वन सम्पदा
- ब्रिटिश भारत सरकार ने 1894 में प्रथम वन नीति स्थापित की।
- स्वतंत्र भारत में भारत सरकार के द्वारा प्रथम वन नीति 1952 में घोषित की गई। इसे 1988 में संशोधित किया गया।
- राजस्थान में सबसे पहले जोधपुर रियासत द्वारा 1910 में कानून बनाया गया। |
- दूसरी रियासत- अलवर- 1935 में।
- राज्य सरकार में वन अधिनियम 1953 में पारित हुआ।
- पर्यावरणीय दृष्टि से 33% क्षेत्रफल पर वन होने चाहिए।
- भारत में सर्वाधिक वन मध्यप्रदेश तथा सबसे कम वन पंजाब में है।
- राजस्थान का वनों की दृष्टि से भारत में 9वां स्थान है।
- राजस्थान के क्षेत्रफल के 9.57% क्षेत्र पर वन फैले हैं, जो 32737 किमी.2 के बराबर है।
- राजस्थान में क्षेत्रफल (वनाच्छादन) की दृष्टि से सर्वाधिक वन उदयपुर में (3899.16 km) है।
- राज्य में प्रति व्यक्ति वन क्षेत्र – 0.04 प्रति हेक्टर
- भारत के क्षेत्रफल के सन्दर्भ में वन – 0.99%
- भारत के वन क्षेत्रत्रफल के सन्दर्भ में – 3 10 प्रतिशत
सर्वाधिक वन –
1 उदयपुर – 2764 K.M.2 – 23.58% चुरू – 82 K.M.2-0.59%
2 प्रतापगढ़ – 23.47% 2 अलवर – 1197 K.M.2
3 सिरोही – 17.8% 3 प्रतापगढ़ – 1044 K.M.2
4 करौली – 15.75% 4 बारा – 1013 K.M.2
न्यूनतम प्रतिशत न्यूनतम क्षेत्रफल
जोधपुर – 0.46% 1 चूरू – 82
चूरू – 0.59% 2 हनुमानगढ – 90
नागौर – 0.81% 3 जोधपुर -105
जैसलमेर – 0.82% 4 गंगा – 113
सर्वाधिक वृद्धि कमी
जैसलमेर – 88 प्रतापगढ़ – 48
बाढमेर – 86 बॉरा – 44
बून्दी – 82 चितौडगढ़ – 40 - राजस्थान में कुल क्षेत्रफल का लगभग 4.73% भाग सघन वनों से अच्छादित है।
- देश में राजस्थान ही एक ऐसा राज्य है, जिसके वन क्षेत्र में क्रमिक गत चार द्विवर्षीय सर्वेक्षणों में लगातार वृद्धि दर्ज की गई है।
- राज्य के उदयपुर जिले में सर्वाधिक वन है। यहां पर राजस्थान के वनों का 23.25% है।
- घास के मैदान व चारागाह, जिन्हें स्थानीय भाषा में बीड़ कहते हैं, विस्तृत रूप से झुंझुनूं, सीकर, अजमेर के अधिकांश भागों में एवं भीलवाड़ा, उदयपुर और सिरोही के सीमित भागों में पाये जाते हैं।
- राजस्थान में मुख्यतः धौंकड़ा के वन है, जो राजस्थान के वन क्षेत्र के लगभग 60% भाग पर विस्तृत है। तत्पश्चात् सागवान और सालर वनों का स्थान है, जो क्रमशः 10% और 6% भाग पर विस्तृत है।
- राजस्थान में सर्वाधिक रक्षित वन बारां जिले में है।
- भारत सरकार द्वारा उदयपुर जिले की सालुखेड़ा वन सुरक्षा एवं प्रबंध समिति को इंदिरा गांधी वृक्ष मित्र पुरस्कार दिया जाता है।
- प्रशासनिक दृष्टि से वनों को 3 भागों में बांटा जाता है-
1 आरक्षित वन- वृक्षों की कटाई व पशुओं की चराई वर्जित होती है। यह 12476,07 km (38.11%) सर्वाधिक आरक्षित वन उदयपुर में है।
2 रक्षित वन- वृक्षों की कटाई वर्जित परन्तु वनपाल की आज्ञा से पशु चराई संभव है। यह 18214.87 km (55.64%) पर पाये जाते हैं। यह वन सर्वाधिक बारां जिले में है।
3 अवर्गीकृत वन- पशु चराना व पेड़ काटना संभव। यह 2046.06 km (6.25%) पर पाये गये हैं। सर्वाधिक श्रीगंगानगर में।
वनों के उत्पाद-
1 गोंद- चौहटन (बाड़मेर) में सर्वाधिक।
2 कत्था- खदिर से प्राप्त होता है। इसे खैर भी कहते हैं। वानस्पतिक नाम- एकेसिया कैटेचू। - कत्थे से संबंधित जाति- काथोड़ी (उदयपुर व झालावाड़) में।
3 महुआ- आदिवासियों का कल्प वृक्ष। इसकी पत्तियों, फूल, फल व छाल से शराब बनाते हैं। यह अधिकतर बांसवाड़ा व डूंगरपुर में पाया जाता है।
4 आंवला (द्रोण पुष्पी)- उदयपुर, पाली, राजसमंद में पाई जाती है। चमड़े की टैनिंग के लिए काम आती है। इसका निर्यात किया जाता है।
5 खस- इत्र व शरबत बनता है। खस का तेल जड़ों से प्राप्त करते हैं। यह अधिकतर भरतपुर, सवाई माधोपुर व करौली में पाया जाता है।
6 बांस- बांसवाड़ा में, आदिवासियों का हरा सोना नाम से प्रसिद्ध है।
7 सेवण- यह एक प्रकार की पौष्टिक घास है। पश्चिमी राजस्थान की गायें इसी के कारण अधिक दूध देती है। वानस्पतिक नाम- लुसियुरूस सिडीकुस । यह लाठी सीरीज (जैसलमेर) में सर्वाधिक पायी जाती है। - इसका अन्य नाम लीलोण है।
- जैसलमेर से पोकरण व मोहनगढ़ तक पाकिस्तानी सीमा के सहारे-सहारे एक चौड़ी पट्टी (60 किमी.) है, जिसे ‘लाठी सीरीज क्षेत्र’ कहा जाता है।
8 अर्जुन वृक्ष- यह उदयपुर, डूंगरपुर, बांसवाड़ा में पाये जाते हैं। रेशम
कीट पालन इस वृक्ष पर करते हैं।
9 पंचकूटा- कैर, सांगरी, काचरी, कूम्मट के बीज व गूदा का फल |
10 पंचवटी-बड़, आंवला, पीपल, अशोक, बिल्व थे। पांचों वृक्ष वर्तमान मे राज्य सरकार के द्वारा पंचवटी योजना के अंतर्गत लगाये जा रहे है। - रेगिस्तान वनरोपण एवं भू–संरक्षण केन्द्र जोधपुर में स्थित है।
- प्रत्येक बच्चा-एक पेड़ का लक्ष्य स्कूली कार्यक्रम में छठी पंचवर्षीय योजना में चलाया गया।
