ALOHA एक कंप्यूटर नेटवर्किंग सिस्टम है जिसे सन 1970 के दशक में Norman Abramson तथा उनके साथियों ने हवाई {hawaii} विश्वविध्यालय में विकसित किया था। इसको रेडियो {वायरलेस लोकल एरिया नेटवर्क} के लिए निर्मित किया गया था परन्तु प्रयोग किसी भी shared सिस्टम में कर सकते है। ALOHA यह दिखाता है कि किस प्रकार बहुत सारें सिस्टम्स एक मीडियम के साथ बिना किसी collision(टकराव) के access करते है।
यह प्रोटोकॉल प्रत्येक सिस्टम को एक frame (फ्रेम) भेजता है परन्तु जब एक collision होता है तो फ्रेम को कुछ समय के लिए इन्तजार करना पड़ता है और फ्रेम दुबारा भेजा जाता है। यह प्रक्रिया तब तक चलती है जब तक सभी frame भेज नही दिए जाते। इस कारण इसमें collision की प्रायिकता बहुत अधिक है। तथा इस कारण ALOHA प्रोटोकॉल का throughput (प्रवाह क्षमता) बहुत ही कम केवल 18% है।
ALOHA में collision इसलिए होता है क्योंकि यह एक मल्टीपल एक्सेस कम्युनिकेशन सिस्टम है तथा जब दो या दो से अधिक सिस्टम एक ही समय में एक चैनल में ट्रांसमिट करने का प्रयास करते है तो collision (टकराव) होता है।
Types of aloha (अलोहा के प्रकार)
ALOHA के throughput (प्रवाह क्षमता) को बढाने के लिए सन् 1972 में रोबर्ट ने इसके तीन प्रकार विकसित किये जो निम्नलिखित है:-
- Pure
- Slotted
- reservation
Pure aloha
यह बहुत ही सरल प्रोटोकॉल है अर्थात इसमें जब भी सिस्टम के पास डेटा भेजने के लिए होता है यह फ्रेम को ट्रांसमिट कर देता है इसमें समय continuous होता है। जब भी दो सिस्टम फ्रेम को ट्रांसमिट करते है तो collision होता है और frames नष्ट हो जाते है।
Pure अलोहा में, यदि रिसीवर कोई acknowledgement नहीं देता है तो यह समझ लिया जाता है कि फ्रेम नष्ट हो गये है और फ्रेम्स को दुबारा ट्रांसमिट किया जाता है। Pure अलोहा का संवेदनशील समय (vulnerable time) 2x Tfr है।
इसका सफल ट्रांसमिशन रेट S = G * exp(-2G) है। इसका अधिकतम throughput (प्रवाह क्षमता) 18% है. (जब G = ½) pure aloha की सबसे बड़ी कमी यह है कि इसमें collision के chances बहुत अधिक होते है।

Slotted aloha
Slotted अलोहा को pure अलोहा की कार्यक्षमता को बेहतर बनाने के लिए विकसित किया गया था क्योंकि pure aloha में collision की सम्भावना बहुत ही अधिक होती है। इस aloha में systems के समय को slots (स्लॉट्स) में विभाजित कर दिया जाता है जिससे सिस्टम एक slot में केवल एक ही frame भेज सकता है और यह frame केवल slot के शुरूआत में ही भेजा जा सकता है. यदि कोई सिस्टम slot के शुरुआत में frame नहीं भेज पाता है तो उसे अगले slot के शुरू होने का इन्तजार करना पड़ता है।
इस अलोहा में भी collision (टकराव) की सम्भावना होती है यदि दो सिस्टम एक time slot के शुरुआत में frame को ट्रांसमीट करने की कोशिश करते है तो. परन्तु यह pure aloha से बेहतर है क्योंकि इसमें collision की सम्भावना कम है।
slotted अलोहा का संवेदनशील समय (vulnerable time) Tfr है। इसका औसत सफल ट्रांसमिशन रेट S = G * exp(-G) है। इसका अधिकतम throughput (प्रवाह क्षमता) 37% है, जब (G=1)।

Reservation ALOHA (रिजर्वेशन अलोहा क्या है?)
reservation ALOHA को R-ALOHA भी कहते है यह वायरलेस ट्रांसमिशन के लिए एक channel access method है जिसके द्वारा uncoordinated users एक common ट्रांसमिशन रिसोर्स को share कर सकते है।
R-ALOHA जो है वह slotted aloha तथा TDM protocols का एक combination होता है। इसका प्रयोग ज्यादातर multiple access techniques को manage करने के लिए किया जाता है। reservation अलोहा का मुख्य मकसद slotted अलोहा की efficiency (दक्षता) को बेहतर बनाना है। यह ट्रांसमिशन में होने वाली देरी (delay) को कम करता है तथा utilization के स्तर को बढाता है। slotted aloha का utilization 20 से 36% तक होता है जबकि reservation aloha का 80% तक होता है।

सिस्टम में operations के दो modes होते है- unreserved mode तथा reserved mode। चित्र के अनुसार unreserved mode में, रिजर्वेशन के लिए time axis (अक्ष) को समान length के subslots में विभाजित किया गया है। users जो है वह slotted aloha का प्रयोग करके subslots में data को send तथा transmit करने की request करते है।
यह request एक slot के लिए भी हो सकती है या बहुत सारें slots के लिए भी हो सकती है। जब request को ट्रांसमिट कर दिया जाता है तो यूजर acknowledgement (प्राप्ति सूचना) का wait करते है। जब user को acknowledgement मिल जाता है वह acknowledgement के अनुसार अपने data packet को locate कर सकता है। इसके बाद सिस्टम reserved mode में switch हो जाता है।
reserved mode में,
reserved mode में, time axis को fixed length के frames में विभाजित किया जाता है। प्रत्येक frame के पास समान length की M+1 slots होती है। जो पहला M slot होता है उसे message transmission के लिए प्रयोग किया जाता है। और जो last slot होती है उसे reservation के लिए R subslots में विभाजित कर दिया जाता है।
इसके बाद user अपने packets को message slots में reservation कर लेता है। जब कोई भी reservation नहीं हो रहा होता है तब system वापस unreserved mode में चला जाता है।