राजस्थान में कृषि व आर्थिक विकास
- राजस्थान में अर्थव्यवस्था का मूल आधार कृषि है।
- 70% प्रतिशत लोग कृषि कार्य में सलंग्न है।
- कृषि को ‘मानसून का जुआ’ कहते हैं।
- कृषि विकास में सबसे बड़ी बाधा- वर्षा की अनिश्चितता, अनियमितता तथा सिंचाई सुविधाओं की अपर्याप्तता।
- राजस्थान में भारत का कुल कृषित क्षेत्रफल 11% है।
- सर्वाधिक कृषित क्षेत्रफल बाड़मेर व न्यूनतम कृषित क्षेत्रफल राजसमंदर जिले में है।
- अंतर्राष्ट्रीय उद्यानिकी नवाचार प्रशिक्षण केन्द्र- जयपुर (नीदरलैण्ड की सहायता से)
- सिंचित क्षेत्रफल- सर्वाधिक- गंगानगर (87%) हनुमानगढ़-80% न्यूनतम- चूरू (5%)
- राज्य की सम्पूर्ण आय का 52% है।
- भूमि का गैर कृषि कार्यों में उपयोग- सर्वाधिक- बांसवाड़ा, न्यूनतम- गंगानगर
- स्थायी व चारागृह गोचर भूमि- सर्वाधिक– बाड़मेर, न्यूनतम- गंगानगर
- कृषि क्षेत्रफल का पशुपालन सहित राज्य के सकल घरेलू उत्पाद में 24 से 30% हिस्सा है।
कृषि पद्धतियां
1 शुष्क खेती- बारानी कृषि-
- 50 cm. से कम वर्षा वाले स्थानों पर।
- बाजरा सर्वाधिक उत्तम फसल हैं।
2 सिंचाई द्वारा खेती- - 50-100 cm. तक वर्षा वाले स्थानों पर। |
- उपयुक्त क्षेत्र- गंगानगर व हनुमानगढ़
3 आर्द्र खेती- - 100 cm. से अधिक वर्षा वाले स्थानों पर ।
- मिट्टी- कांप व काली मिट्टी। |
- उपयुक्त क्षेत्र- झालावाड़, बारां, कोटा।
4 झूमिंग प्रणाली- - उपयुक्त क्षेत्र- दक्षिणी पूर्वी क्षेत्र (डूंगरपुर, बांसवाड़ा, उदयपुर)
- आदिवासी लोगों द्वारा की जाने वाली स्थानांतरित कृषि को चिमाता/वालरा कहा जाता है।
कृषि के प्रकार
1 समोच्च कृषि- इसमें सम्पूर्ण कृषि कार्य पहाड़ी क्षेत्रों में (अरावली क्षेत्र) व फसलों की बुवाई ढाल के विपरीत की जाती है ताकि मिट्टी के अपरदन को रोका जा सके। दक्षिणी पूर्वी क्षेत्र उपयुक्त है।
2 पट्टीदार खेती- ढालू भूमि अपरदन करने वाली फसलों (मूंग, उड़द) को एक के बाद एक पट्टियों में ढाल के विपरीत बोया जाता है ताकि मृदा क्षरण को कम किया जा सके।
3 कृषि वानिकी- नहरी क्षेत्रों के समीप व आर्द्र क्षेत्रों में कृषि के साथ-साथ फसल चक्र में पेड़ों, बागवानी व झाड़ियों की खेती का फसल व चारा उत्पादित किया जाना कृषि वानिकी है।
4 रिले क्रॉपिंग- आधुनिक तकनीकों से एक वर्ष में एक ही खेत से कृषक चार फसलें बोते हैं। क्षेत्र- उत्तरी-पूर्वी व दक्षिणी।
5 मिश्रित कृषि- कृषि के साथ-साथ पशुपालन करना मिश्रित कृषि है |
- प्रमुख फसलें- राज्य की फसलों के मुख्य तीन प्रकार-
1 खरीफ की फसल- जिसे स्यालु या सावणु भी कहते हैं। - ये फसलें जून-जुलाई में बोई जाती है तथा सितम्बर-अक्टूबर में काटी जाती है।
- फसलें- चावल, ज्वार, बाजरा, मक्का, अरहर, उड़द, मूंग, चवला, मोठ, मूंगफली, अरण्डी, तिल, सोयाबीन, कपास, गन्ना, ग्वार (ग्रीष्मकालीन फसलें)।