- विश्व का एकमात्र वृक्ष मेला खेजड़ली में भरता है। खेजड़ली (जोधपुर) में सन् 1730 ई. में (जोधपुर के राजा अभयसिंह के समय) अमृता देवी विश्नोई ने 363 नर-नारियों सहित खेजड़ी वृक्षों को बचाने हेतु अपनी आहूति दे दी थी। इस उपलक्ष्य में प्रतिवर्ष भाद्रपद शुक्ला दशमी को विश्व का एकमात्र वृक्ष मेला भरता है। पर्यावरण संरक्षण हेतु 1994 ई. में अमृता देवी स्मृति पर्यावरण पुरस्कार प्रारंभ किया गया है।
- राजस्थान की क्षारीय लवणीय भूमि पर इमली का वृक्ष अधिक वृद्धि करते हुए अच्छी उपज दे सकता है।
- ओरण (ओरड) धार्मिक स्थलों से जुड़ा पारम्परिक आखेट एवं वन कटाई निषिद्ध क्षेत्र कहलाता है।
- वराहमिहिर के अनुसार जब कैर एवं शमी (खेजड़ी) के वृक्षों पर फूलों में असामान्य वृद्धि होती है, तो उस वर्ष दुर्भिक्ष होता है।
- राज्य में अर्जुन वृक्ष लगाने का उद्देश्य टसर रेशम तैयार करना है।
- देश का प्रथम राष्ट्रीय मरु वानस्पतिक उद्यान माचिया सफारी पार्क (जोधपुर) में स्थापित किया जायेगा ।
- घास के मैदान या चरागाह को स्थानीय भाषा में बीड़ कहते हैं। ये बीड़ बीकानेर, जोधपुर, चूरू, सीकर व झुंझुनूं आदि में मिलते हैं।
वनस्पति
1 शुष्क मरुस्थलीय (उष्ण कांटेदार वन)- 30-50 cm वर्षा वाला क्षेत्र। इस क्षेत्र में Xerophyte Plants पाये जाते हैं। पत्तियां- छोटी, कांटेनुमा। तना- मांसल, कांटेदार, जड़े गहरी पाई जाती है।
- वृक्ष- खेजड़ी फोग, कैर, कूमटा, बेर, रामबास, बबूल, थूहर, नागफनी आदि।
2 अर्द्धशुष्क पर्णपाति वन – 60-85 सेमी. वर्षा वाला क्षेत्र। यहां पर धोकड़ा, नीम के वृक्ष पाये जाते हैं। यह जयपुर, दौसा, करौली, टोंक, सवाई माधोपुर और बूंदी में पाये जाते है।
3 मिश्रित पतझड़ (पर्णपाती)- 60-90 सेमी. वर्षा वाला क्षेत्र। यह 28.38% क्षेत्र पर पाये गये हैं। अरावली में 770 मी. की उँचाई तक । मार्च-अप्रैल में झड़ते हैं। वृक्ष- धोकड़ा, खैर, पलाश (ढाका), सालर, साल, शीशम, बांस, आम, जामुन, अर्जुन वृक्ष, तेंदू तथा आंवला आदि प्रकार के वृक्ष पाये जाते हैं।
4 शुष्क सागवान वन- 75-110 सेमी. वाला क्षेत्र। यह 6.86% क्षेत्र पर पाये गये हैं। पर्वतीय ढालो पर 500 मी. की उचाई तक। क्षेत्र – बासंवाड़ा, डुंगरपुर, प्रतापगढ, झालावाड, कोटा, दक्षिण उदयपुर। मुख्य वृक्ष – G.S.T, (गूलर सा तेन्दू महुआ) बांस, सागवान प्रधानता बरगद, आम, जामून पेड़ की उँचाई – 10 से 21 मीटर महुआ – आदिवासियों का कल्प वृक्ष - तेंदू- बीड़ी बनती है। प्रतापगढ़ में सर्वाधिक, इसे राजस्थानी भाषा में टिमरू कहते हैं। तेंदू वृक्ष को 1974 से राष्ट्रीयकरण कर दिया गया।
5 उपोष्ण सदाबहार वन (Sub Tropical Evergreen Forest) यह केवल सिरोही और माऊण्ट आबू में, यह 1000 मी. की उँचाई वाले क्षेत्र में .39% क्षेत्र में पाये जाते है। सिरस, बांस, बील, करौंदा, इंद्रोक, चमेली, वनगुलाब आदि वृक्ष पाये जाते हैं। बांस आदिवासियों का हरा सोना - द्योंक वन (उष्ण कटिबन्धीय) 19027.75 (58.11%) वर्षा 50 – 80 से.मी.
- उँचाई वाले ढालों पर – पूर्वी व मध्य अरावली
- करौली । – सवाई माधोपुर – सर्वाधिक लम्बाई के वृक्ष अलवर, बुन्दी
- शुष्क कांटेदार वन (उत्तरी पश्चिमी भाग) 2041.52 k.M.2, 6.26% भाग
- वर्षा 30 से.मी. के लगभग होती है। बैर, खजूर, किंकर
- खेजडी वृक्ष – कल्प वृक्ष, राज्य वृक्ष, गौरव वृक्ष, जाटी, सोमलों
- खेजडी दिवस – 12 सितम्बर 1978 से प्रारम्भ
- राज्य वृक्ष – 31 अक्टूबर 1983
- राहिडा : टिकोमेला अण्डूलेटा – राजकीय पुष्प
- 31 अक्टूबर 1983 – राजस्थान का सागवान
- सालर वन 430 मी. उँचाई पर, अरावली कटको के उपरी ढालो पर लम्बाई – 12 – 15 मीट क्षेत्र – 10360 KM.2 50-100 सेमी. वर्षा मुख्य वृक्ष – साल, प्रमुख जिले, उदयपुर राजसमन्द, सिरोही, अजमेर, जयपुर, अलवर ।
- ढाक पलाशवन – नदी घाटियों से, मुख्य वृक्ष – साल, गुलर ,महु, सफेद सिरिस, करंज मारस पीपल
- वनों के संरक्षण के लिए केन्द्र/राज्य सरकार के कार्यक्रम –
1 सामाजिक वानिकी (Social Forestory)- यह 1985-86 में प्रारंभ हुआ। ग्रामीण समुदाय के सहयोग से ग्राम पंचायत या नगरपालिका की भूमि पर वृक्षारोपण का कार्य किया जाता है, जिसे वे स्वयं की दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए काम में ले सकते हैं।
2 अरावली वृक्षारोपण कार्यक्रम (1992)- 10 जिलों में (5 उत्तर 5 दक्षिण)। पहले 5 वर्ष के लिए चलाया गया फिर 5 वर्ष और बढ़ाया गया। - उत्तरी भाग- जयपुर, अलवर, झुंझुनूं, सीकर, नागौर।
- दक्षिणी भाग- पाली, चित्तौड़, उदयपुर, सिरोही, बांसवाड़ा।
- उद्देश्य- वृक्षों का विकास, जल ग्रहण क्षेत्र का विस्तार करना। यह कार्य जापान की एक संस्था Overceas EconimicCopration Fund (O.E.C.F.) की सहायता से।
3 वानिकी विकास परियोजना (1995)- उद्देश्य- Development of biodiversity | 15 गैर मरुस्थलीय जिलों में चलाई गई। - प्रारंभ में 0.E.C.E के सहयोग से चलाई गई इसका नाम अब J.B.I.C (Japan Bank for International Copration) है। यह 2004 में समाप्त हो गई।
4 बनास भू-जल संरक्षण कार्यक्रम (1999-2000)- राज्य सरकार द्वारा यह 4 जिलों में चलाया गया- टोंक, जयपुर, दौसा, सवाई माधोपुर।
वन्यजीव
- आजादी से पूर्व राजस्थान को शिकारीयों का स्वर्ग कहा जाता था।
