगानगर।
कुल पशुधन भेड – 15.73 भैंस – 22.48
गौवंश – 23.08 बकरी – 37.53
गौवंश – सर्वाधिक – उदयपुर, बीकानेर, जोधपुर
न्यूनतम – धौलपुर, करौली, सवाई माधोपुर - राजस्थान में सबसे पहले 1975 में राजस्थान डेयरी विकास निगम की स्थापना की गई फिर इसे 1977 में RCDF में बदल दिया गया।
- यह त्रिस्तरीय व्यवस्था के आधार पर दुग्ध उत्पादन करती है RCDF शीर्ष संस्था तथा जिला डेयरी संघ- 19 (16+3)| नागौर, बांसवाड़ा तथा बाड़मेर (तीन नए)।
- दो नये डेयरी संघ प्रस्तावित- टोंक व चित्तौड़गढ़।
दुग्ध उत्पादन सहकारी समितियां-
- पहली महिला डेयरी भोजूसर (बीकानेर) में 1992 में स्थापित ।
- राजस्थान की सबसे पुरानी डेयरी- पद्मा डेयरी, अजमेर ।
- वर्तमान की चार प्रमुख डेयरी- सरस (जयपुर), उरमूल (बीकानेर), वरमूल (जोधपुर) तथा गंगमूल (श्रीगंगानगर) में।
- सबसे बड़ी डेयरी- रानीवाड़ा (जालौर) में 1986 में स्थापित। ।
- प्रस्तावित पहली मेट्रो डेयरी जिसमें 1 लाख लीटर/दिन की उत्पादन क्षमता होगी- बस्सी (जयपुर)
- सात दुग्ध पाउडर संयंत्र- हनुमानगढ़, बीकानेर, जयपुर, अलवर अजमेर, रानीवाड़ा (जालौर) तथा जोधपुर में।
- बतख- चूजा उत्पादन केन्द्र- बांसवाड़ा में।

- राज्य में पशु संसाधन (19 वीं पशु गणना – 2012)
- 19 वी पशु गणना – 2012
- प्रथम स्थान – उत्तरप्रदेश
- द्वितीय स्थान – राजस्थान देश का 11.27%
- बाडमेर – 53.66 लाख
- धोलपुर – 5.2 लाख
- कुल पशु सम्पदा – 5.77 करोड़, कुक्कुट – 80.24 लाख 2007 – 5.66 अन्तर – 0.11 करोड (10.69 लाख)
- वृद्धि दर्ज – 1.89 प्रतिशत
- पशु घनत्व 169 प्रति वर्ग किमी2.
- 2007 – 166 प्रति वर्ग किमी2.
- अन्तर – +3 अंको
- सर्वाधिक पशु घनत्व – दौसा व राजसमन्द – 292
- न्यूनतम पशु धनत्व – जैसलमेर – 74
- 12 में पशु गणना में परिवर्तन
- देश के कुल दुग्ध उत्पादन का
- दुध उत्पादन का
- मांस उत्पादन का
- सकल घरेलू उत्पाद का
2012 में पशु गणना में परिवर्तन
देश में स्थान
ऊँट – प्रथम गधे – प्रथम
बकरी – प्रथम भैस – दुसरा
भेड – तीसरा घोडे – चौथा
गौवंश – पांचवा ‘मूर्गी – अठारवा - सर्वाधिक घौड़े – बीकानेर
न्यूनतम – दूंगरपुर - राजस्थान अश्व अनुसंधान केन्द्र (1989) बीकानेर
- मालाणी – सिवाणा व गुढामलानी
- काढियावाडी – घुडदोड़ हेतू उपयुक्त
- मारवाडी नस्ल – बीकानेर जोधपुर जालौर
खच्चर - सर्वाधिक अलवर हनुमानगढ,
- न्यूनतम टोंक, डूंगरपुर , बॉसवाडा
- गधे देश में प्रथम स्थान, सर्वाधिक बाडमेर
- न्यूनतम टोंक प्रतापगढ़, लुनियावास गधो का मेला खलरवाणी माता
ऊँट | 4,21,836 | -32,57,13 | =-96,123 | -22.7 |
गधे | 1,02,130 | -81,468 | =-20662 | -20.23 |
भेंड | 11,189,855 | -90,79,702 | =-21,10,153 | -18.8 |
खच्चर | 886 | -3375 | 2489 | +280.9 |
घोडे | 25,438 | 37776 | =12,338 | +48.5 |
भैंस | 1,10,91,974 | -1,29,76,095 | =18,84,121 | +16.90 |
गौवंश | 1,21,195,12 | 1,33,24,462 | =12,04,950 | +9.9 |
बकरी | 2,15,02,996 | -21,6,65,939 | =162943 | +0.7 |

भैंड–
- सर्वाधिक – बाडमेर
- न्यूनतम – बांसवाडा
- भेड ऊन विभाग राज सरकार – 1963
- केन्द्रीय दूध विकास बोर्ड – 1987 जोधपुर
- भेड़ व ऊन प्रशिक्षण संस्थान – जयपुर
- केन्द्रीय ऊन विश्लेषण प्रयोगशाला – बीकानेर
- केन्द्रीय ऊन व भेड़ अनुसंधान केन्द्र(CWSRI) – 1962 मालपुरा ।
- बकरी – 1989
- दुध मण्डी – बीकानेर
- अविका कवच योजना, अविका क्रेडिट कार्ड योजना
- अविका पालक जीवन रक्षक योजना
- 2009 में भेड़ व बकरी प्रजनन नीति लागू की गई।

ऊँट – देश के 81.37% ऊँट राजस्थान
- 22.79% ऋणात्मक वृद्धि दर्जा
- सर्वाधिक – जैसलमेर, बीकानेर
- न्यूनतम – प्रतापगढ़, झालावाड
- लोक देवता – पाबूजी
- गले का आभूषण गोरबन्ध
- ऊटों का मेला – पुष्कर
- ऊँटों महोत्सव – बीकानेर
- प्रसिद्ध ऊँट – नॉचना
- ऊँट का बच्चा – टोरड्यों
- ऊँट पालक जाति – राइका/रेबारी
- राष्ट्र अनुंसधान केन्द्र जोहड़ बीकानेर – 5 जुलाई प्रथम केमिकल मिल्क डेयरी

बकरी
- बकरी सर्वाधिक बाडमेर, जोधपुर, जैसलमेर
- न्यूनतम धौलपुर, कोटा, भरतपुर
- देश की कुल बकरियो का (16.03%)
- के. बकरी अनुसंधान व प्रजनन केन्द्र – अविकानगर-1989
- बकरी प्रजनन फार्म व चारा अनुसंधान केन्द्र रामसर – 1981. 82 (स्विट्जरलैण्ड)
- वरूण गांव – नागौर – बकरियों के लिए प्रसिद्ध
- बलेरवण सीकर – बकरी फार्म
- वेवणी – बकरी मांस