2 रबी/उनालू- ये फसलें अक्टूबर-नवम्बर में बोई जाती है व मार्च-अप्रैल में काटी जाती है। - फसलें- गेहूं, जौ, चना, मसूर मटर, सरसों, अलसी, तारामीरा, सूरजमुखी, धनिया, जीरा, मैथी (शीतकालीन फसलें)।
3 जायद की फसलें- पानी की उपलब्धता वाले क्षेत्रों में मार्च से जून के साथ यह फसल बोई जाती है। - फसलें- तरबूजा, खबूजा, ककड़ी, तरकारी।
उपयोग के आधार पर फसलें-
1 खाद्यान्न फसलें
- अनाज- गेहूं, बाजरा, ज्वार, मक्का, जौ, चावल, रागी।
- दाल- चना, मूंग, उड़द, अरहर, मोठ, चवला, मसूर, सोयाबीन मटर।
2 व्यापारिक फसलें - तिलहन- राई व सरसों, तिल, मूंगफली, अरण्डी,सोयाबीन, अलसी, तारामीरा, सूरजमुखी।
- रेशेदार- कपास, सन। |
- मसाला- धनिया, जीरा, मैथी, सौंफ, हल्दी, मिर्ची ।
- औषधीय फसलें- अश्वगंधा, ईसबगोल, सफेद मूसली।
- अन्य फसलें गन्ना, ग्वार, मेंहदी, तम्बाकू अफीम, गुलाब, फल व सब्जियां।
खाद्यान्न फसलें
1 गेहूं-
- किस्म- मैक्सिकन सोना, कल्याण सोना, शरबती सोना, सोनालिका।
- सबसे अधिक बोयी जाने वाली किस्म- ट्रीटीकम वलगेपर व कोहिनूर ।
- 1951-2011 में सर्वाधिक वृद्धि गेहूं उत्पादन में हुई, जो 9 गुना वृद्धि है।
- अन्न का कटोरा- गंगानगर
- सर्वश्रेष्ठ किस्म- राजस्थान 3765
2 जौ- - किस्म- आर.डी. 2035 व आर.डी. 2508, ज्योति, राजकिरण, आर.एस.6
3 बाजरा-
4 ज्वार/सोरगम/गरीब की रोटी- - किस्म- राजस्थान, चरी-1
5 चना – - गेहूं और जौ के साथ इसे बोने पर गोचना या बेझड़ कहते हैं।
गेहूँ + चना = गोचना
चना + जो = बेझड़ - दलहनी फसलों में चने का उत्पादन सर्वाधिक होता है।
- समस्त राज्य का 48% क्षेत्र उत्तर में चार जिलों (हनुमानगढ़, चूरू, गंगानगर, बीकानेर) में सीमित है। इस फसल के लिए इंदिरा गांधी नहर के कारण ही सिंचाई उपलब्ध है।
6 चावल- - किस्म- परमल, रतना, माही, सुगन्धा, चम्बल, जया, बीके-190 जो नहरी सिंचाई वाले क्षेत्रों में होती है।
- इसकी खेती पौधरोपण व दाने बिखेर कर दोनों प्रकार से होती है।
- उष्ण कटिबंधीय चावल के पौधे को ‘इंडिका’ व उपोष्ण जलवायु के चावल के पौधे को ‘जापोनिका कहते हैं।
- ‘माही सुगन्धा कृषि अनुसंधान केन्द्र द्वारा विकसित की गई उन्नत किस्म है।
- बासमती व कावेरी चावल की किस्म है।
7 मक्का- - खाद्यानों में गेहूं व चावल के बाद मक्का का स्थान है।
- सबसे अधिक केन्द्रीयकरण अरावली क्षेत्र पहाड़ी प्रदेश व बनास बेसिन में है।
- ‘माही कंचन’ कृषि अनुसंधान केन्द्र बांसवाड़ा की ओर से विकसित उन्नत किस्म है।
- किस्म- नवजोत, अगेती-76, गंगा-2, गंगा-11, विजय, किरण, धवल तथा माही।
- डब्ल्यू-126 किस्म अखिल भारतीय विकार परियोजना द्वारा विकसित है।
- साईलेज- मक्का की पत्तियों से बना हरा चारा।
- मक्का का अधिकांश विकास (80%) रात्रि में होता है।