- भारतीय संविधान के भाग-4 के अनुच्छेद-48(क) एवं 51 (क) में वन्यजीव के संरक्षण का प्रावधान किया गया है।
- टोंक रियासत में सर्वप्रथम 1901 में शिकार पर प्रतिबंध लगाया।
- 42वें संविधान संशोधन 1976 के द्वारा वन्यजीव विषय को समवर्ती सूची का विषय बना दिया।
- यह समवर्ती सूची का विषय है अर्थात् इसके लिए केन्द्र व राज्य दोनों ही कानून बना सकते हैं।
- 1951 में राजस्थान वन्य जीव संरक्षण अधिनियम पारित हुआ।
- 1972 में राष्ट्रीय वन्य जीव संरक्षण अधिनियम लागू हुआ परन्तु राजस्थान में 1973 में पारित हुआ।
- राष्ट्रीय बाघ संरक्षण परियोजना 1973 में केन्द्र ने लागू की तथा राजस्थान में यह 1974 में लागू हुई।
- राजस्थान का प्रथम टाईगर प्रोजेक्ट रणथम्भौर में 1974 को लागू हुआ।
- राष्ट्रीय स्तर पर वर्तमान में कुल 103 राष्ट्रीय उद्यान, 535 अभ्यारण्य व 18 बायोस्फीयर रिजर्व है।
- देश का पहला जन्तुआलय 1855 ई. में मद्रास में स्थापित किया गया। राजस्थान में प्रथम जन्तुआलय की स्थापना 1876 ई. में जयपुर के रामनिवास बाग में की गई।
- रणथम्भौर नेशनल पार्क में 10 करोड़ की लागत से क्षेत्रीय प्राकृतिक विज्ञान संग्रहालय खोला जा रहा है।
- उदयपुर का सज्जनगढ़ अभ्यारण्य सबसे छोटा व जैसलमेर का राष्ट्रीय मरु उद्यान राज्य का सबसे बड़ा अभ्यारण्य है।
राष्ट्रीय उद्यान व वन्यजीव अभ्यारण्य
- राष्ट्रीय उद्यान- इसका व्यय केन्द्र सरकार वहन करती है।
- राज्य में वर्तमान में 3 राष्ट्रीय उद्यान स्थापित किये गये है।
- क्षेत्रफल- 510.31 वर्ग किलोमीटर
1 रणथम्भौर (1980) पहला राष्ट्रीय उद्यान (सवाई माधोपुर)।
2 केवलादेव (1981)।
3 मुकुन्दरा हिल्स राष्ट्रीय उद्यान (9 जनवरी, 2012)।
प्रस्तावित राष्ट्रीय उद्यान
1 कुम्भलगढ़, राजसमंद।
2 सरिस्का, अलवर।
3 मरू उद्यान, जैसलमेर - राष्ट्रीय उद्यान
1 रणथम्भौर- सवाई माधोपुर - स्थापना- 1955, उपनाम- भारतीय बाघों का घर ।
- क्षेत्रफल- 392.5 वर्ग किमी. (282.03 वर्ग किमी. राष्ट्रीय उद्यान)
- यहां अरावली व विंध्याचल पर्वत मालाओ का संगम होता है।
- 1 नवम्बर, 1980 को इसे राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया।
- इससे पूर्व 1974 में इसे नेशनल टाईगर प्रोजेक्ट में शामिल कर लिया गया था।
- इसे बाघों का घर या (Land of Tiger) कहा जाता है।
- यहां त्रिनेत्र गणेश जी का मंदिर व 6 तालाब/ झील हैं-
1 पदम् तालाब
2 मलिक तालाब
3 राजबाग तालाब
4 मानसरोवर तालाब
5 गिलाई सांभर
6 लाहपुर तालाब । - 1996 में यहां विश्व बैंक के सहयोग से India Eco Development
परियोजना चलाई गई।
उद्देश्य-
1 जन सहयोग से Biodiversity (जैव विविधता) का विकास करना।
2 आस-पास वृक्षारोपण करवाना।
3 पानी के संरक्षण का कार्य। - 2004 में यह प्रोजेक्ट समाप्त हो गया।
- यहां भ्रमण के लिए आये प्रमुख व्यक्ति –
1 महारानी ऐलीजावेथ 1960
2 राजीव गाँधी- 1985
3 2000 में जब बिलक्लिन्टन आये, तो उन्हें भंभूराम बाघ दिखाया था।
4 मनमोहन सिंह- 2005 - 2005 की बाघ गणना में 36 बाघ थे, जिनमें 32 बड़े, 4 शावक थे।
- यहां पर बाघ गणना के लिए कैमरा ट्रैप तकनीक, डी.एन.ए. तकनीक, पगमार्क विधि अपनाई जाती है।
- यहां का मुख्य आकर्षण- लाल सिर वाला तोता।
- पर्यटकों के मनोरंजन हेतु यहाँ पर टाइगर सफारी पार्क प्रस्तावित है।
- रणथम्भौर में क्षेत्रीय प्राकृतिक विज्ञान संग्रहालय खोला जाना प्रस्तावित है।
- मध्यप्रदेश के गुना अभयारण्य को आबाद करने हेतु रणथम्भौर से गुना तक बाघ गलियारा बनाया जाना प्रस्तावित है।
- इस अभयारण्य में भारत की सबसे अधिक उम्र की बाघिन मछली का अवलोकन सर्वाधिक लोगों ने किया जिसे झालरा वाली बाघिन के नाम
से जाना जाता है। - यहाँ पर महाराजा माधोसिंह द्वारा निर्मित जोगी महल, भारत का एकमात्र त्रिनेत्र गणेश मंदिर, रणथम्भौर किला, कुक्कुर घाटी में कुत्ते की छतरी आदि पर्यटक स्थल है।
- लुप्त प्रायः पक्षियों एवं वन्य जीवों के अध्ययन के लिए विख्यात ‘Red Data Book’ में अंकित काला गरुड़ (भगवान राम को सीता हरण की सूचना देने वाला पक्षी) राज्य में केवल रणथम्भौर राष्ट्रीय पार्क में ही मिलते है। यहाँ पर ही ग्रे-पेट्रिज एवं पेंटेड स्टॉर्क (रंगीन सारस), ब्लेक स्टॉर्क (काले सारस), व्हाइट स्टॉर्क (सफेदसारस) के दर्शन किये जा सकते है।
- 28 जून, 2008 को देश की प्रथम बाघ विस्तापन की घटना यहीं घटित हुई, जब बाघ सुल्तान व बाघिन बबली को सरिस्का भेजा गया।
2 केवलादेव घाना राष्ट्रीय उद्यान- भरतपुर (घाना)
- स्थापना- 1956, क्षेत्रफल- 59 वर्ग किमी. (28.7 वर्ग किमी. राष्ट्रीय उद्यान) * उपनाम- पक्षियों का स्वर्ग, पक्षियों की प्रजनन स्थली ।
- निमार्ण- भरतपुर शासक किशन सिंह द्वारा (स्विट्जरलैण्ड की झीलों के आधार पर)
- शिव का मंदिर केवलादेव ।
- 26 अगस्त,1981 में इसे राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया।
- इसे पहले शिकार गाह के रूप में प्रयुक्त किया जाता था।
- 1899 में मोरबी रियासत के राजकुमार हरभान ने इसे वन्य जीवों के केन्द्र (शिकारगाह) के रूप में विकसित किया गया था।
- 120 पक्षी प्रजातियां पाई जाती है।
- 1980 के दशक में साइबेरियन क्रेन चर्चित रही, जो अक्टूबर-नवम्बर में आते हैं। जनवरी-फरवरी में बच्चों सहित वापस चले जाते हैं।
- बार हेडेड ग्रीज पक्षी- रोजी पिस्टर (चिल्लाने वाला) वाल्मिकी द्वारा __बताये गये चकवा-चकवी।।
- 1985 में इसे विश्व धरोहर स्थल UNESCO के द्वारा घोषित किया गया था।
- डॉ. सलीम अली के प्रयासों से इसे विश्व धरोहर घोषित किया गया था। जिन्हें The birdman of India’ व ‘पक्षी विज्ञान का जनक’ कहते हैं।
- भारत में सबसे अधिक पक्षी सिक्किम में है।
- 2006 में यहां डॉ. सलीम अली इंटरप्रिटेशन सेन्टर 17 जून, 2005 में खोला गया। साइबेरियन क्रेन का ध्यान रखने के लिए।
- यहां कदम्ब के वृक्ष पाये जाते हैं। जहां सर्वाधिक अजगर मिलते हैं। जिसे पायथन पॉइन्ट के नाम से जाना जाता है।
- यहां बाण गंगा नदी पर अजान बांध बना हुआ है, जो केवलादेव की जीवन रेखा कहलाता है।
- गोवर्धन नहर (आगरा नहर की वितरिका) से अजान बांध को वर्तमान में भरा जाना (प्रस्तावित) है।
- इसे विश्व के 10 शीर्ष अभ्यारण्यों में शामिल किया गया है।
- यहां राज्य की प्रथम वन्य जीव प्रयोगशाला स्थापित है।
- यहां पायें जाने वाले सैनिक जांघील व सिलेटी टिटहरी पक्षी को रेड डाटा बुक में स्थान दिया जा चुका है।
- यहाँ पर ही व्हाइट ईगल, पेराग्रिन फाल्कन, स्पैरो हॉक, स्कॉप उल्लू लार्ज हॉक, लेपवीर जैसे प्रवासी शिकारी पक्षियों को भी देखा जाता है
- यहाँ पर मिलने वाली कूटू घास साइबेरियन सारस की पसंदीदा घास एवं एंचा घास पक्षियों की मौत का कारण बनती है।
- यह राजस्थान का प्रथम अभिसमय/नमभूमि/वेटलैण्ड स्थल है। (दूसरा स्थल साँभर है)
3 मुकुन्दरा हिल्स राष्ट्रीय उद्यान (दर्रा अभ्यारण्य) कोटा-झालावाड़-बारां
- स्थापना- 1955, राष्ट्रीय उद्यान घोषित 9 जनवरी, 2012, क्षेत्रफल- 27441 वर्ग किमी. (199.55 वर्ग किमी. राष्ट्रीय उद्यान।)
- 15 कोटा में (मुकुन्दरा की पहाड़ियों से लेकर गागरोण तक फैला हुआ है)।
- राज्य का तीसरा टाइगर रिजर्व प्रोजेक्ट (10 अप्रैल, 2013)। वर्तमान में राज्य के कोटा, बूंदी, झालावाड़ एवं चित्तौड़गढ़ चार जिलों को जोड़कर इसे तीसरा टाइगर रिजर्व बनाया गया है जिसका कुल क्षेत्रफल 759.99 वर्ग किमी. होगा।
- 2003 में सरकार द्वारा राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया। इसका नाम राजीव गांधी नेशनल पार्क रखा था, लेकिन 2006 में इसका नाम मुकुन्दरा हिल्स राष्ट्रीय पार्क रखा गया। जिसकी अधिसूचना 2009 में जारी कि गई।
- मुख्य आकर्षण गागरोनी तोता पाया जाता है। अन्य नाम- टुंइया तोता, हीरामन तोता, हिन्दूओं का आकाश लोचन । वैज्ञानिक नाम एलेक्जेन्ड्रिया पेराकीट (यह मनुष्य की आवाज में बोलता है।)
- पुरातात्विक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण आदिमानव के शैलाश्रय व शैलचित्र दर्रा अभयारण्य स्थित मुकंदरा हिल्स में पाये जाते है।
- यहाँ पर वन्य जीवों को पास से देखने के लिए झामरा, अमझार, तलाई, बोड़ा, रामसागर आदि स्थानों पर अवलोकन स्तम्भ बने हुए है, जिन्हें रियासती काल में ओदियाँ कहा जाता था।
- यहाँ पर हाड़ौती शासक मुकंद सिंह ने अपनी पासवान अबली मीणी के नाम पर ‘अबली मीणी का महल’ बनवाया। जिसे राजस्थान का छोटा ताजमहल या दूसरा ताजमहल भी कहते है। इस प्रकृति प्रेमी शासक के नाम पर ही इस राष्ट्रीय पार्क का नाम मुकंदरा हिल्स राष्ट्रीय पार्क रखा जायेगा। (घोषणा 17 नवम्बर, 2009)।
- यहाँ पर रावठा महल, गागरोन किला एवं गुप्त कालीन मंदिर भीम चंवरी, बाडोली का शिव मंदिर (हूण शासक तोरमाण द्वारा निर्मित राज्य का एकमात्र गुप्त कालीन मंदिर) स्थित है।
वन्यजीव अभ्यारण्य
1 राष्ट्रीय मरु उद्यान (जैसलमेर-बाड़मेर) –वर्तमान में राजस्थान का सबसे बड़ा अभ्यारण्य है।
क्षेत्रफल- 1962 + 1200 = 3162 किमी. |
स्थापना- 8 मई, 1981
- 21 मई, 1981 को घोषित राज्य पक्षी गोडावण (माल-मोरड़ी, सोन चिड़ियां, गुधनमेर, हुकना, ग्रेट इंण्डियन बस्टर्ड। वैज्ञानिक नामकैरीयोटीस नाइग्रोसिस) के संरक्षण के लिए इसे राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया था, लेकिन अभी तक यह अभ्यारण्य ही है।
- गोडावन पक्षी सोंखलिया (अजमेर) व सोरसेन (बारां) में भी पाया जाता है।
- अशद रहमानी- Bombay Natural Society ने एक गोड़ावण Task
force गठित की है। इसका अध्यक्ष अशद रहमानी को बनाया है। - आकल गाँव व सुदासरी गाँव (जैसलमेर) में आकल वुड फॉसिल्स पार्क स्थापित है। जिसकी स्थापना करोड़ो वर्षों पुराने वृक्षों के अवशेषों को सुरक्षित रखने के लिए की गई है। रामगढ़ में यहां 25 करोड़ वर्ष पुराने जीवाश्म है, जिसमें 10 अनावृत व 15 आवृत है।
- N.H.-15 बीच में से गुजरता है तथा यहां 1365 गांव-ढाणियां है।