- माही कंचन, मोती कंपोजिट, मक्का की किस्म है।
8 दलहन- - दलहनों में सर्वाधिक कृषि क्षेत्र (40%) में मोठ बोया जाता है।
- दलहन के उत्पादन वृद्धि के लिए केन्द्र सरकार ने 1974-75 में ‘दलहन विकास परियोजना प्रारंभ की जिसे 1986-87 में राष्ट्रीय विकास परियोजना में शामिल कर दिया गया।
व्यापारिक फसलें-
9 अलसी-
- मनुष्य ने पहली बार जिस कपड़ें से तन ढका था वह अलसी के रेशो
से बना था। - इसका तेल मुख्यः स्नेहक (लुब्रिकेशन) व वार्निश के उत्पादन के काम में लिया जाता है।
- इसके बीजों से तेल व लिनेन वस्त्र बनाए जाते हैं।
10 सरसों व राई- - रबी तिलहनों में सर्वाधिक क्षेत्रफल सरसों का है।
- वर्तमान में पीत क्रांति मूलतः सरसों क्रांति का पर्याय है।
- भरतपुर का ‘इंजन’ छाप सरसों का तेल विश्व प्रसिद्ध है।
- सेवर (भरतपुर) में केन्द्रीय अनुसंधान केन्द्र स्थित है।
- रोग- चंपा (मस्टर्ड एफिड)
- सरसों के तेल निकलने के बाद बचने वाली लुग्दी को ‘खल’ कहा जाता है।
- किस्म- पूरा कल्याणी, वरूणा, दुर्गामणि।
11 तम्बाकू- - यह एक पेय पदार्थ है।
- उष्ण कटिबंधीय पौधा है जो पुर्तगालियों द्वारा 1508 ई. में भारत लाया गया था।
- सर्वाधिक उत्पादन अलवर, सवाई, माधोपुर, उदयपुर, चित्तौड़गढ़ में होता है।
- पाला पड़ना व जल का इकट्ठा होना इस फसल के लिए नुकसानदायक है।
- इस फसल हेतु हरी खाद, अमोनिया सल्फेट, पोटेशियम व सुपर फॉस्फेट उपयुक्त खाद है।
- किस्म- निकोटिना दुबेकम तथा निकोटिना रोस्टिका।
- क्षेत्रफल व उत्पादन की दृष्टि से अलवर अग्रणी है।
12 कपास- - बुवाई का समय मई-जून व फूल आने का समय सितम्बर-अक्टूबर है।
- तीन प्रकार की किस्म-
1 देशी कपास- हनुमानगढ़, गंगानगर
2 अमरीकी कपास- गंगानगर, बांसवाड़ा
3 मालवी कपास- कोटा, बूंदी, टोंक, झालावाड़, बांसवाड़ा। - इसे सफेद सोना कहते हैं।
- इसका जन्म स्थल भारत माना गया है।
- यह रेशेदार व नकदी फसल है।
- ‘बालबीविल’ कीट इस फसल को नुकसान पहुंचाता है।
13 मशरूम/खुम्बिया/छत्रक/कुकुरमुत्ता- - यह एक फफूंद है जो स्वादिष्ट और पौष्टिक भोज्य होने के कारण सब्जी के रूप में प्रयुक्त होता है।
- मशरूम प्रोटीन, विटामिन, कार्बोहाइड्रेट युक्त एक महत्वपूर्ण खाद्य पदार्थ है।
- इसे शाकाहारी मीट भी कहते हैं क्योंकि इसमें चर्बी व कार्बोहाइड्रेट की मात्रा कम होती है।
- जयपुर जिले में मशरूम उत्पादन के प्रयास जारी है।
- मशरूम के तीन प्रकार-
1 बटन मशरूम- यह शरद ऋतु में गेहूं/धान के भूसे/पुआल पर उगाया जाता है।
2 ढींगरी/प्लूरोट्स मशरूम- यह शरद ऋतु में उगाया जाता है।
3 पैडी स्ट्रा-मशरूम- ग्रीष्म ऋतु में गेहूं के भूसे पर उगाया जाता है।
14 इसबगोलपर– - वर्तमान में नागौर में अधिक उत्पादन हो रहा है।