- यहाँ पर सुंदर मुख वाले सुनहरे व काले हिरण, ग्रास हॉपर व टिड्डियों के दल उभयचर जंतु टॉड (मेंढक) की प्रजाति एंडर्सन, मरू बिल्ली, चिंकारा, तिलोर (हुबारा), किंग कोबरा (सर्वाधिक जहरीला सर्प), स्मेण्डवाईपर, रसल्सवाईपर इत्यादि जन्तु मुख्य आकर्षण है।
- यहाँ पर पानी को एकत्र करने के लिए भूमिगत पाइपों के माध्यम से टैकों के एक जाल का निर्माण किया गया है जिन्हें गजलर के नाम से जाना जाता है।
2 सरिस्का अभ्यारण्य- अलवर
- स्थापना- 1955 (1958), क्षेत्रफल- 492.29 वर्ग किमी. (180 वर्ग किमी. टाईगर प्रोजेक्ट का भाग)
- प्रसिद्ध- यहां हरे कबूतर पाये जाते हैं। वर्तमान में अजमेर (तिलोनिया) में भी पाये जाते हैं।
- 1978 में राजस्थान का दूसरा टाईगर प्रोजेक्ट बना।
- 2005 में बाघों की गणना करने पर यहां शून्य बाघ मिलेअतः यह चर्चित रहा।
- प्रधानमंत्री ने टाईगर टास्क फॉर्स का गठन किया। इसकी अध्यक्षता सुनिता नारायणन को दी गई।
- Center for Science and Environment (CSE) की Director सुनिता नारायणन है।
- बाघों के शिकारी- संसार चन्द्र, काल्या बावरिया।
- मेहरोत्रा कमेटी- R.N. मेहरोत्रा की अध्यक्षता में गठित की गई जिसने बाघ कमी के लिए तत्कालीन मुख्य वन्यजीव संरक्षक (I.E.S.) को जिम्मेदार ठहराया था।
- यहां के 5 धार्मिक स्थल प्रसिद्ध हैं-
(i) महाराजा भर्तृहरि की तपोस्थली
(ii) महाभारत कालीन हनुमान जी का शयनमुद्रा वाला मंदिर, पांडुपोल
(iii) गढ़राजोर का जैन मंदिर।
(iv) पाराशर आश्रम
(v) नीलकण्ठ का शिव मंदिर-एकमात्र नृत्यरत गणेश का मंदिर।
(vi) तालवृक्ष मंदिर - यहाँ के कालीघाटी क्षेत्र में सर्वाधिक मोर पाये जाते है।
- ब्रिटिश संस्था ट्रेबल ऑपरेटर्स फॉर द टाइगर ने बाघिन मछली को लाइफ टाईम अचीवमेंट अवार्ड नई दिल्ली में 24 अप्रैल, 2009 को प्रदान किया। यह अवार्ड रणथम्भौर के क्षेत्रीय निदेशक शफादत्र हुसैन को प्रदान किया गया।
- मछली (T-16) की बेटी टी-17 को मुख्यमंत्री श्री अशोक गहलोत द्वारा चूरू की एथेलेटिक्स कृष्णा पूनियां (राष्ट्र मण्डल खेलों में डिस्क थ्रो में स्वर्ण पदक विजेता) के नाम पर कृष्णा नाम दिया गया है। T-16 को रणथम्भौर क्वीन/लेडी ऑफ द लेक/क्रोकोडाइल किलर के नाम से भी जाना जाता है।
- यहाँ पर महाराजा तेजसिंह के समय 1947 में फोरेस्ट सेटलमेन्व रिपोर्ट तैयार की गई जिसे पीली किताब/येलो पेपर कहते है।
- इस अभयारण्य में नारायणी माता का मंदिर, कांकनबाड़ी का पठार (किला), क्रास का पठार व नेड़ा की छतरियाँ भी स्थित है।
3 तालछापर अभ्यारण्य-चूरू
- स्थापना- 1971, क्षेत्रल-7.19 वर्ग किमी.। उपनाम काले हिरणोंका संसार। * मुख्य आकृषण- कृष्ण मृग, कुरजा पक्षी, लेगर फाल्गन शिकारी पक्षी, हंस प्रजाति का बारहेडेड गूज, ग्रेलेण्ड गूज।
- प्रमुख घास- धामण, दूब लुणिया, लाणा, करड़ झेरना, अंजन, मूरात, मोथीयां,
- शेखावाटी का एकमात्र अभ्यारण्य, जो कृष्ण मृग के लिए प्रसिद्ध है।
- बीकानेर के महाराजा गंगासिंह के द्वारा 1920 में काले हिरणों के संरक्षण के लिए प्रयास किया गया।
- डूंगोलाव-भैंसोलाव तालाबों का निर्माण करवाया गया। कृष्ण मृग पाए जाने का कारण- मोथिया घास (साइप्रस रोटण्ड्स)।
- खींचण के बाद सर्वाधिक कुरजां पक्षी यहीं पाए जाते हैं। कुरजां का नाम डोमिसाइल क्रेन।
- यहाँ कृष्णा मृग एक विशेष प्रकार की प्रणय क्रीड़ा (Loving Play लेकिंक/हरम) करते है।
- इस अभयारण्य में क्षारीय भूमि में उगने वाली लाना झाड़ी देखने को मिलती है।
4 टॉडगढ़ रावली अभ्यारण्य – अजमेर, पाली व राजसमंद
- एक मात्र अभ्यारण्य जो 3 संभागों में (अजमेर, जोधपुर व उदयपुर)
- स्थापना- 1983, क्षेत्रफल- 475.02 वर्ग किमी.।
- जंगली जरख व रीछ के लिये प्रसिद्ध है।
- यहां दूधलेश्वर महादेव का मंदिर है।
- खामली घाट व गोरम घाट दो सुरम्य स्थल यहां मिलते हैं।
5 कुम्भलगढ़ अभ्यारण्य – राजसमंद - स्थापना- 1971, क्षेत्रफल- 610.05 वर्ग किमी. ।
- उपनाम- लोमड़ियों व भेड़ियों प्रजनन स्थली।
- इतिहास के आधार पर यह महाराणा प्रताप की जन्म स्थली, उदयसिंह की पालन स्थली व कुम्भा की मृत्यु स्थली है।
- बनास व साबरमती नदियों का उद्गम यहीं से होता है, जो अगल-अलग स्थानों पर जाती है।
- चन्दन वृक्षों के लिए प्रसिद्ध है।
- जंगली धूसर मूर्गों के लिए प्रसिद्ध है।
- यह राजसमंद, पाली व उदयपुर में फैला है। यह भेड़ियों के लिए प्रसिद्ध है। * रणकपुर जैन मंदिर इसी अभ्यारण्य क्षेत्र में, मथाई नदी के किनारे, निर्माता-धरणक सेठ, देपाक वास्तुकार, 1444 खम्भों वाले।
- यहां पाये जाने वाले चौसिंघा को स्थानीय भाषा में घण्टेल कहते हैं। जो एण्टीलोप प्रजाति का हिरण है।
6 सज्जनगढ़ अभ्यारण्य – उदयपुर - बड़े आकार के गुलाबों के लिए प्रसिद्ध है।
- यह राजस्थान का सबसे छोटा अभ्यारण्य है। 5 km2 फैलाव क्षेत्र।
- सबसे नया यह 1987 में बना।
- यहां राजस्थान का दूसरा जैविक पार्क (Biological Park) यहां स्थापित किया जा रहा है। (पहला नाहरगढ़ में है)
- यहां सज्जनगढ़ का किला बांसदड़ा पहाड़ी पर बना है।
7 फुलवारी की नाल – उदयपुर (पाली, राजसमंद) - स्थापना- 1983, क्षेत्रफल- 511.04 वर्ग किमी.