- बीजों पर लगने वाली सफेद मूसली की मांग बढ़ती जा रही है।
- किस्म-आई.आर.-89, जी.आई.-2
- यह औषधीय फसल है।
15 तिलहन- - तिलहन बीज दो प्रकार के है-
1 जिनका दाना छोटा होता है- अलसी, राई, सरसों व तिल
2 जिनका दाना बड़ा होता है- मूंगफली, रैंडी, बिनौला, नारियल महुआ। - राज्य में 1990-91 में तिलहन विकास हेतु तिलहन उत्पादन कार्यक्रम प्रारंभ किया।
16 अफीम- - सर्वाधिक उत्पादन चित्तौड़गढ़ में होता है। अफीम काला सोना कहलाती है। * जालौर जिला समस्त मादक पदार्थों की दृष्टि से सर्वाधिक महत्वपूर्ण है तथा द्वितीय स्थान बाड़मेर है।
- यह एक मादक पदार्थ है जिसका उत्पादन अफीम के पौधे के फल से निकलने वाले दूध से होता है।
- अन्य क्षेत्र- कोटा, झालावाड़
17 तुम्बा- - एक गैर परम्परागत फसल है जिसका उत्पादन मुख्य रूप से जोधपुर, जैसलमेर, बीकानेर, बाड़मेर जिलों में होता है।
- इसका फल दवाईयों बनाने में काम आता है।
फूल उत्पादन
- गुलाब (दश्मक) की खेती पुष्कर (अजमेर) से लेकर खमनौर (राजसमंद) तक फैले क्षेत्रों में की जाती है।
- वर्तमान में पुष्कर में फूल मण्डी विकसित की जा रही है।
- गेंदा, गुलदाऊदी, चमेली आदि फूलों के उत्पादन में जयपुर, कोटा, उदयपुर, महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं।
मसाला उत्पादन - राज्य के लाल मिर्ची उत्पादन की दृष्टि से जोधपुर व सवाई माधोपुर प्रथम स्थान पर है।
- अदरक उत्पादन केवल, राजसमंद, उदयपुर, डूंगरपुर में होता है।
- हल्दी का सर्वाधिक उत्पादन उदयपुर में होता है।
- सौंफ नागौर में, अजवाइन, चित्तौड़गड़ में, सर्वाधिक उत्पादित होती है
- आलू धौलपुर में, प्याज जोधपुर में, ग्वार बीकानेर में, मटर नागौर में व सन धौलपुर में सर्वाधिक उत्पादित होती है।
- कुल मसाले उत्पादन में बारां जिला अग्रणी है व क्षेत्रफल सर्वाधिक झालावाड़ में है।
- मसाला उत्पादन की दृष्टि से राज्य दूसरे स्थान पर है।
जोजोबा/होहोबा - इसका वैज्ञानिक नाम Simmondesia Chinensis है।
- इसे पीला सोना व डेजर्ट गोल्ड भी कहते हैं। (Assosiation of the Rajasthan zozoba Plantation and Research Project) राजस्थान के शुष्क प्रदेशों में की जा रही है।
- मिट्टी- दोमट मिट्टी 8 इसकी खेती में नर व मादा पौधों का अनुपात 1 : 10 होना चाहिए।
- इसका एक पौधा 100 वर्षों तक चलता है।
- इसके बीजों का तेल वायुयानों के ईंधन, सौंदर्य प्रसाधन सामग्री, बड़ी मशीनों व स्नेहक के रूप में काम आता है।
- इसकी खेती चूरू, जोधपुर, गंगानगर, जयपुर जिलों में की जा रही है।
- इसके दो कृषि फार्म फतेहपुर (सीकर) व दण्ड (जयपुर) में विकसित किये गये हैं। यह 1996-97 में एजोर्प की सहायता से स्थापित किया गया।
- इसका उत्पति स्थान मैक्सिको, कैलिफोर्निया व एरिजोना (U.S.A.) का सोनारन मरूस्थल है।
- वर्षा- 30 सेमी.
- मिट्टी- बालू मिट्टी।
- जोजोबा का पौधा सर्वप्रथम काजरी द्वारा 1965 में इजरायल से लाया गया था।
महत्वपूर्ण तथ्य
- राज्य में सर्वाधिक सिंचाई कुओं व नलकूपों द्वारा की जाती है।
- दक्षिणी जिलों में केले की खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है।
- राज्य के 8 क्षेत्र पर जैतून की खेती के लिए ‘राजस्थान औलिव क्लटीवेशन’ रिपोर्ट की स्थापना की गई है।
- खजूर की टिश्यू कल्चर प्रयोगशाला की स्थापना जोधपुर में की जाएगी। इसके लिए ‘अतुल राजस्थान लिमिटेड’ (ARDPL) की स्थापना की गई है।
- कृषि प्रसंस्करण व्यवसाय प्रोत्साहन नीति 2000 में लागू हुई।
- आपणी रसोई योजना- 2009 में प्रारंभ ।
- किसान आयोग का गठन-21 नवम्बर, 2011
- सर्वाधिक दलहन उत्पादन हेतु राजस्थान को 1 करोड़ का ‘कृषि कर्मण’ पुरस्कार केन्द्र सरकार द्वारा दिया गया है।
- रोजड़ी (बीकानेर) में राजस्थान सहकारी डेयरी फैडरेशन (RCDF) का सीड मल्टीप्लीकेशन फार्म स्थापित किया गया।
- हिलावी- खजूर की किस्म।
- दुर्गापुर केसर- तरबूज की किस्म।
- इंडिया मिक्स- गेहूं सोयाबीन व मक्का के मिश्रण से बना आटा।
- आर.जेड-19 जीरे की किस्म है जबकि आर.सी.आर.-41 (कण) जानिए की किस्म है।
- जड़िया मोठ की किस्म है जबकि ज्वाला मोठ की अधिक उपज देने वाली किस्म है।
- अम्लीय भूमि की फसल आलू है।
- चंद्रा मूंगफली की किस्म है।
- कुफरी- आलू की किस्म।
- ग्वार की किस्म- दुर्गाबिहार, दुर्गाजय, दुर्गापुरा सफेद ।
उद्देश्य के आधार पर की जाने वाली कृषि-
1 आदिम/स्थानान्तरित कृषि- प्राचीनकाल से ही प्रचलित है जिसे आदिवासी जनजाति द्वारा पहाड़ी क्षेत्र में किया जाता है। दक्षिण राजस्थान में इस प्रकार की कृषि को जो भीलो द्वारा की जाती है, चिमाता व दजिया तथा गरासियों द्वारा वालरा कृषि के नाम से जाना जाता है। भारत के उत्तर पूर्व राज्यों तें यह झुमिंग कहलाती है। (मणिपुर, मेघालय)
2 व्यापारिक कृषि- सीधी विदेशी आय दिलाने वाली कृषि है जिसमें तम्बाकू, अफीम, होहोबा, रत्नजोत, सूरजमुखी, सतावरी (नाहरकांटा) आदि फसले की जाती है।
3 नकदी फसल कृषि- इसमें कपास, गन्ना, सरसों, मूंगफली, तिलहन, जूट जैसी नकदी फसलों को शामिल किया जाता है।
4 विशेषीकृत कृषि- किसी एक विशेष उद्देश्य को लेकर कृषि की जाती है। सेरीकल्चर – शहतूत के पत्तों पर रेशमकीट का पालन।
एपीकल्चर – मधुमक्खी पालन।
हॉर्टीकल्चर – बागवानी फसलों का उत्पादन।
विटीकल्चर – अंगुर की कृषि ।
फिशीकल्चर – मछली पालन
फ्लोरीकल्चर – फूल उत्पादन।
वर्मीकल्चर – केचूए से खाद उत्पादन।
ऑलिगोकल्चर- सब्जी की बैलों की कृषि ।
ऐरोपोनिक – पौघो को हवा में उगाना।
कृषि विशिष्ट तथ्यः-
1 किसान भवन- राज्य के सातों सम्भाग- मुख्यालय पर किसानों को : बेहतर आवास और कृषि प्रशिक्षण सुविधाएँ देने के लिए किसान भवनों के बनाने का काम शुरू किया गया है। ये किसान भवन जयपुर, भरतपुर, जोधपुर, उदयपुर, अजमेर, बीकानेर और कोटा में बनाए जा रहे है। जयपुर में अक्टूबर, 2007 एवं अजमेर में जनवरी 2008 में इनका लोकार्पण हो चुका है। 2008-09 के बजट में सभी जिला मुख्यालय पर किसान भवन बनाना प्रस्तावित।