- यह मानसी-वाकल नदी का उद्गम स्थल है। सोम नदी इसके मध्य से गुजरती है।
- यहा पर जलसंसाधन विभाग ने महदी बाँध का निर्माण किया गया है।
- यह देश का प्रथम हुमन एनोटॉमी पार्क विकसित किया जा रहा है।
- माउण्ट आबू के पश्चात् जंगली मुर्गा यहीं मिलता है।
8 जयसमंद अभ्यारण्य- उदयपुर - क्षेत्रफल-52.03 वर्ग किमी ।
- उपनाम- जलचरों की बस्ती।
- अभयारण्य में जयसमंद झील स्थित है।
- बघेरों के लिये प्रसिद्ध है।
9 बस्सी अभ्यारण्य – चित्तौड़गढ़ - स्थापना- 1988, क्षेत्रफल- 138 वर्ग किमी.
- बामणी व ओराई नदीयां यहीं से गुजरती है।
- यह चितल, कछवाह, उदबिलाव तथा जंगली बाघों के लिए प्रसिद्ध है।
10 भैंसरोड़गढ़ अभ्यारण्य- चित्तोड़गढ़ - स्थापना- 1983, क्षेत्रफल- 201 वर्ग किमी.
- उपनाम- घड़ियालों की पसन्द ।
- यहां बामणी व चम्बल नदी मिलती है।
- वर्तमान में यह अभ्यारण्य राणाप्रताप सागर के डूब क्षेत्र में आता है।
- यह घड़ियालों के लिए प्रसिद्ध है।
- भैंसरोड़गढ़ अभयारण्य में मानदेसरा का पठार एवं सपाट ढालों वाली संकरी घाटियाँ ‘खोह तथा ग्रेनाइट, सेण्ड स्टोन व क्वार्टजाइट चट्टानों के लिए विख्यात है।
11 सीतामाता अभ्यारण्य – प्रतापगढ़ व चित्तौड़
- स्थापना- 1979. क्षेत्रफल-422 वर्ग किमी.
- यह उड़न गिलहरियों (मशोवा, रेड फलाइंग स्क्विरल पेटोरिस्टा एल्बीवेन्टर) के लिए प्रसिद्ध है। यह गिलहरि दिन में महुवा वृक्ष के कोटर में रहती है व रात्रि में बाहर निकलती है।
- चीतल की मातृभूमि सीतामाता। यहां से करमोई, जाखम, सीतामाता, टांकीया, नालेश्वर व इरू नदियां निकलती है।
- सागवान के वन पाये जाते हैं, हिमालय के पश्चात् सबसे अधिक जड़ी
बूंटियों वाला स्थल है। - यहाँ एंटीलोप चौसींगा पाया जाता है। जिसे भेड़ल कहा जाता है इसमें नर के सिर पर 4 सिंग होते है।
- लव व कुश दो जल स्रोत यहां स्थित है।
- यह राजस्थान का सर्वाधिक जैव विविधता वाला अभयारण्य है। इस अभयारण्य में आर्किड़ (विश्व में सबसे छोटे बीज वाला पादप) की दो दुर्लभ प्रजातियाँ एरीडीस क्रिस्पम एवं जुकजाइन स्ट्रेप्टामेटिका पायी जाती है।
- लोरीकीट पक्षी व राजस्थान की सबसे सुन्दर छिपकली यूब्लेफरिस व रात्रिचर प्राणी जिसे स्थानीय भाषा में आड़ा हुआ (पेंगोलिन प्रजाति) भी कहते है, इसी अभयारण्य में पाये जाते है।
- राजस्थान का सबसे ऊँचा बाँध जाखम (81 मी.) इसी अभयारण्य में स्थित है।
12 माउण्ट आबू अभ्यारण्य – सिरोही - स्थापना-1960, क्षेत्रफल- 326 वर्ग किमी.
- सबसे अधिक ऊंचाई पर स्थित अभ्यारण्य ।
- यहां पर बब्बर शेर (1872) तक पाया जाता था।
- यहां जंगली मुर्गा पाया जाता है।
- डिक्लिपटेरा आबूएंसिस बड़े फूल वाला पौधा है। जो विश्व में एक मात्र यहीं मिलता है। सितम्बर के माह में फूल आता है।
- यहां पर लैन्टाना नामक झाड़ी विशेष रूप से देखने को मिलती है | जो बीकानेर के महाराजा गंगासिंह अमेरिका से लाए थे।
- अनादरा (Point)- यहां से सम्पूर्ण अभ्यारण्य को देख सकते हैं। इसके पास वर्षभर बहने वाला झरना स्थित है।
- इसी अभ्यारण्य क्षेत्र में दिलवाड़ा के जैन मंदिर है।
- यहां अंजीर के पेड़, वनगुलाब, इंदोक (हिंगोट)।
- यहां औषधीय पादप शोध केन्द्र की स्थापना की गई।
- यहां कारा (स्ट्रोबिलेन्थस कैलोसम) नामक घास पाई जाती है जो नक्की झील का प्रदुषक है।
- भारत सरकार ने जून 2009 में इसे इक्को सैंसेटिव जोन घोषित किया है, इस कारण राज्य सरकार ने इसे अभ्यारण्यों कि श्रृंखला से बाहर कर दिया है। वर्तमान में इसकी जगह बीसलपुर को नवीन अभ्यारण्य बनाया जायेगा।
13 राष्ट्रीय चम्बल घड़ियाल अभ्यारण्य – कोटा, - स्थापना-1979, क्षेत्रफल-274 वर्ग किमी.
- उपनाम- जलीय पक्षीयों के प्रजनन स्थली, घड़ियाल का संसार
- चम्बल नदी के दोनेंतरफ 1-1 किमी के क्षेत्रकोअभ्यारण्य घोषित किया गया है।
- चम्बल नदी उत्तरप्रदेश, राजस्थान व मध्यप्रदेश में बहती है।
- यहां गेंगेंटिक डाल्फिन (गांगेय सूंस), घड़ियाल, मगरमच्छ, कछुए पाये जाते हैं।
- जवाहर सागर वर्तमान में इसी का भाग है।
- अभ्यारण्य में गेपरनाथ महादेव का मंदिर स्थित है।
14 जवाहर सागर अभ्यारण्य – कोटा
स्थापना- 1975,
क्षेत्रफल- 182 वर्ग किमी.
*यहाँ जीयोमोर फोलोजी पर्यटन केन्द्र विकसित किया जा रहा है जो पूर्णतयाः प्रदुषण रहित स्थान है। यहाँ मानव निर्मित कोई भी वस्तु दिखाई नहीं देती।
15 शेरगढ़ अभ्यारण्य – बारां - स्थापना-1981, क्षेत्रफल- 81 वर्ग किमी.
- उपनाम- सांपों की शरण स्थली।
- 1983 से पहले सर्वाधिक बाघ यही पाये जाते थे।
- परवन नदी इसके मध्य से गुजरती है। यहां गोडावण देखने को मिलता है।
- यहां घास के बड़े-बड़े मैदान पाये जाते हैं। इन मैदानों को स्थानीय भाषा में बरड़े कहते हैं।
- यहां काला भेड़िया भी पाया जाता है।
- वर्तमान में यहां की देखरेख धर्म कुमार सिंह व अशद रहमानी कर रहे है।
16 रामगढ़ विषधारी अभ्यारण्य – बूंदी।
- स्थापना-1982,
- क्षेत्रफल-307 वर्ग किमी.
- उपनाम- अजगर की शरण स्थली ।
- बाघ संरक्षण स्थलों के अलावा यहां बाघ मिलता है।
- वर्तमान में इसे रणथम्भौर में शामिल करने की योजना है।
- मेज नदी इसके मध्य से होकर गुजरती है।
- इसमें रामगढ़ महल स्थित है।
17 बंध बारेठा अभ्यारण्य– भरतपुर - स्थापना-1985,
- क्षेत्रफल-199 वर्ग किमी।
- उपनाम- परिंदो का घर।
- बंधबारेठा बांध- कुकुन्द नदी पर।
- यह पक्षियों के लिए प्रसिद्ध है।
- यह जंगली जरखों के लिए प्रसिद्ध है।
18 सवाई मानसिंह अभ्यारण्य – सवाई माधोपुर - स्थापना-1983,
- क्षेत्रफल-113 वर्ग किमी।
- रोहिड़ा के वृक्ष बड़ी संख्या में मिलते हैं।
- यहां धोकड़ा के पेड़ भी मिलते है।
- यहाँ वन विभाग द्वारा 1 जनवरी, 2008 को चिड़ीखोह नामक नया पर्यटन केन्द्र खोला गया है।
19 कैला देवी अभ्यारण्य – करौली - स्थापना- 1983,
- क्षेत्रफल- 676 वर्ग किमी.
- यहां त्रिकुट पर्वत पर कैला देवी का मंदिर है।
- यहां सर्वाधिक धौंकड़े के पेड़ पाये जाते हैं।
- 1991 में इसे रणथम्भौर टाइगर रिजर्व का भाग बनाया गया है।
- इसे डांगलेण्ड के नाम से भी जाना जाता है।
20 नाहरगढ़ अभ्यारण्य – जयपुर - स्थापना-1980,
- क्षेत्रफल-52 वर्ग किमी.
- राजस्थान का प्रथम जैविक उद्यान (Biological Park) यही पर है। (2007) * यहां सियार, नीलगाय व बघेरे पाये जाते हैं।
- यहां से द्रव्यवती नदी (अमानीशाह नाला) निकलता है। यह आथुनी कुण्ड से निकलती है।
- यहां देश का तीसरा बीयर रेस्क्यू सेंटर खोला जायेगा।
- यहाँ पर 2006 से एलीफेंट सफारी की भी व्यवस्था की गई है।
- यहाँ लॉयन सफारी शुरू करने की घोषणा की गई है।
21 जमवारामगढ़ अभ्यारण्य – जयपुर
- स्थापना-1982,
- क्षेत्रफल- 300 वर्ग किमी.
- यहां बघेरा व जरख पाया जाता है।
- यह नील गाय व लंगुरों के लिए प्रसिद्ध है।
- यहाँ जमवाय माता का मंदिर एवं रामगढ़ व हवाहौद नामक दो झीलें स्थित है।
22 रामसागर अभ्यारण्य – धौलपुर - स्थापना- 1955,
- क्षेत्रफल- 34 वर्ग किमी.
- यहां तालाब-ए-शाही झील स्थित है।
- 1622 में सालेह ने बनवाया।
- यहां भेड़िए पाये जाते हैं।
23 वनविहार अभ्यारण्य – धौलपुर - स्थापना-1955,
- क्षेत्रफल-25 वर्ग किमी.
- यह अभ्यारण्य राजस्थान में साइबेरियाई सारसों का द्वितीय आश्रय स्थल है।
- उर्मिला सागर व झोरदा बांध यहीं स्थित है।
24 केसर बाग अभ्यारण्य – धौलपुर - क्षेत्रफल- 15 वर्ग किमी.
- महाराजा उदयमान सिंह ने स्थापित करवाया।
25 गजनेर अभ्यारण्य – बीकानेर - स्थापना- 1979,
- क्षेत्रफल-275 वर्ग किमी.
- उपनाम- रेत के तीतर का घर
- यहाँ विश्व प्रसिद्ध बटबड़ पक्षी, रेत का तीतर (इम्पीरियल सैण्ड गाऊज ) पक्षी पाया जाता है।
- यहाँ प्रसिद्ध गजनेर पैलेस व जेठा मुठ्ठा पीर शाह की दरगाह स्थित है।
26 बीसलपुर वन्यजीव अभ्यारण्य – टोंक - यह अभ्यारण्य राज्य सरकार द्वारा बीसलपुर बाँध के भराव क्षेत्र में विकसित किया जा रहा है।
- यह राज्य का नवीनतम वन्यजीव अभ्यारण्य है।
- सत्याग्रह उद्यान आउवा (पाली) में स्थित है।
आखेट निषिद्ध क्षेत्र
- वन्य जीव सुरक्षा अधिनियम 1972 की धारा 37 से संबंधित है।
- कुल क्षेत्रफल- 2671994 वर्ग किमी.