2 सहकारी किसान क्रेडिट कार्ड योजना:-कृषि सहकारी समितियों के सदस्य किसानों को कृषि व अन्य कार्यों हेतु सहकारी ऋण वितरण की सरलतम योजना जो देश में सर्वप्रथम राजस्थान में 29 जनवरी, 1999 को प्रारम्भ की गई जब पहला किसान क्रेडिट कार्ड मुख्यमंत्री श्री अशोक गहलोत के द्वारा सिरसी गाँव (जयपुर) के किसान रामनिवास यादव को जारी किया गया। इस योजना में किसानों को क्रेडिट कार्ड जारी किये जाते है एवं कार्डधारी किसान स्वीकृत साख सीमा तक आवश्यकतानुसार निकटतम बैंक शाखा से चैक द्वारा ऋण सुविधा प्राप्त कर सकता है।
3 किसान कॉल सेन्टर :-22 जनवरी, 2004 को दूरभाष के जरिये किसानों को कृषि एवं संबंधित विषयों की तकनीकी जानकारी देने हेतु की गई।
4 बाणियाँ:- कपास को राजस्थान में ग्रामीण भाषा में बाणियाँ कहते है।
5 कांगणी:- कांगणी दक्षिणी राजस्थान के गरीब व आदिवासी बाहुल्य शुष्क क्षेत्रों की फसल है। कांगणी सूखे की स्थिति में पशुओं के लिए चारा प्रदान करती है।
6 आत्मा- (एग्रीकलचर टेक्टनॉलॉजी मैनेजमैण्ट एजेन्सी ATMA) योजना सभी जिलों में लागू की जाएगी।
7 लीलोण:-रेगिस्तानी क्षेत्रों (विशेषकर जैसलमेर) में पाई जाने वाली बहुपयोगी सेवण घास का स्थानीय नाम ।
8 घोड़ा जीरा-पश्चिमी राजस्थान (जालौर-बाड़मेर के क्षेत्र में) में
बहुतायात से उत्पादित ईसबगोल का स्थानीय नाम।
9 पादप क्लीनिक – राज्य सरकार ने राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय में मंडोर स्थित कृषि अनुसंह पान केन्द्र में राज्य के पहले पादप क्लीनिक को खोलने की मंजूरी दी है। राज्य में राष्ट्रीय बागवानी मिशन के तहत एक करोड़ रूपये की लागत से पाँच स्थानों पर पादप क्लीनिक खोलना प्रस्तावित है।
कृषि की क्रान्तियाँ
1 हरित क्रांति – गेहूँ/चावल/खाद्यान्न 1966-67 से प्रारंभ
2 पीली क्रांति – सरसों/तिलहन
3 नीली क्रांति – मत्स्य
4 लाल क्रांति – टमाटर/मांस
5 काली क्रांति – पेट्रोल/कोयला
6 भूरी क्रांति – खाद्यान्न प्रसंस्करण
7 रजत क्रांति – मुर्गी/अण्डा
8 सुनहरी क्राति – बागवानी
9 गुलाबी क्रांति – झींगा मछली
10 गोल क्रांति – आलू
11 बादामी क्रांति – मसाला
12 ग्रीन गोल्ड क्रांति – चाय
13 व्हाइट गोल्ड क्रांति – कपास
14 घूसर या स्लेटी क्रांति – सीमेंट उत्पादन
15 अमृत क्रांति – नदीयों को जोड़ने की योजना
16 सनराईज क्रांति – इलेक्ट्रॉनीक उद्योगों के विकास हेतु
17 गंगा क्रांति – भ्रष्टाचार के खिलाफ (राजेन्द्र सिंह, वाटर बाबा द्वारा संचालित)
18 एन.एच. क्रांति स्वर्णीम चतुर्भूज योजना – सड़क विकास
19 श्वेत क्रांति दुध उत्पादन बढ़ाना – 1970 स प्रारम
20 इंद्र धनुषी क्रांति सभी क्रांतियों पर निगरानी – राष्ट्रीय कृषि नीति 2000 द्वारा प्रारंभ
- हरित क्रांति का जनक- नोरमन बोरलोग।
- भारत में हरित क्रांति का जनक- एम.एस. स्वामीनाथन ।
- श्वेत क्रांति का जनक- वर्गीज कुरीयन ।
पेड़ पौधों में पाये जाने वाले प्रमुख रोग
1 वायरस जनित रोग-तम्बाकू का मोजेक, आलू का पत्ती मुड़न रोग, टमाटर का पत्ती मुड़न रोग, भिण्डी का पीतशिरा रोग।
2 बैक्टीरिया जनित रोग-नींबू का केंकर या खर्रा रोग, कपास का जीवाणु अंगमारी/ब्लेक आर्म रोग, चावल का पत्ती चकता या अंगमारी रोग, आलू का विगलन रोग, गेहूँ का टुण्डु रोग, धान का अंगमारी/चित्ती रोग।
3 फकँदी जनित रोग-मक्का का ब्राउन स्पॉट रोग, आलू का अंगमारी रोग, बाजरे का हरित बाली/मृदुरोमिल आसिता रोग, अनाजों का चूर्णिल आसिता (छाछाया) रोग, ज्वार का तुलासिता रोग, मूंगफली का टिक्का रोग, जौ का धारीदार रोग, बाजरे का कण्डुआ रोग, ज्वार/बाजरे का अरगट रोग, धान का कण्डुआ रोग, गेहूँ का कण्डुआ रोग, जौ का आवृत्त कण्डुआ रोग, ज्वार का आवृत्त कण्डुआ रोग, अलसी का किट्ट, गेहूँ का काला स्तंभ किट्ट रोग, गन्ने का लाल सड़न रोग, अरहर/कपास/गन्ने का उकठा रोग, गेहूँ का बाली सिकुड़न रोग, गेहूँ व जौ का मोल्या रोग, सरसों का सफेद किट्ट, सरसों का तना गलन रोग
4 अन्य रोग- विल्ट- जीरा, लौंगिया रोग- धनिया, झुलसा- चना
5 फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले कीट-बाल बीविल कीट (कपास), आरा मक्खी व पेंटेड बग (सरसों), हाकमोथ लट (मूंग), गन्धीबग (चावल)।सर्वाधिक फसल उत्पादक जिले
- फसल प्रथम द्वितीय तृतीय
- बाजरा अलवर जयपुर सीकर
- मक्का भीलवाड़ा चित्तौड़गढ़ उदयपुर
- मसूर बूंदी झालावाड़ प्रतापगढ़
- ज्वार नागौर अजमेर पाली
- मूंगफली बीकानेर जोधपुर चुरू
- चावल हनुमानगढ़ बूंदी बारां
- सरसों, राई अलवर टोंक भरतपुर
- गेहूँ गंगानगर हनुमानगढ़ अलवर
- जौ गंगानगर जयपुर सीकर
- मोठ चुरू जोधपुर बीकानेर
- तारामीरा जयपुर नागौर पाली
- उड़द बूंदी भीलवाड़ा टोंक
- सोयाबीन झालावाड़ चित्तौड़गढ़ कोटा
- अंवला अजमेर नागौर जयपुर
- गन्ना गंगानगर चित्तौड़गढ़ बूंदी
- कपास हनुमानगढ़ नागौर गंगानगर
- जीरा जालौर जोधपुर बाड़मेर
- धनिया झालावाड़ बारां कोटा
- मटर जयपुर नागौर बूंदी
- सूरजमुखी नगौर – –
- मिर्च स. माधोपुर भीलवाड़ा जालौर
- प्याज जोधपुर सीकर नागौर
- तम्बाकू जालौर झुंझुनूं अलवर
- ग्वार गंगानगर बीकानेर हनुमानगढ़
- मेहन्दी पाली जोधपुर अलवर
- आलू धौलपुर भरतपुर –
- सौंफ नागौर जोधपुर दौसा
- लहसुन बारां प्रतापगढ़ कोटा
- हल्दी डूंगरपुर – –
- अदरक उदयपुर डूंगरपुर कोटा
- अलसी नागौर प्रतापगढ़ –
- तिल पाली जोधपुर जालौर
- मूंग नागौर जोधपुर पाली
प्रमुख मण्डियाँ
1 जीरा मण्डी – जोधपुर, मेड़ता सिटी
2 मूंगफली – बीकानेर
3 ईसबगोल (घोड़ा-जीरा) – भीनमाल (जालौर)
4 मेहन्दी मण्डी – सोजत (पाली)
5 धनिया मण्डी – रामगंजमण्डी (कोटा)
6 अश्वगंधा – झालरापाटन
7 संतरा मण्डी – भवानी मण्डी (झालावाड़)
8 फूल मण्डी – पुष्कर
9 आँवला – चौमू
10 लहसून – छीपाबड़ौद (बारां)
11 प्याज – अलवर
12 टमाटर – बस्सी (जयपुर)
13 टिण्डा – शाहपुरा (सीकर)
14 टर्मिनल मार्केट – मुहाना (जयपुर)
- राजस्थान को कृषि जलवायवीय दृष्टि से 10 प्रखण्डों में बांटा गया है।
राजस्थान कृषि विकास से संबंधित संस्थाएं-