- राजस्थान में 33 आखेट निषिद्ध क्षेत्र हैं-
1 जोधपुर- सर्वाधिक जोधपुर में स्थित है- डोली धावा, गुढ़ा विश्नोई, ढेचूं, फीटकाशनी, साथिन, जम्मेश्वर जी तथा लौहावट ।
2 बीकानेर- 5 आखेट निषिद्ध क्षेत्र- मुकाम, दियातरा (दियात्रा), जोड़बीर, बज्जू, देशनोक।
3 अजमेर- 3 आखेट निषिद्ध क्षेत्र- सोंखलिया, गंगवाना व तिलौरां ।
4 अलवर- बोद तथा जौड़िया।
5 नागौर- रो, तथा जारौदा।
6 जैसलमेर- उज्जला तथा रामदेवरा (दूसरे सबसे बड़े क्षेत्र-3100
7 जयपुर- महला (दूसरा सबसे छोटा- 5 किमी.2)।
8 दौसा- सैंथल सागर (3 किमी.2)।
9 टोंक- रानीपुरा।
10 सवाईमाधोपुर – कंवालजी
11 बूंदी – कनकसागर (सबसे छोटा)
12 पाली – जवाई बांध
13 जालौर – सांचौर
14 बाड़मेर – धोरीमन्ना
15 बारां – सोरसन
16 चित्तौड़ – मैनाल
17 उदयपुर – बागीदौरा
18 चूरू- संवत्सर-कोटर (सबसे बड़ा – 7091 किमी.2)। - ऐसे जिले जहां पर कोई राष्ट्रीय पार्क, अभ्यारण्य व आखेट निषिद्ध क्षेत्र नहीं हैं- गंगानगर, हनुमानगढ़, सीकर, झुंझुनूं डूंगरपुर, बांसवाड़ा तथा भीलवाड़ा।
राज्य में मृगवन-
1 चित्तौड़गढ़ मृगवन (दुर्ग मृगवन)- चित्तौड़गढ़
- स्थापना- 1969 (सबसे प्राचीन)
- इसके पास दर्शनीय स्थल विजय स्तम्भ, मीरा मंदिर, पद्मनी महल स्थित है।
2 पंचकुण्ड पुष्कर मृगवन (लीला सेवड़ी)- पुष्कर, अजमेर - स्थापना-1985
- इसके पास पुष्कर सरोवर, ब्रह्या मंदिर, मोनी बाबा का आश्रम, पाण्डव कुण्ड स्थित है।
3 सज्जनगढ़ मृगवन – उदयपुर - स्थापन- 1984
- इसके पास नीमच माता का मंदिर व फतेह सागर झील स्थित है।
4 माचिया सफारी पार्क- जोधपुर - स्थापना-1985
- यह देश का प्रथम राष्ट्रीय वानस्पतिक उद्यान है।
- इसके पास मेहरानगढ़ दुर्ग, उम्मेद पैलेस व राई का बाग स्थित है।
5 संजय उद्यान मृगवन- शाहपुरा, जयपुर, - स्थापना-1986
- पर्यावरण संरक्षण की जानकारी देने के लिए इसे ग्रामीण चेतना केन्द्र के रूप में विकसित किया गया है।
6 अशोक विहार मृगवन- सचिवालय, जयपुर, - स्थापना-1986
7 अमृता देवी मृगवन- खेजड़ली, जोधपुर, स्थापना-1994 - यह राज्य में नवीनतम स्थापित मृगवन है।
- यहाँ मरू लोमड़ी पाई जाती है।
- यहाँ विश्व का एकमात्र वृक्षमेला लगता है।
राज्य के जन्तुआलय
1 जयपुर जन्तुआलय- जयपुर
- स्थापना-1876 में रामसिंह द्वितीय द्वारा।
- वन्य जीवों की 40 व पक्षियों की 75 जातियां उपस्थित तीन रेंगने वाले जीव- मगरमच्छ, घड़ियाल, अजगर ।
- यह घड़ियाल के कृत्रिम प्रजनन केन्द्र के लिए प्रसिद्ध है।
- राज्य का सबसे बड़ा व सबसे प्राचीन जन्तुआलय।
2 उदयपुर जन्तुआलय- उदयपुर - स्थापना- 1878 में स्वरूप सिंह ने गुलाब बाग में बनवाया।
3 बीकानेर जन्तुआलय– बीकानेर
स्थापना- 1922 में। वर्तमान में बंद।
4 जोधपुर जन्तुआलय- जोधपुर, - स्थापना- 1936 में।
- यह ‘एवरी’ पक्षीशाला के लिए प्रसिद्ध । 112 प्रकार के पक्षी पाये जाते है।
- गोड़ावण के कृत्रिम प्रजनन के लिए प्रसिद्ध है।
5 कोटा जन्तुआलय- कोटा - स्थापना- 1954 में
- उत्तरी भारत का प्रथम सर्प उद्यान यहां स्थित है।
- राज्य में स्थापित नवीनतम जन्तुआलय।
महत्वपूर्ण तथ्य
- कैलाश सांखला- वन्य जीव प्रेमी, जोधपुर निवासी। The Tiger & Thereturn of Tiger इनकी पुस्तकें। 8 राज्य पशु- चिंकारा- 1993 में घोषित।
- राज्य पक्षी-गोड़ावण (Great Indian Busterd)-1981 में घोषित।
- राज्य वृक्ष- खेजड़ी (प्रोसोपिस सिनेरेरिया)- 1983 में घोषित।
- राज्य पुष्प- रोहिड़ा (टिकोमेला अण्डुलेटा)- 1983 में घोषित।
- देश का प्रथम भालु अभ्यारण्य जालौर व सिरोही के मध्य जसवंत पुरा क्षेत्र के सुंधा माता क्षेत्र में विकसित किया जायेगा।
- मोर अभ्यारण्य झुंझुनूं में प्रस्तावित है तथा गाय अभ्यारण्य अजमेर संभाग में प्रस्तावित है।
- जैसलमेर के शाहगढ़ बल्ज क्षेत्र को केन्द्र सरकार ने देश का प्रथम चीता अभ्यारण्य घोषित किया है। जहाँ सरकार अफ्रीका व ईरान से चीता स्थानान्तरित करेगी।
- प्रथम गधा अभ्यारण्य ढूंडलोद, झुंझुनूं में प्रस्तावित है।

- रिकॉडेड – 80142 अनरिकॉडेड – 8558 K.M.2 कुल 16572 K.M.2
- वर्ष – 2015 – 16106 K.M.2
- 2017 – 16572 K.M.2
- अन्तर — 466 K.M.2 वृद्धि दर्ज की गई है। 9 स्थान
राजस्थान वन संसाधन | ||||
क.म. | वर्षा | नाम | कुल क्षेत्रफल | प्रतिशत |
1 | 150 C.M. | उपोष्ण कटिबन्धीय सदाबहार वन | 126.4 | 0.39 |
2 | 80 – 110 C. M. | शुष्क सागवान वन | 2247.87 | 6.86 |
3 | 60 – 90 C.M. | उष्ण कटिबंधीय शुष्क पतझडी वन | 9292.86 | 28.38 |
4 | 50 – 80 C. M. | उष्ण कटिबधीय धोक वन | 19027.75 | 58.11 |
5 | 50 -25 अर्द्र शुष्क वन 25 से कम मरुस्थलीय वन | शुष्क कांटेदार वन | 2041.52 | 6.26 |


अरावली वृक्षारोपण Project -1992
- जापान की सहायता से
- मरुस्थलीय वृक्षारोपण कार्यक्रम – 1978, 50% केन्द्र सरकार
- अरावली देवनन सरंक्षण कार्यक्रम – 1992 ।
- उदयपुर, लोक श्रमदान पर आधारि
- वानिकी विकास परियोजना – 1995
- गैर मरूस्थलिय 15 जिलो में
- राजस्थान वानिकी (Forestry) एवं जैव विविधता परियोजना
- फेज-1 2003-2008 (JICA) द्वारा वित्त पोषित जापान इन्टरनेशनल को ऑपरेटिव एजेन्सी (18 जिलो में)
- फेज-II (अम्टूम्बर 2011 से मार्च 2019)
- Main Aim-Joint Forest Management – साझा वन प्रबन्धन कुल लागत – 1152.53 करोड़
- क्षेत्र – 15 जिले – बीकानेर चुरू, जोधपुर, जैसलमेर, जालौर, पाली, सिरोही, बाडमेर, जयपुर, सीकर, झुझुंनू, नागौर, भीलवाडा, बॉसवाडा, डूंगरपुर, कुम्भलगढ, फूलवारी नाल, जयसमन्द, सीता माता, बस्सी रावली टाटगढ़, कैलादेवी
- हरित राजस्थान 2009 – 10 वी व 11 वी योजना काल